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द कश्मीर फ़ाइल्स - सन 2014 - 1

[ क्या सिर्फ़ कश्मीरी पंडित ही बर्बाद हुए थे ? ]

 

“जन्नत की मुस्कान फ़कत सात लाख रुपये”

[ नीलम कुलश्रेष्ठ ]

एपीसोड - 1

'कश्मीर में चार आतंकवादी ढेर ', --'कश्मीर में आतंकवादी नेता मारा गया '--'कश्मीर में जगह जगह पत्थर मारते लोग '--'कश्मीर में घर पर छुट्टी मैंने आये नौजवान फौज़ी की हत्या '---हर तीसरे दिन अख़बार में कश्मीर के विषय में ऐसा ही कुछ पढ़कर दिल दुखता है। उन ख़ूबबसूरत वादियों में रहना इतना खूबसूरत क्यों नहीं हो पा रहा ? लोगों के दिल किसने इतने बदसूरत कर दिए हैं ?----सैलानी फिर से वहाँ जाने में कतराने लगे हैं। तब टैक्सी ड्राइवर अयाज़ बता रहा था कि बरसों पहले लोग जो पत्थर बरसाते थे उनकी शनाख्त ही नहीं हो पाई थी। --आज के ये पत्थर बरसाते लोग चाहे रूमालों या मफ़लर के नक़ाब लगा लें, हैं तो अपने ही कश्मीर के दिग्भ्रमित किये लोग, चार बरस पहले छोटे बेटे के कारण उनकी लॉटरी निकल आई क्योंकि उसने कश्मीर घूमने का पैकेज लेकर उन्हें सरप्राइज़ दिया था। पत्त्थरमारी में कौन वहां घूमने की हिम्मत कर पाता होगा ? पत्त्थरमारी से कुछ वर्ष पहले की वह अपनी उस यात्रा को याद करने लगती है तो एक एक लमहा सामने आता जाता है ----

अपना बेहद ख़ूबसूरत हिस्सा कोई कैसे किसी को दे सकता है ? ख़ूबसूरत हिस्सा वो भी दुनियाँ के आसमान को चूमते पेड़ों वाले सबसे ऊँचे पहाड़ों के हाथों मे घिरा हुआ, दिल की ऊपर जाती ऊँची या नीची जाती ढलानों जैसा -नदियों को अपने पथरीले सीने से उलीचता जिसकी सीमाओं पर फ़र के पेड़ आसमान को चूमते है. अखरोट व सेव के पेड़ों से ढेरों फल मैदानी भागों में चल पड़ते ज िधर पर्वतों पर लिपटी हुई कुहासे भरी ख़ामोशी दिल में गहरे धँस जाती है या पहाड़ों के शिखरों पर धूप से चमकती बर्फ़ आँखों में जीवन की चमक भर देती है. कभी मेह सी बरसती है --झर ----झर ---झर रुई सी बर्फ़. वो लोग कितने बेरहम होने जिन्होंने इस खूबसूरती पर बारूद बिछाना शुरू किया होगा या बंदूकें तान ली होंगी. वो कैसे सोच पाये होंगे इसके बाशिंदों पर जहर बुझी बातों के सख़्त कालीन बिछाना---इस जन्नत को दोज़ख में बदलना. इस जन्नत में आकर इसकी ख़ूबसूरती में डूबकर भी कैसे इसके पुराने ज़ख्म कलेजे में टीसने लगते है. ये हमारा हिस्सा है -ये कराहा था तो हम कहाँ इससे महरूफ़ रह पाये थे? सैकड़ों मील दूर बैठा हमारा दिल भी दर्द से कराहा था लेकिन कितनी दो अलग बातें है किन्ही जख्मों की बातें सुनना व दुखी होना या उन सुलगती जीवंत घटनाओं के बीच बारूद के विस्फ़ोट के बाद जैसी उधड़ी हुई चमड़ी की तड़प भोगना, बसे बसाये घरों को छोड़कर भागना. 

दरअसल टैक्सी ड्राइवर अयाज़ का एक वाक्य कश्मीर के उस दर्दनाक अतीत को एक झटके में हमारे सामने खड़ा कर गया था, '' मैं दूसरी क्लास में था जब मेरा कत्ल हो गया था. ''

टैक्सी सोनमार्ग बड़ी जा रही थी, उसकी नजर बाहर की ख़ूबसूरत वादियों से चौंककर अयाज़ की बात में उलझ गई, ''ऎसा क्या हो गया था ?''

