The Kashmir Files - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

द कश्मीर फ़ाइल्स - सन 2014 - 2

एपीसोड - 2

टैक्सी सोनमर्ग की तरफ़ बढ़ी जा रही है। वह सोच रही है कि हाऊसबोट के मुलाज़िम गुलामअली की भविष्यवाणी सही निकलेगी या नहीं ? आज सुबह वे हाऊसबोट के बाहरी हिस्से में बैठे झील के पार ख़ूबसूरत ऊँचे पहाड़ों की ढ़ालनों को देखते देखते हुए चाय पी रहे थे। कितना सुखद लग रहा था ख़ूबसूरत नक्काशीदार लकड़ी की हाऊसबोट की ख़ूबसूरती और सामने फैला प्रकृति का मोहक मंज़र, गाल सहलाती हवा का स्पर्श। तभी ग़ुलामअली चाय के कप्स लेने आ गया लेकिन आसमान की तरफ़ नज़र उठाकर खुश हो उठा, " आप सब बहुत किस्मत वाले हो। सोनमर्ग में आज बर्फ़बारी होगी। "

वह कैसे विश्वास करती ?, "ऐसे आप कैसे कह सकते हैं ?"

"हम बादलों का रुख़ देखकर बोला।जरूर आपको स्नो फ़ॉल देखने को मिलेगा, जरूर मिलेगा। "

उसका दिल ख़ुशी से हलके से काँप गया इतनी बड़ी किस्मत कहाँ ? लोग तो डेरा डाले कश्मीर या पहाड़ों में पड़े रहते हैं तब भी स्नो फ़ॉल देखना नसीब नहीं होता। टैक्सी में बैठी वह फ़िंगर क्रॉस कर लेती है --हे भगवान ! ये नज़ारा आज दिखा ही दे।

अयाज़ कश्मीर की वादियों में टैक्सी चलाता चला जा रहा है, बताता जा रहा है, "एक वाकया बताता हूँउन कहर के दिनों में मेरे मामा ने कह रक्खा था कि कभी वहां मत जाना जहां भीड़ हो. उन दिनों रोजमर्रा का सामान मिलता नहीं था. बस कभी कोई बिज़नेस वाला आकर दुकान लगा लेता था तो लोग टूट पड़ते थे. उन्हीं दिनों कोई पुरानी जींस बेचने आया था. मैं दोस्तों के साथ गया, बेहद भीड़ थी। मुझे मामा की बात याद आ गई. मै जींस खरीदने का मोह छोड़कर वापिस आ गया, जो दोस्त मेरे डर का मेरा मज़ाक उड़ा रहे थे. दुकान के सामने और लोगों के साथ उनके भी परखच्चे उड़ गए. "

" उफ़. "

अयाज़ का स्वर भी अतीत की किसी काली गुफ़ा से आता प्रतीत हो रहा है "मिलिटेंट ने, सेना ने हमारा सब कुछ छीन लिया था ---हमारा सुकून, हमारे घर, हमारा पैसा. यहाँ तक कि हमारी रस्में, हमारे गीत. अकसर चरवाहे भेड़ - बकरी को चराते चराते थककर, बांसुरी बजाया करते थे, ये वादियाँ उस सुरीली बांसुरी की तान से गूंजा करती थी मनहूस हो गई. लोग रात में मस्ती में अपने अपने फिरन में जली कांगड़ी लेकर झुंड में गाते थे, नाचते थे अब सब ख़ामोश हो गए हैं मतलब उतनी मस्ती नहीं रही है. "

"इतने बरस बाद भी यही हालत है ?"

"लगभग, उजड़े हुए चेहरों से या बेरौनक आँखों से गाना भी कोई गाना होता है. हमारे यहाँ लड़की की शादी के एक दिन पहले मेंहदी की रस्म सारी रात चलती है. औरते' रौह'[कश्मीरी लोकगीत] गाती है, मर्द लोग मस्ती में सारी रात कहवा पीते हैं. नाच गाना चलता ही रहता है. "

" हाँ भई, कश्मीरी मेहंदी की रस्म का शमीमा अख्तर का सुरीला गाना 'बोंबरो---बोंबरो—शामरंग --- बोंबरो--'सारे भारत पर छा गया था. 'मिशन कश्मीर ' फ़िल्म में भी लिया गया था. "

" उस काले समय में सरकारी ऑर्डर हो गया था कि कोई भी बिना सरकारी इज़ाज़त के ये रस्म नहीं करेगा क्योंकि जहाँ भी लोग इकठ्ठे हुए वहां कुछ भी हो सकता है. "

"इज़ाज़त कैसे मिलती थी ?"

