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सोई तकदीर की मलिकाएँ - 2

 

सोई तकदीर की मलिकाएं 

 

2

 

बेचारा भाई , इतनी जमीन जायदाद है । इतनी बङी महल जैसी हवेली । घर में चार भैंसें और दो गाय बंधी हैं । न दूध खत्म होता है न लस्सी । पैसा इतना कि कोई हिसाब ही नहीं दोनों हाथ से लुटाएँ फिर भी खत्म न हो पर भगवान ने खाने पहनने के लिए कोई वारिस ही नहीं दिया । बसंत कौर का रूप अभी भी दहकता अंगारे जैसा है । बच्चे की आस मन में लिए लिए अब पचास के आसपास तो हो ही गयी होगी । बेचारी पाँच पूरणमाशी दुखनिवारन साहब जाकर नहाई । काली माई के दरबार जाके चुनरी नारियल चढाए , माथे रगङे । साल की बारह पुण्या का बरत भी किया । कोई तीरथ कोई मजार , गुरद्वारा नहीं छोङा , जहाँ माथा टेकने न गयी हो । कोई वैद , हकीम भी नहीं छोङा । जहाँ जहाँ किसी ने बताया , वहीं वहीं गई पर परमात्मा ने सुना ही नहीं । बेचारी सुखवंती पोते का मुँह देखने को तरसती दुनिया से चली गयी ।

ईश्वर के खेल हैं और क्या । किसी के घर में खाने को दाने नहीं । हर बार परमात्मा के आगे हाथ जोङते हैं कि रब्बा बस कर अब । इतने जीवों के मुँह में अनाज का दाना कैसे डालेंगे और हर एक दो साल में एक और प्राणी पैदा हो जाता है ।पाँच सात बच्चे हो जाते हैं । और इसी दुनिया में कुछ लोगों के गोदाम, कोठियाँ अनाज से भरे पङे हैं पर खाने वाला कोई नहीं ।
बेबे बोली – मैंने तो इन बच्चों को कहा कि नाते रिशतेदारी से कोई बहु आई होगी । घूंघट निकाला होगा तो इन लोगों को लगा होगा कि नई दुल्हन है । भोला टेशन से अपनी कार में ले आया होनै तो पक्का हो गया ।
तू बैठ अमरजीत ,चाय बनाई है । पी के जाना ।
कुलजीत ने बाटी में चाय डाल कर सबको पकङा दी । अभी उन्होंने चाय के दो घूंट भी नहीं भरी थी कि उधर से बसंत कौर के ऊँचे सुर में रोने और विलाप करने की आवाजें आने लगी फिर गालियों की आवाजें भी उसमें मिल गयी ।
तीनों औरतों के मुँह खुले के खुले रह गये ।
कुछ तो गङबङ थी । कहीं कुछ तो हुआ था वरना बसंत कौर तो बङे सबर सिदक वाली औरत थी । जगरांओ के बङे ग्रेवाल सरदारों की बेटी । तीन भाइयों की इकलौती बहन थी । न उस घर में किसी चीज की कमी थी , न इस घर में । सुखवंती ने उसे कभी बहु समझा ही नहीं । हमेशा बङे प्यार से बेटी की तरह रखती थी । भोला उसके पैरों तले अपनी हथेली रखता था । उसके मुँह से बात निकलते ही पूरी हो जाती । आज ऐसा क्या हो गया । तीनों ने एक दूसरे की ओर देखा ।
बङी बहु ने कहा – थोङा रोला गोला ठंडा होने दे फिर मैं जाग लेने के बहाने जाकर देखती हूँ – क्या हुआ है फिर तुम्हें बताती हूँ ।
ठीक है , मैं चलती हूं । अभी जानवरों को चारा डालना है फिर रात के रोटी पानी का बंदोबस्त करना है । बिक्की का पापा आता ही होगा । और वह अपने घर चल पङी ।

भोले के घर अब शांति हो गयी थी । कोई आवाज नहीं आ रही थी । न गालियाँ देने की न रोने धोने की । एक तूफान कहीं से आकर टिक गया था ।
ये भोला और गोला दो भाई थे ।असली पक्के नाम तो थे भलविंदर सिंह और गुरबिंदर सिंह पर सारा गाँव उन्हें आज भी भोला औप गोला ही कहता है । बलकार सिंह को अपने बाप से दस ग्यारह किल्ले जमीन विरासत में मिली थी । उस ने रात दिन एक करके बङी मेहनत से दस किल्ले से तीन सौ किल्ले जमीन बनाई थी । जब वह मरा तो जमीन के दो हिस्से हो गये । दोनों भाइयों के हिस्से डेढ डेढ सौ किल्ले जमीन आ गयी । गोले के तीन बेटे और दो बेटियाँ हुए । एक बङा बेटा फिर दो बेटियाँ और उन से छोटे दो बेटे । दोनों बेटियों की उसने धूमधाम से एक ही घ र के दो बेटों के साथ शादी कर दी । दोनों दामाद खेती बाङी वाले थे । तीन बेटों को उसने पढाने की बहुत कोशिश की पर वे तीनों मोटी बुद्धि के निकले जिनसे आठवीं भी पास नहीं हुई । खेती में उनका मन न लगता । गाय भैंसों के वाङे से उन्हें बदबू आती । नौकरी अनपढों को कौन देता । आखिर कनाडा भेजने के लिए गोले ने उनके लिए ऐसी लङकियां चुनी जो आईलेटस पास थी और उन्हें कनाडा ले जा सकती थी । अपनी जमीन बेचकर उसने रुपये - पैसों का इंतजाम किया । पहले भागदौङ करके दोनों बहुओं का वीजा लगवाया फिर एक एक करके दोनों को कनाडा भेजा फिर उनके सहारे अपने दोनों बेटों को । अब दोनों बेटे कनाडा में सेब तोङ कर पैकिंग करते हैं । शनिवार ,रविवार को किसी पैट्रोलपंप पर काम करते हैं और दोनों बहुएँ किसी माल में नौकरी करती हैं । तीसरा बेटा आस्ट्रेलिया जाने के लिए तैयार बैठा है । वो और उसकी दुल्हन जब जाएंगे तो उन दोनों जनों को भेजने के चक्कर में रही सही जमीन भी बिक जाएगी । फिर थोङा सा क्यारा बचेगा जिससे दोनों प्राणियों का गुजर बसर जैसे तैसे हो जाएगा । गोले को जमीन बिक जाने का कभी कभी बहुत अफसोस होता है कि पूर्वजों की बनाई जायदाद हाथों से निकल गयी पर फिर यह सोच कर दोनों पति पत्नी खुश हो लेते हैं कि बच्चों की बाहर जाने की तमन्ना पूरी हो गयी । बच्चे परदेश में हैं और डालर कमा रहे हैं , जब वे रिश्तेदारों के बीच इसकी चर्चा करते हैं तो रिश्तेदारों की आँखों में अपने लिए सम्मान देख कर गर्व से भर उठते हैं वरना असलियत तो यह है कि बङे और उसकी बहु को गये सात साल हो गये है और छोटे को पाँच साल पर दोनों में से कोई लौट कर नहीं आया न एक कौडी भेजी । हाँ कभी कभार महीने दो महीने में एक बार उनका फोन आ जाता है तो वह और रक्खी अपना मन खुश कर लेते हैं वरना सूने घर में अकेले बैठे रहते हैं ।

 

बाकी फिर ...