Tadap Ishq ki - 24 books and stories free download online pdf in Hindi

तड़प इश्क की - 24

अब आगे...........

एकांक्षी अपने बालों को छुती हुई साइड में लगे पीले फूल को निकालकर उसे देखते हुए कहती हैं..." ये बड़ा अजीब फूल है , , ये तो हमारे आस पास है ही नहीं..." तान्या तुरंत उसके हाथ से फूल लेकर कहती हैं ...." एकांक्षी आई थिंक तुम्हें लेट हो जाएगा , क्यूं आंटी..."

तान्या की बात पर सहमति जताते हुए सावित्री जी कहती हैं..." बिल्कुल तान्या , तू ठीक कह रही है , मिकू ये फूल वूल यही छोड़ और चल जल्दी...."

सावित्री जी के कहने पर एकांक्षी तान्या के साथ चली जाती हैं और सावित्री जी लाॅक लगाकर कार के पास चली जाती हैं , तो तान्या एकांक्षी को बाय कहकर वहां से चली जाती हैं और एकांक्षी वापस जाकर सावित्री जी के साथ बैंक सीट पर बैठ जाती है....

एकांक्षी कार में बैठे बैठे उसी फूल और कुछ देर पहले हुई घटना को सोच रही थी...." ये पीला फूल मेरे बालों में कैसे आया , पता नहीं क्यूं मुझे ऐसा लग रहा है जैसे कि मैंने इस फूल को पहले भी कहीं देखा है लेकिन कहां...?.."

इधर एकांक्षी अपने ही विचारों में खोई हुई थी तो दूसरी तरफ तान्या उस फूल को देखते हुए अपने आप से कहती हैं..." ये फूल अचानक एकांक्षी के बालों में कैसे आ गया , , ये फूल तो पक्षिलोक के बाग का है , ये अचानक नहीं आ सकता , लेकिन मैं जब एकांक्षी के रुम से बाहर आई तब तो वहां कोई नहीं था , ओह गॉड ये अधिराज कब आया , कब चला , पता नहीं चला , और एकांक्षी भी ठीक से कुछ बताने के लिए तैयार नहीं , कहीं इस फूल को एकांक्षी पहचान न जाए..."

इतना कहकर तान्या तुरंत कार को साइड में रोक लेती है लेकिन वो कार में बैठे बैठे ही अपनी आंखें बंद करके अपने आप से कहती हैं....."शिवि सामने आओ..."

उसके इतना कहते ही एक छोटी सी तितली जैसे लड़की उसके सामने आती हुई कहती हैं...." क्या आज्ञा है महारानी जी...!..."

तान्या उसे देखकर कहती हैं...." शिवि , जाओ पता लगाओ ये अधिराज कहां है और कब ये एकांक्षी के पास आता जाता है , उसके हर पल की खबर मुझे चाहिए..."

" जी महारानी जी..." शिवि इतना कहकर वहां से चली जाती हैं और तान्या वापस कार ड्राइव करते हुए सीधा घर की तरफ चली जाती हैं.....

और उधर अधिराज एकांक्षी से मिलने उसके अंदर एक अजीब सी बैचेनी होने लगती है जिससे वो तुरंत पक्षिलोक चला जाता है.....अधिराज लड़खड़ाते हुए अपने उस वूडन हाऊस में पहुंचता है , जिसे देखकर राजमाता रत्नावली बहुत घबरा जाती है ,

" अधिराज , क्या हुआ आपको..?..... सिपाही..."

रत्नावली के कहने पर चार सैनिक अंदर आते हुए कहते हैं..." जी राजमाता..."

रत्नावली गुस्से में कहती हैं ..." तुम्हें दिखाई नहीं देता , पक्षीराज घायल हैं उन्हें तुरंत अपने कक्ष में ले जाओ और शशांक से कहो राजवैद्य को बुलाएं..."

रत्नावली की बात को काटते हुए अधिराज कहता है...." मां , हमें वैद्य की आवश्यकता नहीं है , हम अपना उपचार स्वयं कर लेंगे बस आप शशांक को हमारे कक्ष में भेजो..."

रत्नावली सटीक लहजे में कहती हैं..." बिल्कुल नहीं , हम आपकी अब नहीं सुनेंगे , राजवैद्य को भेजो...."

