Jangal chalaa shahar hone - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

जंगल चला शहर होने - 1

नहीं नहीं!
ऐसा नहीं था कि जंगल हमेशा चुपचाप रहता हो। बहुत आवाज़ें थीं वहां।
सुबह होते ही जब सूरज निकलता तो पंछी चहचहाते। कोई कहता कि ये कलरव है, कोई कहता गुंजन है, कोई कहता कोलाहल है तो कोई कहता क्रंदन है।
ठीक तो है। इसमें सभी कुछ था।
कभी कोयल अंडे देती तो स्वागत गान बजता। कभी बादल छाते तो मोर नाचता। कभी कोई चील नीली चिड़िया के बच्चे को उठा ले जाती तो रूदन होता।
एक ऊंचे पेड़ पर बैठे हुए अस्सी साल के पोपटराज बहुत बेचैन हो गए ।
- क्या मुसीबत है? दुनिया कहां से कहां पहुंच गई और ये जंगल है कि वैसा का वैसा ही पड़ा है। कुछ तो करना ही पड़ेगा।
पेड़ की फुनगी पर बैठे- बैठे पोपटराज को अचानक दूर एक नहर दिखाई दी।
अरे, इतने साल हो गए इस जंगल में रहते हुए। ऐसी नहर तो यहां कोई नहीं थी। ये कहां से आ गई? जाकर देखना चाहिए।
नहर के नज़दीक जाकर देखा तो उस हरे हरे पानी को देख कर रहा न गया। किनारे पर बैठ कर चोंच डुबो ही दी।
वाह! मज़ा आ गया। ये साधारण पानी नहीं था। बल्कि फलों के रस की तरह बहता हुआ मीठा पानी था। जंगल में जैसे जूस की नदी हो।
पोपटराज ने सोचा कि इस जादू के बारे में सबको बताने से अच्छा है कि पहले इस पर कुछ अधिकार करूं। शायद कुछ कमाई हो।
अपने ही पेड़ से कुछ लकड़ियां काटीं और एक नाव बना डाली।
मीठे रस में उतर कर चप्पू खेने लगा।
नदी की सैर करते- करते पोपटराज ये भी भूल बैठा कि उसकी उमर अब अस्सी पार है। जादुई रस ने उसकी जवानी लौटा दी।
कोई पशु- पक्षी मिल जाता तो उसे नाव में सैर करा कर कुछ कमाई भी कर लेता। और कोई न कोई तो मिलता ही रहता। जंगल में काम ही क्या था किसी के पास।
एक दिन उसकी नाव में सवार होने कहीं से एक खरगोश चला आया।
बातूनी तो था ही, चुप कैसे रहता। नाविक पोपटराज से बोला - तुम्हें मालूम है कि लोमड़ी कहां रहती है? बताया तो यहीं कहीं था, नारियल के पेड़ के पास।
पोपट राज बोल पड़ा - वो क्या है सामने? देख उसी पेड़ के पीछे तो ऊंची सी खोह दिख रही है लोमड़ी की।
खरगोश किराया चुका कर उतर पड़ा।
चल दिया लोमड़ी के घर की ओर।
रात को पोपटराज घर पहुंचा तो थक कर चूर हो चुका था। खाकर सोया तो लगा सपना देखने।
विचित्र सपना था।
उसने देखा कि एक बड़ी सी चट्टान पर एक छोटी सी लड़की बैठी हुई रो रही है।
उनकी आवाज़ सुन कर कहीं से एक छोटा सा लड़का चला आया।
हैरानी तो ये थी कि दोनों इस जंगल में पहुंचे कैसे?
- रो क्यों रही है? लड़का बोला।
- रोऊं नहीं तो क्या करूं? मै'म डांटेंगी। मैं होमवर्क जो पूरा नहीं कर सकी। लड़की ने कहा।
- ओह, तू भी मेरी तरह होमवर्क से ही डर कर भागी है क्या? लड़के ने कहा।
लड़की फ़िर अचानक ज़ोर- ज़ोर से रोने लगी। तभी जैसे उसे कुछ याद आया। चुप होकर बोली - तू यहां आया कैसे?
- जैसे तू आई।
मुझे तो खरगोश लाया। पता है, वो जादूगर है... मैं रो रही थी न, तो मेरे पास आकर बोला - मेरे पीछे- पीछे आओ...
तभी पोपटराज की आंख खुल गई। वह जाग गया।
खरगोश लोमड़ी से मिल कर जब लौटा तो नहर पर उसे फिर पोपटराज मिला। उसी ने अपनी नाव से रास्ता पार कराया।
बातूनी खरगोश नाव में बैठे- बैठे भला चुप क्यों रहता? उसने पोपट को सब बताया कि वह लोमड़ी के पास क्यों गया था। असल में लोमड़ी और खरगोश मिल कर जंगल में एक नया काम शुरू करने जा रहे थे।
उन दोनों ने शेर से मिलने का प्लान बनाया था। वो शेर को कुछ देना चाहते थे। पर शेर उन दोनों को जानता तो था नहीं न। तो कहीं ऐसा न हो कि वो शेर से मिलने जाएं और शेर उन्हें मार कर खा डाले!
यही सब सोच विचार करने के लिए खरगोश लोमड़ी के पास गया था कि शेर से कैसे मिला जाए।
मिलना बहुत ज़रूरी था।
पोपटराज ने उसकी बात सुनी तो उसकी आंखों में चमक आ गई।
वो खरगोश से बोला कि अगर वो लोग चाहें तो पोपट शेर से उन्हें मिलवाने में उनकी मदद कर सकता है।
- अरे, और क्या चाहिए? बोलो बोलो... खरगोश ने कहा।