''सारे कश्मीर में बस मिलिटेंट के डर से स्कूल मास्टर गांव छोड़कर भाग रहे थे या उनका धड़ाधड़ कत्ल हो रहा था. हमारा स्कूल भी बंद हो गया था. मेरे जैसे ह--ज़्ज़ारो बच्चे पढ़ाई से महरूम हो कर कत्ल हो गए. मैं पढ़ाई में बहुत अच्छा था. मेरे मामा लोग पैसेवाले थे, सेंट्रल स्कूल में पढ़ाते थे. उन्होंने मुझसे वायदा किया था कि मै चौथी कक्षा पास कर लूँगा तो वो मुझे आगे पढ़ायेंगे लेकिन मेरा स्कूल ही बंद हो गया, में कत्ल हो गया ''

किसी ज़िन्दा आदमी, वह भी युवा के मुँह से सुनना कितना तकलीफ़देह कि वह कत्ल हो गया है. तो कार की स्टीयरिंग चलाने वाले हाथ ज़िन्दा नहीं है ? ये आवाज़ एक भ्रम है ? ये देह एक भ्रम है ? कहते हैं यहाँ के पंडित अपनी जान बचाकर कश्मीर छोड़कर भाग लिए थे और जो दूसरी कौम के आम आदमी यहाँ बचे थे, वह क्या सच में ज़िन्दा बचे थे ? किस देश की सियासत ने इस खूबसूरती को रौंदने का भय दिखाकर अपने में शामिल करने की कोशिश की थी, क्या पता नहीं है ?अयाज़ मध्यम कद का छहररे शरीर वाला लड़का है. सुंदर तीखे नाक नक्श वाला लेकिन समय ने इसके चेहरे व बदन में सुन्दरता फूटने नहीं दी चेहरा सुता हुआ लगता है. गाल चपटे, काली आंखे ज़बरदस्ती से मुस्कराने को मजबूर क्योंकि पर्यटकों के निरंतर आने से मुस्कराहट व तह्ज़ीब से बातचीत करना कश्मीरी लोगों के जीवन का एक हिस्सा है. 

''कुछ तो ऎसे भी हादसे हुए कि किसी का ट्रक में सामान भर गया था लेकिन पास के मुल्क से ट्रेनिंग करके आए लड़कों की बंदूक की गोली सिर में जा घुसी कि तुम क्यों नहीं हमारी लड़ाई मे साथ दे रहे ? ''कुछ देर की ग़मगीन चुप्पी को अयाज़ स्वयम्‌ ही तोड़ता है, '' आप जो सड़क के किनारे पेड़ देख रहे है वो अखरोट के हैं. ''

आगे दो किशोर कत्थई, काला फिरन पहने हाथ में डन्डा लिए पेड़ों से अखरोट तोड़ते नज़र आए. कैसे मशगूल होकर अखरोट तोड़ रहे हैं, इन्हे नीचे की खाई में फिसल जाने का का डर भी नहीं लग रहा. ? चमकती धूप पहाड़ों के शिखरों से छन छन कर आ रही है. अयाज़ के चेहरे पर पहाड़ों के ढलानो जैसी उदासी फैली हुई है अलबत्ता वह बताता जा रहा है, ''आस पास जो आप खेत देख रहे है ये ब्राउन चावल के हैं. ज़मीदार लोग इन्हे अपने लिए बचाकर रखते, बहुत कम बेचते हैं. होटल में आप इन्हें खाइये तो सारे दूसरे चावलों को भूल जाइयेगा. ''

''एक गाँव में बहुत से ज़मीदार होते हैं ?''

''यहाँ खेती करने वालों को ज़मीदार कहते हैं. ''

जब वह पैंतीस बरस पहले यहाँ आई थी --ये जन्नत अपने पूरे उजास पर थी. प्रकृति की फैली हुई चूनर में अब भी क्या कमी है लेकिन इन वादियो में सरसरा कर गुजर गया इतिहास अपनी सिसकी क्यों नहीं दबा पा रहा ?रास्ते की पहाड़ियों पर फैले छोटे छोटे गांव के घर------ यही कहीं सन् 1887 में आग की लपटें धधक उठती होंगी, ये सोचकर सिहरन हो रही है कि बरसों पहले इन्ही वादियों में कुछ घर जले, अधजले उजड़ी हुई ज़िन्दगी जैसे फैल गये थे, जिनके मालिक जान बचाकर भाग भी पाये थे या इन्ही में जल मरे थे. ? गोलियों की आवाज़ो से वातावरण थर्रा उठता होगा ----इन्ही में दब जाती होगी किसी कश्मीरी औरत की चीख. पहाड़ी ढलानों पर फैली हुई खूबसूरती में शिखर के बर्फ़ के मखमली पैबन्दों में, चरती हुई भेड़ या पहाड़ी ठंडी हवा पहले जैसी क्यों नहीं रही है ? इनको चराती काले, मटमैले, कत्थई फिरन पहने हुई लड़कियों के गदबदे गालों की वह सेव के लाल रंग को मात देती लाल चमक कहाँ चली गई है ?

