Tom Kaka Ki Kutia - 39 books and stories free download online pdf in Hindi

टॉम काका की कुटिया - 39

39 - संवेदना का प्रभाव

कासी ने कमरे के अंदर पहुँच कर देखा कि एमेलिन एक कोने में दुबकी हुई भयभीत बैठी है। उसका चेहरा पीला पड़ा हुआ है। कासी के आने की आहट सुनकर वह चौंक उठी। पर उसने जब कासी को देखा तो दौड़कर उसकी बाँहें पकड़ लीं और बोली - "कासी! तुम हो? मैंने सोचा था, कोई और आ रहा है। बड़ा अच्छा हुआ जो तुम आ गई। मुझे डर बहुत ही सता रहा था। तुम नहीं जानती हो कि नीचे के कमरे में कितना भयंकर शोर हो रहा है।"

 कासी ने कहा - "मैं सब जानती हूँ, बहुत दिनों से सुनती आई हूँ।"

 एमेलिन बोली - "कासी, क्या यहाँ से हम लोगों के निकल चलने का कोई उपाय नहीं है? इस जंगल में साँपों और शेरों के बीच रहना अच्छा है, पर यहाँ नहीं।"

 कासी ने कहा - "कब्र के लिए और कोई जगह नहीं है।"

 दो क्षण ठहरकर एमेलिन बोली - "तुमने कभी चेष्टा की है?"

 कासी ने उत्तर दिया - "मैंने खूब चेष्टा कर देखी है, पर कोई नतीजा नहीं।"

 एमेलिन ने कहा - "मुझे वन में, दलदल में, पेड़ों के पत्ते खाकर रहना मंजूर है। मैं भयंकर साँपों से भी इतना नहीं डरती, जितना लेग्री- जैसे नर-पशुओं के निकट रहने से डरती हूँ।"

 कासी बोली - "बहुतों ने तुम्हारी ही भाँति यहाँ से भाग निकलने की बात सोची, पर भागने से कहाँ छुटकारा है? वह तुम्हें दलदल में भी नहीं टिकने देगा। शिकारी कुत्तों से पता लगवा लेगा, पकड़वा, और-तब..."

 एमेलिन ने पूछा - "और तब क्या करेगा?"

 कासी बोली - "इसके बदले यह पूछो कि क्या नहीं करेगा। जलदस्युओं में रहकर यह अपने पेशे से क्रूर हो गया है। यदि मैं तुम्हें उसकी कभी-कभी मजाक में कही हुई बातें सुनाऊँ और यहाँ का अपना आँखों देखा हाल बताऊँ तो तुम्हें रात में नींद आना भी मुश्किल हो जाएगा। इस घर के पिछवाड़े एक अधजला पेड़ है। उस पेड़ के नीचे की जमीन काली राख से ढकी पड़ी है। यहाँ के किसी आदमी से पूछो कि यहाँ क्या हुआ है? देखो, फिर वह कहने की भी हिम्मत करता है या नहीं।"

 एमेलिन ने जिज्ञासा से पूछा - "तुम्हारे कहने का मतलब मैं नहीं समझी।"

 तब कासी ने बताया - "मैं तुमसे वह सब नहीं कहूँगी। मैं उन बातों को मन में लाना भी बुरा समझती हूँ। और मैं तुमसे कहती हूँ कि यदि कल भी टॉम अपनी जिद पर अड़ा रहा और उसने लेग्री की बात नहीं मानी, तो परमात्मा ही जानता है कि हमें कल कैसा भयानक द्रश्य देखना पड़ेगा।"

 एमेलिन भय से पीली पड़कर बोली - "ओफ! कितना भयंकर है। अरी कासी, मुझे रास्ता बता। मैं अब क्या करूँ?"

 कासी ने समझाया - "जो मैंने किया है, और अंत में झख मारकर जो तुम्हें भी करना पड़ेगा, वही करो!"

