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भ्रम - भाग-11

सेजू की यह गंभीरता देखकर जयंत झेंपते हुए बोला.."क्या क्या..क्या कर रही हो सेजू हटो, मैं कोई रहस्यमयी नहीं हूं। अब ये भला क्या बात हुई कि कोई आदमी तुम्हारी मदद कर रहा है तो तुम उसपर शंका जाहिर करो। यह कोई बात नहीं हुई.." जयंत सेजू को हटाकर झूले से उठते हुए बोला।


"ओह्ह..अच्छा! तो तुम कोई रहस्मयी नहीं हो?" सेजू ने जयंत को घूरते हुए कहा।


"अगर ऐसा ही लगता है तुम्हे तो फिर ठीक है; अकेली ही निपटो तुम, मैं चला।"


"अच्छा! अच्छा! अब तुम मुझे इस डरावनी दुनिया में अकेला छोड़ जाना चाहते हो??" सेजू नाराज होकर बोली।


"तुम्हीं मुझ पर आरोप लगा रही हो! अब मैं खुद को निर्दोष साबित कैसे करूँ मैं नहीं जानता; इसलिए..."


"बस बस..बंद करो अब यह सब और यह बताओ कि आगे क्या करना है।"


कुछ देर की खामोशी के बाद "सबसे पहले पता यह लगाओ की जो किताब में लिखा है वह सही है या नहीं।" जयंत गंभीर होकर बोला।


"मगर कैसे??"


"यह तुम्हे सोचना है।"


"ठीक है जयंत! अब हम इतने आगे बढ़ चुके हैं तो इस राज का घूँघट भी उठा ही दें।" सेजू के चेहरे पर एक तेज उमड़ आया। इसी मुलाक़ात के बाद सेजू और जयंत ने अपने अपने रास्ते चुन लिए।


सेजू महल में जा पहुँची, वह कोई गुलदस्ता साफ कर रही थी और मन ही मन कुछ सोचती जा रही थी।


"सुनो!"


यह शब्द सुनते ही सेजू चौक पड़ी जैसे किसी बुरे सपने से जागी हो..


"जी..जी.." हिचकते हुए बोली।


"तुम्हे मैंने शायद पहले कभी देखा है।"


सेजू ने यह क्या सुन लिया था.?? उसने तुरंत अपने आंख तक पड़े घूँघट को गले तक खींच लिया और बोली.."जी मेरा तो अभी बिआह हुआ है..मैं इस शहर की नहीं हूं।" सेजू जैसे पानी के घुट पीते हुए कह रही थी। "इतना डर क्यों रही हो..?? मैं तुम्हे कौनसा फाँसी देने वाला हूँ।" सुभासा ने हंसकर कहा। "जी नहीं वो..." सेजू उलझ सी गई। "चलो! कोई बात नहीं।" इतना कह कर सुभासा वहां से निकल गया।


"उफ़्फ़फ़..यार! ये तो मुझे मार ही डालता आज..जल्दी से जल्दी उस मीनपरी का भेद खोलना पड़ेगा, वरना जिंदगी ऐसे ही डर डर कर यहीं निकल जायेगी।" सेजू बड़बड़ाई, उसके शब्दो में परेशानी का स्वर मिश्रित था।


"हॉउ…!!!" अब सेजू फिर एक पल को कांप गई।


"हिहि..हा हा.." सेजू के सामने खड़ी मोहिनी हँस रही थी।


"अब तुम भी.." सेजू मोहिनी को हँसता देख बोली।


"तुम कितने जल्दी डर जाती हो! तुम एक होनहार लड़की नहीं हो..सेजू!"


"क्या कहा तुमने?? फिरसे कहो एक बार.." मोहिनी की बात सुनते ही सेजू भड़क गई..आखिर भड़कती क्यों नहीं वह अपने सभी दोस्तों में सबसे निडर थी, तभी तो भूत प्रेतों की कहानियां आधी रातों में पढ़ने बैठा करती थी और किसी के सामने झुकना तो सेजू ने कभी सीखा ही नहीं था।


"अरे! भड़कती क्यों हो..हिम्मत है तो चलो..मेरे साथ!" मोहिनी ने चुनौती देते हुए कहा।


"हां! चलो! देखते हैं ऐसा क्या है..जो मुझे डरा दे।" सेजू ने सिर उठा कर जोश में कहा, वह मोहिनी से नाराज भी थी। सेजू और मोहिनी झाड़ियों के बीच से निकल रहीं थी...जैसे वह किसी जंगल की ओर बढ़ रहीं हों। सेजू मन मे जाने क्या छुपाए रखे थी जो उसके चेहरे पर उतर जाने को बेताब था..मगर जैसे वह मोहिनी का बच्ची होने की वजह से खुदको बांधे हुए थी।


