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मेरी अरुणी - 8

उस लाश की हालत बहुत खराब थी। पूरा शरीर फूला हुआ और चेहरा डरावना। अगर शरीर पर कपड़े और गहने ना होते, तो पहचानना मुश्किल हो जाता कि यह रानी मां हैं। रात में अंतिम संस्कार का रिवाज नहीं है। इसलिए तुरंत ही लाश को सुबह तक ठीक रखने का इंतजाम किया गया। अरुंधती एक कोने में बैठी कांपती रही। एक शब्द भी नहीं बोली।

शांतनु ने ही पूछा, “आप लोगों ने रानी मां को अकेले जाने ही क्यों दिया?”

जवाब वकील साहब ने दिया, “मेरा ड्राइवर गया था उनके साथ। लेकिन बाद में उन्होंने उसे बीच रास्ते में ही जाने को कह दिया और खुद ही गाड़ी ले कर निकल गयीं।’’

“हमें तो आज सुबह ही एक्सीडेंट का पता चला। कल पूरी शाम मैं रानी मां और बंगले का नंबर ट्राई करता रहा, पर फोन लगा ही नहीं,’’ मनोहर ने कहा, तो शांतनु ने उसे थम्स अप का इशारा दिया। उनके बीच हुए इशारों को मृणाल के अलावा कोई और नहीं देख पाया।

“ये नानी मां नहीं हैं!” अब तक चुप बैठी अरुंधती चिल्ला पड़ी। स्वर्णा ने उसे संभालने की कोशिश की, तो अरुंधती ने उसे भी झटक दिया।

“लाश के डीएनए टेस्ट का रिजल्ट थोड़ी देर पहले ही आया है। रिजल्ट पॉजिटिव है। ये रानी मां ही हैं,” पास ही खड़े पुलिस इंस्पेक्टर ने जवाब दिया।

अरुंधती का चेहरा सफेद पड़ गया, जैसे किसी ने उसके शरीर से पूरा खून निचोड़ लिया हो। शांतनु उसकी पीठ सहलाने लगा। स्वर्णा को आंखें पोंछता देख, यह समझना कठिन लगा कि वह रो रही है या रोने का अभिनय कर रही है। रवि और मनोहर शांत खड़े थे। थोड़ी देर बाद वकील साहब से बात करके पुलिसवाले चले गए। मृणाल कमरे के एक कोने में बैठा यह सब कुछ देखता रहा। वह चाह कर भी अरुंधती को अपनी बांहों का सहारा नहीं दे पाएगा, यह बात उसे कचोटती रही। जब उसके लिए वहां बैठना कठिन हो गया, तो वह कमरे से बाहर आ गया। अभी बाहर आए हुए उसे थोड़ा ही समय हुआ कि अंदर से लड़ने की तेज आवाजें आने लगीं। अरुंधती का ध्यान आते ही वह अंदर भागा।

मृणाल को अंदर का नजारा बदला हुआ लगा। इतना तो वह समझ गया कि वकील साहब की किसी बात पर झगड़ा हुआ है। स्वर्णा लगातार चीखती जा रही थी।

“क्या बात हो गयी?” मृणाल ने पूछा। उसकी नजरें अरुंधती से पलभर को मिलीं।

“रानी मां ने अपनी पूरी प्रॉपर्टी अपनी दोनों नातिनों के नाम कर दी है। एक बहन की मृत्यु हो जाने पर दूसरी बहन पूरी प्रॉपर्टी की मालकिन हो जाएगी। और अगर दोनों बहनों की मौत हो जाए, तो प्रॉपर्टी ट्रस्ट में चली जाएगी। किसी भी हालत में प्रॉपर्टी स्वर्णा को नहीं मिलेगी। लेकिन उसे हमेशा की तरह हर महीने जेबखर्च मिलता रहेगा। लेकिन लगता है यह बात स्वर्णा को पसंद नहीं आयी,’’ वकील साहब की आवाज में तल्खी लगी।

स्वर्णा तेज आवाज में बोली, “पसंद आनेवाली बात होती, तो जरूर आती। मर कर भी वह औरत मेरी मां नहीं बन पायी!”

