while traveling on the bus books and stories free download online pdf in Hindi

बस में सफर करते वक्त

कभी बस मे सफर करते वक्त किसी खूबसूरत - सी लड़की से मुलाकात हुई है ?

हुई होगी स्वाभाविक है।

दोपहर के तीन बज रहे थे, मुझे इलाहाबाद की ओर जाना था, मिर्जापुर बस स्टैण्ड पर बस खड़ी थी, चिलचिलाती धूप से मै बेहाल था, स्टैण्ड पर लगे दुकानो से मैने एक बाॅटल पानी और कुछ चिप्स सफर के लिए खरीदा, बस मे पहली चार शीटों की पंक्ति खचाखच यात्रीयों से भरी थी, देखकर थोड़ी सी गर्मी और बढ गयी, मै जाकर पांंचवी रो मे विंडो सीट पकड़ राहत की सांस ले ही रहा था कि मेरे कानो मे एक हल्की हवा सी 'एक्सक्यूज़ मी' की आवाज़ आई, ऐसा लगा जैसे 'उंंगली' जलने पर फूंक मारने से क्षणिक सुख मिल गया हो, कुछ पल मै इस सुख का आनन्द ले ही रहा था की तभी दोबारा इसी सुख की अनुभूती हुई,

"कोई बैठा है क्या ?"

"जी हाँँ, मेरा बैग।"

इस बार मैने तनिक भी देरी नही की उसके होठों को अपनी बातो से हँसाने को मजबूर करने की,

'ह्ह्ह्...' डिपंल्स दिखाते हुए, मैने भी प्रतीउत्तर मे अपने दांत छिपाते हुए, होठों मे खिचाव बना के हँस दिया,

"बैग उपर रखा जाता है।"

'ज्ज्जी' न चाहते हुए भी मैने अपने असहाय बैग को अपने पैरो का सहारा दिया, झट से उठाकर अपने पैरो के सहारे अपने उपर रख लिया चूंकि उसमे कुछ ज़्यादा ही पैसे थे तो मैने उसे ऊपर रखना मुनासिब नही समझा,

"कुछ ज़्यादा ही प्यार है बैग से ?'"

''नही पैसो से, इसमे कुछ पैसे हैं।"

"ओह्ह...फिर भी, ऊपर रख सकते हो यही बैठे हो।"

"लाओ।"

"क्या..."

वो घबराकर अपने आपको संवारने लगी,

"लाओ...आपका भी बैग उपर रख दूं...''

"ओह्ह...बिल्कुल''

मैने दोनो ही बैग उपर रख दिए, एक्सपेंसिव था, बैग भी ड्रेस भी और बातों से सहूलियत तो नही, पर रईसियत झलक रही थी

''कहाँँ जा रही हो ?"

''ये बस कहाँँ जा रही ?" उसने तंज भरा जवाब दिया।

"आई मीन, इलाहाबाद, कहाँँ...?"

"इलाहाबाद''

"अकेले...?"

मुझे लगा बोलेगी 'क्यो अकेले नही जा सकती' पर नही इस बार सीधे मुँँह जवाब मिला पर डिप्लोमेटिक,

"हाँँ अकेले। कई बार सफर मे अकेले ही जाना पड़ता है।"

"मैं तो अक्सर ही अकेले सफर करता हूँ।''

बोलकर ज़्यादा नही पर उसकी नज़रो मे कुछ ज़्यादा ही तेज़ी से हँस दिया, वो मूक होकर कुछ वक्त तक मेरी तरफ देखती रही, शायद कुछ सोच रही थी, और मै बहुत कुछ, काफी खूबसूरत थी, पर उसकी बातें उससे भी ज़्यादा खूबसूरत, कद करीब-करीब पांच फिट चार इंच, रंग ऐसा जो किसी को भी मोह ले, और फिर मौहतरमा की फिजिकल एपिरियेंस की तो बात ही ना करे, मिर्जापुर एक छोटा सा शहर, जहाँँ एक ऐसी लड़की मिली जो शायद मेरे लिए भी थोड़ा स्ट्रेंज था, उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे उसने ऐसे कहीं दूर बस से सफर नही किया हो, नतीजन, जब कंडक्टर ने टिकट काटकर बकाये पैसो का विवरण टिकट के पीछे लिखकर आगे बढ गया और वो अपने बकाये पैसे मांगने लगी तो मै श्योर हो गया कि वो नई है।

हम दोनो कुछ पल से शांत बैठे ही थे तब तक उसके फोन की रिंग बजी, 'हैलो...' और फिर कुछ बातें हुई, उसने किसी को अपना लोकेशन दिया, थोड़ी ही देर मे फोन कट गया, ''ब्वायफ्रेंड....?'' मैने थोड़ा संभलकर पूछा, "एक्सक्यूज़ मी।"