 एमेलिन ने अपनी व्यथा सुनाई - "वह मुझे अपनी घिनौनी ब्रांडी पिलाना चाहता है और मैं उससे हद से ज्यादा नफरत करती हूँ।"

 कासी ने बताया - "ब्रांडी पीना अच्छा रहेगा। पहले मैं भी ब्रांडी से घृणा करती थी, लेकिन अब तो मैं उसके बिना जी नहीं सकती। यह सब-कुछ खाए-पिए बिना काम नहीं चलता। जब तुम पीने लगोगी, तब इतनी बुरी भी नहीं लगेगी।"

 एमेलिन बोली - "माँ मुझे बराबर कहा करती थी कि ऐसी चीजों को छूना तक नहीं चाहिए।"

 कासी ने कहा - "तुम्हारी माँ तुम्हें ऐसा कहती थी, यह अचरज की बात है। माँ की कही हुई इन बातों का क्या नतीजा होना है? जिसने हमें मोल लिया है, वह हमारे शरीर और आत्मा का मालिक है। उसकी कही बात हमें माननी होगी। मैं कहती हूँ तुम ब्रांडी पीओ! जितनी पी सको, उतनी पीओ! इससे तुम्हारी मानसिक पीड़ा बहुत-कुछ दूर हो जाएगी।"

 एमेलिन ने प्रार्थना की - "कासी! कासी! मुझपर दया करो!"

 कासी चौंककर बोली - "क्या मैं नहीं करती हूँ? तुम्हारी-जैसी एक मेरी भी बेटी थी। ईश्वर जाने, वह अब कहाँ है! कैसी है! संभव है, जिस रास्ते का उसकी माता ने सहारा लिया है, वह भी उसी पर चली हो, और उसकी संतानें भी उसी पर जाएँगी। हाय, इस बदकिस्मती का क्या ठिकाना है!"

 एमेलिन ने अपने हाथों को ऐंठते हुए कहा - "मेरा जन्म ही न होता तो अच्छा था।"

 कासी बोली - "मेरे लिए तो यह पुरानी इच्छा है। बहुत बार मैंने ऐसी इच्छा की है। मन में आता है कि जान दे दूँ, पर हिम्मत नहीं होती।"

 एमेलिन ने कहा - "आत्महत्या करना पाप है।"

 "मैं नहीं जानती कि आत्महत्या को क्यों पाप बताया जाता है?" कासी ने दुखी स्वर में कहा - "हम नित्य जिन पापों में लिप्त रहती हैं, उनसे भी बड़ा क्या कोई पाप है? पर जब मैं शिक्षाश्रम में थी, तब वहाँ की भगिनियों से मैंने इस विषय में जो बातें सुनी थीं, उन्हें याद करके आत्महत्या करने में डर लगता है। यदि आत्महत्या के साथ आत्मा का लोप हो जाता, तो फिर..."

 एमेलिन ने यह सुनकर, पीछे हटकर, दोनों हाथों से मुँह ढँक लिया।

 यहाँ जब ये बातें हो रही थीं, उस समय लेग्री शराब के गहरे नशे में मस्त होकर नीचे के कमरे में पड़ा नींद में खर्राटे भर रहा था।

 नींद की दशा में वह स्वप्न देख रहा था कि सफेद कपड़े पहने हुए कोई मूर्ति उसके पास खड़ी है और बरफ जैसे ठंडे हाथों से उसके शरीर को छू रही है। यह मूर्ति उसे कुछ परिचित-सी जान पड़ी। डर के मारे उसका सारा शरीर जड़ हो गया। फिर उसे ऐसा लगा, जैसे वह बालों की लट आकर उसकी अँगुलियों के चारों ओर लिपट गई। देखते-देखते वह लट गले तक जा पहुँची और उसने गले को सब ओर से लपेटकर बाँध लिया। लेग्री की साँस रुक गई। तब वह श्वेत वस्त्रधारी मूर्ति उसके कान में कुछ कहने लगी। उसकी बात सुनकर लेग्री को लगा की उसके हृदय की गति रुकने लगी है। उसने फिर देखा कि वह किसी कुएँ के किनारे खड़ा हुआ है। कासी वहाँ हँसती हुई आई और उसे कुएँ में धकेल दिया। फिर उसने उसे श्वेत वस्त्रधारी मूर्ति को अपने सामने देखा। उस मूर्ति ने अपने मुँह पर से पड़ा पर्दा हटा लिया। लेग्री ने देखा, यह तो उसकी माँ है! उसे देखकर माँ वापस चली गई और वह एक बड़े गहरे खड्ड में जा गिरा। वहाँ चारों ओर शोरगुल, चिल्लाहट, आर्त्तनाद और भूत-प्रेतों की विकट हास्य-ध्वनि सुनकर लेग्री की नींद खुल गई।