“तुम कौन सी उनकी बेटी बन पायी?” रवि सक्सेना ने तंज कसा।

इस बात पर स्वर्णा मुंह टेढ़ा कर बोली, “पर तुम, चाटुकार चोर का अपना रोल अच्छे से निभाते रहना! पहले रानी मां के जूते चाट कर और अब अरुंधती के जूते चाट कर तुम्हारा काम तो निकल ही जाएगा। बीच-बीच में जब भी मौका मिले हाथ भी साफ करते रहना।’’

“स्वर्णा!” रवि के चीखने का स्वर्णा पर कोई असर नहीं हुआ।

लेकिन वकील साहब जरूर बोले, “इस बार मैं स्वर्णा की बात का समर्थन करता हूं!”

“वकील साहब, ये आप क्या कह रहे हैं?” रवि चौंका।

“रानी मां आपकी असलियत जानती थीं। लेकिन अरुणिमा को किया अपना वादा निभाने के लिए उन्होंने आपसे कभी कुछ नहीं कहा। लेकिन अब बस। आपका रोल अब समाप्त होता है। आपका सारा कर्ज चुका दिया गया है। इतना ही नहीं रानी मां ने आपके अकाउंट में दस लाख रुपए भी डाले हैं। लेकिन आपको यह सब एक शर्त पर मिलेगा। भविष्य में अरुंधती और इस घर से आपका कोई संबंध नहीं रह जाएगा। पेपर मेरे पास तैयार पड़े हैं। जैसे ही आप इस पेपर पर साइन करेंगे, आपका काम हो जाएगा।”

“जी-जी-जी,” रवि का मिमियाना सुन कर मृणाल को उससे घृणा हो आयी।

“आप सब चुप हो जाइए! अरुंधती का तो सोचिए! घर में रानी मां की लाश पड़ी है और आप लोग पैसों को ले कर लड़ने लगे। कम से कम अंतिम संस्कार तक तो रुक जाते। छी-छी-छी!” अरुंधती को अपनी बांहों में बांधता हुआ शांतनु बोला, तो वकील साहब का ध्यान उसकी तरफ गया। बोले, “तुम ठीक कह रहे हो! आई अपोलोजाइस। मुझे बात आज नहीं उठानी चाहिए थी। अरुंधती, माइ चाइल्ड, यू आर लकी, जो तुम्हें शांतनु जैसा साथी मिला। इन फैक्ट रानी मां भी तुम दोनों की शादी जल्द से जल्द कर देना चाहती थीं। इसे तुम दोनों उनकी आखिरी ख्वाहिश समझ लो!” इतना कह कर वकील साहब ने शांतनु को कुछ इशारा किया।

“नानी मां वाकई ऐसा चाहती थीं?” अरुंधती ने धीमी आवाज में पूछा, तो वकील साहब ने हां में सिर हिला दिया। इसके बाद अरुंधती ने उनसे कुछ नहीं पूछा। बस एक बार आंखें उठा कर मृणाल की तरफ देखा। मृणाल के मन में आया कि उसी समय अरुंधती को अपनी बांहों की डोली में उठा कर वहां से ले कर चला जाए। अरुंधती की छलछलायी आंखों में मृणाल को अपना चेहरा नजर आया।

बड़ी मुश्किल से मृणाल ने अपनी नजर अरुंधती पर से हटायी और बोला, “अगर यहां चाहतों का हिसाब-किताब चल रहा है, तो कोई शांतनु बाबू से भी तो उनकी चाहत के बारे में पूछे!” फिर बड़े अधिकार से सोफे पर अधलेटा हो कर सिगरेट जलाने लगा।

“पूछना क्या है! मेरी चाहत अरुंधती है!”

“अच्छा! तो फिर शिमला के ले जोसफिन कैफे में आप स्वर्णा को क्यों चूम रहे थे?” मृणाल की इस बात से वहां मौजूद सभी लोग चौंक पड़े। शांतनु तो चीख पड़ा, “शटअप मृणाल। क्या बक रहे हो!”

“यही कि तुम और स्वर्णा...”

