Golu Bhaga Ghar se - 24 books and stories free download online pdf in Hindi

गोलू भागा घर से - 24

24

यहाँ से भाग जाओ बाबू!

गोलू को रहने के लिए जो कमरा दिया गया था, वहाँ दूर-दूर तक एकांत था। बस, आसपास बड़े-बड़े गमलों और खूबसूरत क्यारियों में किस्म-किस्म के फूलों के पौधे, लॉन में गुलमोहर और पॉप्लर के पेड़ और कुछ दूर हरा-भरा जंगल नजर आ जाता था। रामप्यारी नाम की एक स्त्री उसके कमरे में झाड़ू-पोंछा और सफाई करने आती थी। गोलू कभी-कभी उससे यों ही बातें करता।

रामप्यारी ने बताया कि वह मैनपुरी जिले की है। और जब उसे पता चला कि गोलू मक्खनपुर का है तो उसके मन में उसके लिए बहुत ममता उमड़ पड़ी।

गोलू ने रामप्यारी को सब कुछ सच-सच बता दिया था, “मैं मक्खनपुर का हूँ, आंटी। जाने किस बुरी घड़ी में घर छोड़कर चला आया और अब पछता रहा हूँ। इन लोगों को मैंने कुछ भी नहीं बताया, पर तुम्हें सच-सच बताया है।...तुम्हारे आगे तो झूठ बोलना एकदम मुश्किल है।”

रामप्यारी बोली, “बाबू, मैं तो अनपढ़ हूँ, ज्यादा कुछ नहीं जानती। पर फिर भी जाने क्यों मुझे लगता है, ये लोग सही नहीं हैं। तुम गलत जगह आकर फँस गए हो बाबू! जितनी जल्दी हो सके, तुम यहाँ से चले जाओ!”

फिर पास आकर धीरे से उसने कहा, “तुम शरीफ घर के लगते हो। पर यहाँ जो लोग हैं, वो तो बड़े अजीब-अजीब हैं। और पता नहीं, तुम्हें मालूम है या नहीं, यहाँ जो पीला वाला कमरा है, वहाँ रात भर दूसरा काम भी चलता है। जो औरतें दिन में यहाँ काम करती हैं, उनमें से बहुत-सी रात में कुछ और काम करती हैं। बड़े-बड़े अफसरों को खुश करने के लिए। तभी तो रात में कितनी गाड़ियाँ आती हैं, जाती हैं। तुमने भी देखा होगा।”

अब तो जब रामप्यारी आती, उसकी आँखें गोलू को एक ही बात कहती नजर आतीं, “गोलू जितनी जल्दी हो, यहाँ से भाग जाओ! ये ठीक लोग नहीं हैं!...सब एक-दूसरे की जासूसी करते हैं। हो सकता है, यहाँ भी आसपास कोई जासूस छिपा हो!”

फिर धीमी आवाज में कहती, “हमारी तो मजबूरी है बाबू। हम अनपढ़ हैं, कुछ और काम कर नहीं सकते। पर तुम तो पढ़े-लिखे हो, लायक हो। तुम्हारे आगे तो पूरा जीवन पड़ा है। यहाँ से निकलो और कुछ और काम ढूँढ़ो। कुछ और नहीं, तो अपने घर ही लौट जाओ। जरा सोचो तो, तुम्हारे मम्मी-पापा का एक-एक दिन तुम्हारे पीछे कैसे कटता होगा।”

सुनकर गोलू की आँखें छलछला उठतीं। वह सोचने लगता, ‘यह अनपढ़ स्त्री है...लेकिन इसके दिल में कैसी ममता है, कितनी सच्चाई है। जो चार अक्षर पढ़ जाते हैं, वे अपने को जाने क्या समझने लग जाते हैं। देश के साथ गद्दारी करते हुए उन्हें जरा भी दुख नहीं होता, मगर दूसरी तरफ इस औरत को देखो! कितना सच्चा, निर्मल हृदय है इसका!’

