Tom Kaka Ki Kutia - 12 books and stories free download online pdf in Hindi

टॉम काका की कुटिया - 12

12 - दास की रामकहानी

दिन ढल चुका है। आकाश मेघाच्छन्न है। थोड़ी बूँदा-बाँदी हो रही है। बटोही संध्या का आगमन देखकर होटलों में आश्रय लेने लगे। एक होटल केंटाकी प्रदेश के सदर रास्ते के बहुत निकट था। यहाँ सदैव लोगों का आना-जाना बना रहता था। इस होटल के सामने की कोठरियाँ औरों की निस्बत अधिक गंदी थीं। बड़े आदमियों के नौकर-चाकरों तथा मजदूरों से ही ये कोठरियाँ भरी हुई थीं। पीछे की ओर की कोठरी में राह की थकावट मिटाने के लिए दो आदमी बैठे हुए हैं। उनमें एक का नाम विलसन है। विलसन ने जवानी बिताकर बुढ़ापे में पैर रखा है। इसी से उसमें जवानी का जोश नहीं है। अधिक जाड़े के कारण वह सिकुड़ गया है। दूसरे आदमी में उतनी भलमनसाहत नहीं है और न उतना पढ़ा-लिखा है। वह भेड़ें चराकर अपनी जिंदगी बिताता है। थोड़ी ही देर बाद भेड़वाले ने इस प्रकार बातचीत का सिलसिला शुरू किया:

 "आपने यह विज्ञापन देखा है?"

 विलसन ने कहा - "कैसा विज्ञापन?"

 भेड़वाला बोला - "यह देखिए!"

 इतना कहकर उसने विलसन के हाथ में एक छपा हुआ विज्ञापन दे दिया। विलसन चश्मा लगाकर उस विज्ञापन को पढ़ने लगा -

 "कुछ दिन हुए, मेरा जार्ज नामक एक दास भाग गया है। कद में साढ़े तीन हाथ लंबा और रंग में गोरा है। अंग्रेजी खूब अच्छी बोलता है और समझ लेता है। उसके पेट और गले में बेंतों की मार के निशान हैं। उसके बाएँ हाथ की कलाई पर लोहे की दहकती हुई छड़ से दागकर "एच" का निशान कर दिया गया है। जो कोई उसे पकड़वा देगा उसे 400 रुपया इनाम दिया जाएगा। यदि कोई उसे जीता न पकड़ पाए तो मारकर कम-से-कम उसकी लाश हमारे यहाँ पहुँचाने से भी इतना ही इनाम मिलेगा।"

 यह विज्ञापन पढ़कर विलसन कहने लगा - "इस विज्ञापन में उल्लिखित गुलाम को मैं अच्छी तरह पहचानता हूँ। वह छह साल तक मेरी अधीनता में काम कर चुका है। उसकी तीव्र बुद्धि, भलमनसी और सुशीलता देखकर मैं उस पर बहुत प्रसन्न था। उस आदमी ने पाट साफ करने के लिए अपनी अक्ल से एक बड़ी अच्छी कल बनाई थी। उसकी बनाई हुई कल का बड़ा आदर हुआ। आज वह प्राय: सर्वत्र काम में लाई जाती है। कल बनाने का ठेका उसके मालिक को मिला हुआ है और इससे वह मालामाल हो गया है।"

 यह सुनकर भेड़वाला अचंभे में आ गया। बोला - "साहब, देखिए, उसमें इतने गुण और यह अन्याय! आप लोगों की चाल-ढाल भी बड़ी अजीब है। आप लोग अपने गुलामों को जितना दु:ख देते हैं, उतना तो मैं भेड़ों को भी नहीं देता। ओफ, आप लोगों के बड़े घरों की स्त्रियाँ अपने दास-दासियों की संतानों पर जरा भी दया नहीं दिखातीं। आप कहते हैं कि विज्ञापन में जिस गुलाम का जिक्र है वह बड़ा बुद्धिमान है। उसने अपनी अक्ल से एक कल बना डाली है। लेकिन इस तीव्र बुद्धि का उसे क्या फल मिला? कल के बनाने का ठेका मालिक को मिला और उसके सद्गुणों के बदले में मालिक ने लोहे की छड़ से उसका हाथ दाग दिया! वाह री भलमनसी!"

