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भ्रम - भाग 3

तीसरा भाग "भ्रम"
सेजू उस मूर्ति की ओर बढ़ी तभी उसका पैर किसी चीज में फसा, वह सामने की ओर गिरने लगी, सामने इक दीवार थी। जिसपर सेजू ने अपना हाथ जमा लिया और वह गिरते गिरते बची। सेजू ने संभलते हुए अपने पैर में फ़सी किसी चूनर को निकाला और दूसरा हाथ दीवार पर लगे इक शीशे पर रख दिया। अब सेजू बुरी तरह लड़खड़ा कर गिरी। जब सेजू ने सिर उठा कर देखा तो वह किसी और ही दुनिया में थी। सेजू इक बार फिर आश्चर्यचकित रह गयी। उसने अपने को घास पर गिरा पाया। उसके चारों और बड़े बड़े पेड़ खड़े थे। चारों तरफ हरियाली ही हरियाली थी। उसकी आँखों को विश्वास नही हो रहा था कि वह अभी हकीकत की दुनिया में है या किसी सपने में। सेजू के सामने पेड़ो के बीच इक सकरी सी गली थी। सेजू उठ कर उसी घास पर बैठ गयी। कुछ देर तक वह अपना माथा पकड़े बैठी रही। और अपनी आँखें बंद करके खुदको शान्त करने की कोशिश में जुट गई।
पक्षियों की आवाजें और पेड़ो के झूमने का शोर वातावरण में घुला हुआ था। मिट्टी की सुगंध जंगल में महक रही थी। सूरज की किरणें वृक्षो से छन कर जंगल की जमीन पर उतर रहीं थीं। तभी सेजू के कानों को इक और चौका देने वाली आवाज सुनाई दी। लग रहा था जैसे कोई जानवर बहुत तेज गति से सेजू की ओर दौड़कर आ रहा है। उस आवाज ने सेजू की शांति भंग कर दी। सेजू ने अपने दोनों हाथों को जमीन पर टिकाया और सामने के रास्ते को घबराई आंखों से देखने लगी। सेजू के कान लगातार उस आवाज को अपने करीब, और करीब आता महसूस कर रहे थे। सेजू ने यकायक पीछे सिर घुमा कर देखा और तब आवाज जैसे गायब हो गई। सेजू की जान में जान आयी। सेजू ने अपना सिर फिर सामने की ओर घुमाया तो सेजू की आँखे फटी की फटी रह गई।
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"हमें कॉलेज ट्रिप पर जाना है। पता है न तुझे?" पीकू ने समर से चाय की चुस्कियां लेते हुए पूछा।
"सेजू से बात हुई तेरी?" समर ने पीकू को बिना देखे पूछा।
"नहीं! लेकिन यार तूँ उसके लिए इतना परेशान क्यों है? तूँ जानता है ना उसे अच्छे से उसका जब मन करेगा तभी वह हम सबसे मिलेगी।" पीकू ने समर से कहा।

"चल यार कल उसके घर चलते हैं। उसकी नानी जी से भी उस दिन नही मिल पाए थे, तो उनसे भी मिलना हो जायेगा और हम ट्रिप के लिए उसे भी मना लेंगे।" समर ने पीकू की ओर देख कर कहा।
"क्या यार! लगता है पगला गया है तूँ! ठीक है! मैं देव और देवीना से भी बात करूंगा। उन्हें भी सेजू से मिलना होगा तो मिल लेंगे।" समर ने चाय का कप कैंटीन टेबिल पर रखते हुए कहा।
"ठीक है! पूछ लें! लेकिन अगर वो नही गये तो हम दोनों तो जायेंगे ही।" समर चेयर से उठते हुए कहता है।
यहां पीकू बस समर की तरफ देखता रखा।

