Achhut Kanya - Part 7 books and stories free download online pdf in Hindi

अछूत कन्या - भाग ७  

सागर और नर्मदा बातों में लगे हुए थे तभी गंगा खेलते-खेलते रोड पर आ गई। दूसरी तरफ़ से एक कार आ रही थी। उस कार में बैठे इंसान ने बहुत ज़ोर से ब्रेक लगाया। ब्रेक की आवाज़ और गाड़ी के अचानक रुकने की आवाज़ से नर्मदा और सागर चौंक गए। रोड पर देखा तो गंगा से कुछ ही दूरी पर कार रुक गई थी और गंगा डरी हुई वैसे ही वहाँ खड़ी थी।

सागर ने दौड़ कर गंगा को गोद में उठाया और नर्मदा दौड़ कर कार वाले के पास पहुँच गई। अब तक कार में से एक महिला और उसका पति बाहर निकल आए। उन्हें लग रहा था अब ये औरत झगड़ा करेगी शायद पैसे भी मांगेगी लेकिन हुआ एकदम उल्टा।

नर्मदा ने उनके सामने जाकर हाथ जोड़ते हुए कहा, “माफ़ कर दीजिए मैडम जी, गलती हमारी ही थी। हम ही बातों में लगे अपनी बिटिया की तरफ़ ध्यान ना दे पाए।” 

उसकी बात सुनकर कार वाली महिला जिसका नाम अरुणा था वह दंग रह गई। उसने कहा, “आपकी बेटी डर गई है। उसे चोट नहीं आई लेकिन वह डर के कारण रो रही है। आप उसे संभालिए।”

अरुणा ने अपनी कार से एक चॉकलेट निकालकर गंगा को देते हुए कहा, “बेटा तुम ठीक तो हो ना?”

चॉकलेट लेकर गंगा ने आँसू पोंछते हुए कहा, “हाँ आंटी मैं ठीक हूँ बस थोड़ा डर गई थी। अगर आप ब्रेक नहीं लगाते तो मैं मर जाती।”

नर्मदा ने कहा, “गंगा ऐसा नहीं कहते बेटा।”

अरुणा ने नर्मदा की तरफ़ देखते हुए कहा, “मैं तो यहाँ किसी काम वाली बाई को ढूँढने आई थी। कोई है क्या तुम्हारी पहचान में?”

यह वाक्य नर्मदा के कानों में एक सुरीली ध्वनि छोड़ गया। उसने कहा, “है ना मैडम जी, मैं ख़ुद हूँ। मैं पिछले एक महीने से काम ढूँढ रही हूँ पर मिला ही नहीं क्योंकि सबके घर पर पहले से ही काम वाली बाई आती है। मैडम जी आपके घर भी…”

“मेरे घर भी काम वाली थी किंतु उनका परिवार एक हफ्ते पहले ही शहर छोड़कर गाँव वापस चला गया। अब वह लौट कर नहीं आएंगे। इसीलिए मुझे काम वाली बाई की ज़रूरत है।” 

“मैडम मैं करूंगी आपके घर काम। आप जो भी बोलेंगी, सब करके दूंगी। पैसे भी आप जितने देंगी उतने में ही करूंगी। मैडम हम अभी एक माह पहले ही गाँव छोड़कर शहर आए हैं। आप मुझे काम देंगी ना?”

“तुम्हारा नाम क्या है, पहले तो ये बताओ? 

“जी मेरा नाम नर्मदा है और मैडम मेरे पति मोची का काम करते हैं। हम छोटी जाति के लोग हैं मैडम जी। आपको कोई एतराज तो नहीं?”

“नर्मदा जात पात में हम नहीं मानते। बस साफ-सुथरी, अच्छे स्वभाव की काम वाली बाई चाहिए थी जो किट-किट ना करे। हमारे घर तो तुम्हें खाना भी पकाना पड़ेगा और मेरी सासू माँ की देखरेख भी करनी पड़ेगी।”

“मुझे मंजूर है मैडम जी।”

“लेकिन नर्मदा मुझे तो ऐसा परिवार चाहिए जो हमारे बगीचे वाले कमरे में ही रहे। क्या तुम…?”

“हाँ-हाँ मैडम यह तो और भी अच्छी बात है।” 

“तुम्हारे पति माली का काम जानते हैं? मेरे बगीचे की देखरेख कर पाएंगे?”

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात) 

स्वरचित और मौलिक  

क्रमशः