 वहीं एक तीसरा आदमी और बैठा था। वह कहने लगा - "इसमें बेजा क्या किया! गुलाम पर मालिक का अधिकार है, उसके साथ चाहे जैसा व्यव्हार करे। गुलाम मालिक की मर्जी के मुताबिक चलें तो क्यों मारे जाएँ, पर गोरे दास सहज में दुरुस्त नहीं होते!"

 इस आदमी की बात समाप्त नहीं होने पाई थी कि होटल के दरवाजे पर एक गाड़ी आ लगी। उसमें से बहुत बढ़िया कपड़े पहने हुए एक गोरा नवयुवक उतरकर होटल में आया। विलसन आदि जहाँ बातें कर रहे थे, वहाँ पर वह पहुँच गया। उसने घर के दरवाजे पर चिपका हुआ वह विज्ञापन देखकर अपने दास से कहा - "जिम, कल उस होटल में जिस आदमी को देखा था, वही इस विज्ञापनवाला गुलाम जान पड़ता है।"

 जिम बोला - "जी हाँ। उसे पकड़ लेता तो इनाम मिलता। पर इस विज्ञापन का हाल ही नहीं मालूम था।" फिर नवागंतुक युवक ने होटल के मालिक को अपना नाम हेनरी बटलर बताया और रात भर ठहरने के लिए एक अलग कमरे का प्रबंध कर देने को कहा। होटलवाला उधर अलग कमरे का प्रबंध करने चला गया, इधर विलसन साहब उस व्यक्ति के चेहरे को बार-बार घूरकर सोचने लगे कि मैंने इसे कहीं-न-कहीं देखा है। यह परिचित-सा जान पड़ता है।

 विलसन के मन की बात को युवक ताड़ गया और उसके पास जाकर बोला - "साहब कहिए, पहचानते हैं? मैं बेक लैंग ग्राम का रहनेवाला बटलर हूँ।"

 विलसन कुछ निश्चय न कर सका कि उसकी बात का क्या उत्तर दे, पर सभ्यता के लिहाज से बोला - "पहचानता हूँ।"

 फिर बटलर उसका हाथ पकड़कर एकांत कमरे में ले गया। कमरे के किवाड़ भीतर से बंद कर लिए और वह विलसन के मुँह की ओर ताकने लगा। कुछ देर बाद विलसन बोला - "जार्ज!"

 बटलर - "जी हाँ।"

 विलसन - "मुझे संदेह तक नहीं हुआ कि तुम ऐसे गुप्त वेश में आए हो।"

 बटलर - "अच्छा कहिए, विज्ञापन पढ़कर मुझे कोई मेरे इस वेश में पहचान सकता है?"

 विलसन - "जार्ज, तुमने बड़े ही भयंकर मार्ग पर पैर रखा है। मैं तुम्हें कभी ऐसा करने की सलाह न देता।"

 बटलर - "इसके सिवा और कोई चारा ही नहीं है।"

 विलसन - "तुम्हारे इस प्रकार भागने पर मुझे बड़ा दु:ख हुआ।"

 बटलर - "मैं तो तुम्हारे दु:ख का कोई कारण नहीं देखता।"

 विलसन - "क्यों, क्या तुम नहीं जानते कि तुम अपने देश में प्रचलित कानून के विरुद्ध जा रहे हो?"

