Meri Aruni - 5 in Hindi Love Stories by Devika Singh books and stories PDF | मेरी अरुणी - 5

मेरी अरुणी - 5

अरुंधती की तेज चीख सुन कर सभी आ गए थे। घर के नौकरों ने उस पुतले को नीचे उतारा। पर यह साफ नहीं हुआ कि किसने अरुंधती को डराने के लिए ऐसा मजाक किया। उस रात रानी मां ने अरुंधती को अपने साथ सुलाया। मृणाल भी देर रात तक ऐसा करने वाले के बारे में ही सोचता रहा। उसके दिमाग में हर बार स्वर्णा का चेहरा घूम जाता, लेकिन कारण समझ नहीं आता।

इस घटना के बाद अरुंधती गुमसुम हो गयी। पोट्रेट बनाते समय भी एक खामोशी उसके चारों तरफ रहती। मृणाल भी बहुत परेशान रहता। इन चंद दिनों में उसके आसपास इतना कुछ घट गया, जो उसे बेचैन करने के लिए पर्याप्त था। लेकिन अरुंधती की चुप्पी से मृणाल अपनी परेशानी भी भूल गया। उसने ठान लिया कि वह किसी भी तरह से अरुंधती की खोयी मुस्कराहट लौटा कर रहेगा।

एक शाम अरुंधती डूबते सूरज को देख रही थी, तभी छाया ने आ कर बताया कि मृणाल नीचे उसका इंतजार कर रहा है। उसका मन मना करने का हुआ, पर कुछ सोच कर उसने ऐसा नहीं किया। नीचे पहुंचने पर अरुंधती ने देखा कि मृणाल एक बाइक पर बैठा है।

वह बोला, “फटाफट आ जाओ!” वह फिर मना नहीं कर पायी।अरुंधती के पीछे बैठते ही मृणाल ने बाइक स्टार्ट कर दी। देर तक घुमावदार रास्तों पर दोनों घूमते रहे। जितनी ही बार टेढ़े-मेढ़े मोड़ों से मुड़ती बाइक अरुंधती को मृणाल की देह पर ढुलका देती, उतनी ही बार उसका दिल उछल जाता। क्या जानबूझ कर ही मृणाल उसे ऐसे छेड़ रहा है। और ऐसा है भी तो अच्छा ही है। थोड़ी देर बाद मृणाल ने एक जगह बाइक रोक दी।

अरुंधती ने पूछा, “यह कहां रोक दिया?”

“तुम चलो तो!”

मृणाल एक जगह पहुंच कर रुक गया। अरुंधती ने उस तरफ देखा, तो देखती रह गयी। पेड़ों के झुरमुट से बनी गुफा तारों भरे आकाश के नीचे बैठी मानो उनकी ही राह देख रही है। जमीन पर सफेद फूलों की चादर बिछी हुई थी।

मृणाल बोला, “चलो, आज यहां लेट कर तारे गिनते हैं!”

“क्या?” अरुंधती को आगे ना बढ़ते देख कर मृणाल बोला, “अरे? सोच क्या रही हो, चलो ना! कहो तो गोद में उठा कर ले चलूँ!” अरुंधती ने मृणाल की तरफ देखा, तो यह बात समझने में उसे देर ना लगी कि इस समय यह लड़का कुछ भी कर सकता है। इससे पहले वह कोई शरारत करता, वह खुद चल पड़ी। अरुंधती को मृणाल का साथ अच्छा लगने लगा था, पर जैसे भी हो, वह मृणाल को यह बात पता लगने नहीं दे सकती है।

“क्या करना है यहां आ कर, अंधेरा होने को है। घर चलते हैं ना?” मृणाल इस बात के जवाब में फूलों की बिछी चादर पर लेटता हुआ बोला, “यह करना है!” अरुंधती उसकी बच्चों सी चंचलता देख कर मुस्करा दी। फिर बिना कुछ बोले उसके पास आ कर लेट गयी। कुछ देर तक दोनों खामोशी से तारों को देखते रहे।

वह बोला, “समय बीतते-बीतते हमारे अंदर से कुछ ले जाता है। पर खाली जगह को यादों से नहीं, नयी कहानियों से भरते हैं। क्योंकि हमें बीतते समय में नहीं, आज में जीना है।”

“मैं हर बार कुछ नया तलाशने की कोशिश में थोड़ा और पीछे चली जाती हूं। जैसे यों ही भटकना, धीरे-धीरे धंसते जाना ही मेरा भाग्य है।”

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“ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि तुम बड़ी खुशियों की तलाश में छोटी खुशियों को अनदेखा कर देती हो!”