 इधर सवेरा हो गया था।

 प्रतिदिन प्रात:कालीन सूर्य मानव-हृदय में नई-नई भावनाएँ जगाता है। प्रात:कालीन समीर मधुर स्वर में कहता है - "अरे मनुष्यों, अपने पापासक्त मन को सुमार्ग पर लाने के लिए, अपने हृदय का मैल धो डालने के लिए, ईश्वर ने तुम्हें फिर यह एक नया अवसर दिया है।" लेकिन न तो प्रात:कालीन सूर्य, और न प्रात:कालीन पवन, कोई भी, लेग्री सरीखे पाप-पंक में लिप्त व्यक्ति के मन में शुभ भावना जगा सका। लेग्री के मन में प्रभात-काल किसी प्रेरणा का उदय नहीं कर पाता था। वह बिस्तर से उठा नहीं कि शराब की बोतल हाथ में ले लेता था।

 कासी को, जो उसी समय दूसरे दरवाजे से कमरे में आई थी, देखकर लेग्री बोला - "कासी, आज रात को मुझे बड़ी तकलीफ हुई।"

 कासी ने रूखेपन से कहा - "आज ही क्या, अभी आगे-आगे और भी कष्ट भोगना होगा।"

 लेग्री ने पूछा - "तुम्हारे ऐसा कहने का क्या मतलब है?"

 कासी ने कहा - "अभी नहीं, बाद में समझोगे। लेग्री, मैं तुम्हारे भले के लिए एक सलाह देती हूँ।"

 लेग्री बोला - "क्या?"

 कासी बोली - "वह सलाह यही है कि अब तुम टॉम को सताना बंद कर दो।"

 लेग्री गुर्राकर बोला - "इस बात से तुम्हारा क्या संबंध है?"

 कासी ने धीरज से जवाब दिया - "मेरा इस बात से सीधा कोई संबंध नहीं है, लेकिन मैं तुम्हें जो समझाना चाहती हूँ वह यह है कि ये काम के दिन हैं, इस वक्त मारपीट करने से तुम्हारा ही नुकसान है। आखिर तुम बारह सौ डालर नकद गिनकर एक आदमी लाओ और उसे इस तरह बेकार ही मार डालो, तो सोचो, कितना नुकसान होगा। तुम्हारी हानि के खयाल से ही मैं उसे जल्दी चंगा करने की कोशिश करती हूँ।"

 लेग्री ने क्रोध के साथ कहा - "तू उसे ठीक करने क्यों गई? मेरे मामले में तेरे टाँग अड़ाने का क्या मतलब है?"

 कासी बोली - "सचमुच कुछ भी नहीं। पर मैंने इसी तरह कई बार तुम्हारा रुपया बचा दिया। अगर फसल अच्छी न हुई तो तुम्हारी आँखें खुल जाएँगी।"

 कपास की फसल के लिए लेग्री जी-जान से कोशिश करता था। इसी से कासी ने टॉम की मार टालने के खयाल से, बड़ी चतुराई से बात शुरू की थी।

 लेग्री बोला - "खैर, मैं इस बार उसे छोड़ दूँगा। लेकिन शर्त यह है वह मुझसे क्षमा माँगे और भविष्य में मेरी बात पर चलने का वादा करे।"

 कासी ने तुरंत कहा - "यह वह नहीं करेगा।"

 लेग्री ने पूछा - "नहीं करेगा?"