 बटलर - "मेरा देश? कहाँ है मेरा देश? क्या इस पृथ्वी पर कोई ऐसा स्थान भी है, जिसे मैं अपना देश कह सकूँ? मेरा देश कब्रिस्तान है। जहाँ मुझे समाधि मिलेगी, वही मेरा देश है। ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि वह शीघ्र ही मुझे उस देश में पहुँचा दे।"

 विलसन - "राम-राम, जार्ज, मुँह से ऐसी बात निकालना बाइबिल के विरुद्ध है। मैं इससे इनकार नहीं करता कि तुम्हारा मालिक बड़ा अत्याचारी है, पर बाइबिल की आज्ञा को मानो तो दास-दासियों को मालिक के वशीभूत होकर रहना पड़ेगा।"

 बटलर - "विलसन, दासत्व-प्रथा के समर्थन में बाइबिल या अन्य किसी धर्मशास्त्र की दुहाई मत दो। यदि गुलामी की प्रथा जैसी घृणित प्रथा भी बाइबिल के मत से ठीक है तो लानत है उस बाइबिल पर। मैं उसे हजार बार पैरों से रौंद दूँगा। ऐसी बाइबिल का नाम संसार से जितनी जल्दी मिट जाए, उतना ही अच्छा है। मैं सर्व-शक्तिमान परमात्मा से पूछता हूँ कि अपनी स्वाधीनता की रक्षा के लिए और अत्याचार से अपना निस्तार करने के लिए भागना क्या धर्म-विरुद्ध है? मुझे विश्वास है कि मेरा यह कार्य ईश्वर की दृष्टि में कभी धर्म-विरुद्ध न होगा।"

 विलसन - "तुम पर जैसे घोर अत्याचार हुए हैं उनसे तुम्हारा यों जोश में आ जाना, तुम्हारे मन में ऐसे भावों का उठना स्वाभाविक है, पर फिर भी मैं तुम्हारे इस कार्य को धर्मानुकूल नहीं कह सकता। क्या तुम्हें नहीं मालूम है कि ईसाई धर्म में महात्माओं ने मनुष्य को अपनी भली-बुरी चाहे जैसी स्थिति हो, उसी में संतुष्ट रहने का उपदेश दिया है? हम सबको अपनी स्थिति में संतुष्ट रहना चाहिए।"

 बटलर - "ठीक है, मैं भी यदि तुम्हारी भाँति स्वाधीन होता तो अपनी स्थिति में ही संतुष्ट रहता। मनुष्य धनी हो अथवा दरिद्र, यदि प्रकृति के दिए हुए मनुष्य के स्वाभाविक अधिकार उससे कोई न छीने तो वह ईश्वर पर भरोसा करके संतोष कर सकता है। पर मनुष्य को प्रकृति तो मनुष्य की दी जाए और उसे जीवन बिताना पड़े पशुओं का-सा, और मनुष्य के स्वाभाविक अधिकारों से उसे सर्वथा वंचित रखा जाए, तो ऐसी दशा में सृष्टिकर्ता की करुणा में उसे अवश्य ही संशय होने लगेगा। तुम लोगों को शर्म नहीं आती कि प्रमाण देकर गुलामों को संतुष्ट रहने की सीख देते हो! तुम्हारे स्त्री-पुत्रों को तुमसे छीनकर यदि कोई जहाँ-तहाँ बेच डाले तो क्या फिर भी तुम संतुष्ट बने रहोगे?"

 "बटलर" नामधारी छद्मवेशी जार्ज की ऐसी बातें सुनकर विलसन एकदम अचंभे में आ गया। उसके मुँह से बात न निकली। थोड़ी देर बाद कहने लगा - "जार्ज, मैंने सदैव तुम्हारे साथ मित्र-जैसा व्यव्हार किया है। तुम्हें विपत्ति से बचाने की चेष्टा की है। पर अब मैं देखता हूँ कि तुम विपत्ति के घोर समुद्र में कूद रहे हो। पकड़े गए तो फिर तुम्हारे बचने की क्या सूरत है? तब तो इससे भी अधिक दुर्दशा में पड़ोगे। ताज्जुब नहीं कि तुम्हारा मालिक तुम्हें जान से भी मार डाले।"

 जार्ज - "विलसन, यह मैं खूब जानता हूँ। पर पकड़े जाने पर मेरे छुटकारे का उपाय मेरी जेब में है।"

 यह कहकर उसने जेब से पिस्तौल निकालकर कहा - "यदि पकड़ा गया तो इसी पिस्तौल से तुम लोगों के इस केंटाकी प्रदेश में साढ़े तीन हाथ जगह लेकर दासत्व-शृंखला से इस शरीर को मुक्त करूँगा।"