“मैं और स्वर्णा मां का क्या, तुम...” इससे पहले कि शांतनु अपनी बात पूरी करता, उसके गाल पर स्वर्णा ने झन्नाटेदार थप्पड़ जड़ दिया। मृणाल को छोड़ कर सभी लोग अपनी जगह पर खड़े हो गए। लेकिन मृणाल अभी भी अधलेटा सिगरेट फूंकता रहा, जैसे सामने कोई फिल्म चल रही हो। सब कुछ नाटकीय अंदाज में घटने लगा।

स्वर्णा दोनों हाथों से अपना मुंह ढक कर रोने लगी। बोली, “मैं नीच हूं! नीच ना होती, तो मेरे जिस्म को भोगनेवाला आदमी आज मुझे मां नहीं कहता।“

“स्वर्णा चुप हो जाओ!” शांतनु बोला।

पर स्वर्णा चुप नहीं हुई, बोलती रही, “हां, यह सच है! मेरा और शांतनु का अफेअर चल रहा है। शांतनु मुझे और अरुंधती दोनों को डेट कर रहा था। पर यह सब जानते हुए भी मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं हुई। शांतनु को अपने साथ देख कर मुझे अरुंधती और रानी मां पर अपनी जीत का अहसास होता। वह मेरी ट्रॉफी बन गया था। मुझे लगा कि किसी को कभी कुछ पता नहीं चलेगा।”

“लेकिन अरुणिमा को सब पता चल गया!” अरुंधती ने धीरे से कहा।

‘‘हां! सगाई की अगली रात जब अरुंधती रानी मां के साथ बाहर गयी, मैं शांतनु को गेस्ट रूम में अकेला जान कर उसके पास आ गयी। हमें लगा अरुणिमा सो गयी है। लेकिन अरुणिमा तो नीचे लॉन में पेंटिंग कर रही थी। हम दोनों ही बालकनी का दरवाजा चेक करना भूल गए। और शायद अरुणिमा भी शांतनु के उस कमरे में होने की बात भूल गई थी। इसलिए हमेशा की तरह देर रात अंदर आने के लिए उसने बालकनी वाली सीढ़ियों का उपयोग किया। दरवाजा खोलते ही उसकी नजर हम दोनों पर पड़ गयी। कुछ समय के लिए उसके पांव जम गए। ना वह चीखी, ना चिल्लायी। मुझसे नजर मिलते ही वह ऊपर टैरेस की तरफ भागी। मैं और शांतनु उसके पीछे भागे। हमें देखते ही वह रेलिंग पर चढ़ कर अपने मोबाइल से किसी को फोन करने लगी। शांतनु समझ गया कि वह रानी मां को फोन कर रही है। समझ तो मैं भी गयी थी। इसलिए मैंने उसके हाथ से फोन छीनने की कोशिश की। इस छीनाझपटी में उसका बैलेंस बिगड़ा और वह नीचे गिर पड़ी।”

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“वह एक एक्सीडेंट था! सुन लिया आप सबने, वह एक एक्सीडेंट था!” शांतनु बोल उठा।

“वह एक्सीडेंट नहीं था!” स्वर्णा चीखी।

“स्वर्णा, प्लीज चुप हो जाओ!” शांतनु गिड़गिड़ाया।

“मैंने चुप रहने की, उस रात को भुलाने की और अपने आपको माफ करने की बहुत कोशिश की। पर हार गयी। वह रोज मेरे सपनों में आती है। तुम मेरे पास होते, तब भी आती है। शांतनु, अब मुझे सच कहना ही होगा!”

“तो सच बोलो स्वर्णा!” मृणाल ने कहा।

वह बोलने लगी, “बैलेंस बिगड़ते ही अरुणिमा पलटी और छज्जे पर लटक गयी। मैं उसे बचा सकती थी। पर नहीं बचाया। उस समय मुझे शांतनु को बचाने में अपना फायदा नजर आया। हम दोनों वहां खड़े अरुणिमा को तड़पता देखते रहे। थोड़ी देर बाद वह बोली, ‘मां इस हादसे के बारे में किसी को मत बताना, भूल जाना। वरना मां शब्द गाली बन जाएगी!’ और फिर उसने खुद ही छज्जे पर से अपना हाथ हटा दिया।”

“लेकिन आपने अरुणिमा और शांतनु की अफेअर की बात क्यों उड़ायी?” मृणाल ने ही पूछा।

“शांतनु ने मुझे बताया था कि अरुणिमा उसे पसंद करती है। हालांकि मुझे यह बात सच नहीं लगी, लेकिन फिर भी मैंने उसके और शांतनु की झूठी अफेअर की खबरें उड़ायीं, ताकि उसे गलत साबित करके मेरे अंदर का गिल्ट मर जाए। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हर रात वह मेरे सपनों में आ कर अपनी बात दोहराती रहती है, हर रात, हर रात, हर रात! वह मर कर भी नहीं मरी! वह यहीं है!”

