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टूटा दिल - भाग 1

वो प्यार में था... लड़की ने उसे धोखा दे दिया...जब वो सब कुछ भूलने की कोशिश कर रहा था...आगे बढ़ना चाहता था... वो फिर से आ गयी...वो दोबारा उसे अपनाएगा या नही......
पात्रों से मिले...
सिद्धार्थ- वो सदमे में है... उसने अपना प्यार खो दिया है... नही...असल में... उसके प्यार ने उसे धोखा दिया है...अब शायद दोबारा प्यार करना उसके लिए मुश्किल है...
युविका- सिद्धार्थ की पहली प्रेमिका... जो उसे छोड़ कर जा चुकी है...
कृतिका- बहुत प्यारी सी लड़की... जिसका दिल बहुत नेक है... पर उसने एक ग़लती की है...
क्या होगा जब ये मिलेंगे... क्या होगा जब इनको एक दूसरे के सच का पता चलेगा...
चलो शुरू करते है...
“माँ... आप पापा को समझाए ना... मुझे बाहर जाना है...मैं यहाँ नहीं रह सकता... इस छोटे से क़स्बे में रह कर कुछ भी नही कर पाऊँगा...मैं कुछ बड़ा करना चाहता हूँ...मैं अपना कारोबार करना चाहता हूँ...मैं अपनी पहचान बनाना चाहता हूँ...मुझे MBA में दाख़िला लेना है... मुझे दिल्ली जाना है...” वो अपनी माँ को मनाने की कोशिश कर रहा है।
हाँ... ये सिद्धार्थ है...
माँ- “ मैं तुम्हारे पापा को मनाने की कोशिश कर रही हूँ...आज रात को तुम्हारे पापा आएँगे फिर से बात करने की कोशिश करूँगी”
“ठीक है” सिद्धार्थ ने आराम से कहा और अपने कमरे में चला गया...
रात को...
पापा दफ़्तर से घर आए... वो काफ़ी थके हुए थे...माँ रसोई मे थी और रात का खाना बना रही थी...
सिद्ध रसोई में गया...
“ माँ... पापा आ गये...”
माँ ने गर्दन हिलायी और रात का खाना मेज़ पर लगा दिया...पापा नहाने के बाद वहाँ आए... अब वे काफ़ी बेहतर लग रहे थे...
तीनो ने खाना शुरू किया...
“मैं सोच रही थी कि हमें सिद्ध को MBA करने के लिए दिल्ली भेजना चाहिए..” माँ ने खाना खाते हुए आराम से कहा..
पापा थोड़े से परेशान हुए पर उन्होंने कुछ नही कहा...
“ आपको क्या लगता है...” माँ ने फिर से पूछा...
पापा ने एक गहरी साँस ली..और बोले...“ठीक है... जैसा तुम्हें ठीक लगे...”
“ आप परेशान ना हो... अगर आप इसे नही भेजना चाहते तो ये कही नही जाएगा...”माँ ने एक साँस में कहा...
“ नही... मैं ख़ुश हूँ... पर अगर सिद्ध सरकारी नौकरी की तैयारी करता तो ज़्यादा बेहतर रहता...हम जैसे मध्यम वर्ग के लोगों को कारोबार का काम नही जमता...” पापा ने कहा...
“पापा...मैं चाहता हूँ कि आपको मुझ पर गर्व हों...और आप बहुत ख़ुश होंगे जब मैं ख़ुद का काम शुरू करूँगा...” इस बार सिद्ध पापा को राज़ी करने की पूरी कोशिश करता है...
“ठीक है... तुम दाख़िला ले सकते हो... मैं तुम्हें ख़ुश देखना चाहता हूँ...”पापा ने हँसते हुए कहा...
सिद्ध बहुत ज़्यादा ख़ुश होता है...उसे यक़ीन ही नही हो रहा था कि पापा मान गए है...
वो खाना छोड़ कर पापा के गले लग जाता है...
“चल अब खाना तो खाने दे” पापा हँसते हुए कहते है...
खाना खाने के बाद सब अपने कमरे में वापिस चले जाते है...
10:15 हो गये थे...
सिद्ध अपने बिस्तर पर लेटा था ... वो लेट कर अपने MBA के दाख़िले और कॉलेज के बारे में सोच रहा था...ऐसे सोचते सोचते उसे कब नींद आ गयी उसे पता ही नही चला...
वो सुबह के 7 बजे उठा जब माँ ने उसे आवाज़ लगायी...
वो उठा और बाहर आ गया...
माँ रसोई में खाना बना रही थी...
वो भी नहा कर खाना खाने आ गया...
खाना खाने के बाद उसने दिल्ली के एक कॉलेज का फॉर्म भरा...
तभी उसका फ़ोन बजा...
नम्बर जाना पहचाना था...
उसने कॉल नही उठायी... और फ़ोन एक तरफ़ कर दिया...
तब दोबारा फ़ोन बजा... अब तक उसकी दिल की धड़कन तेज़ हो गयी थी...
“ये अब मुझे फ़ोन क्यों कर रही है...????” सिद्ध को समझ नही आ रहा था कि वो अब क्या करे...
6 महीने 25 दिन हो गये थे उसे छोड़ कर गये हुए... और आज उसका फ़ोन...
हाँ... ये युविका थी...
वो अब उससे बात नही करना चाहता था... वो तो उसके बारे में सोचना भी नही चाहता था,..
पर अब उसकी कॉल्स उसके बारे में सोचने को मजबूर कर रही थी..उसे उसके अतीत में धकेल रही थी...
वो वहा से उठा और अपने कमरे में चला गया...
वो बिस्तर पर लेट गया...पर अब वो शांत नही था...

क्या सिद्ध युविका से बात करेगा... या युविका दोबारा फ़ोन नही करेगी...
अगला भाग कुछ दिन बाद...

-स्मृति