 विलसन - "जार्ज, तुम तो बिलकुल पागल हो गए हो। ओफ! कैसी भयंकर बातें कर रहे हो। तुम आत्महत्या करना चाहते हो? तुम अपने देशीय कानून के विरुद्ध काम करने पर तुले हुए हो।"

 जार्ज - "फिर तुम मेरे देश का नाम लेते हो? कहाँ है मेरा देश? यह तो तुम्हारा देश है। क्रीत दासी के गर्भ से उत्पन्न मेरे जैसे मनुष्यों के लिए क्या कहीं स्वदेश है? हम लोगों के लिए न कहीं अपना देश है न अपना घर है। हम लोगों का अपनी स्त्री पर भी कोई अधिकार नहीं है। यहीं तक नहीं, हमारे शरीर पर भी हमारा अधिकार नहीं है। बिना अपराध के मालिक हमें हजार बार पीट सकता है, पर ऐसा कोई कानून नहीं जो हम लोगों के शरीर की रक्षा कर सके। देश में जितने कानून हैं, सभी हम लोगों के नाश के लिए हैं। ये सब कानून हम लोगों के बनाए हुए नहीं हैं और न उनके बनाने में हम लोगों की राय ही ली गई है। फिर ऐसे कानून के विरुद्ध चलने से क्या कोई कभी धर्म-भ्रष्ट होता है? विलसन, मुझे बिलकुल गँवार मत समझो। चौथी जुलाई का भाषण मुझे खूब याद है। तुम्हारे कानून-विधाता साल में एक बार कहा करते हैं न कि प्रजा की सम्मति के बिना राजा या शासनकर्ता कोई कानून नहीं बना सकते। पर तुम्ही बताओ, यहाँ जितने कानून प्रचलित हैं उनमें किसी कानून के बनने या प्रचार करने के पहले क्या कभी उसके विषय में हम लोगों का मत लिया गया है? जिस कानून के बनाने में हम लोगों का मत नहीं लिया गया, उस कानून को मानने के लिए भी मैं कभी मजबूर नहीं। विलसन, मेरी जो दुर्दशा हो चुकी है, उन सबका तुम्हें पता नहीं है, इसी से तुम ऐसा कहते हो। जन्म से आज तक मैंने कैसे दु:ख झेले हैं, इसका वर्णन करना असंभव है। तुम्हारे इस केंटाकी प्रदेश के एक रईस अंग्रेज के वीर्य से मेरा जन्म हुआ था। मेरी माता उस गोरे की क्रीत दासी थी। क्रमश: उसके सात बच्चे हुए। मैं उनमें सबसे छोटा हूँ। मेरी छह बरस की उम्र में उस पाषाण हृदय गोरे की मृत्यु हो गई। उसका कर्ज अदा करने के लिए उसके घर की और सब चीजों के साथ-साथ हम लोगों की भी नीलामी हुई। एक-एक करके मेरे छह भाई-बहनों को भिन्न-भिन्न लोगों ने खरीदा। इसके बाद माता मुझे छाती से चिपटाकर रोते-रोते मेरे वर्तमान मालिक से बोली, "महाशय, मुझे और इस बालक को एक साथ खरीद लीजिए। मेरी छाती से इस अबोध बालक को अलग न कीजिए।" वह नर-पिशाच भला क्यों मानता! उसने बारंबार मेरी माता को ठोकरों से पीछे हटाकर उसकी छाती से मुझे छीन लिया, और तुरंत मुझे बाँधकर अपने घर की ओर ले गया। मैं एक बार आँख उठाकर माता की ओर देखने भी न पाया। दो-तीन बार केवल उसके आर्त्त-नाद के शब्द मेरे कानों में पड़े। इसके कई दिनों बाद मेरा मालिक मेरी बड़ी बहन को उस व्यक्ति से, जिसने उसे नीलामी में खरीदा था, मोल ले आया। इस बात से पहले मैं बड़ा प्रसन्न हुआ। सोचने लगा कि बड़ी बहन के साथ रहकर माँ के वियोग का शोक कुछ हल्का पड़ पड़ जाएगा। पर शीघ्र ही मेरी वह आशा बेकार सिद्ध हुई। बड़ी बहन मेरी माता की भाँति बहुत ही सुंदर थी। धर्म-अधर्म का उसे बड़ा खयाल था। मेरा मालिक उसे उपपत्नी बनाने की बहुत चेष्टा करने लगा। पर वह किसी तरह धर्म छोड़ने को राजी न हुई। इससे मालिक को बड़ा क्रोध आता और वह उसे रोज बेंतों से खूब पीटता। एक दिन उसकी मार देखकर मैं शोक और दु:ख से अधीर हो गया। अंत में मेरे मालिक ने जब देख लिया कि मेरी बहन जान निकल जाने पर भी धर्म नहीं छोड़ेगी तो उसे किसी दक्षिण-देशीय अंग्रेज-बनिए के हाथ बेच डाला। पर अब वह कहाँ है, जीती है या मर गई, मुझे मालूम नहीं। इस जन्म में फिर उससे भेंट होने की आशा नहीं। इसके बाद मैं अकेला उस कठोर-हृदय मालिक के यहाँ रहने लगा, कभी-कभी मुझे भूखे ही दिन काटने पड़ते। कभी-कभी उसकी खाकर बाहर फेंकी हुई हड्डियों को भूख मिटाने के लिए चूसता था, पर मैं भोजन या और किसी शारीरिक कष्ट की परवा न करता था।"

