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नकाब - 2

भाग 2

कैसे भुला दूं…?

पिछले भाग में आपने पढ़ा कि सुहास और प्रभास जगदेव जी के दो बेटे है। सुहास पिता का मेडिकल स्टोर संभालता है प्रभास पढ़ाई करता है। प्रभास जो छुट्टियों में घर आया था। अब वापस जाने की तैयारी करता है क्योंकि उसके एग्जाम के फॉर्म भरने के लास्ट डेट में बस कुछ ही दिन बाकी है। घर में सुहास की शादी की चर्चा शुरू होती है। वो अपने जज्बातों को सब से छुपा कर मां बाऊ जी की पसंद को ही जीवन साथी बनाने का फैसला कर लेता है। वो दुकान से लौट रहा होता है की अचानक सामने एक साया आ जाता है।

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सुहास उस साए को देख दो कदम पीछे हट जाता है। क्योंकि वो उसके इतने करीब था की उसके और सुहास के बीच फासला बिलकुल ना के बराबर था। सुहास पीछे हट पहचानने की कोशिश करता है की ये कौन है?

पर क्या उसे पहचानने के लिए कोशिश करनी होती..? अगर चेहरा ढका हुआ ना होता..! बस… एक पल देखने के बाद चाहे लाख चेहरा ढका हो…, चाहे जितना भी अंधेरा हो..? उसे इसे पहचानने के लिए किसी उजाले की जरूरत नहीं थी। वो आंख मूंद कर हजारों की भीड़ में भी पहचान सकता था इसे। पर … आज वो उसी के ख्यालों में इतना खोया हुआ था… दिल में बसा नाम जुबान पर आ गया "कजरी तुम? कजरी यहां…..?" कजरी भी उसे इस तरह चौकते देख आनंदित हो गई। ताली बजा खिलखिलाती हुई बोली, "डरा दिया ना…?" कह कर सुहास के कंधे पकड़ कर झूल गई। सुहास भी शांत स्वर में बोला, "हां ! तुमने मुझे डरा तो नहीं पर.. चौका जरूर दिया। यहां इतनी रात में आते तुम्हे डर नहीं लगता। कही किसी ने देख लिया तो..? या अभी मेरी बजाय कोई और होता तो…?"

कजरी भी इठलाती हुई बोली, "ऐसे कैसे कोई और होता, हम तुम्हारी चाल नहीं पहचानते का..?और फिर इस समय तुम्ही तो आते हो। इत्ती रात को और कऊन आता जाता है।"

और कोई दिन होता तो सुहास कजरी को देख खुश हो जाता। उसे तो इस घड़ी का इंतजार पूरे दिन ही रहता था। वो इसी कारण इतनी देर करके आता था की जब कजरी आए तो उसे आते जाते या सुहास और कजरी को मिलते कोई देख ना ले।