वह वादियों में लिखी इबारत पढ़ने की कोशिश नहीं करती लेकिन फिर भी वे पहाड़ों के बीच की दरार से अपना सिर उठाने से बाज़ नहीं आ रही कैसा रहा होगा वह बरस ---सन् 1989--अफगानिस्तान रूस से नई मिली अजादी के नशे में चूर होगा. यहाँ के कश्मीरी मिलिटेंट गुप चुप पहाड़ ही पहाड़ चलते अफगानिस्तान की सरहद पार कर वहां से हथियार ले आते होगे, उन खतरनाक हथियारों को चलाने में ट्रेनिंग देने में दुश्मन पाकिस्तान ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी. इस्लाम का वास्ता देकर, काफ़िरों को बर्बाद करने का ज़हर भरकर कैसे किया होगा दस हज़ार से भी अधिक नवयुवकों को गुमराह ? कैसे भागे होंगे बदहाल अवस्था में डेढ़ लाख कश्मीरी पंडित ?

बकौल अयाज़ वो कत्ल हुए नन्हे बच्चे स्कूल ठप्प हो जाने के बाद अपने गाँवों के घरों में अपने पैतृक व्यवसाय कश्मीरी कढ़ाई करने लगे थे. कलम छोड़कर सुई थाम ली थी. नन्ही उंगलियो मे जो अक्सर चुभ जाती थी, खून छलक आता था. तभी बेटी के गायब हो जाने से बिलकुल मौन रहने वाले अब्बा का एक तमाचा पड़ता, ''कोई काम सलीके से नहीं कर सकते ?'' वे अपनी उँगली की व तमाचे की सिसिकियो को फिरन की बाँह से पोंछ फिर काम में लग जाते थे उन को माँ का आँचल कब तक सम्भालता ?

वह सहमे हुए वातावरण को हल्का करना चाहती है, ''अयाज़ भाई! ढ़ाई छूट जाने के बाद क्या किया ?''

'' मै कालीन वाफ़ बन गया था. ''

''ये क्या होता है ?''

''कालीन बनाने वाले को कालीन वाफ़ कहते हैं. मै भी अब्बा हुज़ूर के साथ. किसी व्यापारी के घर से कालीन बनाने का सामान घर लाया करता था. गाँवों में बिजली का ठिकाना तो होता ही नहीं है. बिजली कभी भी घंटों चली जाती है तब रात के बारह बजे जब बिजली आए तब हमे काम क हर आदमी औरत चालीस पैंतालीस का होते ही कमर दर्द का शिकार हो जाता है. इनको खाने को अच्छा मिलता नहीं और घंटों बैठकर कढ़ाई का काम करते रहो. ''

रंग बिरंगे कपड़ों पर लाल, पीले, सफ़े. नीले, हरे धागो वाली कढ़ाई के धागे, जिस पर सारी दुनियाँ जान छिड़कती है, जाने कितनों के जीवन के धागो को उलझाती रहती है, फिर भी वह इन सबका जीवन है, रोटी है. 

अयाज़ भाई बड़ी फ़ुर्ती से सड़क के मोड़ पर टैक्सी मोड़ते हैं, ''

'' मेरा दिल इस में नहीं लगा. मै होटल में बर्तन धोने लगा. जब इसमें भी दिल नहीं लगा तो ड्राईविंग सीखकर ट्रैवल एजेन्सीज़ के लिए फ़्री लांसिंग करने लगा. ''

तभी इनके बात करने से नहीं लगता कि अयाज़ भाई सिर्फ़ दूसरी पास हैं. वे रेडियों पर खनकता हुआ कश्मीरी गीत लगा देते हैं. वह पूछ्ती है, ''यहाँ कश्मीरी फ़िल्में फि तो बनती होंगी ?''

'' फ़िल्में ?''वह् छोटा सा ठहाका लगाते हैं, ''कश्मीर में फ़िल्म थिएटर ही नहीं है तो फ़िल्म कौन बनायेगा ?''

''वॉट ?''

''यहां अभी तक आतंक बना हुआ है. उस काले समय में अक्सर फ़िल्म से निकलते हुए लोगों पर बम्ब फेंका जाता था जिससे एक साथ बहुत से लोग हलाल हो सके. तब सरकार ने थिएटर बंद करवा दिए जो आज तक बंद हैं. ''

उसे बहुत बेचैनी हो रही है कि कोई देश का ऎसा हिस्सा हो सकता है जहां फ़िल्म थिएटर ना हो ?

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नीलम कुलश्रेष्ठ

ई –मेल—kneeli@rediffamil. com