Tom Kaka Ki Kutia - 20 books and stories free download online pdf in Hindi

टॉम काका की कुटिया - 20

20 - सच्‍ची प्रभु-भक्ति

सदाचार और सुशीलता का सभी जगह आदर होता है। जिसके हृदय में धर्मभाव और साधुभाव का राज्य है, उसके लिए इस संसार में, किसी दशा में, विपत्ति और कष्ट का भय नहीं है। ऐसे आदमी को सभी प्यार करते हैं। सचमुच सद्भाव के प्रभाव से पाषाण-हृदय भी नरम पड़ जाता है। दया, उदारता, स्नेह, सच्चे त्याग और नि:स्वार्थ प्रेम के सम्मुख लोगों का सिर सदा झुका रहता है। इसी से टॉम अपने निष्कपट सरल व्यव्हार के कारण दिन-प्रति-दिन अपने मालिक की आँखों में चढ़ता गया।

 रुपए-पैसे के मामले में सेंटक्लेयर बड़ा लापरवाह था। वह अपने आय-व्यय का कोई लेखा-जोखा नहीं रखता था। उसका एडाल्फ नामक गुलाम ही हाट-बाजार तथा खर्च आदि का काम किया करता था। वह भी अपने मालिक के समान लापरवाह आदमी था, बेहिसाब खर्च करता था। पर टॉम के आने पर सेंटक्लेयर मौके-मौके से उससे काम लेने लगा। उसकी चतुराई और ईमानदारी देखकर सेंटक्लेयर ने शीघ्र ही अपने रुपए-पैसे एवं खर्च का कुल काम उसको सौंप दिया।

 अपने हाथ से खर्च का अधिकार निकल जाने के कारण एडाल्फ कुछ उदास हुआ और मुँह बनाने लगा। इस पर सेंटक्लेयर ने कहा - "नहीं-नहीं, एडाल्फ, यह काम तुम टॉम को ही करने दो। तुम केवल खर्च करना जानते हो और टॉम खर्च और आमद, दोनों को समझता है। इस काम के लिए यदि हम किसी ऐसे आदमी को नियत न करें तो यों ही करते-करते एक दिन रुपयों का तोड़ा हो सकता है।"

 टॉम सेंटक्लेयर का काम बड़ी ही ईमानदारी से करता था। उससे कभी किसी खर्च का हिसाब नहीं पूछा जाता था। वह यदि चाहता तो बेईमानी से बहुत रुपए बना लेता; पर वह अधर्म की कौड़ी लेना महापाप समझता था।

 सेंटक्लेयर को मालिक जानकर टॉम उसका बड़ा सम्मान करता था, पर इस सम्मान के भाव में दूसरा ही रंग पकड़ा। टॉम बूढ़ा और सेंटक्लेयर नौजवान था। टॉम गंभीर और सेंटक्लेयर चंचल-चित्त था। इससे सेंटक्लेयर के संबंध में टॉम के हृदय में पितृ-वात्सल्य का संचार होने लगा। टॉम ने देखा कि सेंटक्लेयर का हृदय तो बड़ा दयालु है, किंतु वह न कभी बाइबिल पढ़ता है, न कभी उठते-बैठते ईश्वर का भजन ही करता है, न गिर्जे में जाकर कभी ईश्वर की वंदना करता है। वह तो सदा हँसी-खुशी में मग्न रहता है। थियेटर जाने का उसे शौक है। कभी-कभी अपने जैसे चंचल-चित्तवाले युवकों में बैठकर खूब शराब पीकर पागल बन जाता है। ये बातें देखकर टॉम के मन में बड़ा दु:ख होता था। ऐसा दयालु, सरल-प्रकृति, सहृदय व्यक्ति ईश्वर से अलग पड़ा है, उपासना-हीन जीवन व्यतीत कर रहा है, टॉम के लिए यह बड़े ही कष्ट का विषय था। वह नित्य अपनी प्रार्थना में ईश्वर से विनती करता - "भगवान, इस युवक की मति सुधार दो, उसका हृदय पलट दो! इसके हृदय में धर्म तथा अपनी भक्ति की तृष्णा उत्पन्न कर दो!"

 एक दिन की बात है। सेंटक्लेयर ने कहीं बहुत अधिक शराब पी ली और बड़ी रात गए गिरता-पड़ता घर आया। उस समय टॉम और एडाल्फ ने उसे गाड़ी से उतारकर खाट पर सुलाया। सेंटक्लेयर की यह दशा देखकर एडाल्फ हँसने लगा। पर टॉम कुछ न बोल सका। उसकी आँखों से आँसू झरने लगे। टॉम का यह भाव देखकर एडाल्फ और भी हँसने लगा। किंतु टॉम को उस रात बिलकुल नींद नहीं आई। वह रात भर बैठा-बैठा ईश्वर से मालिक के सुधार के लिए प्रार्थना करता रहा। सबेरे सेंटक्लेयर ने टॉम को कहीं भेजने के लिए बुलाया। टॉम जब आकर खड़ा हुआ तो उसकी आँखें डबडबाई हुई थीं। उसको कुछ रुपए देकर सेंटक्लेयर ने किसी काम के लिए जाने को कहा, किंतु टॉम वहीं खड़ा रहा। तब सेंटक्लेयर ने पूछा - "टॉम, मैं कुछ भूल गया हूँ?"

