Jaadui Tohfa - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

जादुई तोहफ़ा - 1

जादुई तोहफ़ा – 1

गांव के बिलकुल बीचों बीच प्रतीक का घर था। जब भी कोई दूर के रिश्तेदार आते "कितना बड़ा हो गया है" कहते।  ये उनके सबसे पसंदीदा वाक्यों में से एक था, पर प्रतीक को इन सब से चिढ़ थी, क्योंकि कहने तक तो ठीक था लेकिन वे उसके गालों को भी प्यार से खींचते हुए कहते थे। उसकी मां उनसे हमेशा सवाल करती 
"आपको घर ढूंढने में ज्यादा परेशानी तो नहीं हुई?"

और वो बड़े प्यार से कहते "नहीं! नहीं! हमें कोई दिक्कत नहीं हुई" जबकि वे अंदर ही अंदर उन्हे ताने देकर कह रहे होते है "इन्हे अपना घर कहीं और बनाने की जगह नहीं मिली थी क्या?"
प्रतीक के गांव में उसके बहुत सारे दोस्त थे, उनकी एक बड़ी टोली भी थी को रोज अपने एक अड्डे पर नज़र आते जो कि इमली का एक बहुत बड़ा पेड़ था। अब प्रतीक की उम्र बढ़ रही थी और साथ ही साथ अक्ल भी। जब भी उसे पता चलता की कोई रिश्तेदार आने वाला है तो वो अपने दोस्तों से मिलने उनके अड्डे पर चला जाता। क्योंकि वो जानता था उसके साथ क्या हो सकता है। 

गर्मी का मौसम शुरू हो गया था सुबह से शाम तक सूरज की गर्मी इतनी थी की किसी सूखे पत्तों के ढेरो को जला कर राख कर दे। स्कूल से घर पहुंचते - पहुंचते प्रतीक और उसकी टोली का बुरा हाल हो जाता था। पसीने से तरबतर सारे लोग सीधे नदी किनारे डुबकी लगाने चले जाते। एक दिन उनके अध्यापक कक्षा में आए और उन्हे गर्मी की छुट्टियों के बारे में जानकारी देने लगे "इतने से इतने दिन तक आपकी छुट्टी रहेगी, बहुत तेज धूप पड़ने की वजह से बच्चे बीमार पड़ रहे है और इसी वजह से आपको अपनी छुट्टियों में ज्यादा घूमना फिरना नही है….." और फिर एक लंबे भाषण बाजी के बाद उन्होंने उन्हे गृहकार्य दिया जो उन्हे छुट्टियों में करना था। और फिर उन्हे चैन की सांस लेने दी फिर सीधे घर भेज दिया। घर आते वक्त उसकी टोली बहुत खुश नजर आ रही थी उसमे से एक लड़का जिसका नाम अमन था दिखने में सुंदर और आकर्षक था उसने कहा "काश! अब जाके राहत मिली" सभी लोग खुशी के मारे उछल रहे थे। दोपहर के वक्त उन्होंने अपने उसी अड्डे पर मिलने का निर्णय किया और फिर सारे लोग खाना खाकर वहां पहुंचे। जब प्रतीक वहां पहुंचा तो उसने पेड़ के नीचे ही सुमित और रमेश को बैठा पाया, अमन पेड़ पर बने झूले में झूल रहा था। और शिवा इधर - उधर टहलते हुए कुछ बड़बड़ा रहा था। वो कह रह था " माना की वो हमारी टोली का लीडर है! पर, इसका ये मतलब तो नहीं की वो इतनी देरी करे,कब से उसका इंतजार कर रहे है हम सब।" उसका स्वभाव बहुत गुस्से वाला था,और बात बात पे चिढ़ता था। अगर कुछ भी इधर से उधर थोड़ा भी कम या ज्यादा होता तो उसे गुस्सा आने लगता। इसपर झूल रहे अमन ने कहा "शांत हो जाओ,वो देखो वो आ भी गया।" अच्छी शक्ल और अक्ल दोनो ही अमन में बखूबी थे। लेकिन फिर भी जब टोली के लीडर बनने को उसे कहा गया तो उसने प्रतीक का नाम लिया। दोनो काफी अच्छे दोस्त थे और दोनो की काफी बनती भी थी, पर कारण ये नहीं था वो जानता था की प्रतीक क्या चीज़ है।

