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नकाब - 8

भाग 8

पिछले भाग में आपने पढ़ा की सुहास की शादी के लिए उस क्षेत्र के बेहद सम्मानित रईस ठाकुर गजराज सिंह उसके घर आते है। घर वर जंचने पर वो अपने पंडित की सलाह पर एक दिन बाद ही शगुन ले कर आने की बात करने के लिए अपने मुनीम को भेजते है। पहले तो सुहास के बाऊ जी अपनी विवशता जाहिर करते हैं की इतनी जल्दी वो तैयारी नही कर पाएंगे। पर गजराज सिंह सारी तैयारी का दारोमदार खुद पर ले लेते है, और शगुन की तैयारी बड़े ही जोर शोर से शुरू हो जाती है। अब आगे पढ़े।

ठाकुर गजराज सिंह दिन भर शगुन की तैयारियों का जायजा ले कर थक जाते है और बेटा राघव के कहने पर अपने कमरे में सोने के लिए बिस्तर पर लेटते है। पर नींद नही आती। वो सोचने लगते है। उन्होंने इतनी शीघ्र विवाह करने की कभी नही सोची थी। वो प्यार से उसे गुड़िया कह कर बुलाते थे। वो तो अपनी बेटी गुड़िया को खूब पढ़ा लिखा कर, एक कामयाब जिंदगी देना चाहते थे। उनका सपना था की उनकी बेटी एक बड़ी अधिकारी बने। इसी कारण उन्होंने उसे घर गृहस्थी के काम से दूर रक्खा था। उसे कस्बे के स्कूल से अच्छे नंबर से बारहवीं पास करने के बाद उसे बाहर पढ़ने के लिए भेज दिया। वहीं यूनिवर्सिटी से उसने बीएससी पास किया। और अब वो एमएससी कर रही थी। ठाकुर गजराज सिंह जी महीने में एक बार अपनी लाडली बेटी से मिलने जरूर जाते थे। इस बार भी ठाकुर साहब ने जाने की तैयारी की पर उनकी तबियत अचानक खराब हो गई। ठाकुर साहब ब्लड प्रेशर के मरीज थे। जब भी वो अपने परहेजी खान पान से इतर कुछ उल्टा सीधा खा लेते थे तो उनका ब्लड प्रेशर बढ़ जाता था। ठाकुर गजराज सिंह लजीज पकवान के शौकीन थे। उस रात भी जम कर तेल मसाले दार चटपटा व्यंजन खाया था। परिणाम स्वरूप सुबह से ही उनका ब्लड प्रेशर बढ़ गया। फिर चक्कर आने लगे। खुद पर काबू न रहा।

सारी तैयारी जाने की हो गई थी। बेटी की पसंद की सारी चीजें उन्होंने मंगवा कर रखवा दी थी। राघव ने जब अपने पापा की तबियत खराब देखी तो बोला,"पापा आपकी तबियत ठीक नहीं है। आज रहने देते है, फिर किसी दिन जब चले चलेंगे गुड़िया से मिलने..! जब आप अच्छा महसूस करेंगे पापा।"

पर ठाकुर गजराज सिंह बोले,"नही बेटा गुड़िया इंतजार करेगी..। ऐसा करो बेटा राघव.! तुम और बहू चले जाओ। सारी तैयारी हो चुकी है। मैं जब ठीक महसूस करूंगा तो फिर चला जाऊंगा। आज तो तुम बहू के साथ चले ही जाओ।"

पिता की आज्ञा का पालन करना राघव का पहला कर्तव्य था। वो अपनी पत्नी वैदेही से तैयार होने को कहता है की पापा चाहते है तुम भी चलो मेरे साथ गुड़िया से मिलने। वैदेही पहले तो मना करती है और कहती है की "पापाजी की तबियत ठीक नहीं अगर कोई जरूरत हुई उन्हें तो ..? मैं नहीं चलती हूं पापा जी के साथ रहूंगी। "

पर राघव कहता है,"इतने सारे नौकर चाकर किस लिए है..? उनकी और इस घर की देख भाल के लिए ही तो।

अब जब पापा ने कहा है तो तुम भी साथ चलो। वरना उन्हें बुरा लगेगा। जाओ जल्दी तैयार हो जाओ।"

राघव के कहने पर वैदेही शहर अपनी ननद गुड़िया से मिलने जाने को तैयार होने लगती है। अभी राघव और वैदेही के कोई बच्चा नहीं था इस लिए वो इस जिम्मेदारी से मुक्त थे।