गोलू को पता नहीं क्यों, रामप्यारी में अपनी मम्मी की छवि नजर आने लगती। अकसर रामप्यारी की जगह उसे मम्मी दिखाई देने लगतीं। और उसके कानों में जोर-जोर से मम्मी की दुख से भरी आवाज गूँजने लगती, ‘गोलू, लौट आ...लौट आ...लौट आ मेरे प्यारे बेटे!’

अब गोलू के भीतर उधेड़बुन और तेज हो गई! उसने सोच लिया कि वह यहाँ से जाएगा तो, पर इस जासूसी के षड्यंत्र का भंडाफोड़ करके जाएगा।

हालाँकि वह इस बात के लिए मिस्टर विन पॉल के प्रति कृतज्ञता महसूस करता था कि उन्होंने उसे इतने प्यार और आराम से रखा। लेकिन जब उनके स्वार्थ और बुरे मकसद का खयाल आता, तो उसके अंदर लपटें उठने लगतीं। और फिर गद्दारी तो गद्दारी है! उसे किसी भी तरह सही नहीं ठहराया जा सकता।...

उफ, चंद सिक्कों के लिए देश को बेचना! देश की इज्जत, आबरू और आजादी को बेचना! इससे नीच काम भी कोई और हो सकता है? गोलू को लगा, उसके भीतर भयानक आग की लपटें उठ रही हैं और जब तक वह इस पूरे षड्यंत्र का पर्दाफाश नहीं करता, उसे चैन नहीं पड़ेगा।

उसने तय कर लिया कि वह इस संस्था के एक-एक आदमी की छोटी से छोटी गतिविधि पर नजर रखेगा, ताकि समय आने पर पुलिस के आगे पूरी तरह भंडाफोड़ किया जा सके।

ऐसा सोचते ही, उसे लगा, उसकी निगाहें बहुत तेज हो गई हैं। और इस ऊपरी चमक-दमक के अंदर छिपे बहुत से कीटाणु और कालिख के दाग-धब्बे जो पहले नजर नहीं आए थे, वे अब साफ-साफ नजर आने लगे हैं।

उसे समझ में आ गया था कि चीजें यहाँ वैसी नहीं हैं, जैसी ऊपर से नजर आती हें। और लोग भी वैसे नहीं हैं, जैसे ऊपर से दिखते हैं। दिखने और होने ममें यहाँ बड़ा भारी पर्दा पड़ा है। यह पर्दा अब गोलू के आगे चिंदी-चिंदी हो गया था और उसे सब कुछ साफ-साफ नजर आने लगा था।

उसे यह भी समझ में आ गया था कि मिस्टर विन पॉल का यह इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा किस आधार पर था? और यह भी कि इतना सारा पैसा और ऐशोआराम...आखिर देशद्रोह और गद्दारी की कीमत पर ही है न!

उफ, मैं भी इस गद्दारी में शामिल हुआ—मैं भी! गोलू अंदर ही अंदर छटपटाता। पता नहीं वे कितनी महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ होंगी? हमारे देश की फौज, हथियारों और सैनिक ठिकानों के बारे में! हमारे देश की वैज्ञानिक खोजों के बारे में! ऐसी सूचनाएँ जिनका हमारे देश के ही खिलाफ उपयोग होगा! और क्या पता, उससे हमारे देश की आजादी संकट में पड़ जाए?

वे जरूरी और महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ कहाँ-कहाँ पहुँचेंगी और कौन-कौन लोग उनका इस्तेमाल करेंगे? सोचकर उसका सिर चकराने लगा।

ओह, कितनी मुश्किल से...कितनी कुर्बानियाँ देने के बाद हमने आजादी हासिल की है और दुनिया के ये देश सोचेंगे कि भारत की आजादी इतनी सस्ती है, इतनी...कि चंद नोटों में खरीदी जा सकती है।

