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अपंग - 8

8

राजेश ने उससे घर पर तो इस बारे में कोई बात नहीं की थी | अब क्या सुनाए वह ? वज केवल अपने ही लिखे हुए गीत कंपोज़ करती ही | इस मन:स्थिति में उसे कुछ याद भी तो नहीं आ रहा था | पशोपेश में थी भानु ! उसके स्वागत में तालियों की गड़गड़ाहट बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी | दरअसल,  वह अपनी स्थिति को समझने का प्रयत्न कर रही थी | 

“प्लीज़ भानुमति ---“ रिचार्ड पियानो को पकड़े हुए उसकी ओर झुका आ रहा था | वह एकदम सकपका सी गई| उसके सामने कितने लोग हाथों में पैग थामे खड़े थे | 

‘कहाँ फँस गई?’ भानु ने सोचा | 

“प्लीज़ ---“ एक बार फिर रिचार्ड ने पियानो पर झुककर उससे कुछ चिरौरी सी की | 

रिचार्ड के भानु के गाने के बारे में एनाउंस करने और उसे पियानो तक लेकर आने में कहीं भी राज नज़र नहीं आया था | भानु की आँखें लगातार राज को तलाशने में इधर-उधर घूम रही थीं | वह अजनबियों से घिरी थी लेकिन राज उनमें कहीं नहीं था | भानु की दशा अजीब सी थी, उसका हृदय धक-धक करने लगा | अब उसे गाना ही था, राज तो उसे जैसे अजनबी भेड़ियों में अकेला छोडकर न जाने कहाँ जा छिपा था | 

पियानो के सुरों पर उसकी ऊंगलियाँ उसकी अपनी न जाने कौनसी रचना के साथ ताल मिलाने लगीं | उसे खुद भी समझ में नहीं आ रहा था कि वह आख़िर ग क्या रही है ?वह भारत में वह खूब रचनाएँ लिखती, उन्हें कम्पोज़ करती और पहले माँ-पापा के लिए फिर मित्रों और खुद के लिए खूब गाया करती थी लेकिन यहाँ आकर तो उसका सभी कुछ छुट गया था | आज इस प्रकार से अपनी रचना गाते हुए वह इतनी डूब गई कि उसकी आँखों के रास्ते पानी का झरना सा बहने लगा, उसकी आँखें बंद हो गईं और आँखों के सामने अँधेरा सा छाता चला गया| 

उसकी रिदम पर जिन लोगों के हाथ तालियाँ बजाने लगे थे, वे अचानक ही बंद हो गए | उसकी आँखों से बहते आँसुओं से सभी चकित रह गए थे | रिचार्ड उसे सावधानी से उठाकर वहाँ से ले आया और धीरे से उसे सोफ़े पर बैठा दिया | 

“प्लीज़ सिट, प्लीज़ हैव ए कोल्ड बीयर, यू विल फील बैटर –आय एम सॉरी, वेरी सॉरी ---“ पछताता हुआ सा रिचर्ड बोल रहा था | उसे दुख हुआ कि उसने भानु को गाने के लिए क्यों बाध्य किया ?”

भानुमति रुमाल से पसीना पोंछने लगी | उसने रिचार्ड के हाथ से बीयर का ग्लास ले लिया और अपने आपको स्वस्थ महसूस करने का प्रयत्न करने लगी | उसे अपने अचानक हुए व्यवहार पर लज्जा भी हो आई | क्या सोचेंगे लोग ? लेकिन उसका प्रिय पति अभी भी कहीं दिखाई नहीं दे रहा था | 

रिचार्ड का व्यवहार बड़ा आत्मीय व सहानुभूतिपूर्ण था | 

रात में उसने अपनी डायरी में लिखा;

मेरे मन !

मैं तुझे क्या कहूँ –

पागल ---?

बुद्धिमान ----?

या और कुछ --?

हर पल

हर क्षण

बंद गोभी की भाँति

एक के बाद एक

परत उतारता

तू---

मेरा असली रूप सामने ले आता है

मेरी आँखें नीची

होती जाती हैं

मानो

अपने समक्ष मैं नग्न हो जाती हूँ ---

पतझर से झरते दिनों की कोई साक्षी थी तो वही, अकेली | पता नहीं दिनों की सहर और साँझ किस कोने में होती | एक ही छत के नीचे दो अजनबियों की भाँति रहना अजीब व पीड़ादायक होता है | राज बाबू तो सुबह ही निकल जाते | भानु की समझ में यह कभी नहीं आया था कि जब राज इतना परिश्रम करता है कि उसे सुबह ही निकल जाना होता है, पूरे दिन वह जी-तोड़ श्रम करता है तो उसे पत्नी के सहारे की आखिर क्या आवश्यकता है ? भानु के सीने के दर्द का पर्वत विशाल होता जा रहा था जो उसके आँसुओं से भी पिघलने वाला नहीं था | आँसू तो वह रोज़ ही उंडेलती थी उस पीड़ाओं के पर्वत पर !

अक्सर सुबह जब वह नाश्ता लेकर आती तब राज या तो निकाल जाता या निकल रहा होता | वह नाश्ते की ट्रे रखती, वह उस ओर बिना देखे ही निकल जाता | आख़िर कब तक चलेगा ऐसे ? यह तो वह न जाने कब से सोच रही है! अभी तक तो कोई उत्तर उसे प्राप्त हुआ नहीं था |