Revenge: A Romance Singham Series - Series 1 Chapter 4 books and stories free download online pdf in Hindi

Revenge: A Romance Singham Series - Series 1 Chapter 4

दरवाज़े पर लगातार दस्तक से अनिका की नींद टूट गई।

"आ रहीं हूं," अलासाई हुई सी आवाज़ में अनिका ने कहा।

एक छोटी सी लड़की अंदर घुस आई। वोह धीरे धीरे चल कर कमरे में अंदर तक चली गई।

"हेलो!" अनिका ने उस लड़की से कहा।

"उन्होंने मुझे आपको तैयार करने में मदद करने को कहा है। नीलम्मा अब एक घंटे में लोगों से मिलना शुरू करेंगी।"

अनिका को यह सुन कर कुछ अजीब लगा।

"मुझे तैयार होने के लिए किसी की मदद की जरूरत नहीं है। मैं आधे घंटे में बाहर आ जाऊंगी।" जबकि अनिका के मॉम और सौतेले डैड दोनो ही डॉक्टर हैं, और वोह और उसकी छोटी सौतेली बहन मायरा नेनीज और मेड के साथ पाले बड़े हुए हैं, उसे इस बात की आदत नही थी की अपनी फैमिली मेंबर्स से मिलने के लिए उसे किसी के सहारे की जरूरत पड़ती तैयार होने के लिए, वोह भी एक सिंपल सी मीटिंग।

वोह लड़की कुछ पल यूहीं दुविधा में खड़ी रही और फिर अपना सिर हिला कर चली गई। अनिका दरवाज़ा बंद करने के बाद धीरे धीरे कमरे के चारों ओर नज़रे घुमा कर देखने लगी। वोह जब आई थी तोह इतनी थक गई थी की इतनी डिटेल्स ने नोटिस नही कर पाई। पर वोह अब हर चीज़ बारीकी से देख रही थी। वोह जिस बैड पर सोई थी वोह ट्रेडिशनल बैड था जिसके चारों और परदे लगे हुए थे और उसकी छत काफी ऊंची थी। और दीवारों पर चारों तरफ ऑयल पेंटिंग्स लगी हुई थी जिस पर खूबसूरत रंगों से चित्रकारी की हुई थी। एक दीवार बार एक बड़ी सी एंटीक क्लॉक लगी हुई थी जिसपर इलेवन फिफ्टीन टाइम दिखा रहा था। सबिता और उस छोटी सी लड़की जो अभी आई थी, जिसका नाम अनिका पूछना ही भूल गई थी, उन दोनो ने ही कहा था की नीलांबरी दुपहर में ही किसी से मिलती है। उसे यह अपॉइंटमेंट सिस्टम वोह भी फैमिली मेंबर से मिलने के लिए कुछ अजीब लगा। पर उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया या फिर वोह ज्यादा इन सब में घुसना नही चाहती थी।

अपने सूटकेस में से अपने कपड़े निकाल कर वोह रेडी होने बाथरूम में चली गई। अपने कमरे में से बाहर निकलने से पहले उसने एक बार अच्छे से अपने आप को शीशे में निहारा।

वोह यहां अपने दादाजी से भी मिलने आई थी इसलिए उनकी रिस्पेक्ट करते हुए उसने एक ट्रेडिशनल वेयर ही चूस किया था पहन ने के लिए। वैसे भी बहुत ज्यादा छोटे कपड़े उसे कभी भी पसंद नही थे। विदेश में रहने की वजह से उसे खुली टांगों वाले कपड़े और खुली बांह वाले कपड़े पहन ना उसके लिए नॉर्मल था। पर पारंपरिक कपड़ो में, जब टांगो और बांह की बात आती है, तोह पेट का हिस्सा ज्यादा खुला रहता है। शायद वोह कल वापिस अपने पहनावे में आ जाए लेकिन आज के लिए उसने पारंपरिक कपड़े ही चुने। उसे थोड़ी राहत मिली थी जब उसने सुबह सबिता को एक कॉटन ट्राउजर और शर्ट में देखा था। हिस्से यह साबित होता था की यहां के लोग पहनावे को लेकर ज्यादा पुराने खयालात के नही हैं।

अनिका शीशे में देखने के बाद खिड़की के पास गई और अपने आप को नियंत्रण करने के लिए ताज़ी हवा अपने अंदर लेने लगी। उसे इस नई जगह में घबराहट महसूस हो रही थी। जब वोह एयरपोर्ट से यहां के लिए निकली थी तब चारों तरफ हरियाली ही हरियाली थी जो की यहां आ कर खाली मिट्टी के लंबे मैदान में बदल गई थी।