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"खाना खा ले भाई फिर अपनी ये जासूसी किताबें पढ़ते रहना।" पीकू बेड पर लेटते हुए किसी किताब में खोया हुआ देव से कहता है।
"हम्म" देव किताब में ही खोया हुआ कहता है।
"पीकू! ये तेरा फोन! किसी की कॉल थी शायद देख ले।" पीकू की मां पीकू को मोबाईल देते हुए कहती है।
"ओह! सॉरी माँ! मैं फोन लेना भूल ही गया था।" पीकू फोन लेने के बाद कहता है।
पीकू की मां कमरे का दरबाजा बंद करके कमरे से बाहर चलीं जातीं हैं।
"ओह्ह..ये तो समर की मिस्डकॉल है।"
"अरे! भाई देव...सुन ना! कल सेजू के घर चलेगा क्या?" पीकू देव से पूछता है।
सेजू का नाम सुनते ही देव के सिर से तुरंत किताब का बुखार उतर गया और वह पीकू की बात सुनने के लिए तैयार हो गया। कुछ देर खामोश रहने के बाद देव ने बनावटी लहजे में समर से पूछा..."क्यों? कुछ खास है क्या उसके यहां?"
"अरे! यार..क्या बताऊँ ये समर बावरा हुआ जा रहा है। उसे पता नही इतनी चिंता क्यों हो रही है सेजू की। उसी की वजह से जाना पड़ रहा है। वरना मैं तो बिल्कुल न जाऊँ। उसदिन देखा नही तूने उसकी नानी जी कैसे घूर रहीं थीं। जैसे हम सब उनके दुश्मन हों।" पीकू देव से कहता है।
"शायद समर को उसकी नानी जी की वजह से ही सेजू की चिंता हो रही हो। क्योकि वह उस दिन कुछ बताने भी वाली थी अपनी नानी के बारे में। और किसी कमरे का भी जिक्र किया था उसने।" देव ने किताब को मेज पर रखते हुए कहा।
"वो सब जो भी हो। तूँ यह बता कल चलेगा क्या?" पीकू ने देव से पूछा।
"हां! जानना तो मुझे भी है।" देव ने कुछ सोचते हुए कहा।
"ओ भाई! हम वहां कोई जासूसी करने नही जा रहे है। सब सेजल से मिलने जा रहे है और हमे कॉलेज की ट्रिप पर भी जाना है तो उसे मनाना भी है साथ चलने के लिए।" पीकू ने लैंप बुझाते हुए कहा।
"अरे! भाई ये अंधेरा क्यों कर रहा है?" देव ने यह कहते हुए लैम्प फिर जला दिया। "मनाना क्यों है? उसे तो बहुत पसन्द होगा मेरे ख्याल से ट्रिप पर जाना।" देव ने फिर कहा।
"इक बार उसके साथ कोई हादसा हो गया था। तबसे वह नही गई ट्रिप पर।" पीकू ने चादर से अपना मुंह ढकते हुए कहा।
"क्या? हादसा? कैसा हादसा?" देव के चेहरे पर जिज्ञासा के भाव फूट पड़े।
"यार! मेरे भाई! तू अब सो जा प्लीज! मुझे बहुत नींद आ रही है। फिर कभी ये सवालों का पिटारा खोलना।" पीकू ने चादर से मुँह निकालकर देव के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा।

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"अरे! तुम लोग अकेले ही आये हो? देवीना नही आयीं।" सेजू की मां ने समर, देव और पीकू को देखकर पूछा।
"नही माँ! आज वह फ्री नही थीं।" पीकू ने सेजू की मां सपना के सवाल का जवाब दिया।
"अच्छा! ठीक है! बैठो तुम लोग मैं आती हूँ पानी लेकर।" सपना ने कहा।
"अरे! नही माँ! आप परेशान मत होइये। आप तो बस सेजू को बुला दीजिये हमे उससे मिलना है।" समर ने सेजू की माँ को रोकते हुए कहा।
"ठीक है! मैं बुलाती हूँ उसको भी और पानी भी लेकर आती हूँ और हां ये परेशानी-बरेशानी की बातें मुझसे मत कहा करो, समझें!" सपना ने समर को डाँटते हुए कहा।