“जैसे?”

“जैसे इस सुंदर पल की खुशियों को एंजॉय करने की जगह तुम उदासियों में घिरी हो!”

वह अपनी गरदन मृणाल की तरफ मोड़ कर मुस्कराती हुई बोली, “इस तरह तो मैंने कभी सोचा ही नहीं। तो फिर आज से मैं हर पल में छिपी खुशी को जीने की कोशिश करूंगी!”

मृणाल भी उसे ही देखते हुए बोला, “और अपने आसपास वालों का भी ध्यान रखना, जिनकी खुशी शायद तुम से हो!” दोनों की आंखें एक-दूसरे पर ठहर सी गयीं। अचानक मृणाल थोड़ा सा ऊपर उठा, पर फिर कुछ सोच कर वापस लेट गया। मृणाल के मन की उलझन को समझते ही अरुंधती के होंठों पर नटखट मुस्कान खेल गयी।

वह बोली, “कभी-कभी खुशियों को हाथ बढ़ा कर खींच लेना चाहिए।”

“कैसे?”

“ऐसे!” यह बोल कर अधलेटी अरुंधती ने अपने होंठ मृणाल के होंठ पर रख दिए। सब कुछ इतना जल्दी हुआ कि मृणाल कुछ समझ ही नहीं पाया। वैसे भी वह पल समझने का नहीं, जीने का था।

ठीक उसी समय कुछ लोगों के पैरों की आवाज सुनायी पड़ी। दोनों ही संभल कर बैठ गए। मृणाल ने होंठों पर उंगली रख कर अरुंधती को चुप रहने को कहा। वह थोड़ा पीछे हो कर लताओं के पीछे छुप गयी। घुप अंधेरा, सुई चुभोती सर्द हवा और पास आती अजनबी पैरो की आहटें। मृणाल को कुछ समझ नहीं आया कि वह क्या करे, ना आगे जा सकता था, ना ही वापस लौट सकता था। उसने अपने मोबाइल की रोशनी में देखने की कोशिश की। उसे लगा शायद कोई पहचान का हो। तभी उसके पीछे कदमों की तेज आहट हुई। मृणाल पलटा। हड़बड़ाहट में उसका मोबाइल छूट कर जमीन पर जा गिरा। मृणाल ने छुपी हुई अरुंधती को देखना चाहा, पर वह वहां नहीं दिखी। उसे हाथ में लालटेन लिए कई परछाइयां नजर आयीं। वे परछाइयां मृणाल की तरफ बढ़ रही थीं। भगवान और भूत को ना मानने वाले मृणाल के माथे पर पसीने की महीन बूंदें उभर आयीं। उसके कान अपने ही दिल की धड़कन को सुन पा रहे थे। उसने अपनी पैंट की जेब से स्विस नाइफ निकाल लिया। थोड़ी राहत मिली, तो गले से आवाज भी निकली, “कौन है वहां?”

उसकी आवाज सुनते ही सभी परछाइयां एकदम से ठिठक गयीं। पर कोई कुछ बोला नहीं। बस जिस परछाईं के हाथ में लालटेन थी वह आगे बढ़ी। परछाईं अब बिलकुल पास आ चुकी थी। एक-एक कदम पीछे हटते हुए अचानक मृणाल ने लालटेन की रोशनी में उस औरत का चेहरा देखा। छोटा कद, गहरी आंखें, झक सफेद बाल और गोरे चेहरे पर ढेरों झुर्रियां। उम्र करीब अस्सी के आसपास रही होगी। उसने पूछा, “कौन हो बाबू?” मृणाल कुछ जवाब देता, उससे पहले ही पीछे खड़ी परछाइयों में से एक ने कहा, “आप तो मृणाल साहब हैं!” मृणाल को हैरानी हुई, पर उसने गरदन हां में हिला दी। वह फिर बोली, “ इतनी रात गए जंगल में क्या कर रहे हो बाबू?”

