Raaj-Sinhasan - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

राज-सिंहासन--भाग(२)

महाराज सोनभद्र महारानी विजयलक्ष्मी के समीप गए और बोले___
महारानी!आप ही बताएं कि मैं क्या करूं? इतने वर्षों की प्रतीक्षा के उपरांत हमारे यहां ये शुभ घड़ी आई हैं और मैं इतना असहाय हूं कि अपनी सन्तान का मुंह भी नहीं देख सकता।।
महाराज!इसी विषय पर बात करने के लिए ही मैंने आपको बुलवाया है, महारानी विजयलक्ष्मी बोलीं।।
अब इसमें विचार करने योग्य कुछ भी नहीं रह गया है महारानी! क्योकि इस समस्या का एक ही समाधान है कि मैं ग्यारह वर्षों तक राजकुमार का मुंख ना देखूं, महाराज सोनभद्र बोले।।
किन्तु महाराज! ये कैसे सम्भव होगा? कैसे आप अपने मन को समझा पाएंगे?महारानी विजयलक्ष्मी बोलीं।।
कुछ भी हो,मन को तो समझाना ही पड़ेगा, महाराज सोनभद्र बोले।।
तो मैं ऐसा करती हूं कि ग्यारह वर्षों के लिए राजकुमार और धायमाता के संग किसी और स्थान पर चली जाती हूं, ताकि राजकुमार से आप ना मिल सकें,महारानी विजयलक्ष्मी बोलीं।।
नहीं प्रिऐ!ऐसा मत कहो,ग्यारह वर्षों तक का ही तो पुत्र वियोग है, परन्तु यदि आप भी मुझसे विलग हो गई तो मैं किस प्रकार जी पाऊंगा?आप मेरे संग है तो कम से कम मेरा ढ़ाढस बंधा रहेगा और आप मुझे राजकुमार के बारे में सब बातें बतातीं रहेंगीं, आपके मुंख से ही मैं उसका कुशलता के बारें में जान कर प्रसन्न हो जाया करूंगा, महाराज सोनभद्र बोले।।
जैसा आप उचित समझें स्वामी!मेरी सभी प्रसन्नताएं तो आपसे जुड़ीं हैं,आप प्रसन्न तो मैं भी प्रसन्न, महारानी विजयलक्ष्मी बोलीं।।
तो महारानी अब मैं महामंत्री जी से बोल देता हूं कि राजकुमार के नामकरण और जन्मोत्सव की तैयारियां प्रारम्भ करें, आस-पास के सभी पड़ोसी राज्यों को इस शुभ समाचार का निमन्त्रण भेजा जाएं,सारे राज्य को नई दुल्हन की भांति सजाया जाए,राज्य का कोई भी व्यक्ति बिना भोज के ना रह पाएं,महाराज सोनभद्र बोले।।
किन्तु महाराज!एक चिन्ता से मेरा मन अत्यधिक ग्रसित है बस, महारानी विजयलक्ष्मी बोलीं।।
वो क्या है?प्रिऐ! जिसकी सोच में आप इतनी अधीर हुईं जातीं है, महाराज सोनभद्र ने पूछा।।
महाराज आपके चचेरे भाई सुकेतुबाली के विषय में सोचकर, क्योंकि अभी तक तो हमें कोई सन्तान नहीं थी, इसलिए वो वर्षों से शांत बैठा था चूंकि उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि इस राज्य पर केवल उसी का अधिकार है,उसे ये भी आशा था कि इस राज्य का अगला उत्तराधिकारी वो ही होगा, किन्तु राजकुमार के आने के उपरांत उसका ये स्वप्न टूट गया होगा और भविष्य में राजकुमार के प्राणों पर भी संकट आ सकता है, महारानी विजयलक्ष्मी बोलीं।।
आप चिन्तित ना हों महारानी!तो हम इस शुभ समाचार की सूचना उसे नहीं पहुंचाएंगे और ना ही सुकेतुबाली को निमन्त्रण भेजेंगें, महाराज सोनभद्र ने महारानी विजयलक्ष्मी से कहा।।
यही उचित रहेगा महाराज!वो बहुत निम्न कोटि का विश्वासघाती व्यक्ति है, पिछली बार उसने आपसे विश्वासघात करके आपको बंधक बना लिया था,वो तो हमारे महामंत्री जी को गुप्तचरों द्वारा ज्ञात हो गया था कि आपको किस स्थान पर बंधक बनाया गया है,तो सेना के साथ जाकर उन्होंने आपको मुक्त करा लिया, महारानी विजयलक्ष्मी बोलीं।।
हां! महारानी !वो व्यक्ति विश्वास करने के योग्य नहीं है, मैं कदापि भी उसे निमन्त्रण नहीं दूंगा, महाराज बोले।।
