Mulla Nasruddin ke chand chhote kisse - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

मुल्ला नसरुद्दीन के चंद छोटे किस्से - 2

भाग - 2

मुल्ला नसरुद्दीन की दो बीवियाँ

मुल्ला नसरुद्दीन की दो बीवियाँ थीं जो अक्सर उससे पूछा करती थीं कि वह उन दोनों में से किसे ज्यादा चाहता है.

मुल्ला हमेशा कहता — ”मैं तुम दोनों को एक समान चाहता हूँ“ — लेकिन वे इसपर यकीन नहीं करतीं और बराबर उससे पूछती रहतीं — ”हम दोनों में से तुम किसे ज्यादा चाहते हो?“

इस सबसे मुल्ला हलाकान हो गया. एक दिन उसने अपनी प्रत्येक बीवी को एकांत में एक—एक नीला मोती दे दिया और उनसे कहा कि वे इस मोती के बारे में दूसरी बीवी को हरगिज न बताएं.

और इसके बाद जब कभी उसकी बीवियां मुल्ला से पूछतीं — ”हम दोनों में से तुम किसे ज्यादा चाहते हो?“ — मुल्ला उनसे कहता — ”मैं उसे ज्यादा चाहता हूँ जिसके पास नीला मोती है“.

दोनों बीवियां इस उत्तर को सुनकर मन—ही—मन खुश हो जातीं.

' ' ' ' '

मुल्ला की दो बीवियां थीं जिनमें से एक कुछ बूढ़ी थी और दूसरी जवान थी.

”हम दोनों में से तुम किसे ज्यादा चाहते हो?“ — एक दिन बूढ़ी बीवी ने मुल्ला से पूछा.

मुल्ला ने चतुराई से कहा — ”मैं तुम दोनों को एक समान चाहता हूँ“.

बूढ़ी बीवी इस जवाब से संतुष्ट नहीं हुई. उसने कहा — ”मान लो अगर हम दोनों बीवियाँ नदी में गिर जाएँ तो तुम किसे पहले बचाओगे?“

”अरे!“ — मुल्ला बोला — ”तुम्हें तो तैरना आता है न?“

मुल्ला नसरुद्दीन की बीवी का नाम

एक दिन मुल्ला नसरुद्दीन और उसका एक दोस्त साथ में टहलते हुए अपनी—अपनी बीवी के बारे में बातचीत कर रहे थे. मुल्ला के दोस्त का ध्यान इस बात की और गया कि मुल्ला ने कभी भी अपनी बीवी का नाम नहीं लिया.

”तुम्हारी बीवी का नाम क्या है, मुल्ला?“ — दोस्त ने पूछा.

”मुझे उसका नाम नहीं मालूम“ — मुल्ला ने कहा.

”क्या!?“ — दोस्त अचम्भे से बोला — ”तुम्हारी शादी को कितने साल हो गए?“

”अट्ठाईस साल“ — मुल्ला ने जवाब दिया, फिर कहा — ”मुझे शुरुआत से ही ये लगता रहा कि हमारी शादी ज्यादा नहीं टिकेगी इसलिए मैंने उसका नाम जानने की कभी जहमत नहीं उठाई“.

मुल्ला नसरुद्दीन और बेईमान काजी

एक दिन जब मुल्ला नसरुद्दीन बाजार में टहल रहा था तब अचानक ही एक अजनबी उसके रास्ते में आ गया और उसने मुल्ला को एक जोरदार थप्पड़ रसीद कर दिया. इससे पहले कि मुल्ला कुछ समझ पाता, अजनबी फौरन ही अपने हाथ जोड़कर माफी मांगने लगा — ”मुझे माफ कर दें! मुझे लगा आप कोई और हैं“.

मुल्ला को इस सफाई पर यकीन नहीं हुआ. वह अजनबी को अपने साथ शहर काजी के सामने ले गया और उससे वाकये की शिकायत की.