 "मैं दिन-रात माता और भाई-बहनों के शोक में पागल हुआ रहता था। ध्यान आता था कि मुझे प्यार करनेवाला, मुझपर दया करनेवाला, मुझसे मीठा बोलनेवाला अब इस संसार में कोई नहीं। बचपन में मेरी माता कहा करती थी कि विपत्ति में ईश्वर का स्मरण करने से वह सब दु:ख दूर कर देता है। माता की वह बात याद करके कभी-कभी ईश्वर को पुकारता था। इससे मन में कुछ आशा का संचार होने से जीता रहा। कुछ दिनों बाद मालिक ने मुझे तुम्हारे कारखाने में लगा दिया। तुम्हारे यहाँ ही पहले-पहल इस जन्म में मैंने दया और स्नेह का अनुभव किया। तुम्ही ने पहले मेरे लिखने-पढ़ने का सुभीता कर दिया था, और तुम्हारे कारखाने में रहते समय ही शेल्वी साहब की दासी इलाइजा से मेरा विवाह हुआ था। क्रीत दासी होने पर भी इलाइजा का हृदय स्वच्छ और धर्म-पूर्ण था। उसके उस अकृत्रिम और अकपट प्रणय ने मुझमें फिर जान डाल दी। उसके सहवास से माता और बहनों का शोक कुछ-कुछ हल्का होता गया। पर जब तक यह देश में फैला घृणित कानून दूर न हो, तब तक क्रीत-दासों को सुख की संभावना कहाँ! मेरे निर्दयी मालिक से मेरा यह सुखी जीवन नहीं देखा गया। वह द्वेष की अग्नि से जल उठा और इलाइजा को छोड़कर उसने मुझे अपने घर की, अपनी पुरानी उपपत्नी, मीना नाम की क्रीत दासी से विवाह करने की आज्ञा दी। भला मैं इलाइजा को छोड़कर मीना से कैसे विवाह करता! क्या यह काम धर्म या बाइबिल के मत के अनुकूल है? धिक्कार है तुम्हारे ईसाई धर्म को! धिक्कार है तुम्हारी बाइबिल को! और सौ-सौ धिक्कार हैं तुम्हारे देश में प्रचलित कानू को! इस घृणित कानून की आड़ में नित्य लाखों मनुष्यों का नाश हो रहा है और तुम मुझे इसी घृणित कानून का पालन करने को समझाते हो। यदि सचमुच ही इस संसार की रचना करनेवाला कोई न्यायी मंगलमय ईश्वर है तो इस घृणित कानून के विपरीत चलकर मैं उसका प्रिय कार्य पूरा कर रहा हूँ। मैं भागकर कनाडा जा रहा हूँ। यदि किसी ने मुझे पकड़ने की हिम्मत की तो मैं तुरंत उसकी जान ले लूँगा, और यदि हारकर पकड़ा गया तो अपनी जान देकर साढ़े तीन हाथ भूमि पर आनंद-पूर्वक अनंत काल के लिए सुख की सेज बिछाकर सोऊँगा। मुझे पूर्ण विश्वास है कि स्वाधीनता की रक्षा के लिए युद्ध करने में कोई पाप नहीं है। तुम्हारे बाप-दादे भी तो स्वाधीनता की रक्षा के लिए लड़े थे। उस युद्ध में यदि उन्हें कोई पाप नहीं लगा तो अपनी स्वाधीनता की रक्षा के लिए किसी आदमी को मार डालने में मुझे भी कोई पाप नहीं लगेगा।"

