Devil's Queen - 22 books and stories free download online pdf in Hindi

डेविल्स क्वीन - भाग 22

"मैं तुम्हे पहले ही जवाब दे चुकी हूं," अनाहिता ने कहा।

"तुम डर रही हो अगर में देख लूं तो, अगर मैं तुम्हे दुबारा छुलूं तो, क्या कल रात की तरह इस बार भी तुम...?"

"जस्ट शट अप। मैं तुमसे डरती नही हूं।" अनाहिता दूसरी साइड गई और अपना फोन देखने लगी की कुछ चार्ज हुआ को नही। इतना तो चार्ज हो ही गया था की वोह किसी को मैसेज कर सके।

"हम्मम...शायद नही।" अभिमन्यु उसके पीछे आ कर खड़ा हो गया, बहुत करीब। अनाहिता उसी वक्त किसी को मैसेज टाइप कर रही थी। अभिमन्यु ने उसके कंधे पर हाथ रखा और करीब हो गया।

जैसे वोह उसे डराने की कोशिश कर रहा हो पर अनाहिता तो पहले ही ठान चुकी थी की उसने जिंदगी भर बहुत डर लिया अब और नही। अगर वोह उसे डराने की कोशिश कर रहा है तो यह काम नही करेगा। अंदर से तो अनाहिता घबरा रही थी पर वोह उस पर काबू किए हुए थी।

"तुम शायद मुझसे ना डरो, पर तुम अपने रिएक्शन से तो जरूर डरोगी।" अभिमन्यु उसके कान के पास फुसफुसाया और अपने होंठ उसके कान पर रगड़ने लगा। अनाहिता जम गई और उसके हाथ टाइप करते हुए रुक गए।

"मुझे अपनी फ्रेंड को कॉल करना है। वोह डर रही होगी की मैं ठीक तो हूं क्योंकि उस दिन तुमने मुझे उससे बात नही करने दिया था," अनाहिता ने कहा, उसकी आवाज़ में कड़वाहट थी जो की अभिमन्यु डिजर्व करता था।

अभिमन्यु ने उसकी बात को नजरंदाज कर अगला सवाल पूछा। "क्या तुम्हारे साथ इस से पहले भी ऐसा कभी हुआ है? मेरा कहने का मतलब है की सच में ज़ोर से मारा हो ना की प्यार से किसी ने टैप किया हो," अभिमन्यु उस से दूर हट कर खिड़की के पास आ कर खड़ा हो गया था। वोह खिड़की से बाहर गार्डन की ओर देख रहा था पर जब उसे अनाहिता से कोई जवाब नही मिला तो वो पलटा और अनाहिता की ओर देखने लगा।

"मुझे इस बारे में तुमसे कोई बात नही करनी," अनाहिता ने अपना गुस्सा जब्त करते हुए आँखें बंद कर ली, वोह चाह रही थी अभिमन्यु यहाँ से बाहर चला जाए। उस का कल इतना तिरस्कार कर के अभिमन्यु का मन नहीं भरा था क्या जो वोह अब उस से सवाल पर सवाल पूछ कर शर्मिंदा कर रहा था।

"मैने बस एक सवाल पूछा है, अनाहिता। तुम्हारे पिता तुम्हे कैसे सजा देते थे, जब तुम बच्ची थी तब, जब तुम जवान हुई तब, और अब जब तुम बड़ी हो गई हो तब? बताओ मुझे?" अभिमन्यु इस बात को और बढ़ा रहा था। अनाहिता समझ गई थी की अभिमन्यु उसे इतनी आसानी से जाने नही देगा।

अनाहिता ने पहले अपनी दोस्त को मैसेज किया की वोह ठीक है, और वोह उसे बाद में कॉल करेगी। फिर उसने अपना फोन साइड में टेबल पर रख दिया।

"उन्होंने मुझे कभी मारा नही। कल से पहले आज तक किसी ने मुझ पर हाथ नही उठाया था," अनाहिता ने सपाट शब्दों में आगे कहा, "और मैं तुम्हे कभी ऐसा दुबारा करने की इजाज़त नही दूंगी।"

"इजाज़त?" अभिमन्यु ज़ोर से हँसा। "यह इस तरह काम नही करेगा। तुम जान ही गई हो।"


वोह सही था। अनाहिता इतना समझ गई थी की उसे बस उस के साथ इज्ज़त से बात करनी है और उसकी सभी बातें माननी है तो वो उसके साथ कोई बुरा बरताव नही करेगा। वोह एक मॉडर्न दुनिया में रहती थी लेकिन पुराने ट्रेडिशन में फंस कर रह गई थी।

"अब...मेरे सवाल का जवाब दो।"

आखिर बार बार अभिमन्यु उस यह क्यों पूछ रहा था? आखिर वोह जानना क्यों चाहता था?