"सोचिये अपने ही मुल्क में, अपने घर की शादी में मिलिट्री ऑफ़िस में ऑफ़िसर के पास टोकरा भर मिठाई व रुपये ले जाकर ये इजाज़त माँगनी पड़ती थी या कहिये जिल्लत झेलनी पड़ती थी. तब कहीं सिर्फ़ दस बजे या बारह बजे तक गीत गाने की मोहलत मिलती थी. उधर मिलीटेंट के आतंक के कारण शादियाँ भी डर डर कर की जाती थीं. एक बार तो जंझघर यानि कि शादीखाने में ही आग लगा दी थी, दूल्हा दुल्हिन के साथ कितने ही लोग जल मरे "

"ओह. "

-----------अयाज़ की बहिन की शादी थी. वह हरियाणा का वह मिलिट्री ऑफ़िसर कश्मीर की मेहन्दी की रात को देखना चाहता था. गर्म गर्म कहवा पीते हुए उस मिलिट्री ऑफ़िसर का दिल गॊरी चिट्टी सुरीले गले से रौह गाती आयाज़ की भाभी पर आ गया था. सोने की अट[चेन ]से लटकी झूमती उसकी कश्मीरी झुमकियो के साथ उसका दिल झूमने लगा था. उसकी नजर से सब कुछ भांपकर अब्बा ने बहू को एकदम सुबह उसके मायके भिजवा दिया था. वह ऑफ़िसर कोई ना कोई बहाना बनाकर उनके घरवालों को तंग करता रहता. गांव वालों से टीक की लकड़ी से पता नहीं कितना फ़र्नीचर बनवाकर ट्रक से हरियाणा अपने घर भिजवा दिया करता था. "

"किसी ने उसकी शिकायत नहीं की?"

"जब रक्षा करने वाला ही ख़ुद चोर हो तो किससे शिकायत करते? अलबत्ता कुछ बॉर्डर के बाहर से गांव के लड़के ट्रेनिंग लेकर आए थे, जिहादी बन गये थे.. वह हमारा दुःख जानकर उसे मारने को तैयार थे. उस ऑफ़िसर को भनक लग गई थी. वह छुट्टी लेकर अपने घर चुपचाप भागा जा रहा था. चालाकी क्या किया कि पता ही नहीं चला कि शहर जाने वाली तीन मिलिट्री गाड़ियों में से वह किसमें बैठा है. लड़कों ने तीनों गाड़ियों में से सबको उतार कर भून डाला. '

' ' उफ. "

ऑफ़िसर के साथ सही या ग़लत क्या क्या कत्ल नहीं हुआ ? इन वादियों में किस किस के खून के छींटे ज़मीदोज़ हो रहे हैं?

"इंडिया गवर्मेंट ने हमारे लोगों को बहुत धोखा दिया. हमारे राजा को बेवकूफ़ बनाया ?"

"कौन राजा हरीसिंह जी को ?

"हाँ, उन्होंने तो खौफ़ फैलाते कबालियो को काबू में करने के लिए इंडिया से मदद माँगी थी, फ़ौज़ बुलाई थी और उस फ़ौज़ ने हमारे कश्मीर देश पर ही काबू पा लिया. मजबूरी में राजा को भारत की हुकूमत कुबूल करनी पड़ गई. "

वह चिढ़ जाती है, "कश्मीर के राजा ही क्या भारत के सभी राजा स्वतंत्रता के बाद गणतंत्र में अपना राज्य शामिल करने को तैयार हो गये थे. ये बात और है हैदराबाद के निज़ाम को सालों बाद अक्ल आई थी. "

टैक्सी में बैठे परिवार के लोग अपनी आंखों से और बहस ना करने का इशारा कर देते हैं. वह अब अयाज़ को क्या बताये की बारामूला में कबाइलियों के कब्ज़े से घबराकर राजा हरी सिंह ने अपने प्रधानमंत्री मेहरचंद महाजन को देल्ही भेजा था। उन्होंने नेहरू जी व सरदार पटेल जी से गुज़ारिश की थी कि कश्मीर का विलय स्वीकार करिये और तुरंत सेना भेजिए नहीं तो श्रीनगर व कश्मीर की सभी धरोहर बर्बाद हो जाएंगी। दोनों ने हाथ खड़े कर दिए थे कि तुरंत कैसे सेना भेजी जा सकती है ?यदि पाकिस्तान ने कुछ हिस्से पर अधिकार कर लिया तो वह बाद में आक्रमण से छीना जा सकता है। ये तो अच्छा हुआ कि सरदार पटेल, शेख अब्दुल्ला उस समय नेहरू जी के घर पर ही थे उन्होंने सारी बातें सुन लीं थीं व नेहरु जी को तुरंत सेना रवाना करने के लिए राज़ी कर लिया था। राजा हरी सिंह ने २६ अक्टूबर १९४७ को विलय के संधिपत्र पर हस्ताक्षर कर दिए थे। २७ अक्टूबर १९४७ को तुरंत भारत से सेना रवाना कर दी गई थी।

