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कंगन - 2

  कहानी -  कंगन   2 


Part - 2  : पिछले अंक में आपने पढ़ा एक साधारण लड़की कंगना कैसे गलतफहमी से दूसरे की कार में बैठ गयी थी , अब आगे  ..... 

 

इतना कहने के बाद कंगना ने दो घूँट पानी पिया  . इसी बीच अमित ने भी बीयर   सिप करते हुए  कहा “ तब फिर क्या हुआ ? “


“ मुझे जहाँ तक याद है बारिश के कारण कार की खिड़कियाँ बंद थीं  . उस आदमी ने  एक रूमाल मेरे नाक पर रखा और मेरे बेहोश होने के पहले मेरे मुंह पर टेप लगा दिया और हाथ पैर बाँध दिए गए   . जब मेरी आँखें खुलीं तो मैंने खुद को एक शानदार कमरे में पाया , मैंने ऐसा रूम सिर्फ टीवी और फिल्मों में देखा था  . मेरे बगल में एक खूबसूरत अधेड़ उम्र की औरत खड़ी थी  . मुझे देख कर मुस्कुराते हुए बोली - तुम थक गयी होगी  . बाथरूम में जा कर फ्रेश हो लो , वहां तुम्हारे लिए नए कपड़े  और जरूरत के सभी सामान मिल जायेंगें  . तब तक मैं टेबल पर तुम्हारा खाना  लगा दूंगी  . “


तभी अमित का सेल फोन बज उठा  . फोन पर उसने कहा “ हाँ , सब ठीक है  . मैं बाद में आपको फोन करता हूँ  , तब तक प्लीज  मुझे डिस्टर्ब न करें . “  फोन  काट कर उसने कंगना से कहा  “ हाँ , तुम आगे बोलो  . “


“ मैं रोने लगी थी और बार बार उस औरत से पूछ रही थी कि यह कौन सी जगह है और मैं यहाँ किस लिए  आयी  हूँ . उसने अपने आँचल से मेरा मुंह बंद कर कहा - शोर मचाने से कोई फायदा नहीं है , उल्टे तुम्हें मार पड़ेगी  . अब मैंने जैसा कहा वैसा करो  . मैं लगभग पौन घंटे बाद फ्रेश हो कर निकली , तब तक खाना सजा  था  . खाना  इतना अच्छा होगा इसकी मैंने कल्पना नहीं की थी  . उसने बड़े प्यार से मुझे खाना खिलाया  . उस औरत ने अपना नाम शबाना बताया और बाद में मैं उसे शबाना ऑन्टी कहने लगी . उसका बर्ताव मेरे प्रति सहानुभूति से भरा होता  . उसने बताया कि अरब से एक वी आई पी मेहमान आया है , आज वह  चारमीनार  गोलकुंडा आदि देखने गया है कल वह मुझसे मिलेगा  . चारमीनार , सुनकर मैं समझ गयी थी कि मैं हैदराबाद में हूँ   .  “


“ एक मिनट , मैं ग्लास खाली कर लेता हूँ  . अमित ने अपनी बची बीयर खत्म की और गिलास को टेबल पर रखा  . 


कंगना बोली “ कुछ देर बाद  मैं उनके दिए कपड़े जेवर और परफ्यूम लगा कर तैयार हो कर निकली  तब शबाना ऑन्टी ने कहा - वल्लाह , क्या हुस्न दिया है रब ने मेरी बेटी को जिसे देख कर चाँद भी शर्मा जाए  . आ तुम्हें काजल का टीका लगा दूँ वरना किसी की बुरी नजर न लग जाए  . और  यहीं  पर मेरा नाम काजल रखा गया  . “