 कासी ने दृढ़ता से कहा - "नहीं करेगा।"

 लेग्री बोला - "मुझे मालूम तो हो, कि क्यों नहीं करेगा?"

 कासी ने समझाया - "उसका विश्वास है कि उसने जो कुछ किया है, ठीक ही किया है। वह कभी नहीं कहेगा कि उसने अनुचित किया है।"

 लेग्री झुँझलाकर बोला - "हब्शी गुलामों का भी क्या कोई न्याय-अन्याय होता है? मैं जो कहूँगा, वही उसे करना होगा।"

 कासी ने स्थिर स्वर में उत्तर दिया - "तब वह काम के समय खाट पर ही रहेगा और इस साल तुम्हारी फसल खराब होगी।"

 लेग्री अकड़ से बोला - "लेकिन वह जरूर माफी माँगेगा, जरूर माँगेगा। मैं क्या इन हब्शी गुलामों को नहीं पहचानता?"

 कासी ने उसे पुन: वही उत्तर दिया - "लेग्री, मेरी इस बात को गाँठ बाँध लो, वह कभी माफी नहीं माँगेगा। तुम उसे मामूली गुलाम मत समझना। तुम उसकी बोटी-बोटी काट डालोगे, तब भी वह अपनी बात से नहीं टलेगा।"

 लेग्री बोला - "मैं उसे देखूँगा। वह इस समय कहाँ है?"

 कासी ने बताया - "जिस कोठरी में सड़ी रुई और पुराना माल-असबाब पड़ा है, उसी में है।"

 लेग्री ने कासी के सामने इस तरह हेकड़ी तो जाहिर की, किंतु उसके मन में भी शंका होने लगी कि टॉम क्षमा नहीं माँगेगा। उसने सोचा कि यदि वह टॉम से क्षमा नहीं मँगवा सका तो साथ रहनेवाले लोगों में उसकी हेठी होगी, रौब में फर्क पड़ेगा, इसलिए वह अकेला ही टॉम की कोठरी की ओर गया। उसने मन-ही-मन सोचा कि यदि टॉम क्षमा नहीं माँगेगा तो भी उसे इस वक्त नहीं मारूँगा, फसल का मौसम बीत जाने पर उसे दुरुस्त करूँगा।

 हम पहले ही कह आए हैं कि सवेरे की हवा और सवेरे का सूर्य लोगों की भिन्न-भिन्न प्रकृति के अनुसार उनमें भिन्न-भिन्न प्रकार के भाव जगाता है। किंतु लेग्री जैसे भावहीन चिंताशून्य, अर्थलोलुप, इंद्रियासक्त पिशाच के हृदय में किसी प्रकार का भाव प्रवेश नहीं कर सकता। उसका ध्यान केवल कपास के खेत, पैसा इकट्ठा करना, शराब और कुली औरतों में लगा है। किंतु अपढ़ होने पर भी टॉम का मन भावों और चिंताओं से शून्य नहीं है। प्रभातकालीन सजीवता ने उसके हृदय में नवीन बल का संचार किया। उसे मालूम होने लगा-मानो शुक्र तारा आकाश से उतरकर उससे कह रहा है - "टॉम, डरना नहीं। ईश्वर तुम्हारे साथ है।" टॉम को मन-ही-मन बड़ी प्रसन्नता होने लगी। विशेषकर इस बात से कि लेग्री उसे जान से मार डालेगा। पहले उसे इस बात को नहीं सोचा था, परंतु कासी की पहले दिन की बातचीत के ढंग से वह समझ गया था कि अब उसकी मृत्यु बहुत निकट है। अत: इस मृत्यु-संवाद को पाकर उसकी आत्मा विमल आनंद से पूर्ण हो गई। वह सोचने लगा, मृत्यु के उपरांत वह ईश्वर के उस प्रेम-राज्य में जाकर विश्राम करेगा, जहाँ द्वेष, हिंसा और अत्याचार की गंध भी नहीं है। वहाँ प्राणों से प्रिय इवान्जेलिन का मुख-कमल देखेगा और यह भी देखेगा कि परम दयालु मालिक सेंटक्लेयर की नास्तिकता परलोक में जाकर दूर हो गई है। अहा, टॉम के लिए इससे बढ़कर सुख और संतोष की बात और क्या हो सकती है? वह अपने शारीरिक कष्टों को भूलकर आनंद से विह्वल हो गया। उसके मुखमंडल पर प्रसन्नता एवं किंचित हास्य का आभास दिखाई दे रहा था। इसी समय नर-पिशाच लेग्री ने वहाँ पहुँचकर उसे पुकारा और पैरों से ठुकराते हुए कहा - "कहो बच्चू, कैसे हो? मैंने तुझसे नहीं कहा था कि तुझे सिखा दूँगा? बोल, यह शिक्षा कैसी लगती है? अभी कुछ जिद बाकी है कि निकल गई? आज इस पापी को कुछ धर्म नहीं सिखाएगा।"

