Pyar ka Daag - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

प्यार का दाग - 4

"तुम चुप क्यों हो? कुछ तो कहो न। क्या मुझे अभी भी तुमसे बात करने के लिए म्यासेन्जर को चालू करना पडेगा?" अयान ने मेरी बायीं हथेली को अपनी दाहिनी हथेली से सहलाते हुए बोला।

उसके स्पर्श से मेरे गालों पर लाल रंग आ गया। भले ही उसने मुझसे कुछ कहने के लिए कहा, लेकिन मेरे पास उसे तुरंत सुनाने के लिए कोई आवाज नहीं थी। शायद ध्यान भी। मैं उसकी उपस्थिति को महसूस करके खुश हो रही थी। मैं सामने शीशे पर उसका चेहरा देख रही थी और मुझे इस बात का भी आभास था कि मेरी चोरी पकड़ी नाजाए।
मौसम धूमिल था और आसमान में बादल छाए हुए थे लेकिन अपने प्रिय व्यक्ति के साथ पाकर मेरा दिल बहुत धूप महसूस कर रहा था। हम टैक्सी से जा रहे थे लेकिन बाकी लोग वापस लौट रहे थे।

कोई वापस जाने पेसेन्जर नही मिलेगी ये सोचकर हमसे, टैक्सी चालक ने कहा, "आगे ज्यादा सड़क नहीं है, आप लोग याँ से दस-पंद्रह मिनट में पहुँच सकते हैं। मुझे यहाँ से लौटना है।"

"हमको गंतव्य तक तो ले जाए क्यों आपने सड़क के बीच में हीं छोड़ने की बात की ?" मैंने शालीनता से बात की।
उसने फिर से हमें टैक्सी से नीचे उतरने के लिए कहा और हमारे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था। पैसे देने के बाद हम आगे बढ़े।
अब हमारे बीच संवाद करने के लिए कोई तीसरा पक्ष नहीं था। एक दूसरे की आवाज के बिना सफर का खामोश होना तय था। कल तक तो हम रात भर घंटो बातें करते सकते थे फिर भी हमारी बात खत्म नही होती थीं तो इस समय हमारी आवाज क्यों नहीं आ रही थी? भले ही कहने के लिए हजार बातें अौर भी बांकी थीं शायद, उसे भी मेरी तरह बाते शुरुआत करने में अजीब लग रहा हो ! मैंने अनुमान लगाया।

हम चुपचाप उस जगह चले गए जहाँ हमने टिकट लेना था। हमने दो टिकट लिए और गोदावरी पार्क की ओर चल पड़े। हालांकि यह पार्क के बंद होने का समय नहीं होरहा था लिकिन, कई लोग पार्क छोड़ रहे थे, शायद बादल आसमान की वजह से।

मुझें गोदावरी मे रहना बहुत अच्छा लगता था जब किसी भी समय ज्यादा बारिश हो । पूर्णरूप से भिगी हुई प्रकृतिको अपनी आँखों से देख कर मन रोमांचित होता था। फूलों के तनों पर आसमान से गिरती पानी की बूंदों को इकट्ठा होते देखना मेरा पसंदीदा शगल था।
अयान पहली बार गोदावरी आया था। उसें बादलों या सूरज से शायद ही कोई शिकायत थी। वह अपनी चुनी हुई जगह पर उपस्थित होकर दंग रह गया ।

हम पहले ही वनस्पति उद्यान में प्रवेश कर चुके थे। आँखे खिले फूलों का नशा पी रही थी। मैंने इन दृश्यों को एक-एक करके मोबाइल कैमरे में कैद करना शुरू कर दिया। इस पर मेरी नजर अयान को खोजने लगी। जब मुझे यह आभास हुआ कि वह दूर से अपने मोबाइल फोन पर मेरी तस्वीर ले रहा है, तो मैं शर्मिंदा हो गयी। यहीं से फूलों की तस्वीरें खींचने की मेरी शिलशिला टूट गई।
"जो लोग पहली बार गोदावरी आए हैं, उन्हें भी याद की जरूरत है। आइये, मैं आपकी एक तस्वीर लूंगी।"
"मेमोरी तो मनसे मनमे बनता है " अयान ने फोटो न लेने के बहाने मुझसे बचने की कोशिश की।