चालाक मुल्ला जल्द ही यह भांप गया कि काजी और अजनबी एक दूसरे को भीतर—ही—भीतर जानते थे. काजी के सामने अजनबी ने अपनी गलती कबूल कर ली और काजी ने तुरत ही अपना फैसला सुना दिया — ”मुल्जिम ने अपनी गलती कबूल कर ली है इसलिए मैं उसे हर्जाने के बतौर मुल्ला को एक रुपया अदा करने का हुक्म देता हूँ. अगर मुल्जिम के पास एक रुपया इस वक्‌त नहीं हो तो वह फौरन ही उसे लाकर मुल्ला को सौंप दे“.

फैसला सुनकर अजनबी रुपया लाने के लिए चलता बना. मुल्ला ने अदालत में उसका इंतजार किया. देखते—देखते बहुत देर हो गई लेकिन अजनबी वापस नहीं आया.

काफी देर हो जाने पर मुल्ला ने काजी से पूछा — ”हुजूर, क्या आपको लगता है कि किसी शख्स को राह चलते बिला वजह थप्पड़ मार देने का हर्जाना एक रुपया हो सकता है?“

”हाँ“ — काजी ने जवाब दिया.

काजी का जवाब सुनकर मुल्ला ने उसके गाल पर करारा चांटा जड़कर कहा — ”वह आदमी जब एक रुपया लेकर वापस आ जाये तो आप वह रुपया अपने पास रख लेना“ — और मुल्ला वहां से चल दिया.

खुशबू की कीमत

राह चलते एक भिखारी को किसी ने चंद रोटियां दे दीं लेकिन साथ में खाने के लिए सब्जी नहीं दी. भिखारी एक सराय में गया और उसने सराय—मालिक से खाने के लिए थोड़ी सी सब्जी मांगी. सराय—मालिक ने उसे झिड़ककर दफा कर दिया. भिखारी बेचारा नजर बचाकर सराय की रसोई में घुस गया. चूल्हे के ऊपर उम्दा सब्जी पक रही थी. भिखारी ने देग से उठती हुई भाप में अपनी रोटियां इस उम्मीद से लगा दीं कि सब्जी की खुशबू से कुछ जायका तो रोटियों में आ ही जायेगा.

अचानक ही सराय—मालिक रसोई में आ धमका और भिखारी का गिरेबान पकड़कर उसपर सब्जी चुराने का इल्जाम लगाने लगा.

”मैंने सब्जी नहीं चुराई!“ — भिखारी बोला — ”मैं तो सिर्फ उसकी खुशबू ले रहा था!“

”तो फिर तुम खुशबू की कीमत चुकाओ!“ — सराय—मालिक बोला.

भिखारी के पास तो फूटी कौड़ी भी नहीं थी. सराय—मालिक उसे घसीटकर काजी मुल्ला नसरुद्दीन के पास ले गया.

मुल्ला ने सराय—मालिक की शिकायत और भिखारी की बात इत्मीनान से सुनी.

”तो तुम्हें अपनी सब्जी की खुशबू की कीमत चाहिए न?“ — मुल्ला ने सराय—मालिक से पूछा.

”जी. आपकी बड़ी महरबानी होगी“ — सराय—मालिक बोला.

”ठीक है. मैं खुद तुम्हें तुम्हारी सब्जी की खुशबू की कीमत अदा करूँगा“ — मुल्ला बोला — ”और मैं खुशबू की कीमत सिक्कों की खनक से चुकाऊँगा“.

यह कहकर मुल्ला ने अपनी जेब से कुछ सिक्के निकाले और उन्हें हथेली में लेकर जोरों से खनकाया और उन्हें वापस अपनी जेब में रख लिया.

ठगाया—सा सराय—मालिक और हैरान—सा भिखारी, दोनों अपने—अपने रास्ते चले गए.

