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नकाब - 3

भाग 3

कर्तव्य

अभी तक आपने पढ़ा कि कजरी सुहास से मिलने आती है। सुहास उसे मना करता है की आगे वो कजरी से संबंध नहीं रख पाएगा। कजरी को इस तरह अपनी होने वाली पत्नी की चिंता करना अच्छा नहीं लगता। सुहास द्वारा इस तरह अपना त्यागना बर्दाश्त नहीं कर पाती। वो उसे चेतावनी देते हुए वहां से चली जाती है की वक्त आने पर उसे वो ऐसा जख्म देगी की वो भी उसी की तरह तड़पेगा, खून के आंसू रोएगा। अब आगे पढ़े।

सुहास भाई प्रभास से साथ घर चला आता है। सुबह प्रभास को बनारस जाना है। वो वही के कॉलेज से एमएससी कर रहा था। दोनो बेटो को साथ बिठा लीला देवी खाना खिलाती है। सुबह ही छोटा बेटा शहर चला जायेगा। वो अपना सारा प्यार उड़ेल देना चाहती थीं। और जैसा की सभी जानते है मां का प्यार थाली में ही ज्यादा दिखता है। लीला ने सब कुछ प्रभास के पसंद का बनाया था। खस्ता लिट्टी साथ में बैगन टमाटर का चोखा, सिवई, पुए, रबड़ी, और मीठी दही भी। कभी वो लिट्टी डालती उनकी थाली में तो कभी पुए। वो प्रभास को ऐसे खिला रही थी जैसे उसे आज के बाद खाना ही नहीं मिलेगा।

प्रभास ने आंखो ही आखों में इशारा किया और मां की चोरी हाथ जोड़ कर विनती की कि भाई अब तुम ही मां से बचा सकते हो।

भाई का इशारा समझ कर सुहास बोला, "मां …! अब बस करो..! इसे सुबह जाना भी है। ज्यादा खिला दोगी तो अगर कही पेट खराब हो गया तो फिर ये जा भी नही पाएगा। और नहीं जा पाएगा तो फॉर्म की तारीख बीत जायेगा। और तारीख निकल गई तो फिर साल ही बेकार हो जायेगा। तो……?"

लीला समझ गई की सुहास उसके प्यार का मजा ले रहा है। वो उसे बनावटी गुस्से से डांटती हुई बोली, "अच्छा …! मैं सब समझ रही हूं तू जल रहा है की मैं इसे ज्यादा प्यार कर रही हूं। नहीं खिलाती अब इसे। रहने दे बेटा जो खा सके वही खा।" इतना कह कर प्यार से प्रभास के सर पर हाथ फेरने लगी।

प्रभास अपनी जान छूटती देख जल्दी से उठ कर हाथ धोने लगा। हाथ धोते धोते ही बोला, "भईया मैं आपके साथ ही सोऊंगा नही तो सुबह सोता ही रह जाऊंगा, और बस निकल भी जायेगी।"

"ठीक है छोटे।" कह कर दोनो भाई सुहास के कमरे में सोने चले गए।

लीला उन्हे जाते हुए गर्व से देख रही थी। साथ ही मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी की "हे भगवान! मेरे इस राम लखन की जोड़ी को किसी की नज़र न लगे।"

सुबह तड़के उठ कर लीला ने पूरी सब्जी बना कर रास्ते के लिए बांध दिया। सुहास भी तैयार होकर भाई प्रभास को बस पर बैठाने के लिए चल दिया।

बस जैसे उन्ही की प्रतीक्षा कर रही थी। जैसे ही वो वहां पहुंचे दो मिनट बाद बस खुल गई। प्रभास का सामान रखवाने के लिए सुहास भी बस में चढ़ा। अच्छी सीट की तलाश में वो इधर उधर निगाह दौड़ा रहा था। तभी उसकी निगाह पीछे की सीट पर बैठी एक लड़की पर पड़ी। उसे तो रात के अंधेरे में भी वो पहचान लेता था, फिर ये तो दिन का उजाला फैला था। वो गठरी सी बनी सिमटी चेहरे को ढक कर सबसे छुपाते हुए बैठी थी। सुहास पल भर को सिहर गया। इसका मतलब जो उसने कहा था रात को वो सच कर दिया। एक बार उसके जी में आया की उसके पास जाकर नही जाने के लिए मना ले। पर यहां ऐसा कोई नही था जो उससे परिचित ना हो। इस कारण उसकी हिम्मत जवाब दे गई। सुहास भयभीत हो गया की उसने पहली बात सच कर दिया। अब वो अपनी दूसरी बात सच करने के लिए पता नहीं क्या करेगी…?

