Prem ka Kamal - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

प्रेम का कमल - 3

 
जब नीरज तैयार होकर नीचे गया तो उसकी माँ ने रास्ते के लिये लज़ीज पकवान बनाये फिर नीरज से कहा कि उन्हे वह अपनी कार में मंदिर छोड़ दे। नीरज मान गया। जब तक उसकी माँ तैयार होकर आती तब तक वो अपना खाना नाश्ता खाने लगा माँ ने उसकी पसंद का हलवा और आलू पूरी बनाया
था वो उसे बड़े चाव से खाने लगा। खाते खाते उसने रामदीन को आवाज़ लगाई"रामदीन गाड़ी साफ करदो एयरपोर्ट जाना है"। रामदीन उसके घर का ड्राइवर था वह सफेद यूनीफॉर्म पहने एक मुस्कान के साथ अंदर आया बोला "जी साहब गाड़ी की चाबी दे दीजिए अंदर से भी साफ करदूंगा"
नीरज बोला रॉब जमाते हुए बोला अच्छे से साफ करना वरना पापा से कहकर पगार कटवा दूंगा।" रामदीन बोला बहोत अच्छे से करूंगा।
वैसे तो किसी भी नौकर को नीरज, उसकी बहनो और उसके पिता का रवैया पसंद नही था पर उसकी माँ के कारण वह उस घर मे लम्बे समय तक टिके हुए थे। उनके मन मे जो प्रेम की सद्भभावना गरीबो के लिए उनके मन मे थी वह उनको सब से अलग बनाता था। जैसा ही नीरज का खाना खत्म हुआ बदन पर लाल पीली साड़ी, हाथ मे सोने के कंगन और गले मे हीरों का हार पहन कर अपने कमरे से बाहर निकली वह किसी राज माता से कम नही लग रही थीं। अब नीरज माँ को मन्दिर छोड़ एयरपोर्ट जाने के लिए निकला जहा उसके दोस्त उसका इंतज़ार कर रहे थे।
रास्ते मे एक गरीब बच्चो का समूह सिंग्नल पर भीख मांग रहा था जहाँ नीरज ने उन सबको डांट फटकार कर गाड़ी से दूर जाने को कहा वही उसकी माँ की आंखों में करुणा साफ देखी जा सकती थी। उसकी मां ने उन बच्चों को कुछ पैसे और बिस्कुट खाने को दिए। और फिर गाड़ी सिग्नल आगे बढ़ी। कुछ दूर आगे चल कर काली मां का मन्दिर था नीरज ने मा को वहां छोड़ा और खुद एयर पोर्ट पहोच गया वहां उसके दोस्त उसका इंतज़ार कर रहे थे। उसका दोस्त पंकज बोला " क्या यार आने में कितनी देर लगा दी। फ्लाइट की अनाउंसमेंट होने ही वाली है।" नीरज बोला "माँ को मंदिर छोड़ना था इसलिए जरा सी देर हो गयी चलो अब तो मैं आ गया चलो मंसुरी जा कर चिल आउट करते है। " सभी दोस्त उत्साहित होकर बोले "लेट्स गो।"
कुछ देर बाद उन लोगो ने फ्लाइट बोर्ड की और मंसुरी पहोच गए। पहाड़ो की रानी मंसुरी की वादियों ने सबका मन मोह लिया था। सभी ने होटल पहोच कर कुछ देर आराम किया फिर कुछ देर बाद साइट सीन के लिए निकल गए। जहाँ उन्होंने केम्पटी फॉल के नीचे नहा कर अपनी गर्मी को दूर भगाया।
फिर कंपनी गार्डेन जा कर मटर गश्ती की और अंत मे कुछ दिनों के लिए गन हिल पॉइंट पर जाकर ट्रेककिंग और माउंटेनियरिंग रीवर राफ्टिंग पैरा ग्लाइडिंग और बनजी जंपिंग का तूफानी लुत्फ उठाया। मंसुरी की वादियों में उन्होंने अपना जीवन का हर पल जिया। अब 4 दिन बाद जब वो दिल्ली पहोच गए तो नीरज की जिंदगी अच्छी कट रही थी।