जी, महाराज!तो आप महामंत्री जी से कहकर राजकुमार के जन्मोत्सव की तैयारियां कीजिए, मैं धायमाता हीरादेवी से कुछ वार्तालाप करना चाहती हूं, महारानी विजयलक्ष्मी बोलीं।।
जी! महारानी! आपको विश्राम की भी तो आवश्यकता है,अब आप विश्राम करें, मैं अब जाता हूं और इतना कहकर महाराज , महारानी विजयलक्ष्मी के कक्ष से चले गए।।
आज प्रातः से ही राजकुमार के जन्मोत्सव एवं नामकरण की तैयारियां प्रारम्भ हों चुकीं हैं, महाराज जहां तहां जाकर सारे रख रखाव को अपने अनुसार देख रहें हैं, राजपंडित भी यज्ञ के लिए पधार चुकें हैं, महामंत्री जी यज्ञ के लिए राजकुमार को अपनी गोद में लेकर बैठे हैं चूंकि महाराज तो बैठ नहीं सकते इसलिए....
इधर महाराज अपने कक्ष में महारानी के संग बैठे हैं,जब तक कि यज्ञ की विधि पूर्ण नहीं हो जाती, दूसरी ओर महल के प्रांगण में राज्य के नागरिकों का भोज भी निरन्तर चल रहा है।‌
दूसरी ओर पड़ोसी राज्यों के राजाओं का सेवा सत्कार अतिथि गृह में हो रहा है,
यज्ञ की विधि पूर्ण हुई और राजपंडित ने राजकुमार का नामकरण किया, राजकुमार का नाम उन्होंने सहस्त्रबाहु रखा,ये शुभ समाचार महाराज को देने के लिए महामंत्री जी ने एक दास से कहा__
और वो दास महाराज के कक्ष में जाकर बोला...
बधाई हो महाराज! राजपंडित ने राजकुमार का नाम सहस्त्रबाहु रखा है।।
महाराज ने अपनी ऊंगली की हीरे की अंगूठी उतारकर उस दास को देदी,दास प्रसन्न होकर चला गया।।
महाराज सोनभद्र, प्रसन्न होकर अपनी महारानी से इस विषय पर वार्तालाप कर ही रहे थे कि तभी महाराज के चचेरे भाई सुकेतुबाली ने महाराज के कक्ष में प्रवेश किया और बोला....
महाराज!आपने मुझे इस विषय में सूचित नहीं किया कि आप पिता बन गए, परन्तु कोई बात नहीं मैं स्वयं ही उपस्थित हो गया, मुझे अपने भतीजे के जन्म पर अत्यधिक प्रसन्नता है,मेरी शुभकामनाएं स्वीकार करें....
कोई बात नहीं अब आ ही गए हो तो भोज करके अवश्य जाना, महाराज सोनभद्र बोले।।
अवश्य महाराज! हम सब तो और भी कुछ करने आए हैं,सुकेतुबाली बोला___
क्या तात्पर्य है तुम्हारा?सुकेतुबाली से सोनभद्र ने पूछा।।
बस,यही महाराज कि मैं आपको और महारानी को बंदी बनाने आया हूं,सुकेतुबाली बोला....
परन्तु क्यों?हमने तुम्हारे साथ कुछ ऐसा तो नहीं किया जिसका तुम हमसे प्रतिशोध लो, महारानी विजयलक्ष्मी ने पूछा।।
कुछ नहीं भाभीश्री! आप इस राज्य की महारानी है,बस यही बात मेरी चिंता का कारण है,सुकेतुबाली बोला।।
परन्तु इस राज्य के उत्तराधिकारी तो महाराज ही होने चाहिए क्योंकि इनसे पहले महाराज के पिताश्री ही इस राज्य के महाराज थे, महारानी विजयलक्ष्मी बोलीं।।
बस भाभीश्री! आप को जितना बोलना था बोल चुकीं,अरे... जादूगर अघोरनाथ तुम अपना कार्य पूर्ण करो,सुकेतुबाली बोला___
जी !जैसी आपकी आज्ञा और इतना कहते ही जादूगर अघोरनाथ ने महाराज सोनभद्र और महारानी विजयलक्ष्मी को तोता और मैना मे परिवर्तित कर दिया और शीघ्र ही सुकेतुबाली ने उन्हें पिंजड़े में बंदी बना लिया.....
ये सब जब महारानी की दासी ने देखा तो वो शीघ्र ही महामंत्री को सूचना देने भागी, परन्तु सुकेतुबाली ने उसकी ओर कटार से प्रहार किया....

क्रमशः__
सरोज वर्मा__



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