प्रभास भाई के कंधे को झकझोरते हुए बोला, "भईया कहां खोए हुए हो बस चल दी है जल्दी उतरो।"

प्रभास के पुकारने पर सुहास की चेतना वापस आई। "हां!! हां..! छोटे उतरता हूं। " कह कर बस से उतर गया। जाती हुई बस से दूर जाते प्रभास के हाथ दिखाई दे रहे। सुहास ने भी हाथ हिलाया और घर के लिए वापस लौट पड़ा एक अनजाने भय के साथ।

प्रभास को बनारस पहुंचते पहुंचते शाम हो गई। रास्ते में उसने मां का दिया खाना खा लिया था। पहले वो अपने हॉस्टल गया। वहां अपना सामान रक्खा। फिर दोस्तो से पता करने चला गया की फॉर्म की आखिरी तारीख कब तक है..? दोस्तो से पता चला की अभी चार दिन का समय है। प्रभास को चैन आया की चलो अभी तो समय है । आराम से भर दूंगा।

दूसरे दिन प्रभास कॉलेज गया आज एक महीने बाद उसकी मुलाकात रश्मि से होगी। इस लिए वो बेहद खुश था की जब से घर गया था तब से उससे बात नही हो पाई थी। आज जी भर के उससे बाते कर सकूंगा। प्रभास और रश्मि साथ ही पढ़ते थे। वो एक अच्छे दोस्त तो थे ही पर इधर कुछ दिनों से उनका रिश्ता दोस्ती से कुछ आगे बढ़ गया था। ये दोस्ती सिर्फ दोस्ती न रह के एक रिलेशनशिप का रूप ले चुकी थी। अब उन्हें एक दूसरे से मिले बिना चैन नहीं पड़ता था। पर अभी कॉलेज की छुट्टी होने की वजह से एक महीना उन्हे अलग रहना पड़ा था। अब वो आज छुट्टी के बाद पहली बार मिल रहे थे।

प्रभास पहले कॉलेज पहुंच गया। उसके कुछ देर बाद रश्मि आई। अपनी सहेलियों के साथ वो आई। वो दूर से ही पहचानी जा सकती थी। रश्मि बिलकुल अपने नाम को साकार करती हुई। लंबा कद, कमर तक लहराते लंबे बाल, उजला दूधिया रंग, उस पर सुतवा नाक। ढूंढे कोई कमी नहीं मिलती थी। लड़के तो क्या उसके सौंदर्य को लड़कियां भी बखाना करती थी। रईस बाप की अकेली बेटी थी। उसके कपड़े भी एक से एक बढ़ कर सुंदर और महंगे होते थे। जो उसकी सुंदरता में चार चांद लगाते थे। रश्मि जमींदार परिवार से ताल्लुक रखती थी। पिता और बड़े भाई की वो लाड़ली थी। उसपे वो जान छिड़कते थे। उसकी हर इच्छा वो जबान से निकलने से पहले पूरी करते थे। अपनी आन बान शान के लिए वो अपने पूरे क्षेत्र में जाने जाते थे। 

प्रभास ने रश्मि के आते ही उसे साथ लिया और फॉर्म भरने के काउंटर पर गया। दोनो ने एक एक फॉर्म लिया और उसकी औपचारिकता पूरी करने लगे। जब फॉर्म भर गया तो उन्होंने जमा कर दिया और बाहर कुछ खाने चले गए। अभी उनकी क्लास नही चल रही थी। बात करते करते प्रभास कल रात की बात बताने लगा की उसकी मां कितनी अच्छी है। उसे कितने प्यार से खिलाती है। मां का प्यार तो बस पूछो ही मत। प्रभास की बाते सुन कर रश्मि उदास हो गई। उसके उतरे चेहरे को देख प्रभास बोला, "क्या हुआ रश्मि..? तुम्हारी मां कैसी है…? क्या तुम्हे ज्यादा डांटती है जो तुम उदास हो गई। कोई बात नही मां डांटती भी है तो हमारे अच्छे के लिए ही। क्योंकि वो हमे बिलकुल परफेक्ट बनाना चाहती है। और मां की डांट ही तो हमे गलत रास्ते से सही रास्ते पर के आती है। तुम उदास मत हो बताओ ना.! तुम्हारी मां कैसी है..?"

दो बूंद आंसू टप से सामने टेबल पर चू पड़े। वो उन्हे पोंछ कर अपनी भावना को छिपाते हुए बोली, "अरे….! नही प्रभास ऐसी बात नहीं। मैं तो मां की डांट के लिए… प्यार के लिए… सभी के लिए तरसी हूं । काश मेरी भी मां मुझे डांटती, मुझे अच्छे,बुरे, का फर्क समझाती…! पर इन सब के लिए मां तो होनी चाहिए।"

अपने चेहरे को घुमा दूसरी ओर देखते हुए बोली, "प्रभास मेरी मां नही हैं। जब मैं छोटी सी थी तभी वो मुझे छोड़ कर इस दुनिया से चली गई। मुझे उनकी कोई भी याद नही।"

प्रभास इस बोझिल माहौल को हल्का फुल्का बनाने के लिए बोला, "कोई बात नही रश्मि। जिस बात पर हमारा वश नहीं हम क्या कर सकते है…?"

