Bahut karib h manzil - 7 books and stories free download online pdf in Hindi

बहुत करीब मंजिल - भाग 7

कैलाश ने बताया कि वो आज बंबई से आ रहा है अगर तुम अपने माता-पिता से बात नहीं कर सकती तो मैं ही आकर बात करता हूँ।इस पर तारा ने हामी भरते हुए कहा-"हाँ आप ही बात करना मैं नहीं बात कर सकती मम्मी -पापा से ।
कैलाश दोपहर को ही बंबई से आया था और शाम ढ़लने तक तारा के घर आ पहुँचा ।
उसके दरवाजा खटखटाने पर माँ ने ही दरवाजा खोला। उसने आते ही आत्मीयता से माँ को नमस्कार किया और पैर छूने के लिए झुका तो माँ हड़बड़ा गई और उन्होंने कहा- ‘‘अरे अरे बस..... बस।’’ आप कब आए बंबई से।
वो कुछ जवाब देता उससे पहले ही माँ ने उससे कहा - "
आपकी चुन्नियाँ तैयार हैं, ठहरिए मैं लाती हूँ।" कहते हुए माँ ने वहीं खड़े - खड़े तारा को आवाज दी ‘‘ तारा बंबई वाले साहब आए हैं बेटा इनका सामान ला दो ।’’
अभी कुछ देर पहले ही दोनों बहनें और भाई पापा के साथ नीचे बरामदे में आकर बैठे थे। पापा और चंदा ‘आज के अपने पेपर के बारे में चर्चा कर रहे थे और तारा छोटे भाई के साथ बैठकर खेल रही थी।
माँ के मुँह से बंबई वाले साहब का नाम सुनते ही तारा झट से उठी और झाँक कर दरवाजे की तरफ देखा और भागकर सामान लेने के लिए ऊपर अपने कमरे में गई।
तारा की ये उत्सुकता देखकर पापा और चंदा मुस्कुराए और पापा ने कहा- ‘‘कितनी भोली है अपनी तारा।"
"और क्या पापा देखो कैसे दिन-रात एक करके इन दुपट्टों पर कढ़ाई की है इसने। चंदा ने पापा की बात के उत्तर में कहा। ‘‘
‘‘मैंने भी हेल्प की है दीदी की, मेरा नाम भी लो मैं भी जीजी सुई में रंग-बिरंगे धागे पिरोकर देता हूँ को। -नन्नू ने दोनों हाथों को समेटकर छाती पर रखते हुए कहा।
उसकी बात सुनकर चंदा और पापा को हँसी आ गई।
उधर कैलाश ने तारा की माँ से कहा कि वो बाबूजी से मिलना चाहता है।
पहले तो माँ सोच में पड़ गई पर फिर उन्होंने पिताजी को आवाज़ देकर वहीं बुला लिया तब तक तारा चुन्नियाँ लेकर नीचे आ चुकी थी।
मां ने कैलाश से चुन्नियाँ देखने के लिए कहा- ‘‘पर उसने कहा कि बार-बार क्या देखना तारा ने बनाई हैं तो अच्छी ही होगी।’’
पिताजी ने दरवाजे पर आकर मुस्कुराते हुए कैलाश का अभिवादन स्वीकार किया। थोड़ा हिचकिचात हुए कैलाश ने अंदर आने की इच्छा जताते हुए कहा - "मैं आपसे कोई जरूरी बात करना चाहता हूँ। क्या मैं अन्दर आ सकता हूँ।"
पिताजी नहीं समझ सके कि वो क्या जरूरी बात करना चाहता है। वो उसके अंदर आने की इच्छा से किए आग्रह को अस्वीकार भी नहीं कर सके इसलिए उसे अन्दर बरामदे में ले आए जहाँ एक खाट पर दादी लेटी थी और कुर्सियों पर बच्चे बैठे थे।
दादी का शौक अनोखा था वो सारे दिन बैठी-बैठी अखबार की छोटी से छोटी खबर पढ़ा करती । अगर एक अखबार पढ़ लिया तो मौहल्ले के किसी भी घर से दूसरा अखबार मंगवा लेती और उसकी खबरें भी पढ़ लेती थी और दादी के सारे कामों की जिम्मेदारी नन्नू पर थी। अभी नन्नू दादी के पैर दबाने के लिए कुर्सी से खड़ा हुआ ही था कि मुंबई वाले साहब घर के अंदर आ गए।
क्रमशः...
सुनीता बिश्नोलिया