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सेजू के पसीने छूटने लगे थे। उसकी आँखों को विश्वास नही हो रहा था कि वह अपने सामने क्या देख रही है।
"तुम कोई जंगल से बाहर की लड़की लगती हो। लेकिन इस जंगल के इतने अंदर आने की तो आज तक किसी की हिम्मत नहीं हुई। तुम्हारे जैसी फूल सी कोमल स्त्री कैसे? यह बहुत ही अचरज की बात है।" वनरक्षक 'सुभासा' अपने सामने खड़ी पूर्णरूप से भयभीत लड़की सेजू से कहता है।
सुभासा का शरीर बिल्कुल कोयले की तरह काला था। लग रहा था जैसे सचमुच किसी ने उसको काले रंग से पोत दिया है। वह बहुत ताकतवर था। उसका शरीर बहुत मजबूत दिख रहा था। उसकी देह पर बिल्कुल अजीब तरह के वस्त्र थे। उसके सिर पर इक भी बाल नहीं था। उसके दोनों गालों पर लाल रंग की मोटी-मोटी रेखाएं बनी थीं। पैरों में अजीब तरह के जूते थे। और उसके हाथ में इक बहुत मोटी लकड़ी की तलवार थी। सुभासा सफेद रंग के घोड़े पर सवार था। उसका घोड़ा भी आम घोड़ो से कुछ अलग था।
"मुझे कुछ समझ नही आ रहा ये मेरे साथ क्या हो रहा है? मुझे नही पता मैं यहां कैसे आ गई हूं। क्या आप मेरी मदद कर सकते है?" सेजू ने हिम्मत बांधते हुए सुभासा से पूछा।
"ओह.. मदद? हमारे यहां के नियम जानती हो?" सुभासा ने व्यंगात्मक तरीके से कहा। और एक रहस्यमयी मुस्कान उसके चेहरे पर दिखी।
"नियम? कैसे नियम??" सेजू ने घबराते हुए पूछा।
"हमारे गांव तक आओ पहले फिर तुम्हे सारे नियम-कानून रास्ते में ही समझ आते जायेंगे।" सुभासा ने उसी रहस्यमयी मुस्कान के साथ सेजू की ओर घूरते हुए कहा।
सेजू ने पलक झपकाई ही थी कि उसके सामने से सुभासा ओझल हो चुका था। सेजू इस जादुई दुनिया में बेहद अकेली हो गई थी। सूरज ढलने को था। सेजू ने शाम होते देखी तो उसका डर और बढ़ने लगा। अब उसे समझ नही आ रहा था वह क्या करे। तभी उसे सुभासा की कही बात याद आई। सेजू ने फैसला कर लिया, की अब वह आगे बढ़ेगी। क्योंकि रुकने से कुछ हासिल नही होने वाला था। अब चाहे वह कहीं पहुँचे मगर उसे ठहर जाना मंजूर नही था।
सेजू आगे बढ़ने लगी। जगह जगह बड़े-बड़े पत्थर और निकीली लकड़ियां पड़ी थीं जिनमें कांटे भी थे। सेजू अब बहुत आगे पहुच चुकी थी, शाम रात में बदलने ही वाली थी। सेजू अपने पैरों को बचाते हुए..तीव्र गति से आगे बढ़ रही थी..कहीं कहीं बड़ी बड़ी चट्टानें भी जो सेजू के संघर्ष को बढ़ा रही थी। सेजू अब और नही चल सकती थी, उसे अब आराम की जरूरत थी। वह किसी बड़े से पत्थर पर बैठ गई उसके पास एक बड़ा सा सूखा हुआ पत्ता आकर गिरा। सेजू ने उसे उठाया..और देखा तो उसमें कुछ लिखा हुआ था।
"तुम यहां से वापस नही जा सकतीं।"
सेजू ने पत्ते को पढ़ कर उसे तुरंत छोड़ दिया और वह बुरी तरह डर गई।
सेजू से अब यह सब बर्दाश्त नही हो रहा था। वह जोर-जोर से रोने लगी। उसकी आवाज सुन कर कोई बुढ़िया उसके पास आई।
"क्यों रोती है?" बुढ़िया सेजू के कंधे पर हाथ रखकर बोली।
सेजू फिर एक बार सिहर उठी। "अब यह कौन है? इसकी शक्ल कैसी होगी। यह कौनसी नई बात कहेगी। मैं मुड़ कर नही देखूँगी।" सेजू अपने ही मन मे सोचती रही।
"क्यों रोती है?"
सेजू ने फिर वही आवाज सुनी। सेजू ने अपनी आँखें खोल ली और बहुत देर तक कुछ सोचने के बाद अपना सिर घुमाया।
सेजू अब तो पूरी तरह पागल होने वाली थी। उसकी पलके झपकने का नाम नहीं लें रहीं थीं।
"आ..आ...आ..आप.." सेजू ने हकलाते हुए कहा।
"कौन है तूँ? यहां कैसे आई? यहां तो कोई नही आ पाता है।" बुढ़िया ने सेजू को घूरते हुए और अजीब मुस्कान के साथ पूछा।
"आ..आपने ही मुझे फसाया है न? आपने ही मेरी यह हालत कर दी है। मैंने देखा था आपको उस दिन अपने रूम की खिड़की से कोई अजीब हरकत करते हुए।" सेजू सुबकते हुए कहती गई।
"लगता है तुझे कोई भ्रम हुआ है बच्ची..हे हे हे" बुढ़िया पुनः सेजू को घूरती हुई बहुत रहस्यमयी हँसी हँसते हुए कहती है।"