मुल्ला नसरुद्दीन के चंद छोटे किस्से

कल मुल्ला नसरुद्दीन के किस्सों पर हिमांशु जी की अच्छी टिपण्णी आई — ”मुल्ला के यह किस्से रोचक तो हैं ही, अर्थगर्भित भी हैं। मुझे तो यह प्रबोध देते जान पड़ते हैं हमेशा।“ — सच कहते हैं हिमांशु. कभी— मुल्ला के बेतुके से प्रतीत होने वाले किस्से भी जेन कथाओं की भांति जीवन और संसार के किसी गहरे पक्ष की ओर इंगित करते हैं.

यह कोई जरूरी नहीं कि ये किस्से वाकई मुल्ला के ही हों. यह भी तय नहीं है कि मुल्ला नसरुद्दीन नामक कोई शख्स वाकई कभी हुआ भी हो या नहीं. कुछ लोग अभी भी तुर्की में उसकी कथित कब्र देखने जाते हैं. खैर, मुल्ला के छोटे—छोटे किस्सों की कड़ी में प्रस्तुत हैं चंद और छोटे किस्सेरू

किस्मत सबकी पलटा खाती है. एक वक्‌त ऐसा भी आया कि मुल्ला को खाने के लाले पड़ गए. बहुत सोचने के बाद मुल्ला को लगा कि भीख मांगने से अच्छा पेशा और कोई नहीं हो सकता इसलिए वो शहर के चौक पर खड़ा होकर रोज भीख मांगने लगा.

मुल्ला के बेहतर दिनों में उससे जलनेवालों ने जब मुल्ला को भीख मांगते देखा तो उसका मजाक उड़ाने के लिए वे उसके सामने एक सोने का और एक चांदी का सिक्का रखते और मुल्ला से उनमें से कोई एक सिक्का चुनने को कहते. मुल्ला हमेशा चांदी का सिक्का लेकर उनको दुआएं देता और वे मुल्ला की खिल्ली उड़ाते.

मुल्ला का एक चाहनेवाला यह देखकर बहुत हैरान भी होता और दुखी भी. उसने एक दिन मौका पाकर मुल्ला से उसके अजीब व्यवहार का कारण पूछा — ”मुल्ला, आप जानते हैं कि सोने के एक सिक्के की कीमत चांदी के कई सिक्कों के बराबर है फिर भी आप अहमकों की तरह हर बार चांदी का सिक्का लेकर अपने दुश्मनों को अपने ऊपर हंसने का मौका क्यों देते हैं.“

”मेरे अजीज दोस्त“ — मुल्ला ने कहा — ”मैंने तुम्हें सदा ही समझाया है कि चीजें हमेशा वैसी नहीं होतीं जैसी वो दिखती हैं. क्या तुम्हें वाकई ये लगता है कि वे लोग मुझे बेवकूफ साबित कर देते हैं? सोचो, अगर एक बार मैंने उनका सोने का सिक्का कबूल कर लिया तो अगली बार वे मुझे चांदी का सिक्का भी नहीं देंगे. हर बार उन्हें अपने ऊपर हंसने का मौका देकर मैंने चांदी के इतने सिक्के जमा कर लिए हैं कि मुझे अब खाने—पीने की फिक्र करने की कोई जरुरत नहीं है.“

' ' ' ' '

एक दिन मुल्ला के एक दोस्त ने उससे पूछा — ”मुल्ला, तुम्हारी उम्र क्या है?“

मुल्ला ने कहा — ”पचास साल.“

”लेकिन तीन साल पहले भी तुमने मुझे अपनी उम्र पचास साल बताई थी!“ — दोस्त ने हैरत से कहा.

”हाँ“ — मुल्ला बोला — ”मैं हमेशा अपनी बात पर कायम रहता हूँ“.

' ' ' ' '

”जब मैं रेगिस्तान में था तब मैंने खूंखार लुटेरों की पूरी फौज को भागने पर मजबूर कर दिया था“ — मुल्ला ने चायघर में लोगों को बताया.

”वो कैसे मुल्ला!?“ — लोगों ने हैरत से पूछा.

