Bahut karib h manzil - 9 books and stories free download online pdf in Hindi

बहुत करीब मंजिल - भाग 9

कैलाश की इतनी आत्मीयता भरी बातें सुनकर तारा रोने लगी और कुछ बोल नहीं पाई। इस पर कैलाश ने तारा को चुप करवाते हुए कहा -" तारा रोना किसी समस्या का समाधान नहीं। बस तुम इतना याद रखो तुम्हारे परिवार वाले कभी भी हमारी शादी के लिए राजी नहीं होंगे। "
कैलाश की बात सुनकर जैसे उसके हाथ में आया हर रेशमी धागा टूटने लगा। वो सिसकते हुए बोली -
" तो अब क्या !"
उसके जवाब में कैलाश बोला -" अब फैसला तुम्हारे हाथ है तारा अगर तुम अपने सपने पूरे करना चाहती हो तो चलो मेरे साथ बंबई मैं पाँच दिन बाद ही वापस जा रहा हूँ। ’’
तारा को कुछ समझ नहीं आया उसने बस इतना कहा- ‘‘ पर कैसे ..? आपने देखा नहीं सब कितना गुस्सा हुए और अब तो पिताजी ने मुझे घर से निकलने से भी मना कर दिया है।
‘‘हाँ सब देखा और समझा, तुम्हारे घर वालों को तुम्हारे सपनों की कोई परवाह नहीं। तुम्हारे पिताजी एक बेटी को तो डॉक्टर बनाने के लिए उसकी पूरी मदद कर रहे है।और तुम्हारे बारे में कुछ नहीं सोचते। तुम ही बताओ सोचते हैं क्या? "
कैलाश की बातें सुनकर जैसे तारा की नींद खुद गई अब उसे सब अपने-पराए लगने लगे। उसे कैलाश की हर बात सही लग रही थी जो उसने कही वो सही ही तो कहते हैं मेरे सपनों का क्या.... बस एक साधारण सिलाई-कढ़ाई वाली बनकर रह जाऊँगी। बस मौहल्ले की औरतों के कपड़े सिल लिया करुँगी और कर देंगे एक दिन शादी एक किसी टेलर मास्टर से।
कैलाश ने ये सारी बातें इस तरह कही कि तारा को यकीन हो गया कि माता-पिता उसके और बड़ी बहन के बीच भेदभाव करते है। वो लोग चाहते ही नहीं कि मैं भी आगे बढूंँ ।
वैसे भी पापा और दादी तो कई बार कहते है-‘‘ चंदा तो डॉक्टर बनेगी इसलिए इसे आगे आठ साल पढ़ाई करनी पड़ेंगी और आज तो बहन ने बता ही दिया कि उसका पी.एम.टी क्लीयर है और सलेक्शन पक्का है।
चंदा की शादी तो अब डॉक्टर बनने के बाद ही होगी और इसी बीच मेरी शादी जरूर मेरे योग्य लड़का देखकर करवा देंगे…..
‘‘मेरे योग्य- मतलब मेरे जैसा... टेलर मास्टर । अब तारा का दिमाग वही सोच समझ रहा था जो कैलाश उसे सोचने समझने का इशारा करता। ये सारी बातें सोच कर तथा कैलाश का इतना अपमान देखकर तारा ने भी शांत रहकर घर वालों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजा दिया। उसने अब कैलाश के साथ जाने का निश्चय करते हुए कहा - - "पर....!" पर क्या ?"
"पहले आपको मुझसे शादी करनी होगी।"
‘‘हाँ वो तो जरूरी है, तुम्हें शादी करके ही ले जाऊँगा अपने साथ ऎसे थोड़े ही लेकर जाऊँगा । ’’कैलाश ने तारा को आश्वासन दिया।
तारा अब पूरी तरह से कैलाश के जाल में फँस चुकी थी। कैलाश के कहने पर वो घर में बहुत शांत रहती थी ताकि किसी को कोई शक ना हो और कैलाश भी दो-तीन दिन किसी को नहीं दिखा। हाँ वो तारा से रात को बात जरूर कर लेता था कि कहीं उसका मन ना बदल जाए।
क्रमशः...
सुनीता बिश्नोलिया