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भ्रम - भाग-8

सेजू को गिरता देख रामकुमारी मोहिनी चिल्लाई; सेजू की ओर गति से भागी। किसी के चेहरे पर सेजू के लिए कोई चिंता नही थी मगर राजकुमारी के इस तरह सेजू के ओर भागना सबको अजीब लगा। सुभासा ने लभगभ सेजू का चेहरा पहचान लिया था मगर वह याद नही कर पा रहा था कि उसने सेजू को आखिर कहां देखा था। बार बार सोचते रहने पर उसे कुछ याद आ ही रह था कि.."सुभासा..जाओ हमारी बाँकी तैयारियां देखो। मैं मोहिनी को संभालता हूँ।"
"जैसी आज्ञा! राजा जी!" सुभासा राजा के सामने झुककर बोला। और वहां से चला गया।
"सेजू तुम्हे कुछ हुआ तो नहीं! चोट तो नहीं लगी कहीं तुमको।" मोहिनी के चेहरे पर सेजू के लिए चिंता के बादल उमड़ आये थे।
"नहीं! मैं ठीक हूँ! राजकुमारी।" सेजू उठकर बैठते हुए बोली। सभी लोग एक दूसरे के चेहरे देखने लगे। कुछ देर बाद सब सामान्य हो गया।
"तुम्हे क्या जरूरत थी..इतना मटकने की। अभी वो मंत्री तुम्हे पहचान लेता तो क्या होता पता है कुछ!" जयंत सेजू पर भड़क उठा। "अब जल्दी से जल्दी पता लगाओ अपने भ्रम का राज और इस कहानी को खत्म करो। मेरा दिमाग बहुत खराब हो चुका है।"
"चुटकियों का खेल है क्या राजाओं के बीच इतना बड़ा गेम खेलने का? मुझे भी तो इस झंझट से निकलना है। तो क्या इसका मतलब है मैं कुछ भी उटपटांग करती जाऊँ। मुझे जरा सोचने दो कैसे आगे बढ़ना है..आज हमारा पहला दिन ही तो है न!" सेजू का गुस्सा भी फूटा पड़ रहा था।
"देखो! लड़की कभी वक़्त का इंतजार करने मत बैठो। बल्कि तुम खुद वक़्त के पास पहुँचने की कोशिश करो। अगर तुम चाहो तो अभी के अभी इस भ्रम से मुक्ति पा सकती हो अभी के अभी।" जयंत सेजू में जोश भरने की सारी कोशिशें आजमा रहा था। "तुम्हे आज रात सोना नहीं है..तुम्हे जागना है और अपना रास्ता ढूंढना है..तुम्हारे जैसी लड़की के लिए रात सोने के लिए नहीं और दिन खुश होकर घुमने के लिए नहीं है बल्कि निरंतर अपनी मंजिल को तलाशते रहना है। इससे तुम्हारे साथ साथ मेरा और सभी का फायदा है।"
"ठीक है! कल शाम तक मैं इस राज का पता लगाकर ही मानूँगी। आखिर मीनपरि कौन है और राजा का इससे क्या सम्बंध है।" सेजू की आँखों मे ज्याला उतर आयी थी। सेजू ने अब ठान लिया था आर या पार.. वह अब मीनपरि की सच्चाई को जानने के लिए बेताब हो उठी थी।

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दूसरी ओर गुफा में अपने दोस्तों के साथ फ़सी सेजू ने पीछे मुड़ कर देखा ही था कि तभी वातावरण तिमिर से भर गया। टॉर्च का उजाला भी अब छूमंतर हो चुका था। सेजू का मुँह किसी ने बुरी तरह अपने हाथ से दबोच लिया था वह चींखने की लाख कोशिशों के बाद भी चींख नही पा रही थी।