 टॉम ने इसका कोई उत्तर नहीं दिया।

 इस पर लेग्री ने उसे फिर ठोकर मारते हुए कहा - "उठ सूअर!"

 पिछले दिन की मार से टॉम बहुत शक्तिहीन हो गया था, इससे बोला - "क्यों, तुझे क्या हो गया है? मालूम होता है, रात की ठंडी हवा से सर्दी खाकर अकड़ गया है।"

 टॉम बड़े कष्ट से उस पापी उत्पीड़क के सामने निडर होकर खड़ा हो गया।

 लेग्री कहने लगा - "अरे शैतान, मैं समझता हूँ कि अभी तुझे काफी सजा नहीं मिली है। मेरे सामने घुटने टेककर माफी माँग, नहीं तो और पीटता हूँ। जल्दी कर! माफी माँगता है कि नहीं?" इतना कहकर हाथ में लिए कोड़े से वह उसे सड़ासड़ पीटने लगा।

 टॉम ने कहा - "सरकार, लेग्री साहब, यह मुझसे नहीं होगा। मैंने केवल वही किया है, जिसे मैंने उचित समझा है। आगे भी, काम पड़ने पर, मैं ऐसा ही करूँगा। चाहे कुछ भी हो जाए, मैं किसी को मारने-पीटने का हृदयहीन काम कभी नहीं करूँगा।"

 लेग्री बोला - "ठीक है। लेकिन हजरत, अभी आपको यह पता नहीं कि इसके बाद आपकी क्या दुर्गति होगी। तू समझता है कि कल जो कुछ हुआ, वह काफी हो गया पर मैं तुझे बताता हूँ कि वह तो बस बानगी था। जरा उस मजे का खयाल करके देख, जब तुझे पेड़ से बाँध दिया जाएगा और नीचे धीमी-धीमी आग जलाकर तुझे भूना जाएगा।"

 टॉम ने कहा - "सरकार, मैं जानता हूँ कि आप भयंकर-से-भयंकर काम कर सकते हैं।"

 इतना कहते-कहते उसकी आँखों में आँसू आ गए और वह ऊपर को हाथ उठाकर कहने लगा - "किंतु इस शरीर का नाश कर डालने के बाद आप और कुछ अधिक नहीं कर सकेंगे - उसके बाद तो मैं अनंत में मिल जाऊँगा।"

 अनंत! कैसा चमत्कारी शब्द है! प्रेम और आनंद, दोनों इस में समाए हुए हैं। काले टॉम के हृदय में इसने शांति और आनंद का स्रोत बहा दिया। और यही शब्द लेग्री को भीतर-ही-भीतर बिच्छू के डंक-जैसा लगा। इस पर वह दाँत किचकिचाने लगा।