कजरी, सुहास की ही हम उम्र थी। वो उसी के ही गांव में रहती थी। गांव क्या था,? समय के साथ विकास होते होते अब एक कस्बे का रूप ले चुका था। यहां हर जात बिरादरी के लोग रहते थे। सुहास जहां ठाकुर परिवार से ताल्लुक रखता था। वहीं कजरी कुम्हार रग्घू चाचा की बेटी थी। गरीब रग्घू मिट्टी के बर्तन बना कर अपना खर्च चलाता था। साथ ही वो ऊंचे जाति वाले, ब्राम्हण, ठाकुर के खेतों में मजदूरी भी किया करता था। रग्घू जगदेव सिंह के खेत का काम भी देखता था। जब वो बीमार होता या काम ज्यादा होता तो अपनी पत्नी के साथ बेटी कजरी को भी ले आता। कजरी की शादी जब वो सात साल की तभी रग्घू ने कर दी थी, की बड़े होने पर गौना कर देगा। पर पता नही क्या हुआ…? कई बार उसने कोशिश की पर लड़के वाले गौना ले जाने को राजी ही नहीं हुए। हर बार एक नया बहाना बना देते। कभी मुहूर्त नही है तो, कभी लड़के को छुट्टी नहीं मिल रही। तो कभी अभी घर ठीक करवाना है,वो टपक रहा है। हर बार एक नया बहाना होता। कई बार कोशिश कर के आखिरकार रग्घू ने थक कर हार मान ली। ये सोच कर संतोष कर लिया की जब कजरी के नसीब में ससुराल जाना होगा वो चली जायेगी। मैं आखिर भगवान का लिखा मेट तो नही सकता..! जब उसके भाग्य में ससुराल का सुख लिखा ही नही है तो मेरे कोशिश करने से क्या होगा…? कजरी का जगदेव जी के घर आते जाते सुहास से सामना हो जाता था कभी। किशोरी कजरी कब मझोले कद की छरहरी काया वाली युवती में परिवर्तित हो गई किसी को पता नहीं चला। समय के साथ दोनों का ही एक दूसरे को देखने का नजरिया बदल गया। कजरी अपनी नाम के अनुरूप ही बड़ी बड़ी कजरारी आखों वाली थी। उसकी सारी खूबसूरती दो आखों में ही सिमट गई थी पनीली बड़ी बड़ी आंखें जिसे भी अपनी पलके उठा कर देखें मोहित कर लेती। फिर युवा सुहास इससे कैसे बच सकता था...? ये आकर्षण धीरे धीरे प्यार में बदल गया। जब खेती का काम खत्म हो जाता कजरी घर नही आती तब सुहास बेचैन हो उठता। कभी मां से कहता, "मां..! मैं जाऊं ? रग्घू काका के यहां से मटके लेता आऊं? अब ये मटका पुराना हो गया है, इसमें पानी ठंडा नहीं होता। तो कभी बहाना बनाता की मां जाऊं दिए लेता आऊं तुम्हे पूजा करनी होगी।"

मां मना ही करती रह जाती की, "तुझे जाने की क्या जरूरत है..? मैं कहला दूंगी कजरी या उसका बाप दे जायेगा।" पर इतनी देर तक रुक कर मां की बात सुनने का धैर्य कहां था सुहास को। वो तो बस अपनी बात समाप्त कर चल पड़ता।

अब समय बीतने के साथ साथ कजरी से लगाव भी बढ़ता गया। परंतु अब इधर सुहास को महसूस हो रहा था की उसके और कजरी के बीच ऐसा फासला है की उसे मिटाना असंभव है। भले ही वो किसी राजा रजवाड़े के खानदान का नही है। पर ठाकुर तो है ही। उसके पिता तो शायद ये खबर सुन कर ही हार्ट अटैक से मर जाए। मां तो शायद कभी समाज में निकलेगी ही नही। और वो ..? वो खुद भी तो पूरे कस्बे में कितनी इज्जत पाता है सभी से। चाहे वो महिला हो या पुरुष, चाहे युवा हो या बुजुर्ग। सभी के लिए वो एक आदर्श बेटा, एक आदर्श डॉक्टर (गांव में जो भी दवा दे डॉक्टर ही कहा जाता है।) है। वो कोई भी कदम ऐसा नहीं उठा सकता था जिससे उसका और पिता का सम्मान नष्ट हो जाए। जब समाज में रहना है तो उसके नियम भी मानने होगे। उसके उसूलो पर चलना भी होगा। ये बात समझ आते ही वो कजरी से दूरी बनाने लगा था। आज दो दिन ही हुए थे। और कजरी अपनी तड़प पर काबू नही कर सकी। उसके शॉप से लौटने का वक्त होते ही सबसे नजरे बचा कर आज उसके सामने आ खड़ी हुई।