देवीना कुएं में अकेली बैठी रो रही थी उसे समझ नही आ रहा था कि उसके साथ क्या हो गया है। उसे रह रह कर अपने दोस्तों की चिंता खाये जा रही थी कि आखिर वो सब इस कुएं से गायब कहाँ हो गए। देवीना अपने आंसू सख्ती से पोछे और यहां वहां रास्ता खोजने लगी..सूखे पत्तों पर वह अपना प्रतिशोध निकालने लगी थी उन्हें हटा हटा कर देखती की आखिर कौनसा रास्ता उसके दोस्तों को निगल गया है। बहुत देर तक वह पत्तो को में रास्ता ढूंढती रही। अचानक बादल छाने लगा..जैसे आषाढ़ आ गया हो। हवाएँ ठंडी चलने लगी। पत्ते उड़ने लगे। जैसे कोई तूफान आने वाला था। देवीना को वे ठंडी हवाएं बहुत सुख दे रही थी। जब वह थक गई तो उसी कुएं में टिक कर, सिर को ऊपर किये हुए और आंखे मूंदे। धीरे धीरे बारिश की नन्ही नन्ही बूंदे देवीना की पलको और मासूम से चेहरे को चूमने लगीं थीं। देवीना अब उस बारिश की तेजी को खुदपर भारी होता देख रही थी; मगर जैसे वह बारिश उसका सुकून बन गई थी। बहुत देर तक वह उस बारिश में भीगती रही। उसने जब आंखे खोली तो देखा बारिश रुक गई है और कुआँ थोड़ा भर गया है। शाम ढलने लगी थी अंधेरा छाने लगा था। मौसम बहुत ही शांत हो गया था। जैसे देवीना को बारिश ने हौसला दे दिया था कि वह अब अपने दोस्तों को ढूंढ लेगी। वह अपने बालो से पानी झिड़कते हुए खड़ी हुई..उसके बाल काफी लंबे थे। उसने जैसे ही अपना सिर नीचे झुकाकर झटके से उठाया उसके बाल जैसे किसी चीज में रखे गए। उसे कुछ महसूस हुआ और देवीना ने ऊपर की ओर आंखे खोलकर देखा। उसके बाल कुएं में बने एक बड़े से चौकोर छिद्र में फस गये थे। अब उसने उस छिद्र को देखने के प्रयास किये। उसने कुएं में पढ़े पत्थरों को जमाया और उस छिद्र को देखने लगी। उसने देखा की वह एक सुरंग की तरह है..उसके दिमाग को यह समझने में जरा भी समय नहीं लगा कि उसके दोस्त यही से गायब हुए है। उसे उम्मीद की कोई किरण दिखने लगी थी। उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ गई, साथ ही साथ आंखे भी भर आयी थी। वह कोशिशें करते हुए उस सुरंग में घुसी, कुछ देर एक रेंगते हुए उसने देखा कि अब उस सुरंग का रास्ता काफी विशाल और ऊंचा है, वह वहां आराम से चल सकती थी..मगर अंधेरा भी कुछ कम नहीं था..उसकी आँखों के सामने हल्का हल्का प्रकाश था। उसने खुदको खड़ा किया और लगातार आगे बढ़ती रही।

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"सेजू! तुम मुझे कहानी सुना सकती हो क्या?" राजकुमारी मोहिनी की मासूमियत मन को हरने वाली थी। उसे सेजू कैसे मना कर सकती थी। आखिर कितना प्रेम भरा आग्रह था वह..सेजू एक टक राजकुमारी को ही बड़ी निश्छल मुस्कान से निहारती रही।
"सेजू!" मोहिनी ने फिर बड़े प्यार से सेजू को पुकारा। सेजू यकायक होश में आई और बोली.."क्यों नहीं मोहिनी! जरूर..तुम्हे पता है मुझे कहानियों से कितना लगाव है..?? तुम नहीं जानती, मेरी जिंदगी का लक्ष्य सिर्फ कहानी है। मैं इन्ही में जीना और इन्ही में मर जाना चाहती हूं..इसके अलावा मुझे कुछ नही सुहाता।" सेजू अपने भोलेपन में कहती जाती है। "तुम्हे पता है मैंने कितनी किताबे पढ़ी है?? इतनी की मुझे खुद गिनती नहीं!"

