Revenge: A Romance Singham Series - Series 1 Chapter 7 books and stories free download online pdf in Hindi

Revenge: A Romance Singham Series - Series 1 Chapter 7

अनिका को नही पता था की कितनी देर से वोह किसी छोटे बच्चे की तरह बैड पर घुटने मोड़ कर लेटी हुई रो रही थी। उसे झटका तब लगा जब दरवाज़े पर लगातार खटखट की आवाज़ हुई।

"मैडम, सब आपका बाहर इंतजार कर रहें हैं। उन्होंने मुझे कहा है की मैं आपको तैयार होने में मदद करदूं।"

अपने हाथों के पीछे के हिस्से से अपनी आंखो को रब करके उसने अपने आप को और कस लिया।

"मैडम, मु....मुझे कहा गया है की मैं आपको अगर आधे घंटे में वापिस नही लेकर आई तोह, मुझे सज़ा मिलेगी। प.... प्लीज़..... दरवाज़ा खोल दीजिए।" दरवाज़े के उस पार से नौकरानी की थरथराहट भरी आवाज़ सुनाई पड़ी।

अनिका का दिल और जोरों से धड़कने लगा। *इससे ज्यादा और कितना गिरेंगे नीलांबरी बुआ और सबिता मुझे झुकाने के लिए? किसी और के हां या ना के लिए किसी और को कैसे डरा सकते हैं ये लोग?*

अनिच्छा से अनिका बैड से उठी और जा कर दरवाज़ा खोल दिया। वोही नौकरानी जो सुबह खाना लेकर आई थी, वोह बाहर एक बड़ा सा बैग लिए अनिश्चित भाव लिए खड़ी थी।

"मैं..... मैं आपके लिए कपड़े और गहनें लाई हूं, आपको तैयार करने के लिए।"

अनिका ने सिर हिलाया और झटके से साइड हो गई। अनिका बिलकुल भी कपड़े बदलना नही चाहती थी और तैयार होना चाहती थी उस आदमी से मिलने जिससे उसे रत्ती भर भी इंटरेस्ट नहीं है मिलने में और शादी करने में। वोह यही बात चीखते हुए कहना चाहती थी लेकिन वोह नही चाहती थी की उसकी वजह से उस नौकरानी को कोई परेशानी हो, उसे सज़ा मिले या जान से ही मार दिया जाए।

वोह तुरंत उस कमरे से जुड़े बड़े से बाथरूम में घुस गई और अपने आंसू से भरे और सूजे हुए चेहरे पर ठंडा पानी छिड़कने लगी। वोह बाहर आई और उस नौकरानी द्वारा अपने आप को तैयार करने की इजाज़त देदी।

आखिर इतना हैवी रत्नों से जड़ा हुआ लहंगा और उसपर एक क्रॉप ब्लाउज जिसके बैक पर कई सारे बटन्स लगे थे उसे पहनना बिना किसी के हेल्प के तोह सक्षम नहीं था। अनिका उसके बालों का स्टाइल बनाने से और जो ज्वैलरी उसे भेजी गई थी उसे पहनने से मना कर दिया। वैसे भी जब भी वोह किसी चीज़ के लिए मना करती, उस नौकरानी की आंखे डर से बड़ी हो जाती, और फिर मजबूरन अनिका को उसकी बात माननी पड़ती।

"हो गया, मैडम। आप बहुत खूबसूरत लग रहीं हैं। सिंघम्स तोह आपको देख कर और ज्यादा इंप्रेस हो जायेंगे।"

अनिका ने सिर हिला दिया। वोह अपने आपको नही देखना चाहती थी शीशे में।

"हमारे पास और पांच मिनट हैं। सबिता और मैडम समय के बहुत पाबंद हैं। प्लीज़ जल्दी कीजिए!"

अनिका ने अपनी कंफर्टेबल स्लिपर्स पहनी जो की उस आउटफिट के साथ बिलकुल भी सूट नही कर रही थी, पर वोह उस लंबे घेरे दार लहंगे से छुप जा रही थी। अनिका नौकरानी के पीछे चलने लगी।

सबिता पहले से ही नीचे खड़ी थी, वोह भी अनिका जैसे ही कपड़े पहने हुई थी। अनिका तोह दंग ही रह गई अपनी कजिन का बदलता रूप देख कर। उसके सामने जो लड़की खड़ी थी वोह अब बिलकुल भी बेरहम मॉन्स्टर जैसी नही लग रही थी जिसने थोड़ी देर पहले एक आदमी को मार दिया था। सबिता की आंखों ने तुरंत अनिका को ऊपर से नीचे तक स्कैन किया की सच में वोह उनके ऑर्डर्स फॉलो कर रही है।

