Ayodhya- Ek Yatra in Hindi Travel stories by Arjit Mishra books and stories PDF | अयोध्या – एक यात्रा

अयोध्या – एक यात्रा

सर्वोच्च न्यायलय के निर्णय के उपरांत जब से भगवान राम तिरपाल से निकलकर वैकल्पिक गर्भ गृह में स्थापित हुए और राम मंदिर का निर्माण आरम्भ हुआ तबसे अयोध्या जाकर भगवान राम के दर्शन करने की तीव्र इक्षा थी| अयोध्या लखनऊ के समीप ही स्थित है फिर भी दो वर्ष से अधिक समय व्यतीत होने पर भी मैं  दर्शन के लिए जा न सका|  अब प्रभु के दर्शन प्रभु की इक्षा से ही संभव हैं| अभी कुछ दिन पहले प्रभु श्री राम की इक्षा हुई और मैंने अयोध्या के लिए प्रस्थान किया| बीते हुए वर्षों में राम मंदिर निर्माण से सम्बंधित समाचार मिलते रहे थे इसलिये कौतूहल भी था अब राम नगरी दिखती कैसी होगी| हो भी क्यों न  हम उस भाग्यशाली पीढ़ी के जो हैं जिन्होंने रामलला को मस्जिद में विराजमान भी देखा, तिरपाल में भी और अब वैकल्पिक गर्भ गृह में भी दर्शन करने जा रहे थे| सच कहूँ तो ये सब विचार और कौतूहल प्रस्थान की पूर्व संध्या तक ही थे| यात्रा के दौरान हम बस आपस में बतियाते ही रहे| इस बात से अनभिज्ञ की एक सुखद, अलौकिक एवं अविस्मरणीय अनुभव हमारी प्रतीक्षा कर रहा था|

अपनी राजनीतिक प्रष्ठभूमि के फलस्वरूप हम बिना किसी कष्ट के वैकल्पिक गर्भ गृह के निकटतम द्वार तक पहुँच गए| वैकल्पिक गर्भ गृह से ठीक पहले मेरा ध्यान निर्माणाधीन मंदिर की ओर आकृष्ट हुआ| एकाएक, मेरे लिये जैसे संसार थम गया| आभास ही नहीं कि मैं कहाँ हूँ, मेरे साथ कौन है, कितने सारे लोग आसपास होंगे, बोल रहे होंगे| परन्तु मुझे कोई ध्वनि सुनाई नहीं दे रही| किसी का आभास नहीं| जैसे सृष्टि में सिर्फ मेरे और निर्माणाधीन राम मंदिर के अतिरिक्त कुछ है ही नहीं| निर्माणाधीन राम मंदिर की अपेक्षित भव्यता और प्रस्तावित गर्भ गृह के स्थान पर आकाश छूता भगवा ध्वज देखकर सहसा ये विचार आया कि भव्य राम मंदिर का निर्माण होते देख अब मैं भी कदाचित उन भाग्यशाली लोगों में सम्मिलित हो गया जिन्होंने कभी किसी युग में मिस्त्र के पिरामिड या आगरा का ताजमहल बनते देखा होगा| राम मंदिर निर्माण के उपरांत जब अपनी भव्यता के लिए समस्त संसार में कई शताब्दियों तक प्रसिद्ध पायेगा तब मैं उन भाग्यशाली लोगों में से एक होऊंगा जिन्होंने उसे बनते देखा था| संक्षेप में कहें तो यूँ लगा कि मैं इतिहास का सृजन होते देख रहा था|

अचानक किसी के स्पर्श से मेरी तन्द्रा टूटी| यूँ लगा जैसे किसी ने झकझोर कर जगाया हो| तभी मैंने ध्यान दिया कि वहां पर लाउडस्पीकर के माध्यम से दर्शनार्थियों को निर्माणाधीन मंदिर और भगवा ध्वज के दर्शन करने के लिए सूचित किया जा रहा है, जिसे पहले मैंने सुना ही नहीं था|

गर्भ गृह के उस द्वार से भगवान राम के विग्रह तक के मार्ग में मैंने सहस्त्रों वर्षों के इतिहास को जी लिया| भगवान राम के जन्म से लेकर उनके जन्मस्थान पर मंदिर बनने के संघर्ष तक का हर एक पल जैसे उस समय में अनुभव कर लिया|

भगवान राम के विग्रह के समक्ष पहुँचने तक भावातिरेक की अवस्था आ चुकी थी| गला रुंधा हुआ और आँखें नम थीं| ऐसा मैंने अपने जीवन में कभी भी अनुभव नहीं किया था| रामलला के समक्ष पहुँचते ही मैंने हाथ जोड़े और एक पल उन्हें देखा, यूँ लगा उन्होंने भी मुझे देखा| मैंने कुछ नहीं कहा पर वो सब समझ गए| मैं बस मुस्कुराया और शायद वो भी| मैंने श्रद्धा से सिर झुका दिया|  सहस्त्रों वर्षों की हमारी आस्था सदियों के बंधन के पश्चात आज मुक्त हो गयी थी|

भगवान श्री राम के श्री चरणों में समर्पित|

जय श्री राम||

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anaram parihar

anaram parihar 1 month ago

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Dc Maurya

Dc Maurya 4 months ago

Shweta Kumari Sah

Shweta Kumari Sah 4 months ago

ATI uttam vivran aise pratit hua ki maine v apne Aaradhya ke darshan kar liye. Dhanyawad Mahoday