Devil's Queen - 19 books and stories free download online pdf in Hindi

डेविल्स क्वीन - भाग 19


यह सुबह भी कल की सुबह की तरह ही अनाहिता के लिए बुरे सपने के जैसी थी जिसकी उम्मीद उसने नही की थी की उसके साथ ऐसा भी कुछ हो जायेगा। आखिर वोह पहुँच कैसे गई थी इस परिस्थिति में? क्यूं वोह अपने आप को रोक नहीं पाई थी, क्यों उसने उसे और उकसा दिया था?

"यू। आर। एन। ऐसहोल। अभिमन्यु। ओबरॉय। अ। फकिंग। ऐसहोल।" अनाहिता ने एक एक शब्द पर जोर देते हुए कहा। वोह बौखला चुकी थी। उसके दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था। वोह खुद ही नही समझ पा रही थी की वोह क्या और क्यूं बोल गई थी इतना।

अभिमन्यु मुस्कुराया। उसकी मुस्कुराहट में एक शैतानी हँसी थी जैसे वोह चाहता था ऐसा करना। जैसे अनाहिता ने उसका दिन बना दिया था अपनी बातों से।

"मुझे स्ट्रॉन्ग लड़कियां बहुत पसंद है, अनाहिता," अभिमन्यु ने कहा और अनाहिता को अपनी जांघ पर उसके पेट के बल उलटा लटका दिया।

अनाहिता उसकी जांघ पर झूल गई। उसके पैर भी जमीन को नही छू रहे थे और उसके हाथ भी जमीन को नही छू पा रहे थे। उसके हिप्स ऊपर की ओर उठ चुके थे अभिमन्यु के घुटनों पर। उसने ज़मीन को छूने की बहुत कोशिश की पर वो नहीं कर पा रही थी।

"जाने दो मुझे!" वोह चिल्लाई, उसने अभिमन्यु के पैर पकड़ लिए।

"मुझे ताकत और बहादुरी बहुत पसंद है, पर उसके साथ साथ आदर, सम्मान और आज्ञाकारिता भी उम्मीद करता हूं। हर समय," अभिमन्यु ने उसे समझाया और इससे पहले की अनाहिता कुछ समझ पाती या कुछ कहती उसे अपने हिप्स पर अभिमन्यु के हाथ का स्पर्श महसूस हुआ। अनाहिता का दिमाग सतर्क हो गया, उसका शरीर एक अनुमान से अकड़ गया, उसे बिलकुल भी अंदाज़ा नही था की आगे क्या होने वाला है।

अभिमन्यु ने उसके हिप्स पर अपने हाथ से मारना शुरू किया और बार बार लगातार मारता चला गया। शर्म से अनाहिता के गाल लाल हो गए। अभिमन्यु बार बार लगातार सिर्फ एक ही जगह पर मारे जा रहा था।

अनाहिता बार बार चिल्ला रही थी, हाथ पैर हिला रही थी पर कोई फायदा नही हो रहा था।

"स्टॉप!" अनाहिता चिल्लाई और अभिमन्यु के पैरों पर अपने नाखून गड़ा दिए।

अभिमन्यु रुका, उसने गहरी सांस ली। अनाहिता को लगा की अब वोह रुक गया है यानी की खतम सब।

पर ऐसा नही था, उसने उसका पायजामा नीचे उतार दिया। ठंड और हवा का एहसास अनाहिता को अपने पीछे महसूस होने लगा।

"अब ज्यादा प्रोटेक्शन नही है ना, है ना!" अभिमन्यु ने तंज कसा और उसकी पैंटी को भी ऊपर कर दिया जब तक की उसकी स्किन पूरी तरह से खुली न हो गई।

अनाहिता का पूरा शरीर मानो अकड़ गया, उसकी आँखें बड़ी बड़ी हो गई। "अभिमन्यु.... प्लीज़...रुक जाओ।" उसने शांत आवाज़ में कहा।

"तुमने कोई रास्ता नही छोड़ा था, अनाहिता। अब इसकी कीमत भी तो तुम्हे चुकानी पड़ेगी," अभिमन्यु ने कहा और फिर उसी जगह पर उसे मारने लगा। पर इस बार उसने दूसरी तरफ नाइंसाफी नहीं दिखाई और दोनो जगह पर उसे बहुत मारा जब तक की बुरी तरह लाल ना हो गया। अनाहिता ने उस से छूटने की बहुत कोशिश की पर सब बेकार रही। वोह रोई, चिल्लाई, लड़ी पर अंत में वोह उस से हार गई।