इस बात का जवाब भी पीछे से आया, “अम्मा, बाबू को घूमने का बहुत शौक है! बाबू कोई और भी है क्या साथ में!?” इतना कहते ही कुछ लोगों के हंसने की आवाजें भी आयीं। मृणाल भी चेहरे को भरसक सामान्य बनाते हुए बोला, “अरे नहीं, मैं अकेला ही घूमता हुआ आ गया था!”

“तो यहीं बैठे रहने का इरादा है!” उस औरत के बोलने पर मृणाल को यह अहसास हुआ कि वह अभी तक घुटनों पर ही है। वह तुरंत उठ खड़ा हुआ।

उसने मृणाल से पूछा, “कहो तो तुम्हारे साथ किसी को भेज दूँ?”

“नहीं अम्मा, मैं चला जाऊंगा!” इतना कह कर मृणाल की आंखें उस तरफ घूम गयीं, जहां कुछ देर पहले अरुंधती छुपी थी। पर वह जगह अभी भी खाली ही दिखी।

तभी पीछे से फिर आवाज आयी, “अम्मा अब चलो, रानी मां ने आज का ही समय दिया है!”

उस औरत ने जवाब दिया, “हां, हां, चलो!” और वे सभी जंगल के अंदर की तरफ चल दिए। ठीक उसी समय मृणाल ने देखा कि उनमें से कुछ लोगों ने अपने कंधे पर पुतले लादे हुए हैं। उस रात अरुंधती के कमरे में जो पुतला लटका मिला, वह भी ठीक ऐसा ही था। मृणाल सोच में पड़ा उन्हें जाता देखता रहा। तभी उसके कंधे पर किसी ने टैप किया। वह पीछे मुड़ा, तो सामने अरुंधती को खड़ा पाया।

वह दबी आवाज में चीखा, “तुम कहां गायब हो गयी थीं?”

पर वह शांत रही, “मैंने सगुणा काकी और रघु को पहचान लिया था। लेकिन अगर वे मुझे पहचान लेते, तो दिक्कत हो जाती। वैसे भी मेरे परिवार में अभी नए स्कैंडल को झेलने की ताकत नहीं है!”

“तुम्हें क्या मेरी थोड़ी भी चिंता नहीं हुई?” मृणाल की आवाज में दर्द छलक आया।

“चिंता है इसीलिए सबके सामने नहीं आयी। और फिर रघु भी तो था।”

मृणाल नॉर्मल होते हुए बोला, “अच्छा, तभी वह आवाज मुझे जानी-पहचानी लगी। मैं तो अंधेरे के कारण उसका चेहरा भी नहीं देख पाया।”

मृणाल को अरुंधती वहां हो कर भी वहां नहीं लगी। उसके चेहरे की बेचैनी का कारण मृणाल तुरंत समझ गया। बोला, “तुमने भी वे पुतले देखे?”

“हम्म!”

“इसका मतलब समझ रही हो?”

“समझने की कोशिश कर रही हूं!”

वह बोला, “इतना तो तय है कि पुतला रानी मां के इशारे पर बना है! लेकिन क्यों बना है? इसके साथ यह भी समझ नहीं आ रहा कि इसका इस्तेमाल किस ने अपने फायदे के लिए किया!”

“समझ आ जाएगा। मैं घर पहुंचते ही नानी मां से बात करूंगी।” अरुंधती ने अपनी उंगलियों को चटकाते हुए कहा, तो मृणाल ने उसके कंधे पर हाथ रखा और उसे समझाते हुए बोला, “रात में रानी मां को परेशान मत करो। कल सुबह आराम से बात करना।”

“तुम ठीक कह रहे हो। आजकल नानी मां वैसे भी बहुत परेशान हैं। पिछली कुछ रातें उन्होंने जाग कर ही काटी हैं। सुबह ही बात करना ठीक होगा! थैंक्स मृणाल, तुम बहुत समझदार हो!”