कंगना ने  आगे कहना शुरू किया “ जब मैंने शबाना ऑन्टी से पूछा कि वह मुझसे क्यों मिलेगा , मैं तो यहाँ किसी को नहीं जानती हूँ  . वह हंस कर बोली - अभी तुम भोली हो , मैं तुम्हें सब समझा दूंगी  . जैसा कहूँगी वैसा करना वरना इस घर का मालिक और उसका अरबी रईस गेस्ट दोनों बहुत सख्त हैं , तुम्हारे साथ मेरी भी  चमड़ी उधेड़ कर रख देंगे और अंत में तुम्हें वही करना होगा जो वे चाहते हैं  . फिर उसने मुझे गले से लगा कर  कहा  - बेटी  मुझे माफ़ करना , बस यूँ समझ लो मैं भी तुम्हारी तरह ही जबरन लायी गयी  थी और अब बढ़ती उम्र के चलते मेरी कद्र नहीं रह गयी  है  . एक तरह से मैं नौकरानी बन कर रह गयी हूँ  . यहाँ से निकलना नामुमकिन नहीं तो बहुत मुश्किल जरूर  है  . हमारी दुनिया इस घर के अंदर सिमट कर रह गयी है  . शबाना आंटी ने ठीक कहा था अमितजी  . पूरा घर एयरकण्डीशन्ड था  . घर  का एक ही दरवाजा था जो जरूरी होने पर ही थोड़ी देर के लिए खुलता था  . खिड़की के  शीशे भी फ्रॉस्टेड ग्लास थे ताकि बाहर न देख सकें  . “


उसी समय डोर बेल बजा  . अमित के ‘ कौन ‘ पूछने  पर जवाब था - रूम सर्विस  . सर्विस बॉय जूठे बर्तन और ग्लास  लेकर चला गया तब अमित बोला “ अब तुम अपनी आगे की कहानी बोलो  . “


“ मेरी उम्र ज्यादा नहीं थी पर इतनी कम भी नहीं कि कल आने वाले संकट को न समझ सकूँ  . मुझे शबाना आंटी ने उस दिन सिखाया कि मुझे क्या करना होगा जिसे सुन कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे  .  अगली शाम को एक शेख आया ,वह लम्बा तगड़ा आदमी था  .  उस विशालकाय शरीर को देख कर मैं बहुत डर  गयी  थी  . मुझे उसके आगे परोसा गया  . उसने मुझे शराब पीने को कहा , मेरे मना करने पर उसने इतने जोर से मेरी कलाई मरोड़ी कि हफ़्तों तक दर्द रहा था  .मैंने उससे बहुत विनती की , बहुत रोया धोया पर उस पर इसका कोई असर नहीं पड़ा  .  उसने बताया कि मेरी नथ उतारने के लिए 10000 दिर्हम दिए थे , करीब सवा लाख रूपये  . तीन दिनों तक शेख मुझे बेहरमी से मसल  कुचल कर अपना मकसद पूरा करता रहा फिर अपने देश  चला गया  . एक सप्ताह  मुझे रेस्ट करने को मिलता था और फिर कोई शेख या लखपति आता और मुझे रौंद  कर चला जाता था  . करीब एक साल तक यही सिलसिला चलता रहा   . मैंने इसे ही अपनी नियति मान कर समझौता कर लिया था या एक तरह से यह मेरी आदत सी  बन गयी थी जिसके बिना कुछ अधूरा सा लगने लगता  . इसके बाद मेरा ऑपरेशन करा कर मेरा कौमार्य वापस किया गया क्योंकि फिर कोई नया शेख आने वाला था  . अगले एक साल तक यही चलता रहा  . मैं गर्भवती भी हुई और मेरा एबॉर्शन भी  कराया गया  . “  


इसके बाद कंगना बहुत रोने लगी और बोली “ मैंने सुना था कि कभी सुंदरता ही सर्वनाश का  कारण बन जाती है  . शायद मेरे लिए यह सत्य साबित हुआ  . “


तब अमित ने उसे शांत किया  . कुछ शांत होने पर वह बोली “ अब अमितजी आप बताएं  इस कंगना को आप कैसे जानते हैं  ? “


