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यादों के कारवां में - भाग 3

अध्याय 3: (6) शापित हो गया है चांद,(7)प्रेम, (8)प्रेम होता है केवल प्रेम

(6) शापित हो गया है चांद

(1)

सचमुच

शापित हो गया है चाँद,

मानव के लोभ,स्वार्थ के स्याह धब्बों से।

कांक्रीट के जंगलों में

तब्दील होते शहरों की,

प्रदूषित हवाओं ने

इसे कर दिया है

धुंधला और मलिन।

(2)

प्लेटफार्म पर लंबी

प्रतीक्षा कराती ट्रेन हो गया है चाँद,

प्रिया के लिए,

जब उस शाम

नदी के किनारे पूछने पर,

प्रिय ने कहा था उससे-

"हो तो तुम खूबसूरत

चाँद से भी बढ़कर,

लेकिन अभी का समय है नहीं,

तुम्हें कहने को यह,कि

"तुम हो दुनिया में सबसे ख़ूबसूरत,

और,

इस दुनिया की

अब तक बनाई गई श्रेष्ठतम कृति।"

(3)

डरा और भयभीत हो गया है चाँद,

तमाम प्रयासों के बाद भी,

ऑक्सीजन के बिना दम तोड़ते मरीजों;

इंजेक्शनों की कालाबाजारी,

अस्पतालों के बाहर दम तोड़ती संवेदनाओं और

बिलखती मानवता के कारण,

इसीलिए,

अब यह दिखता है,

चेहरे पर लिए खुरचनें,

और

लगातार रोते रहने से

सूजी हुई आँखों वाला।

(4)

कंपकंपा जाता है चाँद

और

सिहर उठता है बार-बार,

सच्चे प्रेम की शालीनता

के कहीं पीछे छूट जाने के बाद,

किसी के हाथों

किसी के

नुंचने -खसोटें जाने से,

आत्मा पर

हर बार बनने वाले

गहरे घावों के कारण,

अपने ही के हाथों

अपनी ही चहारदीवारी के भीतर।

(5)

क्या कुटिल हो गया है चाँद

संकट काल में भी

रैलियों और सभाओं के

भीड़ भरे तमाशों को

देख देखकर भी,

रात-रात भर मुस्कुराने से।

(6)

क्या धोखेबाज ,छली हो गया है चाँद

जब भूख से बिलखते बच्चों ने

भरपेट भोजन नहीं मिलने पर

उस रात

झोपड़ी के बाहर

दिखाकर आकाश की ओर

अपने पिता से पूछा था-

"वह रोटी जैसा क्या है बाबू?

ऊपर चमक रहा है गोल-गोल

रोटी की तरह

क्या आप उसे ला सकते हैं

हमारे खाने को।"

(7) प्रेम

स्वच्छ होता है प्रेम

बारिश थमने के बाद

भीगे अंबर सा।1।

हल्का होता है प्रेम

आकाश में उड़ते

बच्चों के पतंग सा।2।

कोमल होता है प्रेम

तितलियाँ पकड़ते

बच्चों के नाजुक हाथ सा।3।

नितांत निजी होता है प्रेम

कभी मीलों दूर पहुँचने पर भी

प्रिय के उसी अहसास सा।।4।।

तृप्ति होता है प्रेम

खुद से पहले भोजन कराती

प्रिय के हाथ की

बनी पहली रोटी सा।5।

सुखद होता है प्रेम

लोरियां गाकर सुलाती

मां की थपकियों सा।5।

निश्छल होता है प्रेम

पालने में लेटे

शिशु की मुस्कान सा।6।

पवित्र होता है प्रेम

सुबह-सुबह देव प्रतिमा पर

अर्पित ताजे पुष्पों सा।7।

प्रतीक्षा होता है प्रेम

प्यासे चातक पक्षी के लिए

बारिश की पहली बूँद सा।8।

अकुलाहट होता है प्रेम

आषाढ़ में मेघों की प्रतीक्षा

करती प्यासी धरती सा।9।

कर्तव्य होता है प्रेम

मिलन को प्रतीक्षारत प्रिया

को छोड़ ड्यूटी पर लौटे सैनिक सा।10।

(8) प्रेम होता है केवल प्रेम

इसका कोई रूप नहीं,

इसका कोई रंग नहीं,

इसका कोई आकार नहीं।

प्रेम होता है केवल प्रेम।

इसकी कोई चाह नहीं,

इसकी कोई वजह नहीं,

इसमें कोई स्वार्थ नहीं।

प्रेम होता है केवल प्रेम।

यह कोई सौदा नहीं,

यह कोई लब्धि नहीं,

यह कोई रिश्ता नहीं।

प्रेम होता है केवल प्रेम।

एक को लगती है चोट,

तो होता है दर्द दूजे को,

एहसास की बँधी डोर।

इसमें होता है केवल प्रेम।

मिली बस एक ही रोटी,

स्वयं भूखी रहकर भी,

संतान को खिलाती माँ,

इसमें होता है केवल प्रेम।

बिसराकर निज,जो सैनिक,

सरहद पर बढ़ते शत्रु की,

पहली गोली खाता सीने पर।

इसमें होता है केवल प्रेम।

-योगेन्द्र

(कॉपीराइट रचनाएं)