मन तो भटकता है, भटकते मन से क्या याद आता है? स्मृति और मन दोनों ही सिर्फ तस्वीर में फंस जाते हैं।"

मेरे जवाब ने उसें मेरे अनुरोध पर सहमति देने मन्जुर करदी। जैसे ही बुद्धिमान छात्र ने शिक्षक के निर्देशों का पालन किया, वह फोटो लेने के लिए तैयार हो गया। मैंने अपने मोबाइल स्क्रीन पर उसके मुस्कुराते हुए अाकृति को क्लिक किया।
आसमान अंधकार होता जा रहा था। लेकिन मन फिर भी गोदावरी में रहना चाहता था। जब आप अपने पसंदीदा लोगों के साथ अपनी पसंदीदा जगह पर होते हैं, तो समय इतनी तेजी से भागता है। मन न चाहे तो भी समय अपनी लय में चलता रहा। जब गोदावरी पार्क बंद होने वाला था तो हम भी वहां से निकल गए। मुझे लगा कि अगर मैं एक मन पसन्द निश्चित जगह पर रुकना चाहती हूं और वहां से आगे बढ़ने की कोशिश करती हूं तो यह पैर बहुत भारी होता है।
बाहर निकलते ही बारिश होने लगी। मैंने झट से बैग से छाता निकाली, पानी इतना भारी था कि छाता उड़ने से पहले ही हम पूरी तरह से भीग चुके थे। यह चारों ओर सुनसान की तरह था, हम पार्क में प्रवेश करने से पहले ही लोगों का आना कम हो गया था।
हालाँकि अभी पाँच बज रहे थे, फिर भी वातावरण सात बजे के समान अँधेरा लग रहा था, इसलिए वहाँ रुकने से बेहतर है कि चल दिया जाए। सड़क पूरी तरह से पानी से भरी हुई थी और नदी की तरह लग रही थी। एड़ी के अंदर पानी रिसने के कारण मुझे चलते समय पैरों में दर्द का अनुभव हुआ। लेकिन मेरे पास चलने के अलावा कोई चारा नहीं था।
थोड़ा और आगे पहुँचने पर हमने देखा कि एक माँ ठेलागाडी लिए सड़क पर खड़ी है। ठेलागाडी में 10/12 हरे मक्के बचे थे। एक गड्ढा राख पानी से भरा था और उस पर कोयले के कुछ टुकड़े दिखाई दे रहे थे। साफ पता चल रहा था कि बारिश के बाद मक्के की आग पर गिरी यह सीन है।

अयान ने पास जाकर पूछा - "क्या हुआ माँ ? तुम यहाँ इतने पानी में क्यों खड़ी हो?"
चलते-चलते बारिश हो गई, बारिश के कारण मैं ठेलागाडी नहीं उठा सकी, बेटा, यें छोड़ने का कोई सवाल ही नहीं था। अगर यह ठलागाडी नहीं है, तो भरें अौ कल से हीं भूखी रहूंगी। मां ने अपना दर्द बयां किया।
"तो जाओ, माँ?" इतना कहकर अयान ने मां के जवाब का इंतजार किए बिना अपना बैग ठेलागाडी पर रख दिया और ठेलागाड़ी को सड़क पर धकेलने लगा। मैं उसकी दयालुता और सहजता से चकित थी। भले ही मैं उससे सालों से बात कर रही हूं, लेकिन मैंने उसे कभी इतना सरल इंसान होने की उम्मीद नहीं की थी। इस मुलाकात में मैं उसें और करीब से समझने लगी। वह तो मेरे दिल में बस गया था, लेकिन इस बार मैंने उसे अपने दिल से कभी नहीं निकालने का फैसला किया।