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"माँ! सेजू नहीं आयी?" समर सपना को अकेला आते हुए देखकर कहता है?
"चुप बैठ न भाई! अब घर पर ही तो हैं हम उसके। आ ही जायेगी न!" पीकू सिमर को धीरे से डांटते हुए कहता है।
पानी का गिलास उठाते हुए देव सपना से कहता है.."माँ! नानी जी चली गई क्या? उनसे उस दिन मिल नही पाये थे हम।"
"तुम्हारी नानी जी और तुम्हारी दोस्त..दोनों सबसे लास्ट वाले कमरे में कुछ कर रहीं हैं। जाओ वहीं जा कर मिल लो। वैसे उस कमरे में बहुत कुछ देखने लायक है। मैंने भी आज-तक नही देखा है पूरा। वहां पर नानी जी का कई साल पुराना सामान रखा हुआ है, उन्होंने उसे बिना उनकी इजाजत के खोलने या देखने से मना किया था। तो..लेकिन आज वो सेजू को दिखा रहीं हैं जाओ शायद तुम लोगो को भी दिखा दें।" सपना पानी देते हुए कहती है।
यहां देव के मन मे लड्डू फूटने लगे थे। "आखिर आज देख ही लूँ की उस कमरे में था क्या?" देव सोचते हुए सोफे से उठा।
समर और पीकू भी खड़े हो गए थे।
"मगर सुनो संभल कर.." सपना ने तीनों को टोकते हुए एक व्यंग्यात्मक मुस्कान के साथ कहा।
देव सपना की मुस्कान देखकर चौका। समर और पीकू भी किसी सोच में पड़ गए।
हॉल से कुछ दूर आकर पीकू ने समर और देव से पूछा.."यार भाई! मां ने ऐसा क्यों कहा कि संभल कर? यहां कौनसा हम कोई पहाड़ चढ़ने जा रहे है जो संभलना पड़ेगा"
"और उनकी मुस्कान...तुम लोगो को अजीब नही लगी?" समर ने कहा।
देव बस सोचता रहा।
"यार बाहर से तो यह घर इतना बड़ा नही लगता ये अंदर से तो काफी बड़ा है यार!" पीकू ने चलते हुए कहा।
"अरे! ये देख ये सब कैसी पिक्चर्स हैं..कुछ जानी-पहचानी सी नहीं लग रहीं तुझे? समर!" पीकू इक कमरे के सामने खड़ा होकर उसकी दीवारों को देखता हुआ कहता है।
"हाँ! यार सही कह रहा है तूँ। यह तो उस हादसे.." समर दीवार को देखता हुआ कहता है और बीच मे ही रुक जाता है।
"हादसा? कौन सा हादसा?" देव ने समर की तरफ देखते हुए पूछा।
तभी किसी के हँसने की आवाज आई। बहुत तेज हँसी थी। समर, पीकू और देव उस हँसी की आवाज की तरफ खिंच गये। तीनों अब आगे बढ़ने लगे थे। वह उसी दरवाजे के सामने रुके जहां से सेजू ने भय का सफर शुरू किया था। उस कमरे के बाद कोई कमरा नहीं था। वही बहुत बड़ा दरवाजा।
"ये दरवाजा तो बिल्कुल राजा-महाराजा के टाइम का लग रहा।" समर ने दरवाजे को देखते हुए कहा।
"और कितना मजबूत है और बंद भी..इसके अंदर से तो किसी की आवाज बाहर ही नही आ सकती।" देव ने कहा।
"फिर वह हँसी की आवाज किसकी थी।" पीकू ने देव का चेहरा देखकर पूछा।
"तुम लोगो को सब पता है आवाज आ सकती है बाहर या नही। चलो चुपचाप दरवाजा खोलों।" समर दरवाजे के पास बढ़ते हुए बोला।
"चुपकर! दूर रह उससे समर! मैं खोलता हूँ।" देव आगे बढ़कर बोला और दरवाजे को अपने हाथ की पूरी ताकत से धकेल दिया।
सामने घना अंधेरा था। कुछ भी दिखाई नही दे रहा था। लाइट फिर जलने बुझने लगी और पर्दे उड़ने लगे। हवाएँ खिड़कियों से अंदर पागलों की तरह दौड़ी आ रही थी। यह सब देख कर समर, देव और पीकू के होश उड़ने लगे। उन्हें यह सब बिल्कुल किसी फिल्मी दुनिया जैसा लग रहा था। अचानक से सब कुछ बंद हो गया और दरवाजे के उस पार रोशनी दिखने लगी। वहां से किसी के बातें करने की आवाजें भी आ रहीं थी। देव, समर और पीकू चौक कर इक दूसरे के चेहरे देखने लगे। उन्हें कुछ समझ नही आया कि अभी तो यहां हुआ वह क्या था।
तीनो ने अपने को संभाला और दरवाजे के अंदर जाने लगे। तीनो ने दहलीज लांघ ली थी। समर, देव और पीकू के सामने इक औरत हाथ मे कोई किताब पकड़े हुए किसी लड़की को कुछ समझा रही थी। उस औरत और उस लड़की की पीठ ही समर, देव और पीकू देख पा रहे थे।