"इसका मतलब तो तुम्हारे पास ढेर सारी कहानियां होंगी, है न..?? चलो वो कहानी सुनाओ जो तुम्हे सबसे ज्यादा भायीं हो।"

"नहीं! मुझे तो सभी कहानियां अच्छी ही लगती है.... बस यह बताओ कैसी कहानियां सुनना पसंद करोगी तुम..?? जादू वाली, भूत वाली, परी वाली, जंगल वाली...??"

"बस बस..बाबा! चलो जादू वाली सुनाओ।" सेजू को एक सांस में बोलते सुन राजकुमारी ने उसे रोका।

सेजू के दिमाग में पता नही क्या आया और उसने जो कुछ उसके साथ हुआ वह सब सुनाने लगी बिल्कुल कहानी की तरह.."एक लड़की थी वह किसी कमरे के माध्यम से एक जादुई नगरी में पहुँच गई थी..जहां उसे तरह तरह के लोग मिले.. सबसे पहले एक अजीब सा दिखने वाला आदमी..उसके बाद एक बुढ़िया..जो बिल्कुल उसकी नानी मां की हूबहू थी। वह उसे एक गुफा में ले गई और उस गुफा में अजीब अजीब तरह के पदार्थो से भरी कांच की शीशियां रखी थीं। लड़की बहुत थक चुकी थी उसे ऊर्जा की बहुत जरूरत थी, उस बुढ़िया ने लड़की को कोई लाल रंग का पदार्थ पीने को कहा। चूंकि लड़की काफी भूखी थी तो उसने वह पदार्थ पी लिया। इसके बाद काफी समय तक बेहोश रही और उसकी नींद खुली तो उसने उस बुढ़िया से दूर जाने की जिद की जैसे ही वह गुफा के बाहर भागी उसने देखा कि कोई गुफा के बाहर चहलकदमी कर रहा है वह बहुत डर गई और फिर गुफा के अंदर आ गई, कुछ देर बाद वह बुढ़िया भी गायब हो गई और..."

"और बुढ़िया के गायब होते ही गुफा की चट्टानें चटकने लगीं, और उस लड़की को न चाहते हुए गुफा से बाहर निकलना पड़ा, इसके बाद उसने देखा कि बाहर घना अंधेरा है और उसके सामने कोई आने वाला है उसने डर के मारे अपनी आँखे बंद कर लीं और वह एक अलग ही दुनिया में पहुँच गई।"

आगे की कहानी रानी के मुँह से सुनकर सेजू का दिमाग शून्य हो गया। वह पत्थर बनी देखती रही, उसके मुंह से कुछ नहीं फूटा बस वह देखती ही रही।

"इसके आगे की कहानी कल सुनाना सेजू! अभी राजकुमारी को सो जाने दो, और तुम भी जाकर आराम करो, रात काफी गहरी हो गई है।" रानी ने मोहनी को उसके बिस्तर पर लिटा कर चादर उढाते हुए कहा।