अब अनपढ़ अयाज़ को क्या याद दिलाये कश्मीर का पुराना इतिहास कि वह जिन महाराजा की तरफ़दारी कर रहा है उन्हीं की चालो से हिंदू कौम के अलावा दूसरी कौम अनपढ़ रक्खी, अपने अधिकारों से वंचित रक्खी गई थी. वह गरीबी झेलती रही यहां तक की शासन में उनका प्रतिनिधित्व नहीं था या बस नाममात्र को था.

बीच में यहाँ आने वाले पर्यटक हिमाचल प्रदेश की मनाली जाने लगे, यहाँ का व्यापार ठप्प पड़ा था. हर रात के बाद सुबह का आना तय है. फिर भी ये आज तक रह्स्य है कि गांव -गांव पेड़ों पर चढ़कर या छिपकर पत्थर मारने वाले वो कौन थे ?- ---मिलिटेंट[ जिहादी ]या दूसरे देश के लोग या अपने ही लोग जो दहशत फैलाकर गांव खाली करवाना चाहते थे.

"जगह जगह हमारे लोगों ने उन्हें पेड़ों पर छिपकर या दीवारों के पीछॆ छिपकर पकड़ने की बहुत कोशिश की लेकिन उनमें से एक भी हाथ नहीं आया. पता ही नहीं चला कि कौन हम सबसे गांव खाली करवाना चाहता था. "

घाटियों में गूँजती गोलियों की आवाज़, बम्ब, बारूद के धमाको की आवाज़ कब तक रहती ? जन्नत में शान्ति होने लगी, निशात व शालीमार मुगल गार्डन्स में पर्यटकों की सराहना भरी चाहत से फूल मुस्कराने लगे, डल झील में इसका सौंदर्य अपना प्रतिबिंब देखने लगा. पर्यटकों ने आना शुरू कर दिया था.

रास्ते के कैफ़ै गुमरी, मिलिट्री कैंटीन के गरम मसाले की खुशबू से महकते गर्म समोसे आश्चर्यचकित कर देते हैं कि उत्तर भारत का वह स्वाद इतनी चढ़ाई च ढ़कर यहाँ तक कैसे आ पहुँचा है. गर्म चाय शरीर की कुछ ठंड कम करती है. कैंटीन में पता लगता है कि सामने वाली 'वाइट टाइगर हिल' के पीछॆ ही है सियाचिन व कारगिल की पहाढ़िया. मोटी जैकेट्स व भारी टोपी में भी तन तो तन, मन भी काँप जाता है इन ऊँचाइयों पर कैसे लड़ते होंगे फ़ौज़ के जवान ?कारगिल युद्ध के बाद भी तो पर्यटकों का काफ़िला ठिठक गया था. कैंटीन से निकल कर अचानक हुई बर्फ़ बारी से हम सब बच्चों से चहकने लगते हैं. झरती हुई सफ़ेद बर्फ़ हमारी जैकेट्स पर सफ़ेद नाज़ुक फूल बन जमकर बैठ गई है.

वह बच्चों की तरह बर्फ़ के आसमना से रुई जैसे गिरते फायों में झूमती फ़ोटोज़ खिंचवा रही है। बेटा ख़ुश है माँ को ऊपर जाने से पहले उसने स्नो फ़ॉल दिखा ही दिया। वह ख़ुद कैमरा हाथ में लेकर परिवार की फ़ोटोज़ लेने लगती है

सोनमर्ग से लौटते हुए धुँधलका फैल चुका है. चीर के पेड़ों की फुनगियों पर लौटे हुए सफ़ेद बगुले उन पर जैसे बड़े बड़े सफ़ेद फूल खिला रहे हैं. श्रीनगर में हम अन्दर आ गए है. अयाज़ कहता है, "शाम होते ही शिकारा चलना बंद हो जाता है. हम लोगों को हाऊस बोट तक गलियों से जाना होगा. "

