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गुमनाम राजा - 2

नमस्कार पाठकों ।
पिछले पाठ में हमने औलिकार वंश के शासक राजा यशोधर्मन के जीवन और उनके द्वारा लड़े गए महत्वपूर्ण युद्धों पर प्रकाश डाला था ।

आइए अब हम लोग अन्य गुमनाम राजाओं के बारे में जानते हैं :-

2) महाराणा बप्पा रावल :
महाराणा बप्पा रावल आठवीं शताब्दी में मेवाड़ के
गुहिल राजपूत वंश के संस्थापक थे । इनका जन्म
सन् 738 में राजस्थान के ईडर प्रांत में हुआ था ।
वह एक महान योद्धा होने के साथ-साथ एक बहुत
बड़े शिव भक्त भी थे । अपने 19 वर्षों के शासन काल
में उन्होंने अपने साम्राजय में कई शिव मंदिरों का
निर्माण करवाया जिसमें से कई मंदिर का अस्तित्व
आज भी जीवित है । बप्पा रावल के बारे में एक कथा बहुत ही प्रसिद्ध है । ऐसा कहा जाता है कि जब ये 3 साल के थे तब ही इनके पाता नागादित्य और इनके परिवार के सभी पुरुष सदस्यों का एक युद्ध में देहांत हो गता था ।
राजा नागादित्य के दो वफ़ादार सिपाहियों ने बप्पा रावल की उनके पिता के हत्यारों से रक्षा की और उन्हें ले जाकर
एक ब्रह्ममण महिला के हवाले कर दिया । वो महिला बहुत ही नेकदिल थी । उसने बप्पा रावल का पालन पोषण अपने सगे बेटे की तरह किया । बड़े हो जाने पर उस ब्राह्मण महिला ने उन्हें गौपालन की शिक्षा दी और 16 साल की उम्र में ही वे एक श्रेष्ठ गौपालक बन गए । एक दिन गायों को चराते समय बप्पा रावल की मुलाकात
महर्षि हरित से हुई । वो एक बहुत ही सिद्ध ऋषि थे ।
महर्षि हरित को बप्पा रावल के जीवन के बारे में सब कुछ पहले से ही ज्ञात था । उन्होंने उनसे कहा कि अगर वे अपने मन से संपूर्ण संसार को त्यागकर सिर्फ और सिर्फ भगवान शिव का ध्यान करेंगे और सच्चे मन से उनकी उपासना करेंगे तो उन्हें चमत्कारी शक्तियाँ प्राप्त होंगी जिससे वे अपने पिता के हत्या की हत्या का बदला ले सकेंगे । बप्पा रावल को महर्षि की बातें बहुत अच्छी लगीं और वे उनके शिष्य बन गए । शिष्य बन जाने के पश्चात वे निरंतर महर्षि के निरिक्षण में भगवान शिव का ध्यान लगाया कयते थे । ऐसा कह् जाता है कि दो वर्षों की कठिन तपस्या के पश्चात उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में बप्पा रावल का भगवान शिव से साक्षात्कार हुआ और इसके बाद उन्हें चमत्कारी शक्तियाँ प्राप्त हुई । उन्हीं चमत्कारी शक्तियों की मदद से बप्पा रावल अपने पिता
के सभी हत्यारों को मौत के घाट उतारने में कामयाब हुए और आगे चलकर उन्होंने मेवाड़ राजघराने की स्थापना की ।
बप्पा रावल की तलवार की धार से चालुक्य, गुरजर-प्रतिहार,मौर्य आदि बड़े-बड़े राजघरानों के राजा भी थड़-थड़ काँपा करते थे । वैसे तो बप्पा रावल जी ने अपने जकवन में बहुत सारे सतकर्म किए लेकिन जिस कार्य के लिए उन्हें सबसे ज्यादा याद रखा जाता है वो कार्य था