खिड़की के बाहर उसे कुछ शोर सुनाई दिया। कुछ लोगों की उत्साह में बातचीत करने की आवाज़ें थी। उसे कुछ अजीब लगा और साथ ही साथ उत्सुकता भी हुई जानने की। उसने एक गहरी सांस ली और कमरे से बाहर निकल गई। अपने कमरे से बाहर निकलते ही उसे एक इंडोर बालकनी दिखी जहां से उस हवेली का सेंटर दिखता था। वोह रेलिंग के नज़दीक गई और नीचे बहुत ही आलीशान और खूबसूरत लिविंग एरिया में झांकने लगी की शायद घर का कोई सदस्य दिख जाए।

लिविंग एरिया ऑलमोस्ट खाली था, बस कुछ नौकर और नौकरानियों को छोड़ कर जो उन एंटीक पीसेस को साफ कर रहे थे, जो उस लिविंग एरिया की शोभा बढ़ा रहे थे। दूसरे साइड उसे एक बड़ा डाइनिंग रूम दिखाई पड़ा जहां सबिता एक बूढ़े इंसान से बात कर रही थी जो व्हीलचेयर पर बैठा था।
यह पक्का दादा जी होंगे।
अनिका जल्दी से सीढ़ियों की तरफ भागी। वोह जल्दी जल्दी नीचे आने लगी। और उसके जूते इतनी आवाज़ कर रहे थे की किसी को भी पता चल जाए की वोह आ रही है। सबिता ने अपनी गर्दन घुमाई और अनिका की तरफ देखा। और उसे ग्रीट करने के लिए उदासीनता से अपना सिर हिला दिया।

एक गहरी सांस लेकर अनिका ने सबिता की बेरुखी नजरंदाज कर दी। उसके अंदर बेचैनी, घबराहट और असहजता और डर सब पनअपने लगे थे। उसने सब को नजरंदाज कर के उस बूढ़े इंसान की तरफ अपनी नज़रे टिका दी जो व्हीलचेयर पर बैठा हुआ था।

"हेलो, दादाजी," अनिका ने धीरे से दादाजी को ग्रीट किया। अनिका के दिल धक से रह गया जब उसने अपने पिता के पिता को गंजा और कंपकंपाता हुआ देखा।

जो बूढ़ा आदमी उसके सामने बैठा था उसने अपनी जिंदगी में बहुत कुछ खोया था। उसने अपनी पत्नी और दो नौजवान बेटों को खोया था एक्सीडेंट में। कुछ हद तक वोह समझ सकती थी की उन्होंने अपने बेटे के पत्नी और अपनी पोती को क्यों छोड़ दिया था। उसकी बुआ ने उसे बताया था की दादाजी को काफी साल पहले पैरालिसिस अटैक आया था और उसमे उनकी आवाज़ चली गई थी।

इस वक्त वोह बूढ़ा आदमी अनिका को उलझन वाली नज़रों से देख रहे थे।

"यह अनिका है," सबिता ने प्यार से अपने दादाजी से कहा। "अंकल यशवंत की बेटी।"

सबिता के एडप्लेनेशन से मानो दादाजी की आंखे जिंदा हो गई हो।

अनिका समझ नही पा रही थी की यह खुशी की वजह से है या गुस्से की वजह से।

अनिका की मॉम ने बहुत सालों पहले अनिक को बताया था की उसके पिता का परिवार खुश नही था क्योंकि उनके घर के सबसे बड़े बेटे ने ऐसी लड़की से शादी कर ली थी जिसे उन्होंने नही चुना था या नहीं चाहते थे शादी हो। यह एक बहुत बड़ा कारण था की वोह लोग नही चाहते थे की उस एक्सीडेंट के बाद अनिका और उसकी मॉम वापिस इस घर में आएं।

"मैं आप ही से मिलने आई हूं, दादाजी। उम्मीद करती हूं की आप ठीक ही होंगे।"

उसके दादाजी ने घुरघुर की आवाज़ निकाली जवाब में।

कुछ देर तक दोनो तरफ अजीब सी शांति पसर गई। तभी एक भरी दरवाज़े खुलने की कड़कड़ की आवाज़ सुनाई पड़ी और सबका ध्यान उस ओर हो गया।

"उसे अंदर भेजो!" एक जानी पहचानी सी औरत की आवाज़ ऊपर की ओर से सुनाई पड़ी, जो की पूरे लिविंग रूम में गूंज गई।


पूरी सिचुएशन में अनिका को कुछ अजीब लगने लगा। वोह परेशान सा महसूस करने लगी। उसने पलट कर सबिता की तरफ देखा, पर हमेशा की तरह, वोह एक्सप्रेशन लैस थी

