deh kee dahaleez - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

देह की दहलीज़ - भाग 3

आंटी रोशनी को ही आवाज लगाती है और निरंजन उसके साथ एक कमरे में चला जाता है। कमरे में जाने के बाद निरंजन बोतल से अपना पैग बनाता है और पीने लगता है। इधर रोशनी उसे देखती है। कुछ वक्त बीत जाने के बाद भी निरंजन सिर्फ शराब पीता रहता है। 

रोशनी- आप सिर्फ पीने के लिए आए हैं तो मैं अपना काम कर लूं। 

निरंजन- उसकी ओर गौर से देखता है और फिर कहता है- हां, आप अपना काम कर लो। 

रोशनी फिर उठती है और अपनी पुरानी किताबों को व्यवस्थित करने में लग जाती है। निरंजन उसे किताबों के साथ देखता है तो उससे बात करता है। 

निंरजन- तुम पढ़ती भी हो ? 

रोशनी- पढ़ती थी। जब से आंटी ने इस काम में उतारा है पढ़ाई बंद हो गई है। 

निरंजन- कहां तक पढ़ी हो ? 

रोशनी- 12वीं पास की है। 

निरंजन- अच्छा देख सकता हूं ? 

रोशनी अपने सारे डाॅक्यूमेंट की फाइल उसके आगे कर देती है। निरंजन उस फाइल को बड़े ही गौर से देखता है। 

निरंजन- तुम तो पढ़ने में बहुत अच्छी रही हो, फिर ये काम ?

रोशनी- किस्मत है बाबू। 

निरंजन- कहां से हो तुम ? 

रोशनी- यही की हूं बाबू। यही पैदा हुई हूं, यहीं मर जाउंगी। 

निरंजन- ओह तो तुम्हारी मां यहां थी। 

रोशनी- हां। 

निरंजन- तुमने आगे पढ़ने की कोशिश नहीं की ? 

रोशनी- कोठे वाली किस्मत में पढ़ाई नहीं सिर्फ कोठा और रात होती है बाबू। 

निरंजन- पर फिर भी तुम्हें कोशिश तो करना चाहिए थी। 

रोशनी- आंटी से बात की थी, आंटी ने मना कर दिया। आंटी के सामने किसी की बोलने की हिम्मत नहीं है। और बाहर से हमें कोई मदद मिल नहीं सकती है। 

निरंजन- किसी से तो बोला होता, शायद वो कुछ मदद करता। 

रोशनी- यहां आने वाले लोग मदद के बदले भी इस शरीर को नोंचना ही चाहेंगे बाबू। यहां आने वाले लोग इंसान के रूप में भेड़िए होते हैं। 

निरंजन- पर क्या जरूरी है कि यहां कभी कोई इंसान आया ही नहीं है। 

रोशनी- आज तक तो देखा नहीं है, जो आता है अपनी भूख मिटाता है और चला जाता है। यहां की हर लड़की उसके लिए एक जिस्म से ज्यादा कुछ नहीं होती है। 

तभी सोनू निंरजन को आवाज लगा देता है और निंरजन भी उसकी आवाज के साथ ही अपना आखिरी पैग खत्म करता है और चलने लगता है। कमरे से बाहर निकलने से पहले वो रोशनी को कुछ रुपए देता है।

निरंजन- ये रख लो तुम्हारे काम आएंगे। 

रोशनी- पर आपने तो कुछ किया ही नहीं। 

निरंजन- तुम्हारा वक्त तो लिया है। हालांकि वक्त की कोई कीमत नहीं होती, फिर भी तुम्हारे वक्त के लिए फिलहाल इतना तो दे ही सकता हूं। 

सोनू- अरे, चलेगा या पूरी बोतल ही खत्म करेगा। 

निंरजन- आ गया हूं भाई, चल अब चलकर खाना खाते हैं। 

आंटी- अब कब आएगा सोनू ? 

सोनू- अभी कुछ दिन तक तो यही हूं आंटी तो अभी तो आता रहूंगा। 

आंटी- ठीक है और ये ? 