“ तुम्हें  कुंदन की याद है ? “


“ हाँ , मेरी दीदी  . मुझसे सात साल बड़ी है  . पर आप उसे कैसे जानते हैं या  वह आपको कैसे और कहाँ मिली ? “


“ उसी ने तुम्हारे बारे में बताया है  . हमलोग एक दूसरे को बहुत प्यार करते थे  . दरअसल जिस दिन तुम्हें किसी सहेली की  बर्थडे पार्टी में जाना था उसी दिन हमदोनों ने चुपचाप कोर्टमैरेज कर लिया था  . देर रात हम दोनों तुम्हारे घर गए  . तुम्हारे मम्मी पापा ने हमें सिर्फ तुम्हारे गुम होने की बात कही  . इसके अलावा उन्होंने कुछ नहीं कहा और  वे दोनों बिलकुल खामोश रहते  . मैं एक निम्न जाति का था और  तुमलोग ब्राह्मण थे  . उन्हें यह पसंद नहीं था फिर भी वे खून का घूँट पी कर चुप रहे  . वहीँ तुम्हारे बारे में पता चला  . एक सप्ताह के अंदर ही मैं कुंदन को साथ लेकर मुंबई अपनी नौकरी पर आ गया  . पर तुम्हारे मम्मी पापा ने हमसे एक शब्द भी बात नहीं की  . दोनों बेटियों के चलते उन्हें गहरा सदमा लगा था  . शायद रिश्ते नाते और मोहल्लेवालों के ताने सुनकर वे बहुत दुखी  थे  . एक महीने के बाद  दोनों की  खुदकुशी की खबर हमें मिली   . “


यह सुनकर कंगना फिर जोरों से रोने लगी  . रोते रोते बोली “ क्या किसी ने मेरी खबर तक नहीं ली ? “


“ नहीं , ऐसा नहीं है  . कुंदन ने तुम्हारी सहेली के यहाँ फोन कर पूछा तो उसने बताया कि तुम्हारी बतायी जगह पर उसने कार भेजी पर तुम वहां नहीं मिली  . उसने सोचा शायद बरसात की वजह से तुम न आ सकी होगी   . उसने एक और बात बतायी   . उसके कजन  ने तुम्हारे घर एक बूथ से फोन किया था कि उसे आने में  15 - 20  मिनट की देर होगी क्योंकि उसे शीला का बर्थडे केक लेने भी जाना था पर तब तक तुम घर से निकल चुकी थी   . हो सकता है कि इसी बात का किसी ने नाजायज फायदा उठाया हो   . उसके बाद हमलोगों ने तुम्हें खोजने की बहुत कोशिश की पर सफलता मिलने में बहुत देर हो गयी  .  इस दौरान तुम्हें न जाने कितनी  मुसीबतों को झेलना पड़ा होगा तुम्हें देख कर हम अंदाजा  लगा सकते हैं   . काश समय रहते तुम्हारा पता लग गया होता तब कंगना तुम्हारे नसीब में ये दिन नहीं होते  . “


कंगना दोनों घुटनों के बीच मुंह छिपाए सिसकियाँ ले रही थी   . अमित ने बहुत प्रयास के बाद उसे कुछ सहज किया  . उसने पूछा “ तुम हैदराबाद से मुंबई कब और कैसे आई ? “


कंगना ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा “ मैं करीब 9 - 10 साल से मुंबई में हूँ  . जब  हैदराबाद में मैं शेखों और अमीरों के लायक नहीं समझी गयी तब  मुझे मुंबई में एक कॉल गर्ल चलाने वाली संस्था को बेच दिया गया  . बस महीने में तीन चार दिन छोड़ कर मुझे रोज धंधे पर जाना पड़ता है  . मुझे याद भी नहीं  इस बीच न जाने कितनी  

बार मेरा एबॉर्शन हुआ  . बस यही मेरी जिंदगी है  . कुछ वर्षों के बाद  उम्र की ढलान पर मुझे भी शायद शबाना आंटी जैसा  रोल अदा करना पड़े   .  “    


क्रमशः  अंतिम भाग 3 में