 टॉम - "नहीं, मुझे कहते डर लगता है।"

 सेंटक्लेयर ने हाथ का अखबार मेज पर पटक दिया तथा चाय का प्याला भी छोड़ दिया और टॉम की ओर देखने लगा। उसने पूछा - "क्यों टॉम, मामला क्या है? तुम्हारा चेहरा देखकर तो जान पड़ता है, मानो कोई बड़ी भारी विपदा आ पड़ी है।"

 टॉम - "प्रभु, मुझे बड़ा दु:ख हो रहा है। मैं समझता था कि मालिक सदा सबके साथ समान व्यव्हार करते हैं।"

 सेंटक्लेयर - "तो क्या तुम्हारा यह खयाल ठीक नहीं उतरा? अब बोलो, तुम क्या चाहते हो? मैं समझता हूँ कि तुम कोई चीज चाहते होगे और वह तुम्हें नहीं मिली होगी, यह उसी की भूमिका है।"

 टॉम - "प्रभु, इस दास पर तो आपकी सदा ही कृपा बनी रहती है। अपने विषय में मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं करनी है, किंतु एक आदमी से आपका बर्ताव अच्छा नहीं होता?"

 सेंटक्लेयर - "क्यों, मैंने किससे बुरा बर्ताव किया? अपना मतलब खोलकर कहो।"

 टॉम - "कल रात की घटना का स्मरण करने से मुझे बड़ा खेद होता है। आप सब पर तो दया करते हैं, केवल अपने ऊपर आप बड़े निर्दयी हैं।"

 सेंटक्लेयर ने मुस्कराकर कहा - "ओह, यह बात है!"

 टॉम ने सिर झुकाकर बड़ी नम्रता से आँखों में आँसू भरकर, पैरों पर पड़कर कहा - "प्रभु, यही बात थी, जो मैं आपसे कहना चाहता था। मेरे प्यारे नवयुवा प्रभु! मुझे भय है कि यह सबकुछ, सबकुछ, शरीर-आत्मा का सत्यानाश कर देगा। बाइबिल में लिखा है कि यह बला सर्प से भी भयंकर और बुरी है, मेरे प्यारे प्रभु!"

 टॉम का गला भर आया और उसकी आँखों से आँसुओं की धारा बह चली।

 सेंटक्लेयर की भी आँखें भर आईं। उसने कहा - "टॉम, उठो। तुम भी कितने नासमझ हो। तुम्हें जरा भी अक्ल नहीं है। मैं इस योग्य नहीं कि मेरे लिए कोई रोए।"

 पर टॉम नहीं उठा। वह सेंटक्लेयर की ओर इस तरह ताकने लगा, मानो उसके नेत्र विनती कर रहे हों।

 टॉम की यह दशा देखकर कोमल-हृदय सेंटक्लेयर बोला - "टॉम, लो, मैं आज से प्रतिज्ञा करता हूँ कि फिर कभी इतनी शराब नहीं पीऊँगा। फिर कभी बुरों का साथ नहीं करूँगा। मैं अपने चरित्र से स्वयं घृणा करता हूँ। मैं अपने जीवन को पापमय समझता हूँ। तुम बेफिक्र रहो, मैं अब फिर बुरा काम नहीं करूँगा।"

 इतना कहकर सेंटक्लेयर ने टॉम का हाथ पकड़कर उसे उठाया।

 सेंटक्लेयर की प्रतिज्ञा सुनकर टॉम को बड़ा संतोष हुआ और आँखों का पानी पोंछता हुआ चला गया।

 टॉम के चले जाने पर सेंटक्लेयर कहने लगा कि मैंने आज जो प्रतिज्ञा की है, उसे कभी नहीं तोड़ूँगा।

 सचमुच उस दिन से सेंटक्लेयर ने मद्यपान छोड़ दिया। वह स्वाभावतः इंद्रियासक्त अथवा कुप्रवृत्ति के अधीन न था। लड़कपन से ही लोग उसे सच्चरित्र समझते थे। पर इधर संसार से उसे विराग-सा हो गया था। संसार की टेढ़ी गति देखकर किसी काम में उसका मन न लगता था। उसके जीवन का कोई लक्ष्य न था। उसका यह लक्ष्य-शून्य जीवन घटना-चक्र के अनुसार चलता था। इसी से समय काटने के लिए उसे जब जैसा संग मिलता, वह उसी में रम जाता और हँसी-खुशी मनाता था। महीनों की कौन कहे, लगातार वर्ष-के-वर्ष यों ही बिना कष्ट के बीत जाते थे।