”बहुत आसानी से!“ — मुल्ला बोला — ”मैं उन्हें देखते ही भाग लिया और वे मेरे पीछे दौड़ पड़े!“

' ' ' ' '

एक सुनसान रास्ते में घूमते समय नसरुद्दीन ने घोड़े पर सवार कुछ लोगों को अपनी और आते देखा. मुल्ला का दिमाग चलने लगा. उसने खुद को लुटेरों के कब्जे में महसूस किया जो उसकी जान लेने वाले थे. उसके मन में खुद को बचाने की हलचल मची और वह सरपट भागते हुए सड़क से नीचे उतरकर दीवार फांदकर कब्रिस्तान में घुस गया और एक खुली हुई कब्र में लेट गया.

घुडसवारों ने उसे भागकर ऐसा करते देख लिया. कौतूहलवश वे उसके पीछे लग लिए. असल में घुडसवार लोग तो साधारण व्यापारी थे. उन्होंने मुल्ला को लाश की तरह कब्र में लेटे देखा.

”तुम कब्र में क्यों लेटे हो? हमने तुम्हें भागते देखा. क्या हम तुम्हारी मदद कर सकते हैं? तुम यहाँ क्या कर रहे हो?“ — व्यापारियों ने मुल्ला से पूछा.

”तुम लोग सवाल पूछ रहे हो लेकिन यह जरूरी नहीं कि हर सवाल का सीधा जवाब हो“ — मुल्ला अब तक सब कुछ समझ चुका था — ”सब कुछ देखने के नजरिए पर निर्भर करता है. मैं यहाँ तुम लोगों के कारण हूँ, और तुम लोग यहाँ मेरे कारण हो“.

' ' ' ' '

मुल्ला एक दिन दूसरे शहर गया और उसने वहां एक दूकान के सामने एक आदमी खड़ा देखा जिसकी दाढ़ी बेतरतीब बढ़ी हुई थी. मुल्ला ने उस आदमी से पूछा — ”क्यों मियां, तुम दाढ़ी कब बनाते हो?“

उस आदमी ने जवाब दिया — ”दिन में 20—25 बार.“

मुल्ला ने कहा — ”क्यों बेवकूफ बनाते हो मियां!“

आदमी बोला — ”नहीं. मैं नाइ हूँ.“

' ' ' ' '

एक दिन मुल्ला का एक दोस्त उससे एक—दो दिन के लिए मुल्ला का गधा मांगने के लिए आया. मुल्ला अपने दोस्त को बेहतर जानता था और उसे गधा नहीं देना चाहता था. मुल्ला ने अपने दोस्त से यह बहाना बनाया कि उसका गधा कोई और मांगकर ले गया है. ठीक उसी समय घर के पिछवाड़े में बंधा हुआ मुल्ला का गधा रेंकने लगा.

गधे के रेंकने की आवाज सुनकर दोस्त ने मुल्ला पर झूठ बोलने की तोहमत लगा दी.

मुल्ला ने दोस्त से कहा — ”मैं तुमसे बात नहीं करना चाहता क्योंकि तुम्हें मेरे से ज्यादा एक गधे के बोलने पर यकीन है.“

' ' ' ' '

एक बार मुल्ला को लगा कि लोग मुफ्त में उससे नसीहतें लेकर चले जाते हैं इसलिए उसने अपने घर के सामने इश्तेहार लगायारू ”सवालों के जवाब पाइए. किसी भी तरह के दो सवालों के जवाब सिर्फ 100 दीनार में“

एक आदमी मुल्ला के पास अपनी तकलीफ का हल ढूँढने के लिए आया और उसने मुल्ला के हाथ में 100 दीनार थमाकर पूछा — ”दो सवालों के जवाब के लिए 100 दीनार ज्यादा नहीं हैं?“

”नहीं“ — मुल्ला ने कहा — ”आपका दूसरा सवाल क्या है?“