कुछ मिटनो बाद सेजू कुछ कहना चाह ही रही थी कि राजकुमारी मोहनी बोल पड़ी.."मां! आज सेजू को मैं अपने साथ सुला लूँ? मां! मना मत कीजियेगा!" राजकुमारी कहते हुए थोड़ी सहम रही थी मगर उसने अपनी जिद भी सामने रख दी थी। रानी ने सेजू की ओर देखा और कुछ देर सोचने के बाद उसे राजकुमारी के साथ सोने के लिए हाँ कर दिया। "सेजू जरा मेरे साथ आओ!" सेजू और रानी राजकुमारी से कुछ दूर पहुँची। "राजकुमारी को जो कहानी तुम सुना रही थी..वह कहानी बहुत खतरनाक है; उसका प्रभाव राजकुमारी पर बुरा पड़ सकता है, तुम शायद नहीं जानती कि हमारे यहां राजकुमारियों को सिर्फ राजकुमारी बनाकर रखा जाता है और उस कहानी से उनके भीतर भ्रम जानने समझने की जिज्ञासा बढ़ जायेगी और वो फिर बहुत जिद्दी हैं..उनकी जिद के आगे किसी की चलती नहीं। तो याद रहे इसके आगे की कहानी तुम उन्हें नहीं बताओगी या बताओगी तो वह कहानी बदल कर। न कि सच..समझी तुम?" सेजू ने रानी की सारी बात सुन कर उत्सुकता से कहा.."मगर.." "मगर-वगर कुछ नहीं सेजू! रात बहुत हो चुकी है अब हमें भी चलना चाहिए..! ध्यान में रखिएगा मेरी बात!" इतना कह कर रानी राजकुमारी के कक्ष से निकल गयीं। सेजू मनमे जाने क्या दबाए रह गई। कुछ देर बाद राजकुमारी की निंद्रा लग चुकी थी, मगर सेजू का दिमाग घूमा जा रहा था.."आखिर रानी को उसकी कहानी कैसे पता? रानी कैसे जानती है कि मेरे साथ क्या हुआ? अगर रानी आगे की कहानी जानती हैं तो यह भी जरूर जानती होंगी की वह लड़की सेजू थी मतलब मैं! और मेरे साथ आगे क्या हुआ..आगे तो मुझे मीनपरि ही मिली थी..तो क्या राजकुमारी को मीनपरि के बारे में पता है, और अगर पता है तो उन्होंने मुझे पहचाना क्यों नहीं, उन्हें यह क्यों पता नहीं लगा कि मैं यहां मीनपरि का राज पता ही करने आयी हूँ।" सेजू से बिल्कुल भी सब्र नही हो रहा था..वह बेचैन होकर बिस्तर से उठकर कक्ष में ही विचरने लगी। उसके दिमाग में आया कि वह अभी के अभी रानी से जाकर यह पूछ लें कि उन्हें वह कहानी कैसे पता जो खुद सेजू के साथ घटी है। उससे सुबह का इंतजार बिल्कुल भी नहीं हो रहा था तभी किसी ने उसे आवाज दी..."सेजू" बहुत ही धीमी मगर इतनी की सेजू के कानों तक पहुँच गई..सेजू सन्न सी रह गई..इतनी रात में उसे कौन बुला सकता था..सेजू ने झटके से अपना रुख आवाज की ओर किया और उसने देखा खिड़की के पास जयंत खड़ा है, जयंत को देखकर सेजू बहुत प्रसन्न हो गई। आखिर कोई तो उसकी बेचैनी दूर करने वाला मिला..वह दौड़ कर खिड़की पर पहुँची.."जयंत तुम जानते हो? मेरे साथ जो हुआ रानी जी सब जानती हैं।"

"क्या..?? क्या बक रही हो तुम?" जयंत बुरी तरह चौंक गया।
सेजू ने उसे सबकुछ समझा दिया। "इसका मतलब क्या हो सकता है?? यह तो सर घुमा देने वाली बात है..मैं तो पगलाया जा रहा हूँ।" "मैं भी जयंत! मैं भी! मुझे तो लग रहा है अभी के अभी जा कर रानी से कहूं कि आपको यह कहानी कैसे पता?" "नहीं! अभी कोई खतरा मत उठाओ! हो सकता हैं बात कुछ और ही हो! कहीं ऐसा न हो कि तुम कुछ जाने बिना ही बलि का बकरा बन जाओ। थोड़ा सब्र रखो। जरा चालाकी से जानने की कोशिश करो! जो भी जानना है..मीनपरी के बारे में पता लगाओ..यही तुम्हारा काम है! वैसे भी यह तुम्हारा भ्रम है तो कुछ आगे पीछे भी हो सकता है।"

"तुमने यह क्या लगा रखा है..भ्रम भ्रम भ्रम..! इक तो मेरा सिर घूमा जा रहा है..और ऊपर से तुमने लगा रखा है।" सेजू चिड़चिड़ा गयी। "ठीक है! मैं जाता हूँ! तुम सब्र रखो जरा।" इतना कह कर जयंत दबे पाओ निकल गया।

सेजू अपना माथा पकड़े हुए पलंग पर पहुँची और उसकी आंखों से आँसू निकलने लगे। कुछ देर बाद उसकी आंख लग गई।

क्रमशः