झील के किनारे लगे हाऊस बोट के लगभग सभी मालिकों के घर उन हाऊस बोट के किनारे की ज़मीन पर ही बने होते हैं जिससे वहां रहने वाले टूरिस्ट की देखभाल हो सके. इनका खाना भी मालिकों की रसोई से बनकर आता है टेक्सी संकरी गलियो में घूमती चली जा रही है. ये जन्नत अब तो टूरिस्ट के लिये महफूज़ है लेकिन क्यों उसका दिल थोड़ा धड़क ही रहा है अयाज़ कहीं ----. भारत गलियों में बसता है, गलियों के जाल एक जैसे ही लगते हैं लेकिन कश्मीर की गलियों में कहीं कहीं कोई छोटी मस्जिद या मजार दिखाई दे जाती है, बीच बीच में कुछ घरों का स्थापत्य मुगलकालीन लगता है. आती जाती कुछ स्त्रियां बुर्के में हैं, बाकी सभी स्त्रियों के सिर पर दुपट्टे से ढके हैं. अयाज़ गर्व से बताता है, "आपने सोनमार्ग जाते समय देखा होगा कि सभी स्कूल व कौलेज जाती लड़कियाँ अपने सिर को ढके थी. आगे बढ़ गया हो. ज़माना हो, हम लोग अपनी तह्ज़ीब नहीं छोड़ रहे. क डॉक्टर ने रिसाले में लिख दिया था कि औरतें अपने सिर ढँकना छोड़े, सबने उसे घेरकर इतना परेशान किया कि वह ये बात करना भूल गई. "

कहना तो वह यह चाहती है, "आप लोगों ने तो औरतों के लिये छोटा मोटा तालिबान बसा रक्खा है. "लेकिन इन संकरी गलियों की भूल भुलईया देखकर चुप है.  सब लोग इस समय अयाज़ की मेहरबानी पर निर्भर ह , अयाज़ कहता है, "मै भी बरसों बाद इन गलियों में आया हूँ. नहीं तो शाम तक टूरिस्ट वापिस आ जाते है व किसी शिकारे से अपनी हाऊस बोट में चले जाते हैं. "

बहुत बड़ी टीन के पतरे की दीवार के गेट से हम अन्दर शामिल होते हैं. अयाज़ हाऊस बोट के केयर टेकर ग़ुलाम अली को मोबाइल पर हमारे आने की सूचना दे देता है व कहता चला जाता है, "आप लोग कल सुबह नौ बजे तक तैयार रहिये, हम लोगों को गुलमर्ग के लिए निकलना है, गुड नाईट. "

ग़ुलाम अली हमें रास्ता दिखाता चल रहा है वर्ना झील के किनारे खड़ी रोशनियों से झिल मिल जगमगाती एक सी लकड़ी पर नक्काशी की गई अपनी खूबसूरत हाउस बोट पीछॆ से पहचानना मुश्किल था. इस छोटे से मैदान में सब्जियां बोई हुई हैं. उनके बीच के कच्चे रास्ते से वह हमें ले जा रहा है. सब बहुत संभल कर पैर रख रहे हैं कहीं नन्हे पौधे कुचल ना जाएँ. हाऊस बोट मालिक के पक्के मकान के पिछवाड़े अन्धेरे को चीरता दीवार पर पीला बल्ब टिमटिमा रहा है. रसोई की खिड़की में से दिखाई देती एक बड़ी उम्र की स्त्री सिर पर स्कार्फ़ बाँधे कुर्सी पर बैठी खानसामा से खाना बनवा रही है. कश्मीरी पुलाव की दालचीनी व मेवों की ख़ुशबू से सब को बहुत ज़ोर की भूख लगने लगती है. रास्ते में वह बताता जा रहा है, " ये सामने झील में दिखाई देती चारों. हाऊस बोट चार भाइयो की हैं इनके पीछे चार घर अपनी ही हाऊसबोट रहते हैं. " "

"  सरदार फ़ैमिली तो चली गई होगी?"

" हाँ जी, हाऊस बोट में ठहरी वह सरदार फ़ैमिली तो चली गई है, तीन लड़के हाऊस बोट पर रहने आ गए हैं. "

हाऊस बोट के अपने कमरे में जाते उसकी नजर सामने वाले कमरे पर पड़ती है जहाँ से बस वह काली टी- शर्ट व काले बरमूडा पहने एक काली दाढ़ी वाले लड़के की झलक देख पाती है. फिर एक डर सनसना गया है. बरसों पहले ऎसे ही जिहादी हाऊस बोट या होटलों में आकर छिप जाया करते थे. मौका मिलते ही कहीं भी बम्ब विस्फोट कर देते थे. तभी उसकी सोच शर्मा जाती है, ग़ुलाम अली ख़बर करता है, "वो तीनों साहिबान कह रहे हैं कि आप लोग पहले डाइनिंग टेबल पर खाना खा लें क्योंकि वे लोग नॉन वैज़ हैं, "

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नीलम कुलश्रेष्ठ

मेल—kneeli@rediffamil. com