सोनू- इसका क्या है आंटी ये तो सिर्फ बोतल का शौकिन है कहीं भी पी सकता है। हां मैं आया तो इसे भी लाउंगा ही। क्योंकि ये मेरा सबसे अच्छा दोस्त है। 

आंटी- ठीक है आते रहना। 

सोनू और निंरजन चले जाते हैं और रोशनी फिर अपने कमरे में बैठकर अपनी किताबों को पढ़ने लगती है। दो दिन के बाद सोनू और निरंजन फिर से आते हैं। सोनू जहां दूसरे कमरे में चला जाता है और निरंजन आंटी से बात करके रोशनी के कमरे में चला जाता है। आज दोनों के बीच बहुत ज्यादा बातचीत नहीं होती है, पर निरंजन उसे अपने बारे में कुछ बातें बताता है। फिर समय होने पर वापस चला जाता है। अब अक्सर सोनू और निंरजन आते थे और निरंजन रोशनी के साथ समय बिताता था। अब लगभग तीन महीने बीत गए थे और अब निरंजन अकेला आ रहा था। एक दिन निंरजन जब अकेला ही आया था और रोशनी से बातें कर रहा था तो उसने रोशनी से कुछ खास बात करने का मन बनाया। 

निरंजन- रोशनी मैं तुमसे कुछ बात करना चाहता हूं ?

रोशनी- हां बाबू कहो ना क्या बात करना है। वैसे आप सिर्फ बात ही करते हो। 

निंरजन- मुझे ऐसा लगता है कि मुझे तुमसे प्यार हो गया है और मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं। 

निंरजन की बात को सुनकर रोशनी जोर से हंसती है। 

रोशनी- अच्छा मजाक कर लेते हो बाबू। 

निरंजन- मैं मजाक नहीं कर रहा हूं रोशनी। मैं सच में तुमसे शादी करना चाहता हूं। 

रोशनी- इस बार गंभीर होते हुए हम जैसी औरतों की किस्मत में शादी और घर नहीं होते हैं बाबू। 

निरंजन- तुम हां करो तो तुम्हारी किस्मत में हो सकते हैं। 

रोशनी- यह संभव नहीं है बाबू। कोठे की मिट्टी से कोई अपना आंगन नहीं सजाता है। 

निरंजन- मिट्टी सिर्फ मिट्टी होती है रोशनी। किसी मिट्टी से खिलौना बना है और किस मिट्टी से भगवान की मूर्ति यह कोई नहीं बता सकता। 

रोशनी- हम जैसी औरतें किसी के घर में नहीं कोठे पर ही अच्छी रहती है। 

निरंजन- ऐसा तुम सोचती हो मैं नहीं। मैं तुम्हें अपने घर में, अपने दिल में जगह देना चाहता हूं। 

रोशनी- बात मेरे मानने की नहीं है बाबू। आंटी इस बात के लिए कभी तैयार नहीं होगी। 

निंरजन- मैं उनसे बात करूंगा। पर पहले मुझे तुम्हारी इच्छा जानना है।

रोशनी- तुम अच्छे इंसान हो बाबू। पर मैं वो कलंक हूं जो किसी देवता को भी बदनाम कर दे। 

निरंजन- मैं इन बातों को नहीं मानता हूं। तुम भी एक इंसान हो और तुम्हें भी समाज में सम्मान के साथ जीने का हक है। मैं तुम्हें वो सम्मान दिलाना चाहता हूं। 

रोशनी- बाबू आप समझते क्यों नहीं, वैश्या कभी किसी का सम्मान नहीं हो सकती। 

निरंजन- मेरा सम्मान बनोगी तुम। तुम बस ये बताओं कि क्या तुम मुझसे शादी करोगी ? 

रोशनी- वैसे तो मैं भी समाज में सम्मान के साथ जीना चाहती हूं, कुछ करना चाहती हूं। पर अगर आंटी को एतराज नहीं है तो मुझे भी कोई एतराज नहीं होगा। 

निरंजन- ठीक है तो कुछ दिन बाद मैं आंटी से बात करूंगा। शादी के बाद हम यह शहर ही छोड़ देंगे ताकि तुम्हें कोई परेशानी ना हो। नए शहर में तुम एक नई पहचान के साथ अपनी जिंदगी की शुरूआत कर सकती हो। 

निंरजन की इन बातों को सुनने के बाद रोशनी को एक नई उम्मीद नजर आती है। उसे लगने लगता है कि शायद वो अपनी जिंदगी में जो करना चाहती थी वो अब कर सकती है। वो अब बस मन ही मन दुआ कर रही थी कि आंटी निरंजन की बात सुन ले और हां भी कर दे। कुछ दिनों बाद निरंजन फिर आता है। इस बात उसके चेहरे पर एक चमक और एक आत्मविश्वास भी नजर आ रहा था। वो आता है और आंटी उसे बैठने के बोलती है और फिर रोशनी को आवाज देती है। 

निरंजन- नहीं आंटी, आज में रोशनी से नहीं आपसे बात करने के लिए आया हूं। 

आंटी- हां बोल निरंजन। क्या बात है। वैसे तू कई दिनों बाद आया है। 

निरंजन- हां आंटी आगे जिंदगी के लिए कुछ जरूरी काम करना थे, बस वहीं निपटा रहा था। 

आंटी- चल अच्छा है। बता क्या बात करना चाहता है ? 