सिर्फ उसके हिप्स ही नही बल्कि अभिमन्यु की इस हरकत से उसका पूरा शरीर जल उठा।

कुछ देर बाद अभिमन्यु ने उसे मारना बंद किया, पर अपना हाथ उस जगह से नही हटाया ताकी अनाहिता अपनी जगह पर ही टिकी रहे और उठने की कोशिश ना करे। आंसूओं की धारा अनाहिता की आँखों से बह निकली, पर उसके रोने की आवाज़ नही निकली।

अभिमन्यु अपने हाथों से उसका हिप्स सहलाने लगा जैसे उसका दर्द खींच रहा हो। उसका प्यार भरा स्पर्श महसूस कर अनाहिता कन्फ्यूज हो गई। अभिमन्यु एक मॉन्स्टर है या नही?

कुछ पल बाद अभिमन्यु ने उसे उसके पैरों पर सीधे खड़ा किया और खुद भी सीधे हो गया। लेकिन उसके कपड़े अभी भी नीचे ही थे। ना ही अभिमन्यु को फिक्र थी और ना ही अनाहिता को अब इसकी परवाह।

वोह दोनो एक दूसरे को घूर रहे थे, किसी की भी निगाहें नीचे नही हो रही थी।

"क्या तुम्हे तुम्हारा सबक मिल गया?" अभिमन्यु ने पूछा।

अनाहिता को लगा था की वोह उसे घूरेगा, उस पर गुस्सा करेगा, पर इसकी बजाय उसकी आवाज़ में नरमी थी, निष्कपटता थी।

"आपको गली देना पसंद नही है," अनाहिता ने कहा, उसने अपनी आवाज़ में अपनी फीलिंग्स को कंट्रोल कर लिया था। असल में जो भी अभी हुआ वोह, वोह दुबारा नही दोहराना चाहती थी। वोह बस इस वक्त अपने कमरे में भाग जाना चाहती थी, वोह अभी हुए इस अपमान से टूटती जा रही थी और कहीं जा कर बस छुपना चाहती थी।

अभिमन्यु ने अपने हाथ उसके बालों पर फेरा। "ऐसा नही है, अनाहिता। मुझे डिसरिस्पेक्ट नही पसंद। तुम बड़ी हो चुकी हो, बालिग हो, तुम्हे अगर गली देना है तो दो। पर तुम अपमान नही कर सकती।" अभिमन्यु उस से दूर हुआ और अपने हाथ अपनी पॉकेट में डाल लिए। "तुम अपने कमरे में जा सकती हो, अगर तुम जाना चाहती हो तो।" उसने सिर हिलाते हुए ऊपर की ओर इशारा किया।

तब अनाहिता की नज़र अपने आस पास गई। घर की सारी लाइट्स ऑन थी और खिड़कियों के परदे भी खुले हुए थे। पर अब, अब सब बंद था। जब अभिमन्यु उसे सज़ा दे रहा था तब क्या कोई आया था और लाइट्स और परदे बंद कर के चला गया?

शर्मिंदगी की एक नई तरंग उसके शरीर में दौड़ने लगी। क्या अभिमन्यु के आदमियों ने सब देख लिया था? थोड़ी देर पहले इस खिड़की के बाहर अभिमन्यु का आदमी स्मोक कर रहा था, क्या उसने उसे अपमानित होते हुए देख लिया था?

लज्जा से अनाहिता की नज़रे झुक गई।

"अनाहिता।"

अनाहिता ने अपनी पलकें बार बार झपकाई और अभिमन्यु की ओर देखने लगी।

"मेरे आदमी अच्छे से जानते हैं की उन्हे क्या नही देखना है जिस से उनका कोई लेना देना नही," अभिमन्यु ने शांत लहज़े में कहा।

_इसे इतनी आसानी से कैसे पता चल गया की मैं क्या सोच रही थी?_ अनाहिता की सोच को अभिमन्यु की आवाज़ ने विराम लगाया।

"जाओ अब अगर तुम्हे जाना है तो। या फिर...बेसमेंट के रूम में जा कर तुम कोई मूवी देख सकती हो।" अभिमन्यु ने अपने हाथ में पहनी घड़ी देखी और आगे कहा। "मुझे एक बिज़नेस मीटिंग के लिए जाना है। रात में मिलते हैं।"