 जार्ज की यह रामकहानी सुनकर विलसन का हृदय पसीज गया। उसके दिल पर यह बात जम गई कि गुलामी की इस प्रथा के उठ जाने में ही कल्याण है। वह फिर बोला - "जार्ज, इस दशा में मैं तुम्हें भागने से नहीं रोकूँगा, पर किसी की जान मत लेना। हाँ, यह तो कहो कि अपनी स्त्री के विषय में क्या करोगे? तुम्हारी स्त्री इस समय कहाँ है?"

 जार्ज ने कहा - "मैं नहीं जानता कि मेरी स्त्री इस समय कहाँ है। पर सुना है कि उसके मालिक ने उसके बच्चे को बेचने का प्रस्ताव किया था, इससे वह अपने बच्चे को लेकर भाग गई है। मालूम नहीं कि उससे कब भेंट होगी, अथवा इस जन्म में भेंट होगी भी या नहीं।"

 विलसन - "यह बड़े अचंभे की बात है। ऐसे दयालु परिवार ने तुम्हारे बच्चे को बेचने की बात ठान ली!"

 जार्ज - "अक्सर होता है कि दयालु परिवार भी कर्ज में फँसकर धर्म-अधर्म की कुछ भी परवा नहीं करता और सामाजिक मर्यादा को बचाने के लिए माता की गोद से शिशु को छीनकर बेच देता है, क्योंकि देश में प्रचलित इस घृणित कानून ने इस प्रकार की कठोरताओं को सदा आश्रय दिया है। केवल दयालु परिवार मिलने से ही किसी दास का कोई उपकार नहीं हो सकता।"

 विलसन के हृदय पर जार्ज की इन बातों का बड़ा असर हुआ। उसने जेब से कुछ नोट निकालकर जार्ज को दिए और कहा - "ये रुपए बहुत काम आएँगे।"

 जार्ज ने रुपए लेने से इनकार करते हुए बहुत नम्रतापूर्वक कहा - "विलसन, तुमने समय-समय पर मेरा बहुत उपकार किया है। मैं तुमसे और रुपए नहीं लेना चाहता। यों रुपए देते रहने से तुम स्वयं कर्ज में फँस जाओगे।"

 पर विलसन ने उसकी एक न सुनी और जबरदस्ती उसकी जेब में रुपए डाल दिए। लाचार जार्ज को लेने पड़े। जार्ज ने विलसन से कहा - "यदि मैं कभी तुम्हारे रुपए चुकाने लायक हुआ, तो तुम्हें वापस लेने पड़ेंगे।"

 विलसन - "तुम कितने दिनों तक इस प्रकार गुप्त वेश में रहोगे? तुम्हारे साथ यह काला आदमी कौन है?"

 जार्ज - "यह आदमी भी गुलाम था। एक बरस हुआ, यह किसी तरह भागकर कनाडा चला गया था। इसके भाग जाने से इसका मालिक मारे गुस्से के पागल होकर इसकी माता को दिन-रात मारने और सताने लगा। माता के दु:ख की बात सुनकर उसे चुपके से भगा ले जाने के लिए यह फिर आया है।"

 विलसन - "तो क्या इसकी माता का उद्धारकर लाए?"

