Pyar ka Daag - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

प्यार का दाग - 5

अपने विचारशील कदमों के वजा मैं बहुत देर हो चुकी थी।
अयान ने आवाज की तो मैं कांप गयी। "क्या तुम्हें बैग ले जाने में कठिनाई हो रही है? लाओ इसे और यह ठेलागाडी में रख दो, यह तुम्हारे लिए आसान हो जाएगा।"

"नहीं ठीक है।" भले ही मेरे मुंह से ऐसा निकला, फिर भी बारिशकी वजा से पैर पर छाला फूट पड़ा था। इसलिए मेरे चलने की गति कम हो गई थी। लेकिन मैं अयानको यह बताना नहीं चाहता थी और फिर कही- ''आ रही हूं, अाप चलो।"

अयान ने ठेलागाडी को धक्का देने के करीब 15 मिनट बाद मां की ठेलागाडी उस जगह पहुंच गई जहा रखना था।
सड़क के किनारे पर एक थोड़ी सी मिट्टी और थोड़ा सा बांस से बनी हुई छोटा सा झोपड़ी था जिसकी छत तंबू से ढकी हुई थी।
माँ ने अयान को ठेलागाड़ी रोकने का इशारा किया और कहा -"धन्यवाद!" और जोड़ा - " आज के ज़माने में भी कितना अच्छा है यह बाबू के दिल। जिसने मेरे ठेलागाड़ी को बारिश में धकेल कर बहुत मदद की। बूढ़ी माँ मुझे भी आशीर्वाद देने लगी, बाबू अौर नानी हमेशा अच्छे रहे। बाबू नानी की जोड़ी भी अच्छी है जैसे भगवान ने इसे बनाया है ।"

मुझे बूढी माँ की बातों पर शर्म आ रही थी। हालांकि अयान और मैं लंबे समय से बात कर रहे हैं, लेकिन हमने कभी भी कपल बनने या न बनने की बात नहीं की थी। हमारे दिल में एक-दूसरे के लिए प्यार, सद्भावना और सम्मान था, लेकिन हम दोनों ने अब तक एक-दूसरे को मुंह खोलकर नहीं बताया था। अयान मुझे देखकर मुस्कुराया। हमारी नजरें मिलीं, एक-दूसरे की आंखों में ज्यादा देर तक देखना मुश्किल था, इसलिए मैंने ही उनकी नजरों से अपनी नजरें हटाया।

बारिश धीरे-धीरे कम होने लगी। पास में एक टैक्सी था। मुझे यह अहसास हुआ कि टैक्सी चालक चलने हीं वाला था। उस मां को अलविदा कहकर हम वहां टैक्सी के पास पहुंचे। टैक्सी खाली था। मैंने टैक्सी ड्राइवर से हमें गोंगबू ले जाने के लिए कहा।

"ओह! मैं भी वही जा रहा हूँ, मुझे अच्छा लग रहा है किआप लोग भी वही जा रहे है। अब रात हो गई है, यह आसान है।" - ड्राइवर ने टैक्सी का सामने का दरवाजा खोलते हुए कहा।
लेकिन हम दोनों टैक्सी की पिछली सीट पर बैठ गए। ड्राइवर ने सामने का दरवाजा बंद किया और टैक्सी की गती बढाया ।
गीले कपड़ों कि वजा से मुझे बहुत ठंड लग रही थी। टैक्सी की खुली खिड़की से अन्दर आई हवा ने मेरे शरीर को कपना शुरू कर दिया। अयान ने मुझे ठंडी लगी समझकर टैक्सी का सिसा बन्द कर दिया। मैं उस पर मुस्कुरायी।
उसने धीरे से मेरे पूरे हाथ को अपने हाथ से छुआ और बेवजह अपने बैग से एक पतली काली जैकेट निकाली और मुझे इसे पहनने के लिए कहा। मैंने आज्ञाकारी ढंग से उसकी जैकेट पहन ली। जैकेट से परफ्यूम की मीठी महक टैक्सी कि अन्दर फैले।
घड़ी में सात बज चुका था। बारिश पूरी तरह थम चुकी थी। गोंगबू पहुँचकर ड्राइवर ने पूछा - "अाप लोगो को यहाँ से कहाँ जाना है?" मैंने चौक से थोड़ा अंदर की ओर इशारा किया।

अयान ऐसे बोला जैसे वह शर्मिंदा हो - "क्या तुम अपने रेन्ट में जा रहे हो?" तुम जाओ, मैं यहाँ होटल में रुकूँगा।"

"आप मेरे रेन्ट में नहीं जा सकते क्या ?"
"ऐसा नहीं है, लेकिन,,,,,,,,,,,,,,।" अयान ने वाक्य अधूरा छोड़ दिया।
मुझे लगा कि वह असहज है और कहा- "अजीब मत समझो, मैं रेन्ट में अकेली रहती हूँ।"
"तूम अकेले रहती हो तो इसलिए मेरा वहां जाना तुम्हारे लिए कठिन होगा।"
अयान ने मुझसे कहा था कि वह मेरे साथ नहीं जाएगा ताकि मुझे परेशानी न हो।
"अगर आप मेरे साथ नहीं जाओगे तो मुझे बुरा लगेगा। मुझे ऐसा लगेगा कि मैंने उस व्यक्ति को छोड़ दिया जो मुझसे ही मिलने आया था। आपको जाना होगा।" मेरे जिद के आगे वह बच नहीं सका।

हम टैक्सी से उतरे और एक साथ मेरे रेन्ट में पहुँचे। दोनों के गीले कपड़े बदलने के बाद मैंने उससे पूछा - "भूख लगी है? क्या खाना चाहते हो?"

"अगर मैं कहूं कि मैं उपवास करने वाले व्यक्ति को भूखा हूं, तो मैं दोषी महसूस करूंगा।" उसने मेरे सवालका जवाफ दी।
मैं बिना कुछ कहे किचन में चली गई और दो कप कॉफी लेकर उनके पास बैठ गई।
"कॉफी पीने से तो पाप नहीं लगता, है ना?" मैंने उसे चिढ़ाते हुए कप को थमा दिया। उसने चुपचाप कप पकड़ लिया। हम दोनों ने कॉफी पी।
कॉफी पीने के बाद मैंने कप लिया और किचन में चली गयी। अयान भी मेरे पीछे आया और बोला-
"तुम सिर्फ मेरे लिए खाना बनाने की जहमत क्यों उठाते हो, इसके बजाय मैं कुछ और खाऊंगा, वह भी खुद से।"

उसकी बात पर मुझे हंसी आई।

"साँची, तुम को क्यों परेशानी देना ?" अयान ने उसी पर जोर दिया।
"अच्छा।" इसके साथ ही मैंने उसे दो नूडल्स थमाए और खाना बनाने का बर्तन दिखाया और किचन से निकल गयी।
काफी देर बाद अयान भी कमरे में दाखिल हुआ। जरूर पकाकर खाया होगा। किचन में पहुंचकर मैंने देखा कि बर्तन धुले हुए थे। यह व्यक्ति अपने कारण मुझे दुखी न करने के लिए कितना सचेत है? में सोच पडी।