" जी राजमाता..." सिपाही इतना कहकर अधिराज को उसके कमरे तक ले जाकर उसे बेड पर लेटा कर वहां से चले जाते हैं,,,

उधर एकांक्षी ब्राइडल मानवी के पास पहुंच गई थी , जिसे देखकर मानवी खुशी से उसे गले लगा लेती है....

कुछ देर बात करके एकांक्षी वापस बाहर चली जाती हैं जहां सभी दुल्हे का स्वागत कर रहे थे , वो चुपचाप साइड में खड़ी उसे देख रही थी तभी उसे अचानक घबराहट होने लगी , जिससे एकांक्षी की हार्ट बीट बहुत तेज हो गई थी , एसी आॅन होने पर भी उसके माथे पर पसीने की बूंदें छलक उठती है

एकांक्षी जल्दी जाकर सोफे पर बैठ जाती है ,

" ये मुझे अचानक क्या हो रहा है , और इतना हेडएक क्यूं हो रहा है , ..."

राघव जोकि वहीं फोन पर बात कर रहा था , एकांक्षी को घबराई हुई सी देख काॅल कट करके उसके पास आकर, उसे सोल्डर से पकड़कर कहता है..." मिकू क्या हुआ..?..तू ठीक है न..."

एकांक्षी दबी हुई आवाज में कहती हैं..." भाई , पता नहीं लेकिन मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा है , बहुत हेडएक हो रहा है , अचानक पता नहीं तबीयत ठीक नहीं लग रही है..."

" मिकू ...घर चल फिर...."

एकांक्षी मासुमियत से कहती हैं...." लेकिन भाई , मां परेशान हो जाएंगी , आप रहने दो शादी होने के बाद हम चलेंगे..."

राघव चिंता भरे शब्दों में कहता है...." मिंटू , लेकिन तू ठीक नहीं लग रही , और फिर मेरा मन भी तुझे ऐसे देखकर अच्छा नहीं लगेगा , इसलिए घर चल..."

" भैय्या आप समझ नहीं रहे हो , मां परेशान हो जाएंगी , मैं यही बैठी हूं , जब मुझे ठीक लगेगा मैं आपको ज्वाइन कर लूंगी..."

" ठीक है , लेकिन मैं तेरे आसपास ही रहूंगा , कोई प्रोब्लम हो तुरंत मुझे बताना , ओके..."

एकांक्षी मुस्कुराते हुए सिर्फ हम्म कह देती है, ,

उधर अधिराज अपने बेड पर लेटे इधर से उधर करवटें बदल रहा था ,‌‌ , उसके शरीर में हो रही आग जैसी बैचेनी उसे चैन से लेटने नहीं दे रही थी , ,

थोड़ी ही देर में शशांक राजवैद्य को लेकर अधिराज के कमरे में पहुंचता है , राजमाता रत्नावली भी अधिराज के पास पहुंच जाती है , ....

अधिराज को सबकुछ धुंधला सा नजर आ रहा था इसलिए आंखों पर जोर देते हुए देखने की कोशिश करता हुआ कहता है...." शशांक तुम हो..." इतना कहते ही अधिराज बेहोश हो जाता है

शशांक अधिराज की हालत देखकर चिंता में पड़ जाता है इसलिए इशारे से राजवैद्य को अधिराज की नब्ज देखने के लिए कहता है.....

राजवैद्य तुरंत अधिराज के हाथ को पकड़कर उसकी नब्ज देखते हुए कहते हैं ....." इनकी हृदय गति बहुत तेज हो गई है , और ताप भी काफी बढ़ चुका है , क्या पक्षीराज किसी अग्नि मार्ग से बाहर आए हैं..." राजवैद्य की बात सुनकर दोनों हैरानी से एक दूसरे को देखते हुए कहते हैं...." नहीं राजवैद्य , ये तो इंसानी दुनिया से आए हैं , आप ऐसा क्यूं कह रहे हैं..."

राजवैद्य अधिराज के हाथों को दिखाते हुए कहते हैं..." राजमाता , ये देखिए पक्षीराज के हाथों पर अग्नि जलन के निशान हैं.."

रत्नावली अधिराज के निशानों को देखकर हैरान रह जाती है...

उधर एकांक्षी की बैचेनी बढ़ने लगती है , उसकी तबीयत बिगड़ी शुरू हो जाती है....




............to be continued........




अचानक अधिराज और एकांक्षी की तबीयत क्यूं बिगड़ी...?

क्या ये सब पीले फूल की वजह से हो रहा है...?

जानने के लिए जुड़े रहिए......