Ek Ruh ki Aatmkatha - 6 books and stories free download online pdf in Hindi

एक रूह की आत्मकथा - 6

कितना बड़ा झूठ है कि जिंदगी में बस एक ही बार प्यार होता है।जिंदगी शेष हो तो प्रेम अशेष हो ही नहीं सकता।
समर से मुझे प्यार हो जाएगा ,ये तो मैंने कभी सोचा ही नहीं था।ठीक है कि वह मुझे अच्छा लगता था ,पर वह रौनक की जगह ले लेगा,यह मेरे लिए अकल्पनीय था। उसने रौनक के जाने के बाद मेरी हर तरह से देखभाल की थी।मेरा इतना साथ दिया था कि मेरे भीतर की स्त्री उससे प्रभावित हो गई थी। मुझे विश्वास हो गया था कि समर को मेरे जिस्म से नहीं मेरे व्यक्तित्व से लगाव है।रौनक के रहने पर भी उसकी आंखें मुझे देखते ही चमक उठती थीं,पर उस चमक में मुझे प्यार दिखाई नहीं पड़ता था,पर अब वह प्यार मैं महसूस करने लगी थी।हालांकि हम दोनों में से किसी ने भी अपने प्यार का इज़हार नहीं किया था।हम दोनों ही जानते थे कि इस प्यार के सामने आते ही हम दोनों की दुनिया में भूचाल आ जाएगा।समर शादीशुदा है और मैं भी तो माँ बनने वाली हूँ।हम दोनों में अंतरंग दोस्ती हो सकती है पर प्यार या शादी के बारे में हम नहीं सोच सकते।
कोई बात नहीं।हमारे बीच जितना और जो है वह भी कम नहीं ।जरूरी तो नहीं कि हर रिश्ते को एक नाम ही दिया जाए।नाम- विहीन रिश्ते भी आजीवन चल सकते हैं।
हालांकि हम दोनों को ही पता था कि हमलोगों के बारे में लोग बहुत कुछ कहते -सुनते हैं।हमारे समाज में स्त्री पुरूष की दोस्ती को कभी भी अच्छी निगाह से नहीं देखा जाता।विशेषकर जब स्त्री अकेली हो।पति के साथ रहने वाली स्त्री के पुरूष मित्रों को संदेह की नजर से नहीं देखा जाता। रौनक के रहते मैं पुरूषों के बीच काम करती रही तो कोई परेशानी नहीं हुई।किसी ने कोई सवाल नहीं उठाया पर उसके जाते ही मैं जैसे सबकी नजरों में चढ़ गई।अब तो सिर्फ समर ही मेरे पास आता है ,फिर भी लोग मुझे अजीब नजरों से देखने लगे हैं।कहीं मेरे बच्चे को भी समर का न मान लिया जाए!हे ईश्वर,ये तो मैंने सोचा ही न था।समर से मेरा फिजिकली रिश्ता न कभी रहा है, न हो सकता है।कम से कम अभी तो मैंने इस सम्बंध में कभी नहीं सोचा है।समर का नहीं जानती पर उसकी तरफ से भी कभी कोई ऐसा इशारा नहीं मिला।शायद यही कारण है कि हम बेझिझक एक -दूसरे से अपना दुःख -सुख बाँट पाते हैं।न तो समर कभी रौनक से चिढ़ता है न मैं समर की पत्नी से।दोनों ही अपने -अपने जीवन-साथियों के बारे में खुलकर बातें करते हैं।
समर की पत्नी लीला यूँ तो एक सुंदर स्त्री है पर समर ने मुझे उससे कभी नहीं मिलवाया।हर बार कोई न कोई बहाना करके टाल गया।हालांकि रौनक उसके घर जाता था और उसी ने मुझे लीला के बारे में बताया था।
समर ने लीला से प्रेम -विवाह किया था।दोनों एक ही कॉलेज में पढ़ते थे। उनमें पहले प्यार हुआ फिर उन्होंने शादी कर ली थी।शादी हुई तो बच्चे होने ही थे।दो बच्चे (एक लड़का और लड़की) हुए।समर को अपने बच्चों से बहुत लगाव है।वह अक्सर घर से बाहर रहता है पर जब भी घर जाता है बच्चों के लिए महंगे गिफ़्ट ले जाता है।पहले भी जब मैं उसके साथ दूसरे शहरों में शूटिंग के लिए गई तो वापसी में समर ने अपने बच्चों के लिए महंगे गिफ़्ट लिए थे।
"पत्नी के लिए कुछ नहीं"--मेरी इस बात पर वह एक उदास हँसी हँस देता था पर कोई जवाब नहीं देता था।
इस बाबत जब मैंने रौनक से पूछा तो उसने बताया कि समर की लीला से नहीं पटती।वह उसकी मेहनत से कमाई दौलत का खुलकर दुरूपयोग करती है।उसने महंगे -महंगे शौक पाल रखे हैं ।क्लबों में जाना,शराब पीना और जुआ खेलना,किटटीज पार्टियाँ' उसके प्रिय शौक हैं।बच्चे आया के भरोसे पले हैं।
--तो वह उसे छोड़ क्यों नहीं देता?मैंने रौनक से पूछा था।
'अपने बच्चों के कारण....वह उनसे उनकी माँ नहीं छीनना चाहता।माँ कैसी भी हो,अपने बच्चों से प्यार तो करती ही है।'
-ओह!