 जार्ज - "अभी मौका नहीं मिला। पहले यह मुझे किसी सुरक्षित स्थान में पहुँचा देगा और फिर अपनी माता के उद्धार के लिए इस प्रदेश में आकर उसे ले जाएगा।"

 विलसन - "यह तो बड़ा हिम्मतवाला बहादुर आदमी है, भाई! पर जार्ज, देखना तुम बड़ी सावधानी से रहना, कहीं पकड़े न जाना।"

 जार्ज - "मैं गुलामी से छूट चुका हूँ। भागकर बच गया तो भी स्वाधीनता है हाथ और पकड़ा गया तो भी समाधि में जाकर पूरी स्वाधीनता से सुख की नींद सोऊँगा। यदि तुम कभी सुनो कि मैं पकड़ा गया हूँ तो निश्चय ही मन में समझ लेना कि मैं मर गया हूँ।"

 इन बातों के बाद विलसन ने जार्ज से विदा माँगी, पर घर के बाहर पैर रखते ही जार्ज ने फिर पुकारकर कहा - "विलसन, मेरी एक बात सुनकर जाओ। यदि मैं पकड़ा गया तो अवश्य ही मेरी जान जाएगी और मालिक मुझे मुर्दे कुत्ते की तरह कहीं फिंकवा देगा। उस समय इस संसार में मेरे लिए मेरी स्त्री के सिवा और कोई एक बूँद आँसू भी न गिराएगा। मैं तुम्हें अपना एक चित्र देता हूँ। मेरी स्त्री से भेंट हो जाए तो उसे दे देना और कहना कि जीते-मरते मैं उसी का हूँ। उसे बच्चे को लेकर कनाडा जाने को समझा देना और बच्चे को गुलामी की जंजीरों से बचाए रखने की चेष्टा करने का मेरी ओर से अनुरोध कर देना। उससे कहना कि दासों के मालिक चाहे जितने दयालु हों, पर उनके दासों के दु:ख-कष्ट दूर नहीं हो सकते, क्योंकि मालिक के कर्जे के लिए दूसरों के हाथ में जाने का सदा ही खटका बना रहता है।"

 विलसन - "तुम्हारी स्त्री से भेंट होने पर मैं अवश्य ही ये सब बातें कहूँगा। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि वह निर्विघ्न तुम्हें निरापद स्थान पर पहुँचने में समर्थ करें। तुम सदा ईश्वर का स्मरण करते रहना।"

 जार्ज - "क्या संसार में कहीं कोई ईश्वर है? संसार में सदा यह अविचार और अन्याय देखकर मेरे मन में शंका होती है कि इस संसार में न्यायी परमेश्वर नहीं है। हाँ, यदि कोई ईश्वर हो भी तो वह तुम्ही लोगों का रक्षक है। ईश्वर के अस्तित्व पर मुझे विश्वास नहीं होता।"

 विलसन - "जार्ज, ऐसी बातें मुँह से न निकालो। मन में कभी ऐसे संशय को स्थान मत दो। परमेश्वर प्रत्यक्ष इस संसार का शासन करता है। वह सर्वत्र व्यापक है। उस पर विश्वास करो। अपने को उसी के सहारे छोड़कर न्याय और सत्पथ पर बढ़ते जाओ। निश्चय ही उसकी करुणा से निर्विघ्न सुरक्षित स्थान पर पहुँच जाओगे। इस संसार में व्यक्ति-विशेष को जो कष्ट और यंत्रणाएँ मिलती हैं, वे सब उनके कर्मों का फल हैं। मनुष्यों को कभी-कभी अपने बाप-दादों के पाप का फल भी भोगना पड़ता है। मंगलमय ईश्वर पर अटल विश्वास, पूर्ण भरोसा और उसके हाथों में आत्म-समर्पण किए बिना उन कर्मों के फल से छुटकारा नहीं मिल सकता।"

 विलसन की बात सुनकर जार्ज बोला - "मैं तुम्हारे इस उपदेश के अनुसार कार्य करने की चेष्टा करूँगा।"

 यह कहकर वे दोनों एक-दूसरे से बिदा हुए।