आज सुहास को कजरी का इस तरह आना अच्छा नही लग रहा था। अपने कंधे से कजरी का हाथ हटाते हुए वो बोला, "कजरी अब तुम्हे ऐसे नही आना चाहिए। घर में मेरी शादी की बात चल रही है। जो कभी भी तय हो सकती है। अगर मां बाऊ जी को तुम्हारे बारे में पता चल गया तो अनर्थ हो जाएगा। मैं तुम्हे कभी अपने दिल से भुला नही पाऊंगा। पर अब इस रिश्ते को आगे भी नही बढ़ा पाऊंगा। मुझे माफ कर दो। अब से कभी मुझसे मिलने की कोशिश मत करना।"

कजरी जो अभी तक खुशी से खिलखिला रही थी। सुहास की बातें सुन कर तड़प उठी। कहां तो वो घर से बहाने बना कर सुहास के लिए मिलने आई है, और वो तो आज इस मुलाकात को ही आखिरी मुलाकात बना देना चाहता है। अब नही बल्कि अभी ही इस रिश्ते को खत्म कर देना चाहता है। क्या उसके और मेरे बीच का फर्क आज अचानक आ गया है। ये तो तब भी था जब सुहास ने इस रिश्ते को आगे बढ़ाया था। उस वक्त ये समझदारी कहां चली गई थी..? यही सब सोचते हुए वो अपने सर का पल्लू हटाते हुए बोली, "वाह..! छोटे ठाकुर साहब वाह..! अब आपको हमसे दूर जाना है। क्योंकि आपका ब्याह तय हो रहा है। बड़ी जल्दी आप समझदार हो गए। इत्ते बरस आपकी समझदारी घास चरने गई थी। हमने क्या आपसे ब्याह करने को कहा कभी..? हम तो बस आपको चाहते है। बस इसी के सहारे जिंदगी काट लेंगे। आपसे हमको कुछ नहीं चाहिए। बस हमसे मिलना मत बंद करिए। हम आपसे दूर हो कर जी नहीं पाएंगे छोटे ठाकुर ! बस अपना साथ हमसे मत छीनिए।" कह कर सिसकती हुई कजरी सुहास का पांव पकड़ कर वही बैठ गई। वो सुहास को इसी नाम से पुकारती थी।

सुहास ने झुक कर कजरी को उठाया और अपने सीने से लगा लिया। एक दूसरे के गले लगे वो अपना दुख व्यक्त कर रहे थे। सुहास की आंखे बरस कर कजरी के कंधे को भिगो रही थी तो कजरी के आंसू से सुहास की शर्ट भीग रही थी।

कुछ देर बाद खुद को नियंत्रित कर सुहास ने कजरी को खुद से अलग किया और बोला, "कजरी मेरी मजबूरी समझो। मेरे लिए भी बहुत मुश्किल था ये फैसला लेना। अगर हमारी बात बाऊ जी को पता चल गई तो पता नही क्या हो जायेगा। वो मेरे साथ ही तुम्हारे घर वालों को भी नहीं बख्शेंगे। फिर मैं ये नहीं चाहता की मैं किसी ऐसी लड़की को धोखा दूं जो मेरे लिए अपना घर परिवार, रिश्ते नाते सब छोड़ कर आयेगी।"

कजरी को समझाते हुए सुहास खुद से सटे उसके कंधे सहला कर उसे अपनी मजबूरी का एहसास कराना चाहता था।

कजरी उसकी मजबूरी तो समझ रही थी। पर जैसे ही सुहास ने कहा की वो अपनी होने वाली पत्नी को धोखा नही देना चाहता। कजरी एक झटके से सुहास का हाथ अपने कंधे से झटक देती है। और गुस्से से उबलती हुई खड़ी हो जाती है। जलते स्वर में एक एक शब्द चबाती हुई बोलती है, "वाह छोटे ठाकुर… बढ़ा ख्याल है उस… उस.…@@@@ का!!! उससे छल नही कर सकते..? उसे धोखा नहीं दे सकते। मुझे दे सकते हो। मेरी गलती क्या है..? हां …! बताओ .. मेरी गलती क्या है..? यही ना की मैं एक छोटी जात वाली हूं। मैं तुम जैसे ठाकुर घर में पैदा नही हुई हूं। कभी तुम से उपहार में एक छल्ला तक नही लिया। बस तुम्हारा प्यार चाहा। मेरे लिए तो तुम ऐसा नही सोच पाए।"