“तो अब इस समझदार की बात मानो और इससे पहले कि कोई सचमुच की चुड़ैल आ जाए, यहां से चलो!” मृणाल की इस बात पर अरुंधती भी हंस पड़ी। बाहर आ कर मृणाल ने बाइक स्टार्ट को और दोनों बंगले के लिए निकल गए। लेकिन वे दोनों यह नहीं देख पाए कि कोई उन्हें देख रहा था।

वे डिनर के टाइम तक बंगले पर पहुंच गए। दोनों अंदर घुसने को हुए कि अरुंधती ने मृणाल का हाथ पकड़ कर उसे रोक लिया।

चौंक कर मृणाल ने पूछा, “क्या हुआ अरुंधती?”

“क्या मैं तुमसे कुछ पूछ सकती हूं?”

“पूछो ना?”

अरुंधती ने झिझकते हुए पूछा, “क्या तुम आरुणि से प्यार करते हो?”

मृणाल के चेहरे पर उदास मुस्कान खेल गयी। बोला, “इसका जवाब मैं तुम्हें कल दूंगा?”

“क्या मतलब?”

“मैं कल आरुणि को लेने जा रहा हूं।” इतना सुनते ही अरुंधती के हाथ से मृणाल का हाथ छूट गया। उसके मुंह से निकला, “क्या आरुणि यहां आ रही है!”

“हां, मैं कल सुबह उसे लेने जाऊंगा!”

“ठीक है, तो फिर कल मिलते हैं!” अरुंधती चाह कर भी इससे अधिक कुछ नहीं बोल पायी, क्योंकि अगर बोलती तो रो पड़ती। इसलिए उसने तुरंत मृणाल को बाय कहा और पलट गयी। मृणाल के आवाज लगाने पर भी उसने पीछे मुड़ कर नहीं देखा, क्योंकि आंसुओं पर लगा बांध टूट गया था।

सुबह अरुंधती की आंख देर से खुली। उसका सिर दर्द से फटा जा रहा था। वह कुछ और देर सोने का मन बना कर लेटी रही। तभी उसके मोबाइल की मैसेज टोन बजी। उसने शरीर को मोड़ा और मोबाइल उठा कर मैसेज पढ़ने लगी। मैसेज मृणाल का था। पता चला कि वह शिमला के लिए निकल गया है। मैसेज पढ़ते ही ना चाहते हुए अरुंधती की आंखें फिर छलक आयीं। लेकिन फिर तुरंत ही उसने खुद को संभाला और फ्रेश होने बाथरूम में घुस गयी। जब अरुंधती तैयार हो कर रानी मां से बात करने उनके कमरे में पहुंची, तो पता चला, वे बिजनेस के किसी काम से सुबह ही शिमला के लिए निकल गयी हैं। अरुंधती को अभी भी अपनी तबीयत ठीक नहीं लग रही थी। इसलिए दवा ले कर अपने कमरे में सोने चली गयी। वह पूरी दोपहर सोती रही। अगर दरवाजे पर तेज दस्तक ना होती, तो शायद कुछ देर और सो लेती। उसने उठ कर दरवाजा खोला। सामने छाया बदहवास सी खड़ी थी। अरुंधती को देखते ही बोली, “दीदी मां, आप अपना फोन क्यों नहीं उठा रहीं?”

“मेरी तबीयत ठीक नहीं है इसलिए फोन ऑफ करके सो रही थी। क्यों क्या हुआ?”

रुंधी आवाज में छाया बोली, “शिमला जाते समय रानी मां की गाड़ी खाई में गिर गयी। हमारी रानी मां नहीं रहीं!”

सगुणा और रघु को पुतले ले जाते देख मृणाल व अरुंधती हैरान रह गए। क्या वाकई अरुंधती के कमरे में वह पुतला रानी मां ने रखवाया था, मगर क्यों ? इससे पहले कि अरुंधती रानी मां से इसका सवाल पूछ पाती, उनकी मौत की खबर ने सबको हिला कर रख दिया।कौन थी आरुणि जिसे लेने मृणाल शिमला चला गया था ?

इन सब सवालों के जवाब अगले पार्ट में

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