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सेजू इस वक़्त इक गुफा में थी। गुफा के अंदर बहुत सारी कांच की शीशियां कई अलग अलग रंगों के द्रव्यों से भरी हुई रखीं थीं। इक पत्थर पर जड़ी-बूटियां थी, जिनको बहुत सहेजकर रखा गया था।

"आप मुझे यहां क्यों लेकर आयी हो?" सेजू ने बुढ़िया से पूछा।

"क्योंकि तुम बहुत थक चुकी हो। कुछ देर मेरे पास आराम कर लो। फिर तो तुम्हे अकेले ही सारे राज पता करने हैं।"
"राज? कैसे राज? आप मुझे अब और नही परेशान कर सकती। आप मुझे बताइये की आप मुझसे चाहतीं क्या हैं?" सेजू तेज आवाज में चिल्लाकर पूछती है।
"शांत हो जाओ। तुम अभी कुछ नही बिगाड़ सकतीं मेरा। अभी मैं ही तुम्हारी सबसे बड़ी शुभचिंतक हूँ। याद रखो।" बुढ़िया गुफा के इक कोने में जलाई गई लकड़ियों में और लकड़ियां डालती हुई कहती है।
"तुम्हे कहानियां पढ़ने का शौक है ना! मेरे बच्चे!
कहानीकार बनना चाहती हो न तुम? तो देखो तुम कितनी कहानियों को अपने इस रहस्यमयी सफर में गढ़ती हो। कितनी कहानियों को सार्थक करती हो, कितनी कहानियों को अधूरा और बिलखता छोड़ देती हो।" बुढ़िया ने सेजू की आंखों में आँखे डालकर कहा।
सेजू के दिल की धड़कने बढी हुई थी। उसकी जुबान से कोई शब्द नही निकले। वह अपनी डर भरी आंखों से बुढ़िया की आंखों में देखती रही।
कुछ देर बाद सेजू के सामने इक कांच का कटोरे जैसा बर्तन पेश किया गया जिसमें लाल रंग का द्रव पदार्थ था।
"लो इसे पी लो और थोड़ा आराम कर लो।" बुढ़िया ने अपनी लाठी (जिसके सहारे वह चलती थी।) को गुफा से टिकाकर रखते हुए सेजू के सामने वह कांच का कटोरा पेश कर कहा।