राघव और वैदेही ठाकुर गजराज सिंह को हिदायत दे कर की अपना ख्याल रक्खे, और नौकरों को भी उनकी देख भाल सेवा करने को बोल कर दोनो गुड़िया से मिलने खुशी खुशी चल पड़े। वैदेही भी जब से शादी कर इस खानदान की बहू बनी थी। गिने चुने बार ही पति के साथ बाहर जाने का मौका उसे मिला था। बड़े ठाकुर खानदान की बहू, जिसकी सास भी नही थी। उसे इसकी मर्यादा का खास ख्याल रखना पड़ता था। भले ही कई नौकर चाकर थे। पर उनसे काम तो करवाना ही पड़ता था। सब को जिम्मेदारी बांटनी पड़ती थी। इस कारण वो यदा कदा ही बाहर जा पाती थी। आज गुड़िया से मिलने के बहाने वो शहर घूम लेगी। और पति साथ थे तो खुशी का ठिकाना ही नहीं था। राघव भी बेहद उत्साहित था। उसे भी अब तक वैदेही के साथ इस तरह घूमने का मौका नसीब नही हुआ था। राघव ने अपनी इसी निजता को ध्यान में रख ड्राइवर चाचा को भी रोक दिया। घर में नौकरों की भीड़ और ऊंचे कुल की मर्यादा के कारण वो खुल कर जी नहीं पता था। इसी वजह से आज जब ये सुनहरा अवसर मिला था तो उसका फायदा वो उठाने को सोचता है। यही सोच कर राघव ने ड्राइवर से बोला, "चाचा..! आप पापा का ध्यान रखना। गाड़ी मैं खुद ड्राइव कर के चला जाऊंगा।"

और खुद ही गाड़ी ड्राइव कर वैदेही को साथ ले गुड़िया से मिलने चल पड़ा।

राघव का ये सफर एक सुहाना सफर बन गया था। गाजीपुर से बनारस का सफर वो और वैदेही पूरी इंजॉयमेंट के साथ एक एक पल भरपूर जी रहे थे। बातें करते हुए वो जा रहे थे। तभी सामने एक अच्छा सा ढाबा दिख राघव को। वो वैदेही को कुछ खिलाने पिलाने के लिए उस ढाबे पर रुक गया। राघव ने वैदेही की पसंद का खाना ऑर्डर किया। वैदेही और राघव खाते हुए आपस में बात चीत कर रहे थे। तभी राघव ने एक प्लान बनाते हुए कहा, "वैदेही मैं सोच रहा था की मैं आज तक कहीं भी तुम्हे घुमाने नही ले गया हूं। अगर तुम कहो तो गुड़िया से मिलने से पहले हम कहीं घूमने चलते है। घूम कर आएं फिर गुड़िया से मिलेंगे। और तब फिर घर वापस चलेंगे। क्या कहती हो..?"

वैदेही ने राघव की आखों में देखते हुए मुस्कुराते हुए कहा, "अब मैं क्या बोलूं मैं..? आपने तो मेरे मुंह की बात बोल दी। मैं भी यही चाहती हूं। जब से हमारी शादी हुई है। घर गृहस्थी के काम ऐसा उलझी हुई हूं की कुछ और सूझता ही नही मुझे। शायद पापा जी ने इसी लिए हम दोनो को भेजा है। की हम भी थोड़ा बाहर निकल कर घूम सके।"

फिर उत्साह से राघव से चहकते हुए बोली, "सुनिए जी..! मैने बनारस के गंगा घाटों के बारे में बहुत सुना है। वहां के अस्सी घाट बहुत मशहूर है। मेरी एक सहेली वहां गई थी। उसने बहुत तारीफ की थी। एक असीम शांति मिलती है वहां गंगा मइया के दर्शन कर के। मुझे तो बस वहीं जाना है।"

फिर बड़े ही मनुहार के स्वर में बोली, "आप मुझे ले चलेंगे ना..! गंगा मइया के दर्शन करवाएंगे ना..! फिर जब मैं मायके जाऊंगी तो मैं भी उससे बताऊंगी की मैने भी अस्सी घाट के दर्शन किए है।" अपनी इच्छा जाहिर कर वैदेही राघव की ओर इस अंदाज में देखने लगी मानो वो पूछना चाहती हो की आप मुझे ले चलोगे क्या..?