 टॉम फिर स्वाधीनतापूर्वक कहने लगा - "लेग्री साहब, तुमने मुझे खरीदा है, इससे मैं तुम्हारा दास हूँ। अवश्य ही मैं जी-जान से तुम्हारा काम करूँगा। मेरा शारीरिक बल और समय तुम्हारे काम के लिए है, परंतु अपनी आत्मा को मैं कभी तुम्हारे हाथ में अर्पण नहीं करूँगा। जान रहे या जाए, चाहे इधर की दुनिया उधर हो जाए, लेकिन मैं ईश्वर के आदेश का पालन अवश्य करूँगा। मेरी यह आत्मा उसी के चरणों में समर्पित है। मैं उसके आदेश का उलंघन करके कभी हृदयहीन व्यव्हार नहीं करूँगा!- कभी नहीं! तुम्हारा जी चाहे, मुझे कोड़ो से मारो, लाठियों से मारो, आग में जलाकर बिलकुल ख़त्म कर दो-कुछ भी करो, परंतु मैं धर्म को नहीं छोडूँगा। हर्गिज नहीं-हर्गिज नहीं!!"

 लेग्री ने क्रोध से उबलते हुए कहा - "देखता जा, मैं तेरी सब बदमाशी निकाल दूँगा। जब तुझे ठिकाने से मार पड़ेगी, तब तू समझेगा।"

 टॉम बोला - "मुझे मदद मिलेगी!"

 लेग्री ने पूछा - "कौन तेरी मदद करेगा?"

 टॉम ने कहा - "सर्वशक्तिमान ईश्वर मेरी मदद करेंगे।"

 लेग्री ने एक घूँसा मारकर टॉम को जमीन पर धकेल दिया और कहा - "देखूँगा, तेरा ईश्वर कैसे तेरी मदद करता है।"

 इसी समय पीछे से एक ठंडा और कोमल हाथ लेग्री के शरीर पर लगा। उसने फिर देखा, कासी है, परंतु ठंडे हाथ के स्पर्श से उसे पिछली रात के सपने की याद हो आई और वह कुछ भयभीत हो गया।

 कासी ने फ्रेंच भाषा में कहा - "लेग्री, तुम भी कैसे अहमक हो! छोड़ो इसे। काम के वक्त तुम नाहक का टंटा लेकर खड़े हो गए हो। तुम्हें मैं कई बार समझा चुकी हूँ। मैं इसकी दवा-पानी करके देखती हूँ कि किसी तरह जल्दी अच्छा होकर खेत के काम लायक हो जाए।"

 यह सही है कि मगर और गैंडे के चमड़े पर गोली असर नहीं करती, लेकिन उनके शरीर में भी एक ऐसा स्थान होता है, जिसे भेदकर गोली उनका काम तमाम कर सकती है। उसी भाँति नीच, लंपट, निर्दयी, अविश्वासियों और नास्तिकों को डराने का भी एक-न-एक रास्ता होता है। भ्रांत संस्कारों से पैदा हुआ भय सदा ही उनके मनों में घर किए रहता है। पिछली रात के सपने में देखी हुई अपनी माँ की दृष्टि का स्मरण आते ही लेग्री का हृदय काँप गया।

 लेग्री ने कासी से कहा - "अच्छा इसे तुम्ही सँभालो!"

 फिर वह टॉम से बोला - "इस वक्त तो मैं तुझे छोड़ता हूँ, क्योंकि आजकल काम के दिन हैं। पर याद रखना, इसके बाद मैं तुझे समझूँगा। तुझे सीधा न किया तो मेरा नाम लेग्री नहीं!"

 इतना कहकर वह चला गया।

 कासी मन-ही-मन बोली - "अब तो तुम यहाँ से सरको, फिर देखा जाएगा। तुम्हारे भी तो दिन नजदीक ही आ रहे हैं।"

 फिर कासी ने टॉम से पूछा - "कहो तुम्हारे, क्या हाल हैं?"

 टॉम ने कहा - "इस समय ईश्वर ने अपना दूत भेजकर सिंह का मुँह बंद कर दिया है।"

 कासी बोली - "हाँ, इस समय तो सचमुच मुँह बंद कर दिया। लेकिन अब वह तुमसे बुरी तरह मात खाकर गया है। धीरे-धीरे तुम्हारा खून चूस-चूसकर वह तुम्हारी जान लेगा। मैं इस पाजी को भली-भाँति जानती हूँ।"