अचानक से कमरे में अंधेरा हो गया। पर कोई भी अपनी जगह से नहीं हिला। तभी खिड़की का शीशा टूटने की तीखी आवाज हुई। सभी ने चांद की रोशनी में एक साए को अपनी तरफ बढ़ते देखा। दूधिया सफेद। अंधेरे में तो वह आकृति पहले हल्की परछाईं की तरह दिखी थी, पर अचानक बिजली चमकी, तो सभी ने देखा सफेद लबादा जैसा पहने सवा 5 फीट लंबी और थोड़ी चौड़ी सी इंसानी आकृति दरवाजे के ठीक सामने खड़ी थी।

“वह कौन है?”शांतनु ने कांपती आवाज में पूछा।

“देखो, देखो वह आ गयी। अब वह हम दोनों को नहीं छोड़ेगी!” इस खामोशी में स्वर्णा की हंसी डरावनी लगी।

“उसके पैर नहीं हैं!” रवि फुसफुसाया। यकायक जंगल में सियार रोने लगे, तो वहां मौजूद सभी लोगों के रोंगटे खड़े हो गए। अचानक साया पास आता रहा और वे सभी पीछे हटते गए। अचानक वह गायब हो गया।

“आपने उसके पैर देखे थे?” मृणाल ने रवि से पूछा।

“नहीं!”

“फिर कैसे कहा कि उसके पैर नहीं हैं!”

“भूतों के पैर नहीं होते!”

“और चुड़ैलों के!?

“उनके होते हैं, पर पीछे की ओर मुड़े होते हैं!” शांतनु ने जवाब दिया।

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“नहीं! अब ऐसा नहीं है। अब तो चुड़ैलों ने सीधे पैर से चल कर लात मारना सीख लिया है!” मृणाल अगर अरुंधती को रोकता नहीं, तो शांतनु को दूसरा थप्पड़ पड़ना तय था। ठक-ठक-ठक। ऐसा लगा जैसे किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी हो। सब एक दूसरे को यों देखने लगे जैसे दरवाजा खोलने को कह रहे हो। एक-दो लोगों ने घर के नौकरों को आवाज भी लगायी। पर कोई नहीं आया। दरवाजे पर दस्तक तेज, और तेज, और तेज होती गई। मृणाल ने खिड़की से झांका तो, सामने वही सफेद साया खड़ा पाया। एकदम दरवाजे के पास। मृणाल ने सबको शांत रहने का इशारा किया और धीरे-धीरे दरवाजा खोला। चर्र-चर्र-चर्र। वह साया हवा के साथ चल कर अंदर आ गया। किसी के मुंह से एक बोल नहीं फूटा। मृणाल भरसक कोशिश कर देखने लगा कि इस साए के पैर हैं भी की नहीं। और अगर हैं, तो सीधे हैं या उल्टे। अचानक से जिस कमरे में रानी मां की लाश थी, वहां से अजीब-अजीब आवाजें आने लगीं। सभी का ध्यान थोड़ी देर के लिए उधर गया। और फिर जब वे पलटे, तो साया गायब था।

तभी सीढ़ियों पर कई पैरों की आहटें सुनायी पड़ीं। डर के मारे स्वर्णा चीख पड़ी, “वह आ गयी!”

शांतनु भी डर गया और बड़बड़ाने लगा, “अरुणिमा मुझे माफ कर दो! मैं बहुत बुरा आदमी हूं! मैं यह भी मानता हूं, मैंने ही रानी मां की गाड़ी का एक्सीडेंट कराया। पर गलती मेरी नहीं है। मेरे पापा और बड़े भाई की है। वे मुझे जायदाद से बेदखल कर देने की धमकी दे रहे थे! तुम उन्हें मार दो और मुझे छोड़ दो!”

पैरों की आहटें शांतनु के पास आ कर रुक गयीं। तभी कोई बोला, “पिक अ बू!” और कमरे में रोशनी फैल गयी।

अरुणिमा की मौत का सच इस तरह से सामने आएगा, किसी ने सोचा भी नहीं था। शांतनु और स्वर्णा के गुनाह कबूल करने के बावजूद कौन था वह साया, जो सबको डराने आया था। किसने शांतनु के कान में आकर कहा, पिक अ बू।

सच के पूरे खुलासे के लिए इंतजार करें अंतिम पार्ट में