मेरा मन समर के लिए सहानुभूति से भर गया था।मैंने समर से कभी नहीं जताया कि मैं उसकी पत्नी के बारे में सारा सच जानती हूँ।मैं जानती थी कि इस बात से वह शर्मिंदा होगा।
एक बार वह अपने बच्चों को मुझसे मिलवाने ले आया।बड़े ही प्यारे बच्चे थे।उनकी हँसी और शरारतों से मेरा बंगला महक ...चहक उठा।मेरी कल्पना में मेरा अपना बेबी उभर आया जो इन बच्चों के साथ खेल रहा था।समर मुझे खोया देखकर मुस्कुरा रहा था।उसे मेरा मन पढ़ना आ गया था।
दूसरे दिन जब समर मुझसे मिला तो बड़े तनाव में था।
-क्या हुआ?मैंने पूछ लिया।
'कुछ नहीं...'वह रुआंसे स्वर ने बोला।
-ऐसे कुछ क्यों नहीं!बताओ न,मैं तो तुमसे कभी कुछ नहीं छिपाती।
'लीला ने मेरा जीना मुश्किल कर दिया।वह बहुत ही शक्की औरत है।बिना बात हर समय लड़ती- झगड़ती रहती है।कल बच्चों ने घर जाकर उससे बता दिया कि वे अच्छी वाली आंटी के घर गए थे फिर तो जैसे उसे एक मुद्दा मिल गया।'
-क्या कहती हैं?मैंने पूछा।
'बताने लायक नहीं।उसे हमारे रिश्ते पर संदेह है।'समर नजरें झुकाकर बोला।
-ओह!
इसके आगे न मैंने समर से कुछ पूछा और न उसने कुछ बताया।
ये तो होना ही था और होगा ही।
अभी उसी दिन उस दिन मेरी माँ ने भी कुछ इसी तरह की बातें कही थी।
-बेटा,समर का तुम्हारे घर हर रोज आना अच्छा नहीं।लोग तमाम तरह की बातें बनाते हैं ।मैं जानती हूँ कि तुम दोनों का रिश्ता निष्पाप है पर दुनिया तो नहीं मानती न।समर तुम्हारी मदद करता है तो करे,पर बाहर -बाहर से। तुम्हारे बंगले पर रोज आना और वहाँ घण्टों बने रहना अच्छा नहीं।
फिर दोनों ही जवान हो ।कभी एकांत में कोई भूल -चुक हो गई तो बहुत मुश्किल होगी।एक बार स्त्री पुरूष का रिश्ता बन जाता है तो फिर नहीं छूट पाता।तुम हमेशा याद रखना कि मर्द जाति कुत्ता होता है और किसी का सगा नहीं होता।
'कैसी बात करती हो माँ।समर ऐसा नहीं' -मैंने माँ को टोक दिया था।
--शुरू में कोई ऐसा नहीं होता।पर कब हो जाए ,ऐसा कोई नहीं जानता।आग और फूस एक साथ रहेंगे तो कब तक सुरक्षित रहेंगे? मांस की गठरी का कुत्ता रखवाला नहीं हो सकता।मेरी बात समझने की कोशिश करो।
'माँ मेरे बुरे दिनों में समर ही तो काम आया था।आज भी आ रहा है।वह नहीं होता तो मैं कभी रौनक के सदमे से नहीं उबर पाती।मैं कैसे उससे अपने घर आने से मना कर दूँ?वह मान भी जाएगा पर मैं कैसे रहूंगी?मुझे उसकी आदत लग गई है माँ,जिस दिन उससे बात नहीं हो पाती,मैं पागल- सी हो जाती हूँ।उसे मेरी कोई जरूरत हो न हो ,पर वह मेरी जरूरत जरूर बन गया है,इसलिए मैं अपनी तरफ से कभी उसे मना नहीं कर सकती।सॉरी माँ।'
-समझाना मेरा काम था।आगे तुम जानो।माँ हूँ इसलिए तुम्हारी चिंता है।
माँ का चेहरा उदास हो आया था।