निरंजन- सबसे पहले तो यह कहना चाहूंगा कि मेरी बात सुनकर आप नाराज मत होना और एक बार मेरी बात पर गौर जरूर करना। 

आंटी- पहले बात तो बता। 

निरंजन- आंटी अगर आपकी इजाजत और आशीर्वाद मिले तो मैं रोशनी से शादी करना चाहता हूं और उसे एक नई जिंदगी देना चाहता हूं। 

आंटी- तू जानता है तू क्या कह रहा है। बोलने के पहले सोचता भी है या नहीं ?

निरंजन- हां आंटी, जो बोल रहा हूं बहुत सोचकर कह रहा हूं। 

आंटी- पर क्या रोशनी इस शादी के लिए तैयार है ?

निरंजन- हां आंटी मैंने उससे बात की थी, उसका कहना था कि यदि आप इजाजत दे तो उसे कोई परेशानी नहीं है। 

आंटी- अगर उसे एतराज नहीं है तो मुझे क्या एतराज होगा। 

आज आंटी एक अलग रूप में सभी के सामने आने वाली थी। आंटी के साथ सालों से रह रही लड़कियों को इस बात का अंदाजा भी नहीं होगा कि आंटी का एक रूप यह भी है जो आज उन्हें देखने को मिला है। निरंजन से बात हो जाने के बाद आंटी ने सभी लड़कियों को हाॅल में बुला लिया था। निरंजन अब तक वहीं बैठा हुआ था और आंटी ने हाथ पकड़कर रोशनी को अपने पास बैठाया और फिर उसके माथे को चूम लिया। 

आंटी- आज तेरे कारण मेरा एक सपना पूरा होने वाला है। मैंने अपनी जिंदगी में सिर्फ सोच में ही इस सपने को कई बार जिया है, पर तेरे कारण मैं इसे हकीकत में बदलने वाली हूं। 

रोशनी- कौन सा सपना आंटी ?

आंटी- अपनी बेटी के कन्यादान का सपना। जिस जिंदगी को हम जी रहे हैं, उसमें मैं शायद ही इस सपने को कभी पूरा कर सकती थी। क्योंकि कोई भी व्यक्ति हम जैसी औरतों को अपना जीवन साथी नहीं बनाता है। भला हो इस आदमी का जिसने इतना बड़ा फैसला किया है और तुझे अपने जीवन साथी के रूप में चुना है। कहने को मेरी इतनी बेटियां है, पर आज सिर्फ एक बेटी के विदा होने की खबर ने ही मेरे दिल को कमजोर बना दिया है। मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मुझे इस समय खुश होना चाहिए या रोना चाहिए। खुश इसलिए कि कम से कम मेरी एक बेटी को तो अच्छा जीवन मिलने वाला है और रोना इसलिए कि मेरी एक बेटी हमेशा के लिए मुझसे दूर हो जाएगी। पर तेरा जीवन बनेगा इसलिए मैं रोउंगी नहीं बल्कि खुशियां मनाउंगी। 

फिर आंटी सभी लड़कियों से कहती है कि अब सात दिन तक सभी की छुट्टी। अगले सात दिन तक यहां सिर्फ शादी की तैयारियां होगी। शादी की हर छोटी से छोटी और बड़ी रस्म निभाई जाएगी। आखिर आंटी की बेटी की शादी है, शादी में कोई कमी नहीं होना चाहिए। हालांकि निरंजन इस बात के लिए इंकार करता है, पर आंटी निरंजन से कहती है कि ऐसा मौका उसे दोबारा मिले या ना मिले, इसलिए इस शादी में वो अपने हर अरमान को पूरा करेगी। पूरे सात दिनों तक शादी के माहौल के बीच रोशनी अब एक नई दुनियां में खो जाती है। वो निरंजन के साथ एक सुखी जीवन के सपने बुनने लगती है। इधर चारू भी अपनी बेटी की बदलती जिंदगी के लिए हर रोज दुआ कर रही थी। कोठे पर रहने वाली हर लड़की रोशनी की किस्मत पर नाज कर रही थी और शादी की तैयारियों में व्यस्त थी।