"अब इतनी भी नाराजगी ठीक नहीं! कि तुम हमसे बात भी न करो.." मोहिनी ने चलते हुए ही कहा। सेजू चुप रही। सेजू और मोहिनी एक जंगली इलाके में आ गई थी..जहां सन्नाटा पैर पसारे बैठा था।


"अब भी नहीं पूछोगी कि हम कहाँ आये हैं और क्यों..??" मोहनी ने एक पत्थर पर बैठते हुए कहा। सेजू चुपचाप एक टक, आसमान की तरफ निहार रही थी।


"ठीक है तो जाओ! वो सामने एक पेड़ दिख रहा है उसका तना खोखला है..उसमे घुस जाना। तुम्हें तुम्हारी ताकत का अंदाजा लग जायेगा।" मोहिनी ने लगभग 5 मिनिट की दूरी पर लगे एक विशालकाय पेड़ की तरफ इशारा करते हुए निडरता से कहा। सेजू ने उस पेड़ की तरफ देखा और कुछ देर कुछ सोचते रहने के बाद उसने मोहिनी की और तीक्ष्ण नजरो से देखा और कहा..


"तूम वाकई एक 5 साल की बच्ची हो! इतनी दूर से मुझे पैदल चलते हुए ले आई..और पसीना तक नहीं, न थकान न कुछ.." सेजू आगे कुछ बोलती इसके पहले मोहिनी की जुबान खुली..."मैं जिस काल की हूँ.. उस काल के बच्चे इतनी सी दूरी तय करके हांफते नहीं! और दिमाग तुम लोगो से चौगुना होता है..हमारे काल के बच्चों का। आज चल कर हमारी अध्ययन की पुस्तक उठाकर पढ़ना..तुम्हारा सारा ज्ञान, थप्प रह जायेगा।" मोहिनी किसी उम्रदराज की भांति बोली। सेजू का दिमाग हिल सा गया उसकी बात सुनकर..वह खुद को संभालते हुए जरा सोचकर बोली.."और मैं किस काल की हूँ मोहिनी!" इस बात पर मोहिनी मुस्कुराई और उसी पत्थर पर बिछ गई, अपनी मिश्री सी मीठी आवाज में मोहिनी आंखे बंद करके लेटी हुई बोली.."हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं..जाओ जाकर अपनी क्षमता का आकलन करके आओ।" सेजू ने मोहिनी को बड़े आश्चर्य से निहारा, कुछ ही पल में उसकी नजरें उस पेड़ पर जा टिकी जिसमे जाने को मोहिनी ने कहा था। मगर सेजू का हौसला कहीं नहीं गया था अभी भी उसके अंदर ज्वाला धंधक रही थी..उसने एक कठोर दृष्टि से मोहिनी को ताड़ा और शेरनी की तरह पेड़ ओर बढ़ गई। जहां सेजू कदम रख रही थी वहां सूखे पत्ते बिछे हुए थे...उनकी चरचराहट माहौल की खामोशी में साफ सुनाई देती थी। सेजू जैसे ही उस पेड़ के निकट पहुँची उसने एक पल को मुड़ कर मोहिनी की ओर देखा वह अभी भी पत्थर पर ही लेटी थी। उसे एक बार को ख्याल आया कि अंदर ऐसा क्या होगा जिससे मेरी ताकत का पता लग जायेगा। "मेरी हिम्मत तो इसी बात से पता लग जानी चाहिए किसी को भी की मैं इस अनजान दुनिया में बिना किसी अपने के इतना कुछ सहन कर रहीं हूँ! अगर फिर भी यह कम है तो मैं जरूर इस पेड़ के अंदर जाऊंगी.." बाहर से उस विशालकाय वृक्ष का खोखला और बहुत मोटा तना बिल्कुल ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी का घर हो किसी का डेरा हो। सेजू को उसे देखकर बिल्कुल नहीं लगा कि वहां कुछ डरने जैसा भी होगा। उसने अपने पैर उस खोखले तने के अंदर रख दिये, बिल्कुल जरा सी ज्यादा ऊँचाई थी सेजू की उस तने की ऊपरी छत से, सेजू को थोड़ा झुकना पड़ा। सेजू जरा आगे बढ़ी और वह ठिठक कर रह गई उनके शरीर में बिजली सी दौड़ गई। कोई देखे की उसके सामने अजीब गरीब चेहरों वाली आकृतियां पेड़ के अंदर की यहां वहां से खायीं गयीं लकड़ी से उभर आयीं हैं..जो बहुत भयभीत कर देने वाली हैं..तब उस क्षण वह व्यक्ति करे भी क्या..?? जैसे-तैसे सेजू ने अपने को संभाला और गहरी सांस लेकर वह और अंदर बढ़ी.. यह क्या था...यह पेड़ ही था या किसी तपस्वी की कुटिया..?? बाहर से जो दिखता है अक्सर वह भीतर नहीं होता मगर..पेड़, पेड़ ऐसा कैसे हो सकता है?? प्रकृति के नियमों का पल पल पर प्रश्नचिन्ह लगता जा रहा था। उसने अंदर जाने के साहस किया ही कि अचानक से उसकी दृष्टि एक दर्पण पर जा पहुँची। एक अंडाकार दर्पण..उसमे पहले तो कुछ न दिखा मगर क्षण भर में ही किसी स्त्री की सूरत झलक उठी। सेजू आश्चर्य से जम गई..पलकें थी कि झपकने का नाम तलक न लेती थीं। उसने देखा कि वह स्त्री कोई काला जादू कर रही है। मगर सेजू ने कुछ पल में ही खुदको संभाल लिया और उसने छुपकर उस स्त्री के क्रियाकलाप देखे। कुछ ही देर में उस स्त्री की आहट यूँ मिली ज्यों वह बाहर की ओर ही आ रही है, सेजू फुर्ती से पेड़ से बाहर निकली..और मोहिनी की ओर दौड़ी।