फिर रश्मि की ओर रहस्यमी अंदाज में देखते हुए बोला, "जब तुम मेरे घर आओगी ना तो मेरी मां तुम्हारे जीवन की ये कमी भी पूरी कर देंगी। देखना तुम्हे मुझसे भी ज्यादा प्यार देंगी वो। क्योंकि जैसी बहू का वो सपना देखती है तुम बिलकुल वैसी हो।" कह कर प्रभास मुस्कुराने लगा।

उसकी मुस्कान देख रश्मि शरमा गई। उसकी निगाह झुक गई। उसके मुस्कुराने से गालों में पड़ने वाले डिंपल तो इतने गहरे थे की कोई भी उनमें डूब जाए।

सुहास जब प्रभास को बस में बिठा कर घर लौटा तो देख रग्घू चाचा उदास से उसके बाऊ जी की चारपाई के पास बाहर हाते में बैठे हुए थे। उनका चेहरा लटका हुआ था। वो समझ गया की कजरी के घर से जाने की बात शायद उन्हें पता चल चुकी है।

उसके कान में बाऊ जी की आवाज आ रही थी। वो रग्घू काका को समझाते हुए कह रहे थे, "क्या करोगे रग्घू..? अब इसमें ना ही तुम्हारी गलती है, ना ही कजरी की। अब उसके ससुराल वाले उसका गौना नही ले गए तो इसमें तुम्हारी या तुम्हारी बेटी की गलती थोड़ी ना है। गई होगी यही कही आस पास गांव वालो के तानों से दुखी हो कर। आ जायेगी शाम तक तुम चिंता मत करो।"

रग्घू चाचा चिंतित स्वर में बोले, "मालिक वो ऐसे बिना बताए कभी कहीं नहीं जाती। चाहे कोई कितना भी ताना क्यों ना मारे। मालिक… मुझे तो डर लग रहा है। कही कुछ उल्टा सीधा न कर ले पगली गुस्से में।"

बाऊ जी रग्घू काका को बार बार समझा रहे थे की वो कुछ नहीं करेगी। भले ही समय लगे पर वो वापस आ जायेगी। कुछ देर बाद वो चले गए।

सुहास की स्थिति ऐसी थी की वो सब कुछ जानते हुए भी कुछ भी नहीं बता सकता था किसी को। कजरी प्रभास की ही बस से गई है। और क्यों गई है? सब कुछ जानते हुए भी उसे अपनी जुबान बंद रखनी पड़ रही थी।

सुहास कजरी की बातों से भीतर तक हिल गया था। उसका धमकी देना और घर छोड़ कर चले जाना उसे हर पल सताता रहता। कजरी अकेली नहीं गई थी, वो सुहास के होठों की हंसी, चैन सब कुछ अपने साथ ले गई थी। हर पल एक खामोशी ओढ़े रहता। बस अपनी मेडिकल शॉप से घर, और घर से मेडिकल शॉप जाता।

दिन गुजर रहे थे।

आज सुबह से ही बहुत गहमा गहमी मची थी घर में। मिठाई दौड़ दौड़ कर घर के काम निपटा रहा था। बाऊ जी बाजार जाकर महंगी वाली काजू कतली के साथ साथ कई तरह की मिठाई और नमकीन ले आए थे। सुहास दुकान पर जाने के लिए बैठक में बैठा नाश्ता कर रहा था की मिठाई आया और वहां की हर चीज की धूल झाड़ने लगा। पर सुहास को इन सब का कोई ध्यान नहीं था। मिठाई ने जब देखा की सुहास कोई ध्यान नहीं देगा न ही उससे कुछ पूछेगा तो खुद ही बोलने लगा, "सुहास भईया आपको पता है आज इतनी तैयारी क्यों हो रही है..? आज कौन आ रहा है.?"

सुहास को पता था की मिठाई जब तक अपनी बात बता नही लेगा उसके पेट में दर्द होता ही रहेगा। और उसे परेशान करता ही रहेगा। इसलिए अच्छा है की अपनी जान छुड़ाने के लिए पूछ ही ले। सुहास बोला, "हां ..! बता दे मिठाई आज कौन आ रहा है? नही तो तेरा पेट दुखता ही रहेगा।"

मिठाई हाथ का पोंछा छोड़ कर सुहास के पास आकर जमीन पर बैठ गया।

आखिर कौन मेहमान आ रहे थे, जिसके लिए घर में इतनी तैयारी चल रही थी…? क्या कजरी का कुछ पता चल पाया रग्घू काका को..? आखिर कजरी इस तरह अचानक कहां चली गई?

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