राघव वैदेही को घुमाना तो चाहता था, पर वो कोई अच्छी सी फिल्म देखना चाहता था। उसने बनारस के छवि चित्र मंदिर के बारे में बहुत तारीफ सुनी थी सब से। पर हमेशा वो पापा के साथ आता था। इस लिए कभी फिल्म देखने का मौका नहीं मिल पाता था। आज वो अपनी ये हसरत पूरी करना चाहता था। पर वैदेही अस्सी घाट घूमना चाहती था। दोनो के मन का हो इतना वक्त उनके पास नहीं था। कुछ वक्त गुड़िया के साथ बिता कर उन्हे वापस घर भी जाना था। पापा की तबियत ठीक नहीं थी। राघव ने अन्य इच्छा को दबाते हुए पत्नी वैदेही की इच्छा को पूरा करना ज्यादा उचित समझा। पहली बार वैदेही ने उससे कुछ कहा था। अब उसे भी पूरा नहीं करता तो…. वैदेही तो कुछ नहीं कहती पर वो खुद को अपराधी महसूस करता की उसकी पत्नी ने एक लालसा व्यक्त की थी जिसे वो पूरा नही कर पाया।

उनका खाना खत्म हो गया था। खाने का बिल भुगतान कर राघव ने वैदेही से कहा, "अब पेट पूजा तो हो गई…। चलो अब तुम्हारी इच्छा पूरी कर गंगा मां की पूजा भी कर ली जाए।"

राघव के मुंह से अस्सी घाट जाने की बात सुनकर वैदेही खुशी से उछल पड़ी। दोनो ढाबे से बाहर निकाल कर गाड़ी की ओर बढ़ चले। अब ज्यादा लंबा रास्ता नही बाकी रह गया था। करीब एक घंटे में वो दोनो बनारस के मशहूर अस्सी घाट पर खड़े थे।

वैदेही बेहद धार्मिक थी। उसने गंगा मां को देखते ही सबसे पहले दोनो हाथ जोड़ कर नमन किया। फिर सामने ही स्थित भगवान शिव के मंदिर में दर्शन करने गए। वैदेही ने विधिवत भगवान शिव का अभिषेक लिया। राघव इन सब से अलग पास खड़ा सब देख रहा था। और पत्नी के संस्कार देख कर खुद को गर्वांवित महसूस कर रहा था। भले ही वो ना सही पर उसकी पत्नी तो धर्म कर्म में रुचि लेती है।

पूजा संपन्न होने पर वैदेही वहीं ऊपर के घाट पर बैठ कर गंगा मइया का अनुपम सौंदर्य निहारने लगी। राघव भी उसके पीछे पीछे आया और वैदेही को इस तरह मुग्ध भाव से गंगा की अविरल धारा को निहारता देख वो भी उसके बगल में बैठ गया। चारों ओर फैली शांति मन को अद्भुत अनुभव दे रही थीं।

पास बैठे पति की ओर देखते हुए वैदेही बोली, "आपको पता है। मां दुर्गा ने शुंभ निशुंभ का वध करने के बाद इसी घाट पर जहां मां गंगा और असी नदी के संगम होता है, वही पर उस तलवार को फेका था जिससे उनका वध किया था।" वैदेही ने पति राघव को बताया।

राघव ने ना में सर हिलाया और बोला,"नही मुझे तो नही पता..! तुम्हे ये सब जानकारी कहां से मिल जाती है..?"

फिर वैदेही को छेड़ते हुए बोला, "मुझे पक्का यकीन है की ये भी तुम्हारी सहेली ने ही बताया होगा।"

राघव के इस अंदाज में तुम्हारी सहेली कहा की वैदेही समझ गई की राघव उसका मजाक उड़ा रहे है। वो बनावटी गुस्से से राघव को घूरती है और राघव को और अपना हाथ मुक्का बना कर तान देती है। राघव भी बनावटी डर दिखाते हुए बचने की कोशिश करता है।

राघव आगे आगे वैदेही पीछे पीछे भागते है। राघव भागते हुए भूल जाता है की वैदेही ने साड़ी पहनी हुई है वो ज्यादा तेज नही भाग सकती। जब राघव को अपने पीछे आ रही वैदेही की आवाज नही सुनाई पड़ती तो वो पीछे मुड़ कर देखता है। पर उसे वैदेही कही दिखाई नही देता। वो असमंजस में खड़ा हो जाता है। वही रुक कर वैदेही की प्रतीक्षा करता है। जिस और से वो आया था उसी और पलट कर वो खड़ा हो जाता है और वैदेही का इंतजार करता है। जब करीब दो मिनट बीत जाते है और वैदेही नही आती दिखती है तो राघव वापस लौट जाता है वहीं जहां वो बैठे थे पर वैदेही नही दिखती। अब राघव घबरा जाता है की आखिर वैदेही कहा चली गई…? अब वो कहां तलाशे वैदेही को..?

अगले भाग में पढ़े आखिर इस तरह वैदेही कहा चली गई?? क्या राघव तलाश पाया वैदेही को..? क्या वो अपनी बहन गुड़िया से मिला या बिन मिले ही घर वापस आ गया?? पढ़े अगले भाग में।

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