जब प्रतीक वहां पहुंचा तो उसने उन्हे उनके योजना के  बारे में याद दिलाया इसपर गुस्सा होते शिवा ने कहा "हां! हां! अब जल्दी चलो,हमे पहले ही बहुत दे हो गई है" वे पास के नदी किनारे वाले एक आम के पेड़ से आम तोड़कर अपने अड्डे पर एक छोटी पार्टी करने की सोच रहे थे जिसे उन्होंने 'गर्मी की आम लोगो की आम पार्टी' का नाम दिया था। सारे लोग तैयार थे बस वहां पहुंचने की देर थी। जब वे पहुंचे तो प्रतीक ने उन्हें कहा "मैं पेड़ पर चढ़ता हूं तुम लोग आस - पास नजर रखना देखना वो ना आ जाए" फिर वह पेड़ पर चढ़ने लगा। नीचे उसके दोस्त पहरा दे रहे थे। जब रमेश की नजर दूर से आते एक आदमी पर पड़ी तो उसने ऊपर चढ़े प्रतीक को इशारे से छुप जाने को कहा वे लोग भी आस - पास की चट्टानों और पेड़ो के पीछे छुप गए। प्रतीक ने भी अपने आप को पेड़ो की पत्तियों से ढक लिया। वो पास के मकान  में काम करने वाला एक बूढ़ा माली था जो उस पेड़ को अपनी संपत्ति मानता था। लेकिन असल में वो प्रकृति की संपत्ति थी और किसी भी व्यक्ति का उसपर कोई निजी अधिकार नही था। लेकिन वो बूढ़ा माली बड़ा ही क्रूर था। जब भी प्रतीक और उसके दोस्त उसे समझने की कोशिश करते तो वो उन्हे ही चार बातें सुनाने लगता। चट्टान के पीछे अमन और शिवा छुपे हुए थे, पेड़ो के पीछे रमेश और सुमित शिवा का चेहरा गुस्से से लाल हुआ जा रहा था। उसे मन कर रहा था की वो अभी बाहर निकलकर उस बूढ़े माली की खबर ले। जब गुस्सा बरदाशत ना हो सका तो वो निकलने लगा लेकिन ऐैन मौके पर ही अमन ने उसका मुंह बंद कर उसे चट्टान के पीछे से रोक लिया। ऊपर पेड़ो की पत्तियों के बीच छिपा प्रतीक सोच रहा था की कब ये माली यहां से जाएगा और वो अपना काम पूरा करेगा लेकिन वो माली था की जाने का नाम ही नही ले रहा था। इसी दौरान उसने नदी की ओर अपना ध्यान भटकाने के लिए देखा, दोपहर की धूप में सूर्य की किरणे नदी के पानी पर पड़ रही थी। नदी के पानी में सूर्य बिलकुल साफ नजर आ रह था इसी बीच उसकी नज़र पत्थर पर एक चमकती हुई चीज पर गया। जो सूर्य की रोशनी से चमक रही थी। इतने में नीचे से उसके दोस्त सुमित ने आवाज लगाकर उसे बताया कि वो माली चला गया है और वो जल्दी से अपना काम पूरा कर ले।

कुछ आम तोड़कर प्रतीक नीचे उतरने लगा नीचे उतरकर उसने आम अमन के हाथ में थमा दिए और नदी में उस चमकती हुई चीज़ को ढूंढने चला गया। जब अमन ने उसे ऐसा कुछ करते हुए देखा तो उसने हैरान होकर पूछा "क्या हो गया?क्या कोई आम नदी में गिर गया?" और फिर वो भी उसके पीछे उसे देखने के लिए चला गया।
जब प्रतीक ने उस चमकती चीज को पत्थर से निकालकर देखा तो वो कोई ताबीज जैसी चीज थी एक बिजली के जैसे आकृति वाला जो चांदी की लग रही थी। जब उसने निकालकर देखा तो वो बिल्कुल नई लग रही थी।
"अरे देखो मुझे क्या मिला?" प्रतीक ने खुशी से कहा। 

"क्या है? दिखाना ज़रा।" अमन ने उत्सुकता से पूछा।

"ये मुझे ऊपर पेड़ से दिखा लगता है किसी का गिर गया होगा।"

"हां लेकिन ये तो बहुत महंगा लग रहा है,गांव में कौन पहनता होगा?"

