soi takdeer ki malikayen - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

सोई तकदीर की मलिकाएँ - 5

सोई तकदीर की मलिकाएँ 

5

अगर एक क्षण की भी देरी हो जाती तो लङकी ने धङाम करके नीचे धरती पर गिर जाना था । गिर जाती तो चोट लग जाती । थोङी देर पहले वह तलवारों की जद में थी । अगर भोले ने न रोका होता तो वह भी अपने परिवार के बाकी सदस्यों की तरह खून के समन्दर में डूबी तङप रही होती । पर उसके नसीब नें इतनी आसानी से मरना नहीं लिखा था । मौत उसे छू कर करीब से लौट गयी थी क्योंकि उसकी सांसों का तानाबाना अभी अधूरा था इसलिए भोले के भीतर से जैसे ईश्वर ने उसे जिंदा रहने का हुक्म दिया था । यह लङकी चमत्कार रूप से बच गयी थी और अब भोले की मजबूत बांहों में झूल रही थी । जैसे ही भोले के हाथों ने उसके कंधे छुए , वह फूट फूट कर रो पङी । पता नहीं , डर से या मर चुके घर वालों की खून से लथपथ लाशों को देख कर या फिर बच जाने की खुशी में पर वह भोले की छाती से लगी हिलक हिलक कर रोती रही । काफी देर तक कमरे में उस नसीबन उर्फ केसरवंती के जोर जोर से हिटकोरे लेकर रोने की आवाजें गूंजती रही । भोला उसे एक हाथ से थामे बुत बना खङा रहा और उसे बिलख बिलख कर रोते हुए देखता रहा ।
यह सब न जाने और कितनी देर चलता रहना था कि गुरमीत की गंभीर आवाज आई – चुप कर लङकी , एकदम चुप । अब एक आवाज भी मुँह से बाहर निकली कि काट के यहीं फैंक दूँगा । समझी ।
लङकी घबरा कर सचमुच चुप हो गयी । सिर्फ उसका बदन रह रह कर हिलता रहा । उसकी लंबी सांसें दूर तक सुनाई देती रही । फिर वे आवाजें आना थम गया । सिर्फ बदन में हरकत होती रही । आखिर वह घुटनों में सिर देकर वहीं कच्ची जमीन पर बैठ गयी ।
दलनायक ने कहा – सुन लङकी तेरे घर में कोई पैसा धेला , जेवर ...।
लङकी में कोई हरकत नहीं हुई ।
दलनायक ने अपना सवाल दोबारा दोहराया । लङकी फिर भी वैसे ही घुटनों में सिर दिये बैठी रही ।
तुझे पता है , बताती क्यों नहीं - दलनायक ने कङक कर कहा ।
लङकी एक झटके से उठ खङी हुई । उसके परिवार के लोग यहाँ वहां कटे हुए पङे थे।
लङकी ने दादा की लाश की जेब से एक गुलाबी थैली निकाल कर जमीन पर रख दी । फिर वह मां की लाश की ओर बढी और उसके घागरे के नाले से बंधी एक लाल पोटली निकाल कर दल नायक की ओर बढा दी । उसकी आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे ।
हम भोर में ही गाँव छोङकर निकल जाने वाले थे । सिर्फ कुछ घंटे ही बचे थे । फिर हम खाला के पास पाकिस्तान चले जाते । - उसने बिलखते हुए अटक अटक कर बताया था ।
अब ये लोग उस घर से निकल आये थे । संधवा पहुँच कर दल के सभी सदस्यों ने सिक्के और रुपये आपस में बराबर बराबर बाँट लिये और इस घर से लूटा सारा जेवर भोले को देकर विदा ली थी । अभी आसमान में तारे चमक रहे थे । रात लोगों की दुर्दशा देख कर आँसू बहा रही थी । जिससे चौगिर्दा गीला हो गया था ।
