BLACK CODEX - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

BLACK CODEX - 5 - जीनत महल की हवेली

नई दिल्ली । भारत में मुगलकाल लंबा और महत्वपूर्ण रहा। मुगलों ने भारत के जीवन में अपनी गहरी छाप छोड़ी। उन्होंने ताज महल से लेकर लाल किला और दिल्ली की जामा मस्जिद से लेकर दूसरी सैकड़ों बुलंद इमारतें बनाई। उन्हीं में से एक हवेली है, जीनत महल की हवेली जिसे बहुत कम लोग ही जानते हैं। लेकिन इतिहास के पन्नों को पलटने पर आप पायेंगे कि यह हवेली खास तौर से एक खूबसूरत मल्लिका के लिये बनवायी गई थी, लेकिन वर्तमान में आस-पास रहने वाले लोगों से पूछेंगे, तो इस हवेली में आपको प्रेतों का वास मिलेगा। इस लेख को पढ़ने से पहले शायद आपसे अगर कोई पूछता क्या आपको मालूम है कि मगल दौर की आखिरी इमारत कौन सी है? तो हो सकता है आपका जवाब नहीं में होता, इतिहास की किताबों में खोजने पर भी शायद यह जानकारी नहीं मिले, लेकिन यह सच है कि मुगलों द्वारा बनायी गईं बेहतरीन इमारतों में यह सबसे आखिरी इमारत है, जिसे बहादुर शाह जफर ने बनवाया था। महरौली में पर हम आपको बताते हैं कि मुगलिया दौर की आखिरी इमारत दिल्ली के महरौली इलाके में है। ये साउथ दिल्ली में आता है इलाका । इतिहासकार डा. हिलाल अहमद कहते हैं कि ये मुगल दौर की आखिरी इमारत है। इसे देखकर लगता है कि ये तब बनी होगी जब मुगलकाल का अंतिम समय चल रहा होगा। इसमें सुंदरता तो आपको दिखेगी, पर भव्यता का साफ अभाव है। इसका नाम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की पत्नी के नाम पर है। हवेली में लाशों का ढेर दोनों का निकाह 1840 में हुआ था। शादी के ठीक चार छह बाद ही यानी 1846 में इस हवेली का निर्माण कराया गया। हवेली विशेष रूप से जीनत महल के लिये बनवायी थी। जीनत जब हवेली में दाखिल होती थीं, तब शहनाईयां बजती थीं। संगीत की धुनों में पूरी हवेली रम जाती थी। जीनत बहादुर शाह जफर की सबसे पसंदीदा पत्नी थीं। 1886 में जीनत का रंगून (बरमा) में निधन हो गया। उसके बाद बहादुर शाह जफर ने इस हवेली में जाना छोड़ दिया। मुगल प्रशासन ने हवेली पर जरा भी ध्यान नहीं दिया। 1857 की जंग के दौरान ब्रिटिश सेना ने इस हवेली पर कब्जा कर लिया और जंग के दौरान मारे गये लोगों की लाशों को इसी हवेली में स्थित एक कुंए में फेंक दिया। यही नहीं तमाम लाशों को हवेली के तहखाने में डाल दिया। कई महीनों तक लाशें यहीं पर सड़ती रहीं। हवेली के आस-पास रहने वाले लोगों का मानना है कि यहां हुए नरसंहार की वजह से यहां पर आत्माओं ने बसेरा बना लिया । और रात को अक्सर यहां से सिसकियां सुनायी देती हैं। स्थानीय लोग इस हवेली के पास रात
को जाने से डरते भी हैं। खैर भारत सरकार को न तो लोगों की बातों की परवाह है, और न हीं हवेली की । शायद इसीलिये 1947 में सरकार के अधीन आने के बाद भी इस हवेली के सौंदर्यीकरण के बारे में किसी ने नहीं सोचा। पर्यटकों से दूर हैरानी होती है कि मुगलदौर की आखिरी इमारत को पर्यटकों के बीच लोकप्रिय करने की कोई कोशिशें नहीं हो रहीं। अगर हों तो पर्यटक इसे देखना चाहेंगे। जीनत महल उसी इलाके में जहां पर कुतुब मीनार, बख्तियार काकी की दरगाह, कालका मंदिर जैसी दिल्ली की अहम स्थान है। जीनत महल में मुगलदौर के आर्किटेक्चर की साफ छाप देखने को मिल जाती है। इसकी दिवारों पर सुंदर नक्काशी की गई है। इमारत के बाहर एक बड़ा सा गेट है लकड़ी का। गेट बंद रहता है। आसपास गांवों के बच्चे इधर की दिवार के साथ फुटबाल और क्रिकेट खेलते हैं। अफसोस होता है कि जिन मुगलों ने भारत में इतनी बुलंद इमारतें बनवाई, उनकी आखिरी
इमारत कितनी छोटी सी है।