उफ, मैं क्या कर बैठा...! गोलू सोच रहा था और रो रहा था।

फिर भी गोलू जल्दी-जल्दी में कुछ नहीं करता चाहता था। उसने सूचना-सेवा के नाम पर काला धंधा कर रही इस फर्जी कंपनी के बोर में इधर-उधर से सूचनाएँ इकट्ठी करनी शुरू कर दीं।

उसने रामप्यारी से पूछा था, “यहाँ से बाहर निकलने का क्या कोई गुपचुप रास्ता भी है?” तब रामप्यारी ने उसे पिछवाड़े वाले दरवाजे के बारे में बताया था, जहाँ से बहुत से लोग चोरी-चोरी अंदर दाखिल होते और फिर चुपके से निकल जाते थे। ऐसे लोग जो सरकार के बड़े अधिकारी, बड़े अफसर थे। ऊँची तनखा वे लेते थे, मगर चंद सिक्कों के बदले देश की इज्जत बेचने में जिन्हें शर्म नहीं आती थी। वे देश की बहुत-सी गोपनीय सूचनाएँ मिस्टर विन पॉल को बताकर बदले में सोना, चाँदी और कागज के नोट ले जाते थे।

गोलू ने पिछवाड़े के दरवाजे से दाखिला होने और निकलने वाले लोगों पर ध्यान देना शुरू किया तो बहुत-से गुप्त रहस्य उजागर होने लगे।

रामप्यारी ने उसे बताया था कि आधी रात के समय, जब सब सो रहे हों, तो वह पिछवाड़े का दरवाजा खोलकर निकल जाए। इससे किसी को उस पर शक नहीं होगा। फिर यहाँ से खेतों में होकर रास्ता सीधा किंग्सवे कैंप में निकलता है। वहाँ से वह रेलवे स्टेशन जा सकता है।

किंग्सवे कैंप के पास बनी हजार गज की इस तिमंजिला कोठी का कितना किराया होगा? कोई डेढ़ लाख रुपए महीना! सोचकर गोलू की ऊपर की साँस ऊपर और नीचे की साँस नीचे रह गई थी।

उसे लगा—काश, अगर वह कवि होता, तो वह बड़ा तीखा-सा गाना बना सकता था। उस गाने की शुरुआत इन पंक्तियों से होनी चाहिए थी—

‘ये पैसा कहाँ से आए रे!

ये पैसा कहाँ को जाए रे!!’

*

गोलू ने यहाँ से भागने की योजना दो-तीन बार बनाई और उसने जान लिया कि इसमें जरा भी मुश्किल नहीं है। पर फिर आखिरकार उसने तय किया कि नहीं, कुछ करके ही वह यहाँ से जाएगा। सिर्फ अपने आप को बचा लेना ही काफी नहीं है। इस खतरनाक जासूसी और गद्दारी का भंडाफोड़ करना भी जरूरी है।

लेकिन सही मौका उसे नहीं मिल पा रहा था। और गोलू इंतजार में था—कभी न कभी तो उसे मौका मिलेगा। सारी चीजें तेजी से उसके दिमाग में दौड़ने लगीं।

उसने एक पुलिस वैन को भी अकसर इस इलाके में गश्त लगाते देखा देखा था। ‘अगर किसी दिन वह नीला लिफाफा मैं दूतावास के अधिकारी को देने की बजाय पुलिस के हवाले कर दूँ तो...?’ गोलू ने सोचा। और मन में यह खयाल आते ही उसकी आँखें चमकने लगीं।

‘लेकिन...अगर मिस्टर डिकी ने यह देख लिया तो? हो सकता है, वह गुस्से में आकर गोली मार दे! आखिर तो ये खतरनाक लोग हैं। कुछ भी इनके लिए मुश्किल नहीं है।’ गोलू के मन में विचार आया।

‘मगर जो होगा, सो देखा जाएगा।’ गोलू ने निश्चय किया, वह अपनी आत्मा को बेचेगा नहीं। किसी भी कीमत पर नहीं! जान जाती है तो जाए!

और यह निर्णय कर लेने के बाद ही गोलू को शांति पड़ी। उस रात, बहुत दिनों बाद गोलू को चैन की नींद आई।