"मोहिनी..चलो यहां से! जल्दी करो..जल्दी!" मोहिनी जैसे सचमुच नींद में खो गई थी, वह जागी और .."तुम मुझे मीठे सपने क्यों नहीं देखने देतीं।" लगभग रोते हुए बोली। "मोहिनी! यह समय मीठे सपनो में खोने का नहीं बल्कि अपनी जान बचाकर भागने का है!


जल्दी जल्दी भागो..उठो पहले फुर्ती से! उठो उठो!" सेजू बहुत जोर लगाकर बोली, मगर वह अपनी आवाज को दबाने की कोशिश भी कर रही थी।


मोहिनी उठकर बैठी ही कि सेजू ने उसका हाथ थामा और तेज गति से मोहिनी को उठाते हुए दौड़ गई।


"अरे! अरे! क्या हुआ तुम्हे? ऐसे क्यों भगा रही हो मुझे???"


"अभी मैं कुछ नहीं बता सकती तुम्हे।" इसी के साथ सेजू और मोहिनी उस जगह से काफी दूर रुककर बोली।


"इतना डरती हो?? देख ली न! ताकत अपनी??" मोहिनी सेजू को चिढ़ाते हुए बोली।


"मोहिनी! तुम यह सब पहले से जानती हो??? मुझे यकीन नहीं होता।"


"हाँ! हाँ! हमारी उम्र पर जाना ठीक नहीं था सेजू! हमे इस जंगल की क़ई डरावनी जगहें पता हैं..उस पेड़ पर बनी आकृतियां देखीं तुमने?? अरे! यह कहो..मुझे यकीन नहीं होता की तुम उनसे इतना डरीं की मुझे लेकर इस तरह दौड़ गयीं।" मोहिनी ठहाके लगाकर हँस पड़ी।


"तुम मुझे उन आकृतियों से डराने लायीं थीं??" सेजू बोली।


"हाँ! और क्या.."


"मतलब तुम कुछ नहीं जानतीं!"


"क्या! क्या नहीं जानतीं मैं?"


"नहीं! कुछ भी नहीं!" सेजू ने बात काटी.."अरे! वो देखो वहां आम लगे हुए हैं!" सेजू ने एक पेड़ की और उंगली से इशारा करते हुए कहा।


"आम!" मोहिनी ने चौक कर कहा।


"तुम आम नहीं जानतीं मोहिनी??"


"नहीं मैं नहीं जानती.."


"जरा वहां देखो! उधर उस पेड़ को..उसपर जो फल लगे हैं वह आम हैं।" सेजू ने अतिउत्साह से कहा.."मेरी फेवरेट चीज.."


"फेवरेट क्या होता है सेजू??"


"फेवरेट मतलब पसंदीदा!"


"अच्छा!"


"हाँ!"


"चलो! सेजू अब महल लौटते हैं वरना मां को पता लगा कि हम और आप बिना किसी सैनिक के जंगल में घुस आए हैं तो..खैर नहीं हमारी।" मोहिनी ने सेजू से कहा।


"हां! हां! चलो.."


सेजू और मोहिनी अब महल लौट चुकीं थीं। मोहिनी अपने कक्ष में पहुँच गई थी और सेजू महल की छत पर कड़ी धूप में सिकने लगी थी। "तो आखिर..राज सामने आ ही गया! अब आगे की प्लानिंग कर सेजू..यह किस्सा बस खत्म होने ही वाला है।" सेजू खुद से ही बोली। "मगर अब आगे क्या करूँ?? एक राज तो बिना कुछ किये ही हाथ आ लगा..अब आगे क्या करना चाहिए।" सेजू फिर बड़बड़ाई। उसके दिमाग में जाने क्या क्या नाच रहा था।


क्रमशः...