कुछ देर तक भोला किंकर्त्तव्यविमूढ सा वहाँ खङा सब साथियों को जाते हुए देखता रहा । जब वे सब आँखों से ओझल हो गये तो नसीबन को लेकर अपनी हवेली की ओर चल पङा ।
हवेली पहुँचकर वह कुंडी खटकाने ही वाला था कि बेबे जी ने दरवाजा खोल दिया । भोला सिर नीचा किये हवेली में घुसा और चुपचाप अपने चौबारे की सीढियाँ चढ गया ।
बेबे ने दहलीज पर खङी उस बच्ची को भरपूर नजर से देखा – डर के मारे उस लङकी के होठ नीले पङ गये थे । आँखें से बह कर आये आँसुओं ने गालों पर लकीरें खींच दी थी । बङी बङी आँखों में डर स्पष्ट दिखाई दे रहा था । खिलता हुआ सांवला रंग , छोटी पर गहरी आँखें , भूरे घुंघराले बाल , चार सवा चार फुट कद , मोटे लाल होंठ , पतला छरहरा शरीर , लङकी सुंदर तो नहीं कही जा सकती थी पर इस उम्र में देह में , आँखों में जो स्वाभाविक आकर्षण रहता है , वह इस लङकी में भी था । लगभग चौदह साल की रही होगी वह ।
तेरा नाम क्या है
न .. उसे दलनायक की बात याद आ गयी ... जी केसर ..।
माँ बाप कोई है .. लङकी ने न में सिर हिलाया और बेबे के पैरों में गिर कर रोने लगी । कितनी देर से रोके हुए आँसू बाँध तोङ कर बह निकले ।
बेबे ने सीरी को आवाज दी - औए जोरे, इस लङकी के लिए गाय वाले गोठ में चारपाई लगा दे । दरी और खेस भी लगा देना ।
जोरा भाग कर आया – जी बेबे ,
दो मिनट बाद ही वह लौटा - बेबे बिस्तर लगा दिया है ।
रोटी खाएगी
केसर ने न में सिर हिला दिया । जो मंजर वह देख कर आ रही है , भूख तो शायद कई दिन न लगे ।
बेबे ने आदेश दिया – जा जाकर सो जा । सुबह बात करेंगे ।
केसर जोरे के पीछे पीछे सोने चल पङी ।
बेबे ने वाहेगुरु वाहेगुरु कहा और अपने मंजे पर टेढी हो गयी ।
नींद आँखों से गायब हो चुकी थी । ये लङकी कौन है । कहाँ से आई है । भोले को कहाँ से मिल गयी – कई सवाल थे जो उन्हें सारी रात परेशान करते रहे । सारी रात उन्होंने करवट बदलते गुजारी ।
केसर भी चारपाई पर आ तो गयी पर सारी रात डर के मारे उसका बुरा हाल था । अपने अब्बू , अम्मी , बाबा , भाई बहनों के चेहरे बार बार उसकी आँखों के सामने आ जाते । कभी वह रो पङती , कभी चुप हो जाती । कभी लेट जाती , कभी बैठ जाती । आखिर साढे चार बज गये । समय का पहिया तो चलता ही रहता है । अच्छा या बुरा कोई भी वक्त हमेशा नहीं रहता । रात के अंधेरे के बाद दिन का उजाला आना तय है । आसमान में कहीं कहीं लाली दिखनी शुरु हुई । गुरद्वारे में भाई जी ने पाठ शुरु कर दिया । बेबे जी उठे । साथ ही बसंत कौर भी चौबारे से उतर आई । उसने चूल्हा लिपा । चौका साफ करके लस्सी रिङकना शुरु किया । बेबे ने बसंत कौर का चेहरा देखा । वहाँ अभी आँधी तूफान का कोई चिन्ह नजर नहीं आ रहा था ।
हे सच्चे पातशाह मेहर करना । घर की सुख शांति बनाये रखना ।
वे पशुओं के बाङे की ओर चल पङी । वहाँ पहुँच कर उन्होंने जो देखा ससे उनकी हैरानी की कोई हद न रही । मंजी टेढी करके रखी हुई थी । नांद में चारा डाला हुआ था । सारा नोहरा साफ किया हुआ था । गोबर तसले में डला हुआ था और केसर सँभरा हुआ कूङा टोकरे में डाल रही थी ।

बाकी फिर ...