"आओ," सबिता इतना कह कर आगे बढ़ गई। वोह सीढ़ियों से ऊपर चढ़ते हुए अपोजिट डायरेक्शन में मुड़ गई जहां अनिका को सुबह कमरा ऑफर किया गया था।

जैसे ही वोह दोनो एक दरवाज़े के पास पहुँचेे, सबिता रुक गई।

"जाओ। वोह तुम्हारा इंतजार कर रही हैं," सबिता ने अनिका से उस अध खुले हुए दरवाज़े की ओर इशारा करते हुए कहा।

"नीलांबरी बुआ?" अनिका ने दुविधा में सबिता से पूछा।

"हां," सबिता ने जवाब दिया।

"तुम अंदर नही आएगी?" अनिका ने सबिता से पूछा, जब उसने अपनी कजिन को वापिस जाने के लिए मुड़ते हुए देखा।

सबिता रुकी और पलट कर अनिका की ओर देखा। "नही।"

"सबिता। प्लीज। क्या तुम मेरे साथ थोड़ी देर रुक सकती....."

"मुझे अंदर आने की इजाजद नही है। तुम्हे अकेले ही अंदर जाना होगा," सबिता ने जवाब दिया।

अनिका ने देखा बोलते हुए सबिता की आंखों में चमक थी। जब से वोह उससे मिली थी तब से यह पहली बार था जब उसने उसकी आंखों में उसे इमोशंस दिखे थे।

गुस्सा? दुख? अनिका नही जानती थी। वोह खुद बहुत घबराई हुई थी, अपनी कजिन का रिएक्शन एनालाइज कर के।

उसका दिमाग अलग अलग कारण ढूंढने में लगा हुआ था।
कम ऑन अनिका। वोह तुम्हारी बस बुआ ही तोह है। तुमने तोह उनसे फोन पर भी बात की थी। और तुम्हे वोह पसंद भी आई थी।

उसकी बुआ ने उसे मना लिया था इंडिया आने के लिए, अपने बीमार दादाजी की तबियत का हवाला दे कर। पर उसके दादाजी तोह बिलकुल भी बीमार नही लग रहे थे, कम से कम उस तरह तोह नही जिस तरह से वोह सोच कर आई थी। उसने सोचा था की उसके दादाजी तोह बैड पकड़ लिए होंगे और आखरी सांस गिन रहें होंगे और सभी घरवाले उनकी इर्दगिर्द सेवा में लगे होंगे।

एक गहरी सांस लेकर और मन में हिम्मत भर कर वोह उस कमरे के अंदर जाने लगी जिसकी रोशनी भी काफी मध्यम थी।

उस रोशनी में जब उसकी आंखें एडजस्ट हुई तोह उसने देखा की वोह एक बड़ा सा सुइट रूम था जिसके अंदर और भी कई कमरे थे। लेकिन बाकी के कमरों के दरवाज़े बंद थे।

"तोह, तुम आखिर आ है।"

अनिका का झटके से ध्यान उस तरफ हुआ जब उसने अपनी बुआ की आवाज़ सुनी।

"नीलांबरी बुआ?" अनिका को काम रोशनी की वजह से अपनी बुआ दिखाई नहीं पड़ी।

"हां," अनिका को एक बेसब्र आवाज़ सुनाई पड़ी।
"यहां आओ। मेरे पास आओ।"

अनिका ने उस रोशनी में अपनी आंखों को कई बार झपकाया ताकि कुछ ठीक से दिखाई देने लग जाए। उसे धुंधली सी आकृति दिखाई पड़ी एक औरत की जो रॉकिंग चेयर पर पैर पर पैर चढ़ा कर बैठी हुई थी। धीरे धीरे अनिका उस औरत की तरफ बढ़ी और उनके पास जा कर रुक गई।

"नीचे बैठो," उस औरत ने कठोरता से कहा जिससे अनिका की दुविधा और बढ़ गई। अनिका ने उनके रिएक्शन को इग्नोर कर दिया यह सोच कर की उसकी वोह एक सनकी है ना की रूड।

जैसे ही वोह अपने घुटनों के बल बैठी उसने महसूस किया की उस औरत ने उसके चेहरे को अपने दोनो हाथों में भर लिया है। उसने यह भी महसूस किया की उसकी आंटी उसे ही देख रही हैं जिससे वोह इनकंफर्टेबल होने लगी।

"जया!"