उसकी जिंदगी तब बदली जब उसके जीवन मे नीलिमा आई निलिमा बेहद ज्यादा सुंदर परी जैसी लड़की थी। उसकी नीली समुद्र जैसी आँखो की गहराई उसके कठिन जीवन की परिभाषा बोल रहे थे। जब वो मुस्कुराती तो उसके होंठ गुलाब की पंखुड़ियों जैसे खिलजाते आँखो में एक चमक सी आजाती थी। पानी पीती तो उसके गले की नसें साफ देखी जाती थी। वह हृदय से कोमल और सबको एक समान देखती थी नीलिमा कॉलेज की स्कॉलर थी। जहाँ दिल्ली के सबसे बड़े कॉलेज में नीरज MBA फाइनल ईयर का छात्र था वही नीलिमा उसी कॉलेज में BA के फर्स्ट की छात्रा थी। दोनो में जमीन आसमान का अंतर था पर दोनो को ही एडवेंचरल स्पोर्ट्स का बहोत शोक था। नीरज की तरह नीलिमा भी स्कूल के दिनों से ही रीवर राफ्टिंग, माउंटेनियरिंग, बन्जी जंपिंग पैरा ग्लाइडिंग और किताबे पढ़ना बहोत पसन्द था। लेकिन वो एक गरीब परिवार की सबसे बड़ी लड़की थी। पिता श्री राम नारायण एक रिटायर्ड अफ़सर थे जो अपने बेटे हिमांश की फांसी पर झूल जाने के बाद से ही बीमार पत्नी की देख भाल करते थे। दिल्ली के उस छोटी सी चाल के कमरे का माहौल तब मातम में बदल जाता था जब वो वह दिन याद करते थे जब 7वी कक्षा का हिमांश स्कूल के कुछ बच्चों द्वारा उसकी गरीबी का मजाक उड़ाने के कारण रोते बिलखते हुए घर आता है।और अपने कमरे में जाकर बंद हो गया और माता पिता के बहोत बार दरवाजा खटकाने पर भी वह दरवाजा नही खोलता जब बहोत देर हो गयी तो उसके पिता ने दरवाजा तोड़ डाला था तब पूरे परिवार के पाई जब उन्होंने अपने घर के चिराग को पंखे से लटके हुए देखा। उसी दिन से नीलिमा की माँ सुनंदा देवी को गहरा सदमा लगा और उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया पिता घर के हालात देखकर भावुक होकर बोले " बेटीहमने तुम्हारे भी को खो दिया है। जिसके चलते तुम्हारी माँ सदमें के करण बिस्तर पर है। में भी कुछ दिनों में रिटायर हो जाऊंगा अब सारी उम्र तुम्हारी माँ की देखभाल मुझे ही करनी है। अब तुम्हें ही उनकी जिम्मेदारी तुम्हे उठानी होगी" तब ही से 12 वी कक्षा की नीलिमा ने अपने IAS बन ने के सपने को पूरा करने में अपने दिन रात एक कर दिए अब उसकी दोस्ती किताबो से हो गई थी और साथ-साथ पार्ट टाइम की जॉब भी किया करती थी ताकि वो अपनी माँ के इलाज का खर्चा उठा सके। 12वी में निलिमा ने 95℅अंक पाकर स्कॉलरशिप हासिल की और दिल्ली के नामचीन कोलेज BA की पढ़ाई में दाखिला ले लिया।
अगले दिन जब नीरज और नीलिमा कॉलेज पहोंचे तो कॉलेज के नोटिस बोर्ड पर स्पोर्ट्स क्लब की और से तीन हफ्तों के लिए नैनिताल में होंने वाले कैम्प लगा था। केम्प में पैरा ग्लाइडिंग रीवर राफ्टिंग और माउंटेनियरिंग की प्रतियोगिता होने वाला थी। जहां नीरज और नीलिमा ने भी अपने अपने दोस्तों के साथ हिस्सा लिया। नीरज बड़े घर का लड़का था वह वहां अपनी BMW से पहोंचा अपने साथ सारी सुख सुविधाओं को साथ लेकर चला उसके कुछ दोस्त उसके साथ BMW में सवार थे। तो कुछ कॉलेज की टूरिस्ट बस में जिसमे नीलिमा भी अपने दोस्तों के साथ हँसते खेलते गुनगुना ते हुए जा रही थी।
कुछ 6 से 7 घण्टे बाद दोनों नैनिताल पहूंचे जहां अपनी BMW के पास खड़े नीरज ने नीली फ्रॉक पहने हुये बालो में गुलाब की पंखुड़ियों से सजे हेयर बैंड और कमर पे टूरिस्ट बैग टांगी हुई नीलिमा को पहली बार देखा। नीरज ने अपने आँखो से गॉगल्स हटाकर उसकी तरफ देखता ही गया।