"माँ बाप तो अपने बच्चों को गलती करने पर पनिश करते ही हैं," अनाहिता को अपने पिता के बारे में बात करने की कोई इच्छा नहीं हो रही थी।

"मैं जानता हूं। वोह करते हैं। पर वोह कैसे पनिश करते थे, मुझे यह जानना है?" अभिमन्यु ने पूछा।

"वोह मुझसे मेरा सामान छीन लेते थे," अनाहिता की आँखों में नमी बनने लगी थी, उसने छुपने के लिए अपनी पलके बार बार झपकाई। "अब तुम खुश हो?" अनाहिता ने उसे अभी भी पूरी बात नही बताई थी। जब वोह छोटी थी तो और अक्षरा जिंदा थी तब उसके पिता उसे उससे दूर कर देते थे। वोह अपनी बहन से बहुत प्यार करती थी और यह बात उसके पिता अच्छी तरह से जानते थे। कभी कभी हफ्तों के लिए और एक बार तो महीने भर के लिए वोह उसे उससे दूर ले गए थे और तो और उसकी माँ को भी अपने साथ ले गए थे।

"इसलिए तुम्हारे पास ज्यादा चीजें नही है?" अभिमन्यु ने कमरे में आसपास देखते हुए कहा।

अनाहिता के लिए अपना कहने के लिए उसके कानो में टॉप्स जो एक निशानी थी और उसके इलेक्ट्रॉनिक्स उसके अलावा उसके पास अपना कहने के लिए कुछ नही था।

"यहाँ पर तुम्हारे इलेक्ट्रॉनिक्स और कुछ कपड़ों के अलावा कुछ भी नही है।"

"मेरे पिता के घर के मेरे कमरे में मेरा कहने के लिए कुछ भी नही है।"

अभिमन्यु कुछ देर तक अनाहिता को देखता रहा जैसे उसे पढ़ रहा हो। दिन ढलने लगा था और शाम के संतरी चारों ओर फैलने के लिए तैयार थी।

"तुम इन सब से क्या चाहते हो, अभिमन्यु?" जब अभिमन्यु बहुत देर तक चुप रहा तो अनाहिता ने शांति भंग कर सवाल पूछा। "तुम मुझसे शादी क्यों करना चाहते हो? तुम्हे इस से क्या मिलेगा? तुमने मेरे पिता को ऐसा क्या दिया ही की उसके बदले उन्होंने मुझे तुम्हे सौंप दिया है?" अनाहिता को कटपुतली की तरह नचाया जा रहा था, आखिर उसे जानना के हक तो था की उसके साथ ऐसा क्यों हो रहा है? उसकी गलती क्या है? उसे इस खेल का मौहरा बनने का इनाम तो मिलना ही चाहिए?

अभिमन्यु मुस्कुराया और कुछ बोलने के लिए मुंह खोला ही था की अगले ही पल उसने मुंह बंद कर लिया और अपना सिर झटका जैसे ना जाने उसके दिमाग में क्या आ गया और वो चुप हो गया।

"डिनर जल्दी ही तैयार हो जाएगा। मैं आज रात भर बाहर रहूंगा। किसी भी चीज़ की जरूरत हो तो माया से कह देना।" अभिमन्यु खिड़की से हट गया और उसके फोन को ओर इशारा करते हुए आगे कहा, "मुझे पछताने पर मजबूर मत करना तुम्हे तुम्हारा फोन इतनी जल्दी वापिस देने के लिए।"

अनाहिता उसे घूरने लगी। वोह उसे समझ नही पा रही थी। आखिर क्यों अभिमन्यु उसके सवालों का जवाब नही दे रहा था?

अभिमन्यु उसके कमरे से बाहर निकला और धीरे से दरवाज़ा बंद कर दिया और छोड़ दिया अकेला अनाहिता को उसके अनसुलझे सवालों के बीच।
















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अगले भाग में जारी रहेगी...
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©पूनम शर्मा