आंटी ने शादी की तैयारियों के लिए कोई कमी नहीं रखी थी और आंटी के घर को दुल्हन की तरह सजा दिया गया था। पूरे मोहल्ले में रोशनी की शादी की ही बात चल रही थी। आंटी ने हर लड़की के लिए नए कपड़े मंगवा लिए थे। रोशनी के लिए उन्होंने खास शादी का जोड़ा बनवाया, जेवरात की भी कोई कमी नहीं रखी थीं। रोशनी को वो अपनी बेटी की ही तरह विदा करना चाह रही थी, इसलिए शादी के हर काम को वो खुद देख रही थी। आखिर सातवें दिन निरंजन अपनी बारात लेकर आया और आंटी के घर पर ही दोनों की शादी हुई और बहुत ही धूमधाम से आंटी ने रोशनी को निरंजन के साथ एक सुखी संसार के लिए विदा कर दिया था। निंरजन ने आंटी को बता दिया था कि शादी के बाद वो इस शहर को हमेशा के लिए छोड़ देगा ताकि रोशनी का अतीत उसके भविष्य या वर्तमान को खराब ना कर सके।

रोशनी को विदा करते हुए आंटी की आंखों से आंसू रूकने का नाम नहीं ले रहे थे। उधर चारू भी अपनी बेटी को विदा करने के बाद खुद को संभाल नहीं पा रही थी। वहीं रोशनी के लिए एक ओर अच्छे जीवन की शुरूआत की खुशी थी तो दूसरी ओर अपनों से बिछड़ने का गम उसकी आंखों से छलक रहा था। अब रोशनी विदा हो गई थी और निरंजन और रोशनी वहां से सीधे रेलवे स्टेशन गए थे और वहां से अपने घर के लिए रवाना हो गए थे। 

करीब एक दिन का सफर करने के बाद रोशनी अपने घर के सामने खड़ी थी। घर को देखकर ही उसकी आंखे छलक उठी थी। ये वो घर था, जहां से वो अपना नई जिंदगी शुरू करने वाली थी। घर में प्रवेश करने के साथ ही उसकी आंखों के आंसू उस समय मुस्कान में बदल गए जब निरंजन ने उसका हाथ पकड़ा। 

निंरजन- आज से यह घर तुम्हारा है। इसे संभालना तुम्हारी जिम्मेदारी है। 

रोशनी- मैं पूरी कोशिश करूंगी कि अपनी जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभा सकूं। 

निंरजन- मुझे यकीन है कि तुम कोई कमी नहीं रखोगी। अब इस घर के दो सदस्यों से और मिल लो। असल में वहीं है, जिन्हें तुम्हें संभालना है। 

फिर निंरजन अंदर कमरे में जाता है और उसकी गोद में एक छह महीने की बच्ची थी और उसके एक हाथ की उंगली पकड़कर चलता उसका 5 साल का बेटा दीपू था। निंरजन बच्ची को रोशनी की गोद में सौंपता है और दीपू को अपनी गोद में उठा लेता है। 

निंरजन- अब तुम ना सिर्फ मेरी जीवन संगिनी हो, बल्कि इन बच्चों की मां भी हो।

रोशनी- आपने सच में मेरी जिंदगी बदल दी है, इस जिंदगी को देने के लिए मैं आपका यह एहसान कभी नहीं उतार पाउंगी। 

निंरजन- मैंने कोई अहसान नहीं किया है, तुम मुझे अच्छी लगी, इसलिए तुम्हें अपना जीवन साथी बनाया है। वैसे तुम्हारे लिए एक खास चीज और भी है। 

रोशनी- अब क्या बचा है, सब कुछ तो दे दिया था आपने। 

निंरजन- आओ कमरे में फिर बताता हूं, क्या बचा था। 

दोनों कमरे में जाते हैं और निंरजन रोशनी को टेबल के पास ले जाकर खड़ा करता है।

निंरजन- यह लो किताबें, जो कि तुम्हें बहुत पसंद है। पर ये किताबे 12वीं के बाद की है। अब तुम्हें घर को तो संभालना है ही अपनी ग्रेजुएशन भी पूरी करना है। अब तुम्हारी पढ़ाई भी नहीं रूकेगी। 

यह सब देखकर रोशनी की आंखों से फिर आंसूओं का सैलाब उमड़ पड़ता है।

निंरजन- अब रोने का समय चला गया है रोशनी है। अब समय है तुम अपनी जिंदगी को बदलो। शुरूआत मैंने दे दी है, अब तुम अपनी कोशिशों से उसे साकार कर दिखाओं।