"चलो। नीला पहले से ही गाड़ी में बैठी है। उसे किसी के लिए भी इंतजार करना नही पसंद था।"

अनिका चुपचाप अपनी कजिन के पीछे चलने लगी। जब वोह बाहर आई तोह उसने देखा मेन दरवाज़े के सामने दो एसयूवी खड़ी थी जो की सिक्योरिटी गार्ड से भरी हुई थी। उन दो एसयूवी के बीच में एक लग्ज़री कार खड़ी थी जिसकी बैक सीट पर नीलांबरी बैठी हुई अधीर हुई जा रही थी।

"चलो जल्दी। मैं नही चाहती की सिंघम्स सोचें की प्रजापति लड़कियां आलसी और ढीली हैं।" नीलांबरी ने कहा।

गाड़ी का दरवाज़ा खुला लेकिन अनिका बैठने के लिए हिचकिचाने लगी। नीलांबरी के हाथ में एक चांदी की थाली थी जिसमे कुछ था और वोह उसे मंदिर ले जा रही थी।

जल्दी बैठी के बोलने बजाय उन्होंने अनिका की तरफ देख कर अपनी मुस्कुराहट बड़ी कर ली और गहरी नजरों से देखते हुए कहा, "तुम बहुत ही शानदार लग रही हो, माय डियर। तुम उस सिंघम को अपने घुटनों पर गिरा सकती हो।"

"आओ," नीलांबरी ने अपने पास खाली जगह पर हाथ रखते हुए कहा। "मेरे पास बैठो।"

नीलांबरी बड़ी मीठी चाशनी की तरह बोल रही थी। यह वोह टोन थी जो कुछ हफ्ते पहले जब वोह उसे फोन पर बात करती थी यहां बुलाने के लिए। पर उनकी तरफ और खींचने की बजाय, अनिका और डर ने लगी और उनसे घीणा लगी।

क्योंकि अनिका के पास कोई और चॉइस नही था इसलिए वोह नीलांबरी के साथ वाली सीट पर सीधे बैठ गई।

सबिता ड्राइवर के बगल वाली सीट पर बैठ गई जबकि पीछे वाली सीट पर काफी जगह थी।

"सिंघम टैंपल ले चलो," नीलांबरी ने अति उत्साह से ड्राइवर से कहा।

सिंघम टेंपल तक जाने का सफर बिलकुल शांत भरा था। "इन तीस सालों में काफी कुछ बदल गया है।" नीलांबरी के कॉमेंट के अलावा कोई बातचीत नहीं हुई।

एक घंटे बाद, खिड़की से बाहर आसपास के नज़रे को यूहीं एक टक देखते रहने के बाद अचानक अनिका को एहसास हुआ की गाड़ी थोड़ी धीमी हो रही है। काफी भीड़ में लोग लड़ाई करते हुए इधर उधर भाग रहे थे।
"यह क्या हो रहा है?" नीलांबरी ने पूछा। "सबिता, जा कर देखो।"

सबिता पहले तो हिली नही फिर वोह गाड़ी से उतर गई। अनिका ने देखा की सबिता के पास एक गन है जो वोह अपने पीछे छुपा रही थी। क्योंकि सबिता ने इस वक्त भारतीय सभीयता के हिसाब से कपड़े पहने हुए थे इसलिए उसने कोई पॉकेट नही थी, तोह उसके लिए गन कैरी करना थोड़ा मुश्किल था। जल्दी ही, सबिता भीड़ में गायब हो गई। जब काफी सारे लोग भाग गए तो अनिका ने देखा की कुछ लोग मंदिर के मुख्य द्वार पर लड़ रहें हैं। जो दृश्य उसके सामने था वोह बहुत की खून खराबा से भरा हुआ था। उसकी नजर सामने के बड़े लंबे चौड़े शख्स पर चली गई जिसकी शकल गाड़ी में बैठे बैठे उसे अच्छे से नही दिख रही थी। वोह किसी को बड़ी फुर्तीली से मार रहा था। सामने वाला आदमी नीचे गिर पड़ा लेकिन वोह लंबा चौड़ा शख्स उसे तब तक मरता रहा जब तक की नीचे गिरे शख्स का खून फूट कर उस के चेहरे पर नही पड़ा। फिर वोह लंबा चौड़ा शख्स दूसरे आदमी की तरफ मुड़ा जो उसी को मारने आ रहा था। उस शख्स ने दूसरे आदमी का चेहरा अपने हाथों में पकड़ा और नीचे पड़े बड़े से पत्थर पर दे मारा। उसने उसका सिर तब तक पटका जब तक खून की नहर न बह गई हो।