अरबी आक्रमणकारियों को भारत से खदेड़ कर भगाने का कार्य । आठवीं शताब्दी के मध्य काल में उमाय्यद
ख़लीफा उसमान ने अपने फ़ौजदार मुहम्मद-बिन-कासिम
को भारतवर्ष पर आक्रमण करने का आदेश दिया । ख़लीफा ने ऐसा आदेश इसलिए जारी किया था क्योंकि वो चाहता था कि संपूर्ण भारतवर्ष को इस्लाम शासित देश बनाया जाए । ख़लीफा के आदेश पर कासिम ने भारत पर आक्रमण किया । इस मुहिम में उसका सबसे पहले सामना हुआ सिंध के राजा दाहिर से । सिंधु नदि के तट पर हुए युद्ध में राजा दाहिर की हार हुई और उन्हें अपने प्राण भी गँवाने पड़े । सिंध पर अरबियों की जीत के कारण अब ख़लीफा और उसके फ़ौजदारों का आत्मविश्वास अब चरम सीमा पर पहुँच गया था ।
मुहम्मद-बिन-कासिम की मौत के बाद ख़लीफा के विश्वासु फ़ौजदार हबीब ईबन अल-महल्लब को सिंध प्रांत की
ज़िम्मेदारी सौंपी गई । महल्लब बहुत ही महत्वकांक्षी था । सिंध की ज़िम्मेदारी मिलने के पश्चात उसने राजस्थानी तथा गुजराती राजघरानों पर आक्रमण करने शुरू कर दिया । जब बप्पा रावल को इन सभी आक्रमणों की खबर मिली तो उन्होंने अपनी सेना सज्ज की और सिंध प्रांऔ पर धावा बोल दिया । सिंध में महल्लब और बप्पा रावल की सेनाओं की आपस में भिड़ंत हुई जिसमें कई अरबी सैनिकों को अपनी जान गँवानी पड़ी । अपनी जान बचाने के लिए महल्लब अपनी बची-खुची सेना को साथ लेकर सिंध से अफ़गानिस्तान भाग गया और वहाँ के गज़नी शहर में जाकर छुप गया । बप्पा रावल ये बात अच्छी तरह से जानते थे कि अगर अरबियों को छोड़ दिया गया तो वे लोग फिर से आक्रमण अवश्य करेंगे इसलिए उनका बंदोबस्त करना ज़रूरी था । भारत को भविष्य में होने वाले अरबी आक्रमणों से बचाने के लिए बप्पा रावल ने अफ़गानिस्तान पर छापा मारा । और इस छापेमारी में बप्पा रावल के सामने जितने भी सुल्तान या फ़ौजदार आए उन सबको अपनी जान गँवानी पड़ी । दो महीनों तक अपनी सेना के साथ लगातार कुज करने के पश्चात बप्पा रावल गज़नी शहर आ पहुंचा जहाँ पर महल्लब छुपा बैठा था । जब अरबियों को रावल जी के आने की खबर मिली तो उन्होंने अपनी आत्मरक्षा के लिए सर्वप्रथम शस्त्रों का सहारा लिया लेकिन बप्पा रावल की सेना के शौर्य और पराक्रम के सामने उनकी तलवारों की चमक भी धूमिल हो गई और अंत मे ं उन्हें गज़नी शहर भी छोड़कर भागना पड़ा । बप्पा रावल यहाँ पर भी नहीं रूके । गज़नी पर फतह हासिल करने के बाद उन्होंने अरबियों को वर्तमान इराक तक खदेड़ा । मेवाड़ वापसी के समय बप्पा रावल ने हर 100 km के दायरे पर एक-एक सैन्य ठिकाना स्थापित किया जिसमें हर वक्त कम-से-कम दस हज़ार कच्छवाहा लड़ाके तैनात रहा करते थे । उनके द्वारा स्थापित किए गए एक सैन्य ठिकाने का नाम उनके ही नाम पर रखा गया जो आज वर्तमान समय में पाकिस्तान का रावलपिंडी शहर है ।

बाकि राजाओं के बारे में हम अगले पाठ में जानेंगे ।