कुछ देर रुक कजरी ने अपने हाथों से रगड़ते हुए झटके से आंसू से भीगे दोनो गाल पोंछ डाले। फिर बेहद दुखी स्वर में बोली, " ठीक छोटे ठाकुर आप अब मुझसे नहीं मिलोगे न..? कोई जबरदस्ती नहीं है। हम अब कभी आपके सामने नहीं आयेंगे। हम कल सुबह ही यहां से दूर कही बहुत दूर चले जायेंगे। आपको मेरी परछाई भी आज के बाद नही दिखेगी। हम अपना सब कुछ आपको ही माना था। पर अफसोस आपने सिर्फ मुझे दिल बहलाने का जरिया समझा। हम अपना ये अपमान कभी नही भूलेंगे। वक्त आने पर ऐसा बदला लेंगे की आप भी खून के आंसू रोएंगे मेरी तरह। जैसे हम तड़प रहे है ऐसे आप भी तड़पेंगे छोटे ठाकुर…! आप भी तड़पेंगे छोटे ठाकुर..।" कहते हुए रोती हुई कजरी जैसे अचानक आकर सुहास के सामने खड़ी हुई थी वैसे ही तीर की तेजी से गायब हो गई।

सुहास स्तब्ध सा खड़ा कजरी को जाते देखता रहा। उसने तो सोचा भी नही था की कजरी इस तरह रिएक्ट करेगी। वो तो बस अपनी मजबूरी समझाना चाह रहा था। सुहास को अच्छे से याद है की उसने कभी भी कजरी से सदैव साथ निभाने का वादा किया हो। फिर इस रिश्ते का तो ऐसा ही अंत होना था। फिर कजरी इतना क्यों बिफर गई। वो समझ नही पा रहा था।

सुहास समझ भी नही सकता था। क्योंकि वो एक स्त्री का दिल नहीं रखता था। कजरी बिलकुल भी उससे इस तरह बदला लेने की चेतावनी दे कर नही जाती। वो बड़े ही शिद्दत से इस दूरी को निभाती और अपने प्यार की खुशी के लिए खुद को न्योछावर कर देती। पर अपनी होने वाली पत्नी के लिए वफादारी की बात और उसे छोड़ने की बात उसने एक साथ की थी। ये नारी प्रवृति ही है की वो अपने सामने अपने प्यार के मुंह से किसी दूसरी स्त्री की बात बर्दाश्त नहीं कर सकती।

बिलकुल ऐसा ही सुहास के साथ भी हुआ। जिसके साथ अभी सुहास की शादी तय भी नही हुई, उसके प्रति ये समर्पण कजरी को बौखला गया।

सुहास को अब आभास हुआ की उसे कितनी देर हो गई है। जब दूर से प्रभास के पुकारने की आवाज आई। वो हाथ में टॉर्च लिए, "भैया …! भैया…!" पुकारते हुए चला आ रहा था।

सुहास, प्रभास की आवाज सुन बोला, "हां ! छोटे आ रहा हूं।" फिर दोनो भाई साथ साथ घर चल दिए।

क्या कजरी की चेतावनी सिर्फ चेतावनी दी? वो क्या सच में ही गांव छोड़ कर चली गई? क्या जगदेव जी की जैसी बहू की आशा थी वैसी मिली? क्या उस लड़की को सुहास अपनी पत्नी का स्थान दे पाया? ये सब जानने के लिए पढ़े कहानी का अगला भाग।

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