"नदी से बहती हुई आई होगी,और क्या?" शिवा ने चिढ़ते हुए कहा।

"पर ये इतनी अजीब क्यों है?" अमन ने अजीब से स्वर में कहा।

"जो भी हो ये मुझे मिली है,तो मैं इसे रख लेता हूं।" 

"नहीं! ऐसा भी तो हो सकता है ये किसी भूत प्रेत ने तुम्हे अपने वश में करने के लिए यहां छोड़ दिया हो।" सुमित ने हड़बड़ाते हुए कहा।
सभी हँस पड़े 

"ये तुम क्या कह रहे हो सुमित? ऐसी बातों पर कोई बेवकूफ भी विश्वाश न करे। तुमने ऐसा सोच भी कैसे लिया?" रमेश ने उसे समझाने की कोशिश की।

"वो सब छोड़ो, तुम्हे ये लेना है ले लो पर अभी हमें अपनी योजना नहीं भूलनी चाहिए!" 

"और नहीं तो क्या,चलो भी।" शिवा ने अकड़कर सभी की ओर  देखा।

सभी लोग आम पकड़े अपने अड्डे की ओर चल दिए प्रतीक ने वो ताबीज अपने गले में पहन ली।
खूब सारे आम खाने के बाद उन्होंने बातें करना शुरू किया । 

अमन ने कहा – "अरे तुम लोगो ने पिंकी का वो तोता देखा क्या बढ़िया है न बोलता भी है।"

"अरे हां मेने भी देखा है,मुझे भी तोता पालने का बहुत शौक है।" प्रदीप ने अपनी आंखे उपर आसमान की और देखते हुए कहा।

"सही में वे होते ही इतने अच्छे है" 

"काश मेरे पास भी एक तोता होता।" प्रदीप ने सबकी और देखकर अपनी इच्छा जाहिर की।

और इसी तरह वे बातें कर ही रहे थे की अचानक से कहीं से एक तोता उड़ता हुआ उनकी ओर आया वो काफी घायल दिख रह था। 
सभी लोग उसे देखकर घबरा गए फिर उस तोते को कुछ पतियों का रस निचोड़ कर मरम पट्टी कर दी। बातें करते हुए शाम हो आई थी और सब लोग अपने - अपने घर जाने लगे। तोते को प्रतीक ही अपने साथ अपने घर ले गया। घर पहुंचकर उसने देखा कुछ मेहमान आए हुए थे। उसने जैसे ही उन्हे देखा दीवार के पीछे छिप गया। और मन में बड़बड़ाने लगा "काश ये यहां से चले जाए।"

"अच्छा ठीक है हम चलते है।" 

"जी! ठीक है।"

और फिर वे चले गए जब प्रतीक ने दोबारा मुड़कर देखा तो वे वहां नहीं थे। और वो बेफिक्र होकर घर के अंदर जाने लगा। तभी उसके पिता ने उसे देख लिया और पूछा "ये तोता कहां से ले आए?"

"वो… मुझे ये घायल मिला। तो.."

"तुमने ही तो नही घायल किया है इसे?" उसकी मां ने काम करते हुए ही उससे पूछा।

"नहीं! नहीं!..." 

उसने बात बदलते हुए कहा – "वैसे कुछ लोग आए थे ना वे लोग इतनी जल्दी क्यों चले गए?" 

"वो बस शादी का कार्ड देने आए थे, दे दिया और चले गए।" उसके पिता ने खटिए पे बैठे - बैठे ही कहा।

"अ… अच्छा"

"खेलना कूदना बहुत हुआ, अब जाओ और जाकर थोड़ी पढ़ाई कर लो।"


"ठीक है.. मैं जाता हूं।"


और इतना कहकर वो घर के अंदर चला गया। उसने तोते को जमीन पर रखा और पढ़ने बैठ गया। वो ताबीज अभी भी उसके गले में ही थी।


– क्रमशः