_रात में क्यूं? मुझे नही मिलना अब। ऐसे जानवर से कौन मिलना चाहेगा?_

अनाहिता ने चुपचाप हाँ में सिर हिला दिया। उसे समझ नही आ रहा था की वोह कहे तो क्या कहे। क्या वोह उसे इस तरह से छूने के लिए गुस्सा करे? या फिर वोह उसकी गुलाम बन कर रहे? दोनो ही सूरत में उसके लिए खतरनाक साबित हो सकता है। वोह उसे और गुस्सा नही दिलाना चाहती थी, या यूं कहो अपना और अपमान नही कराना चाहती थी। उसने अपना पायजामा ऊपर किया और जल्दी से सीढ़ियों की तरफ बढ़ने लगी।

"अनाहिता," अभिमन्यु की आवाज़ पर अनाहिता रुक गई।

वोह अभी बस सीढ़ियों तक ही पहुँची थी। उसने हल्का सा पलट कर अभिमन्यु की ओर देखा क्योंकि वोह उसे और गुस्सा नही दिलाना चाहती थी। वोह उसे यह बताना चाहती थी की वोह सुन रही है।

अभिमन्यु उसके पीछे आ कर खड़ा हो गया। वोह हल्का सा झुका क्योंकि अनाहिता उस से उम्र के साथ साथ हाइट में भी छोटी थी। उसकी गर्म सांसे अनाहिता को अपने कान के पास महसूस हो रही थी।

"आज अपने आप को मत छूना। मुझे तुम्हे डिसिप्लिन सिखाना है।"

_व्हाट द हैल इट इस? इसका क्या मतलब?_

जब अभिमन्यु ने आगे कुछ नही कहा तो अनाहिता सीढियां चढ़ने लगी। उसने भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई थी और ना ही कुछ कहा। सीढ़ियों पर रखते हर कदम के साथ वोह उस से दूर होती चली जा रही थी। उसकी आँखों में नमी ने घेरा बना लिया जो बस बरसने को तैयार थे। और आखिर कार वोह अब उन्हे और जायदा रोक नही पाई। उसके आंसू लुढ़क का उसके गालों को भिगोए जा रहे थे।

_आज अपने आप को मत छूना।_

अभिमन्यु सीढ़ियों के पास खड़ा अनाहिता को तब तक देखता रहा जब तक की वोह अपने कमरे में ना चली गई। उसके बाद वोह भी सीढियां चढ़ते हुए अपने कमरे में चला गया। और थोड़ी देर बार तैयार हो कर ऑफिस निकल गया।

जब अनाहिता कमरे में पहुँची, उसने दरवाज़ा बंद कर दिया और बैड के किनारे पर जा कर बैठ गई। वोह सोचने लगी की उसने ऐसा क्यूं बोला की अपने आप को मत छूना?

वोह खड़ी हुई और अपने आप को शीशे में देखने लगी। वोह बस अकेली नज़र आ रही थी। हर कोई उसकी नज़र में बस उसका दुश्मन था।

उसने अपने साथ लाया हुआ वो छोटा सा बैग खोला। उसमे से दूसरा कैप्री शॉर्ट्स और टैंक टॉप निकाला और बाथरूम में चली गई। नहाते वक्त उसने अपने आप को शीशे में देखा। वोह जगह लाल हो रखी थी पर उतनी भी बुरी तरह जख्मी नही थी जितना वोह सोच रही थी। वोह फिर नहाने लगी।

थोड़ी देर बाद वोह कपड़े पहन कर बाहर आई।

उसने अपने बालों का जुड़ा बनाया और बैड पर जा कर लेट गई। उसने बेडशीट से अपने आप को पूरी तरह ढक लिया। उसने अपने आंसुओं को साफ किया जो बार बार बह जा रहे थे।

मैं नही रोऊंगी इसकी वजह से। यह मेरा घर है, मेरा बैडरूम है, और मेरी जिंदगी।

_नहीं नही नही....यह वोह जगह है जहाँ मैं रहती हूं पर इसे मैं अपना घर कभी नही कहूंगी।_

_मुझे नफरत है अभिमन्यु ओबरॉय से।_
















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कहानी अगले भाग में जारी रहेगी...
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©पूनम शर्मा