"जी मैडम," एक औरत की नम्र सी आवाज़ कहीं से आई।

"परदे हटा दो!" उसकी आंटी की आवाज़ में अब एक्साइटमेंट नज़र आ रहा था।

अनिका को कदमों की आहट महसूस हुई लेकिन दिखाई कुछ साफ साफ नही दे रहा था। फिर उसे पर्दों को खिसकाने की आवाज़ सुनाई पड़ी और उसी के साथ एक रोशनी भी आती दिखाई पड़ी। अनिका पहले अपनी पलके झपकाई क्योंकि इतनी डिम लाइट में अचानक रोशनी बढ़ने से उसकी आंखों को थोड़ा एडजस्ट करना पड़ा। वोह अपना सिर हिलाना चाहती थी लेकिन उसकी ऑंट ने अभी उसका चेहरा अपने हाथों में भर रखा था।

अगले ही पल अनिका ने अपनी आंखे खोली और सामने का नज़ारा देख कर शॉक हो गई। सामने उसी के जैसे चेहरे का व्यक्ति बैठा था।

उसकी आंटी बिलकुल उसी की तरह दिखती थी।

या फिर वोह उनकी तरह दिखती थी। उनकी शक्ले इतनी मिलती थी की कोई साफ कह सकता है दोनो का आपस में कोई रिश्ता है।

उसकी आंटी का चेहरा मुरझाया हुआ था लेकिन वोह अभी भी जवान लगती थी। एक शाही खानदानी की तरह उनके बालों में सफेद बालों की धारियां थी। उन्होंने बहुत भरी सुंदर साड़ी पहनी हुई थी जिसमे गोल्ड और मजेंटा रंग की बुनाई हो रखी थी।

नीलांबरी ज़ोर से मुस्कुरा पड़ी। "अब तो पक्का यह होक ही रहेगा!"

अनिका कन्फ्यूज्ड सी ऐसे ही बैठी थी और इंतजार कर रही थी की उन्होंने जो अभी कहा उसका क्या मतलब।

"जया! बालकनी खोलो और सभी को कहो नीचे इकट्ठा हो जाएं, अभी के अभी।"

"जी मैडम!" उस मेड ने बालकनी का दरवाज़ा खोल दिया और दरवाज़ा खोलते ही बाहर से शोर का हल्ला गुल्ला सुनाई पड़ने लगा।

उसके बाद जया तुरंत कमरे से बाहर चली गई और अनिका को उसके सीढ़ियों से नीचे उतरने की आवाज़ आने लगी।

"यह क्या हो रहा है?" अनिका ने अपनी आंटी से पूछा। "मुझे लगा आपने मुझे दादाजी को देखने बुलाया है क्योंकि उनकी तबीयत बहुत ही खराब है। मैं.... मैं उनसे मिली और वोह मुझे ठीक लग रहे थे।"

"उसकी बुआ नीलांबरी ने अनिका के सवाल को नजरंदाज कर दिया। वोह अभी भी उसके गाल पर हाथ रखे हुए थी। नीलांबरी की आंखे मानो अनिका को ऊपर से नीचे स्कैन कर रही थी और साथ ही उसकी मुस्कुराहट बढ़ती जा रही थी।

तभी शोर आने की आवाज़ कम होने लगी। अनिका सोच ने पड़ गई, वोह भाग कर बालकनी में जाना चाहती थी यह जानने की क्या हो रहा है बाहर। उसे यह अंदेशा भी होने लगा था की यहां कुछ तो गड़बड़ है और उसे यहां से भाग जाना चाहिए।

नीलांबरी ने उसके चेहरे से अपने हाथों को हटा कर उसकी बांह पकड़ ली। उसकी बांह को कस कर पकड़ कर वोह खड़ी हो गई और अनिका को भी उठाया। "आओ, वोह तुम्हारा इंतजार कर रहें हैं।"

"कौन?"

अनिका के सवाल को फिर से अनदेखा कर नीलांबरी उसका हाथ पकड़ कर बालकनी की तरफ बढ़ गई। बालकनी में रेलिंग के पास आ कर उन दोनो ने नीचे देखा, हजारों में भिड़ इक्कठा हो रखी थी।

"तीस साल!" नीलांबरी के आवाज़ तेज़ स्वर में निकली। "तीस साल की मेरी तपस्या अब खतम हुई। आज मैं आपके सामने खड़ी हूं, क्योंकि अब हम अपने श्राप से मुक्ति पाने का रास्ता मिल गया है!"
उसकी बुआ की आवाज़ रौबदार थी। जिससे सारी भीड़ एकदम शांत हो गई और चुपचाप आगे सुनने का इंतजार करने लगी।
"अनिका प्रजापति बहुत जल्द ही अनिका सिंघम बनने वाली है और सिंघम वंश को आगे बढ़ाएगी!"

जैसे ही नीलांबरी ने बोलना बंद किया, सारी भीड़ उत्साह से चिल्लाने लगी।








_____________________
**कहानी अभी जारी है..**