Science is hidden behind Holika Dahan books and stories free download online pdf in Hindi

होलिका दहन के पीछे छुपा है विज्ञान

होलिका दहन
वर्षो से हम होलिका दहन करते आये है । देखते आये है । और आगे देखते भी रहेंगे ।
इस उत्सव को समझना होगा । इसके पीछे का रहस्य समझना होगा । इस पर विचार करना जरूरी है । और अपने बच्चो को भी बताना जरूरी है । आइए बात करते है इस पर्व के पीछे के रहस्य पर ।
सनातन धर्म मे तीन दहन प्रसिद्ध है । होलिका दहन, काम दहन , और लंका दहन ।
मै बाकि के दहन पर चर्चा नही करूंगा । सिर्फ होलिका दहन पर चर्चा करूंगा । मै उस कथा पर भी चर्चा नही करूंगा, जिसके बारे मे पुराणो मे बताया जाता है ।
विचार करे - होलिका दहन के बाद रंगोत्सव आता है । यह ऋतु परिवर्तन का समय भी है, नवसंवतसर से पूर्व का पखवाड़ा भी है, पतझड़ का समय भी है , न इस समय सर्दी है न इस समय गर्मी है, ऐसे समय ही विषाणुओ का जन्म होता है, सम्पूर्ण भारत मे संक्रामक विषाणु इसी समय जन्म लेते है ।
पुनः विचार करे - हमारी भारतीय संस्कृति के दो आधार है । यज्ञ पिता और गायत्री माता । पहले हर घर मे यज्ञ प्रतिदिन होता था । जिससे पूरे घर मे सकारात्मक ऊर्जा हिलोरे लेती रहती थी । फिर यज्ञ छोटा हो गया । अग्नि को भोग लगाने तक सीमित हो गया । फिर गैस चुल्हे आ गये अब भोग भी बंद हो गया । हम पंच महायज्ञ प्रतिदिन करते थे । तकरीबन सारे संसार मे एक ही सनातन धर्म था । फिर कुछ नये धर्म जन्मे । यहुदियो ने भी पंच यज्ञ अपनाया । फिर उससे ईसाई निकले उन्होने प्रतीक रूप मे छोटा सा कर दिया वे आग न जलाकर मोमबत्ती जलाने लगे उनकी भी संख्या पांच कर दी । हम जानते है पारसी धर्म मे तो सदैव अग्नि को जलाकर रखते है ये अग्नि पूजन करते है । फिर मुसलमानो ने अग्नि पूजा को छोड़ दिया । किन्तु पांच वक्त की नमाज पर कायम हो गये । रही बात हिन्दुओ की इन्होने पूरी तरह से छोड़ दिया है । किन्तु जो त्योहार आते है वे जरूर देखा देखी मे मनाते है । सोचे घर घर मे यज्ञ हो रहा हो और सम्पूर्ण पर्यावरण के लिए हर गांव गांव मे होलिका दहन वह भी एक ही समय मे होता हो । किन्तु हमने इसे विकृत बना दिया है । पहले होलिका मे गोबर के उपले एवं सुगंधित औषधियां तिल चावल धान नारियल कपूर लोग इलायची आदि डाल कर होलिका दहन होता था । आजकल उपले कम और लकड़िया भी कोई भी डाल दी जाती है ।
कल्पना करे- यदि सही तरीके से ग्राम ग्राम मे शहर शहर मे एक ही समय सामूहिक यज्ञ होगा तो पर्यावरण शुद्ध होगा कि नही ।
वैज्ञानिक तथ्य- वैज्ञानिक कहते है यज्ञ से पर्यावरण शुद्ध होता है । गाय के गोबर को जलाने से प्रचुर मात्रा मे आक्सीजन बनती है । यज्ञ की अग्नि के पास थोड़ी देर रहने से हमारे मस्तिष्क से अल्फा तरंगे निकलती है जिससे हृदय को प्रसन्नता व खुशी महसूस होती है । हम स्वयं अनुभव करके देख सकते है । होलिका स्थल पर जाने से पहले मन कुछ ओर होता है । जब होलिका को जलाया जाता है, उस समय खुशी के होर्मोन्स रीलिज होने लगते है ।
रंगोत्सव - दूसरे दिन रंगोत्सव होता है । आयुर्वेद कहता है कि साल मे दो बार दस विध स्न्नान करना चाहिए । एक सावर्णि पर्व (रक्षाबंधन) पर और दूसरा धूरेंडी ( होली) पर,
दस स्नान -
1 - छानी हुई यज्ञभस्म
2 - छानी हुई चिकनी मिट्टी या मुल्तानी
3 - गोमय रस
4 - गोरस
5 - दूध
6 - दही
7 - घी
8 - मधु
9 - सर्वोषधी या हल्दी
10 - कुशा का जल
इसके बाद शुद्ध स्नान किया जाता है । ऐसा करने से शरीर के रोम रोम खुल जाते है शरीर को आक्सीजन अधिक मिलता है ।
रंगो से होली - सामूहिक रूप से रंगो से खेलना एक दूसरे को रंग लगाना । क्या यह सही है , यह तब सही नही है जब केमिकल के रंग गुलाल लगाये जाते हो, ये तब स्वास्थ्य को हानि पहुंचाते है । होली पर्व पर हल्दी व सुगंधित औषधियो को लगाया जाना चाहिए । संभवतः यह उत्सव सामूहिक रूप से मनाते मनाते हंसी ठंठोली मे यह विकृत होता चला गया । पहले अबीर गुलाल स्वास्थ्य वर्धक होती थी अब शुद्ध नही होती अतः फूलो से होली खेलना सही है ।
विवाह मे उबटन - हमने देखा है विवाह मे तैल बान रस्म होती है । जो विवाह से तीन दिन , पांच दिन , सात दिन , पहले होती है । उसके पीछे भी यही कारण रहा है दंपति का शारीरिक संबंध जब बने तो दोनो की शारीरिक तेजोवलय (ओरा) एक दूसरे को नुकसानदायक न रहे, साथ ही त्वचा भी दोष मुक्त हो जाये । किन्तु आजकल इसमे भी विकृति आ गयी है । लड़के लड़किया ब्यूटीशियन के पास जाकर अपना मेकप करवाते है । कई मित्र कहते है आजकल लड़किया विदाई मे रोती नही । मैने खुद लड़कियो को कहते सुना है । रोना मत नही तो मेकप बिगड़ जायेगा ।
अंत मे मै यही कहूंगा कि संस्कृति की रस्मो के रहस्य को समझे, अच्छा लगेगा । गर्व होगा कि हम ऐसी संस्कृति के है जो विज्ञान सम्मत है ।
✍ लेखक - कैप्टन धरणीधर पारीक जयपुर राजस्थान