अनिका की सांसे और तेज़ चलने लगी इतने भयानक नज़ारे को देख कर।

"यह क्या है?" अनिका को अपनी बुआ की आवाज़ सुनाई पड़ी। लेकिन उसके मुंह से एक शब्द नही निकल रहा था।

"तुम क्या देख र......." नीलाबारी के शब्द गले में ही अटक गए अपने सामने का नज़ारा देख कर।

"विजय....." नीलांबरी के मुंह से यह नाम श्रद्धा भाव से निकला।

अनिका ने देखा की नीलांबरी के चेहरे पर उत्साह, गर्व और सुकून भरे भाव आने लगे।

वोह लंबा चौड़ा शख्स अब किसी और की गर्दन पकड़े हुए था और उसके चेहरे पर मुक्के पर मुक्के बरसा रहा था। वोह तब तक उसे मार ता रहा जब तक की वोह आदमी या तो बेहोश नही हो गया या मर नही गया।

"विजय सिंघम....."
धीरे धीरे नीलांबरी अपनी पलके झपकाने लगी जैसे की किसी और ही दुनिया में थी और अब वापिस आ रही हो।
"नही। विजय नही। ये पक्का उसका बेटा होगा..... विजय सिंघम। तुम्हारा होने वाला पति।"

अनिका श्योर थी की थोड़ी देर में वो पागल ही हो जायेगी।

एक आदमी जो उसे एयरपोर्ट से भी लेने आया था वोह भागता हुआ गाड़ी में बैठ गया, सबिता की जगह। वोह जख्मी था।

"मैडम, हम पर सेनानी ने हमला कर दिया है। उन्हे पता चल गया था की हम सिंघम से मिलने वाले हैं। अभय सिंघम ने कहा है की अभी हम यहां से चले जाएं। उन्होंने हमें यह भी कहा है की वोह कल आयेंगे प्रजापति मैंशन शादी की तैयारियों के लिए।"

तभी एक हल्की सी आवाज़ आई जैसे कोई उनकी गाड़ी और खिड़की से टकरा गया हो।

"उन्होंने हम पर गोली चला दी है! हमे यहां से निकलना चाहिए, मैडम।"

"चलो!" नीलांबरी ने आदेश दिया।

गाड़ी वहां से निकल गई।

"सबिता कहां है?" अनिका ने घबराहट में पूछा। अनिका जानती थी की उसकी कजिन एक खूनी है लेकिन इंसानियत के नाते उसे उसकी परवाह थी। एक डॉक्टर होने के नाते, उसे लोगों की जिंदगी बचाना आता था, ना की बीना वजह किसी की जान ले लेना।

"सबिता दूसरी गाड़ी में वापिस आ जायेगी," नीलांबरी ने कैजुअली टोन में इस तरह से कहा जैसे वोह सबिता को पसंद नही करती हो और उसे धीतकारती हों।

"पर वहां लोगों के पास गन थी। उसे शायद हमारी मदद की जरूरत....."

अनिका की बुआ ने उसकी तरह खुशी से देखा जिससे अनिका की घबराहट और बढ़ने लगी।

"चिंता मत करो। तुम्हारी कजिन को किसी की मदद की जरूरत नहीं है। वोह जिंदा वापिस आएगी।" नीलांबरी की मुस्कुराहट अब हल्की प्रशंसा में बदल गई। "अगर वोह लड़की नीच जाति की नही होती तोह वोह सबसे सही लड़की थी सिंघम वंश को आगे बढ़ाने के लिए। दुर्भाग्य से उसके पिता, यानी मेरा सबसे छोटा भाई ने गंदी बस्ती को चुना। तुम्हारे पिता ने भी कोई बहुत अच्छा काम नही किया था लेकिन कम से कम तुम्हारी मां ऊंची जाति की थी भले ही उसका परिवार हमे पसंद ना हो।"

अनिका को अपनी बुआ की आधी बात तोह समझ ही नही आई। उसका ध्यान बस इस बात पर था की कैसे वोह इस नर्क से बाहर निकले।











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कहानी अभी जारी है..
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