"पहले आप यह बताइये। आप है कौन?" सेजू ने बुढ़िया को घूरते हुए पूछा।
"मैं तुम्हारी नानी जैसी दिखती हूँ। हैं न?" बुढ़िया ने हँसते हुए कहा।
"नही आप मेरी नानी जी ही हो।" सेजू ने कहा।
"उससे तुझे क्या? मैं कौन हूँ कौन नहीं। जानकर भी कुछ नही कर पायेगी नादान लड़की।" बुढ़िया ने कांच का कटोरा सेजू के बगल से रखते हुए कहा।
"इसमें क्या है?" सेजू ने कटोरे के तरफ इशारा करते हुए पूछा।
"खून।" बुढ़िया ने बड़े गंभीर स्वर में कहा।
"क्या?" सेजू ने चौकते हुए पूछा।
बुढ़िया जोरो से हँस पड़ी।
"अरे! पी कर पता कर ले। न!" बुढ़िया ने हँसते हुए ही कहा।
तभी वहां इक आहट हुई..जैसे कोई गुफा के बाहर चहलकदमी कर रहा हो।
सेजू ने जैसे ही आहट सुनी उसकी सांसे रुकने लगी।
"बाहर कौन है?" सेजू ने घबराते हुए बुढ़िया से पूछा।
"तेरी माँ!" बुढ़िया यह कह कर और भी जोर से हँसने लगी।
"कितनी अजीब औरत हो आप।" सेजू ने बुढ़िया से कहा।
"अच्छा!
तो जा! जाकर देख ले कौन है बाहर।" बुढ़िया ने गंभीर होकर कहा और फिर जोर जोर से हँसने लगी।
सेजू ने उस कटोरे को उठाया और गौर से देखा। उसने पहचान लिया था कि उसमे खून नही है। सेजू अपनी भूख से अब और नही लड़ पा रही थी, इसलिए उसने वह द्रव पी लिया था। उस द्रव को पीते ही सेजू की आंख लग गयी थी।

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"सेजू" देव ने कमरे की शांति भंग करते हुए कहा।
"हां! देव, समर, पीकू..तुम लोग यहां क्या कर रहे हो।"
"सेजू! हम तुमसे मिलने आये थे। तुम बहुत दिनों से कॉलेज नही आ रही न इसलिए। और हां कुछ बात भी करनी है तुमसे।" समर ने सेजू को देखकर कहा।
"प्रणाम! नानीजी" देव ने कमलावती की ओर देख कर हाथ जोड़ते हुए कहा।
"हूँ..खुश रहो!" कमलावती ने अपनी किताब को बंद करते हुए कहा।
"नानी जी! सेजू की मां कह रहीं थी कि आप सेजू को कुछ दिखा रही हैं यहां। हमे भी देखना है। ऐसा क्या है आपके इस कमरे में।" देव ने कमरे के चारो और निगाहे घुमाते हुए कहा।
"फिर कभी! अभी मुझे कुछ काम है चलो तुम लोग बाहर। मुझे कमरे को बंद करना है।" कमलावती ने किताब को इक मेज पर रखते हुए कहा।
सभी लोग कमरे से बाहर आ जाते है।
"सेजू! हम सब कॉलेज ट्रिप पर जा रहे है। तुम भी चलोगी तो मजा आएगा।" पीकू ने सेजू से कहा।
सभी लोग हॉल की ओर बढ़ रहे थे। कमलावती उन सबसे आगे जल्दी जल्दी चल रही थी।
"हां! क्यों नहीं। मैं चलूँगी ना!" सेजू ने कहा।
पीकू और समर सेजू की बात सुन कर बहुत खुश हो गए थे।
देव की निगाहें सबसे आगे चल रही कमलावती पर थीं।
कुछ देर बाद सब सेजू को बाय बोलकर उसके घर से निकलने लगे। देव में तभी कमलावती की ओर देखा। कलमावती कि निगाहे देव को बुरी तरह घूर रहीं थीं। देव ने कमलावती को देखकर उसे नजरअंदाज कर दिया। और बाहर चला गया।

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बुढ़िया ने "सेजू" को जगाया।
सेजू बेहोशी की हालत में उठी। उसने पूछा.."क्या हुआ?"
"चलो। अब तुम्हारा बाहर कोई इंतजार कर रहा है जाओ।" बुढ़िया ने कहा।
"क्या! कौन इंतजार कर रहा है मेरा?" सेजू ने बुढ़िया से पूछा।
सेजू के इतना पूछते ही बुढ़िया उस गुफा से गायब हो गई।
क्रमशः….