Bandhan Prem ke - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

बंधन प्रेम के - भाग 5

(एक लंबी यात्रा के यादगार पलों को जीने के बाद मेजर विक्रम और शांभवी वापस लौटे……क्या आज की रात मेजर विक्रम अपना प्रेम प्राप्त कर सकेंगे? क्या शांभवी उन्हें अपने मन की बात बता पाएगी जो कहीं न कहीं उसके अतीत की स्मृतियों से जुड़ी है….. यह सब जानने के लिए पढ़िए इस उपन्यास का आज का यह भाग………

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एयरपोर्ट से घर पहुंचते रात हो गई। शांभवी के मम्मी-पापा ने जिद करके विक्रम को घर में ही रोक लिया।विक्रम ने कहा- मैं आप लोगों की बात टालूँगा नहीं,लेकिन एक बार मम्मी-पापा को फोन करके बता देता हूं।अपने मम्मी और पापा से मेजर विक्रम ने देर तक बातें कीं।उनका यह रोज का नियम है कि चाहे वे दिन में कहीं भी कितने ही व्यस्त रहें,रात को एक बार अपने घर फोन लगाकर उनसे बातें जरूर करते हैं।

रात्रि भोजन के बाद चारों देर तक बाहर लॉन में कुर्सियां डाल कर बैठे रहे।शांभवी ने सबके लिए कॉफी बनाई। अधिक देर होने पर शांभवी के मम्मी-पापा सोने के लिए भीतर चले गए।

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मेजर विक्रम और शांभवी बहुत देर तक घर के गार्डन में टहलते रहे। इस इलाके में नवंबर में भी ठंड कम नहीं पड़ती। दोनों ने गर्म कपड़े पहने हुए थे, फिर भी कड़ाके की ठंड में बाहर बैठना उचित नहीं था और वे दोनों बरामदे में आ गए। ऐसा लग रहा है कि सारी कायनात सो चुकी है।आसमान में यहां-वहां बिखरे तारे भी अब ऊँघने लगे हैं।मानो थोड़ी देर में उन्हें भी नींद आ जाएगी।इन आंख मिचमिचाते तारों की ओर संकेत करते हुए शांभवी ने कहा-वो देखिए विक्रम जी, ऊपर आसमान में भी अब चांद तारों को नींद आने लगी है।

मुस्कुराते हुए मेजर विक्रम ने कहा- सच कहा शांभवी।चाहे सारी सृष्टि सो जाए लेकिन जागता रहेगा रात भर तो बस ये चाँद। और इस चांद के नहीं सोने का कारण जानती हो शांभवी?

- नहीं कवि महोदय। आप ही बता दीजिए- हंसते हुए शांभवी ने कहा।

- इसलिए कि यह रात भर आकाश में अपनी शीतलता और प्रेम की आभा बिखेरता रहे….. ताकि दिन भर के कड़े परिश्रम से थके लोग जब रात्रि में सुकून की तलाश करें, और किसी कारणवश जब वह उन्हें ना मिले तो फिर वे इस धवल चांद को निहारें और इसकी रोशनी में अपने अंतर्मन और अपनी आत्मा को भिगोकर, इसमें नहा कर अपने समूचे अस्तित्व को तृप्त कर लें……..

मेजर विक्रम आगे कहते गए और शांभवी सम्मोहित सी उनके विवरण को सुनती रही……

और अगर यह चांद सो गया न शांभवी,तो इसे निहारते हुए इसमें अपनी प्रिया से दूर रहते हुए भी उसके सुंदर चेहरे का अक्स इसमें देखने वाले उस प्रेमी का क्या होगा?.....और ठीक यही अनुभव करने वाली उस प्रिया का क्या होगा जो इस चांद के माध्यम से अपने प्रिय की उपस्थिति को अपने आसपास अनुभव करती है…...जो प्रेम के अनमोल शब्दों की तूलिका से अपने हृदय के कैनवास में रात भर भावों की चित्रकारी करती है और पसंद न आने पर बार-बार उसे मिटा कर इससे भी सुंदर अभिव्यक्ति की खूबसूरत चित्रकारी करती है….. और जानती हो शांभवी…. ऐसा करते-करते सवेरा हो जाता है और उसके बनाए चित्र उसके आंसुओं की धार में धुल जाते हैं…….. और शांभवी, यह चांद इसलिए भी रात भर जागता है कि ये अगणित तारे और धरती के मानव सुख की नींद सो सकें…..

तभी आसमान में एक तारा टूट कर धरती की ओर आता हुआ दिखाई दिया।शांभवी ने मेजर विक्रम को उस टूटते हुए तारे की ओर संकेत करते हुए कहा...… लेकिन विक्रम जी प्रेम के इस सबसे बड़े उपमान इस चंद्र के होते हुए भी मेरे जीवन का एकमात्र चमकता सितारा हमेशा-हमेशा के लिए मेरे जीवन से ..... मुझसे…. अलग हो गया……. कहां उन्होंने मुझसे वादा किया था कि वे मेरा हमेशा साथ देंगे और कहां वे मुझसे अलग हो गए. आपके प्रेम को स्वीकार नहीं कर पाने का यही एकमात्र कारण है विक्रम जी……

स्तब्ध होकर मेजर विक्रम ने कहा- ओह मुझे पता नहीं था शांभवी…..आय एम सॉरी…….. यह तुमने क्या कह दिया शांभवी…. मैं तो इस टूटते हुए तारे को देखकर आपकी विश मांगने जा रहा था….. वो कहते हैं ना कि टूटते हुए तारे को देखकर जो चीज माँगी जाती है …..वह जीवन में अवश्य पूरी होती है…. क्या तुम मुझे पूरी बात बताओगी शांभवी…. कौन हैं वे?.......

- मेजर साहब, मुझे तो कोई समस्या नहीं ….सारी बात आपको बताने में,पर आपको कठिनाई होगी …. आप थके हुए हैं...... लंबी कहानी है क्या आप सुनना चाहेंगे?

- क्यों नहीं शांभवी, मुझे कोई तकलीफ नहीं होगी। मुझे पूरी बात बताओ,मैं सुनूँगा…..भले ही यह रात बीत जाए और सुबह हो जाए …...न जाने हम दोनों जीवन में इस तरह आगे कभी साथ बैठ पाएँगे या नहीं….

शांभवी-ओके विक्रम जी……

अपनी आंख में उभरते हुए आंसुओं की नन्हीं बूंदों को हाथ से छिपाने की कोशिश करते हुए मेजर विक्रम ने कहा- एक कप कॉफी मिलेगी शांभवी?

मुस्कुराने का प्रयास करते हुए शांभवी ने कहा- क्यों नहीं? अभी लाई।

शांभवी के भीतर जाते ही मेजर विक्रम के मुंह से निकला- मैं कोशिश करूंगा कि शांभवी के जीवन में जो रिक्तता आई है,उसे मैं दूर कर सकूँ।शांभवी की पूरी कहानी सुनने के बाद चाहे जैसी स्थिति बने,यह मेरा संकल्प है कि मैं अपना प्रेम प्रस्ताव वापस नहीं लूंगा।शांभवी भले पूरी कहानी सुनाकर किसी बड़े रहस्य उद्घाटन का वास्ता देकर भले ही मुझे ठुकरा दे।विक्रम सोचने लगे...... और यह मैंने 'प्रस्ताव' शब्द का प्रयोग क्यों किया? प्रेम में कोई प्रस्ताव नहीं होता। प्रेम में बस प्रेम होता है। प्रेम करना होता है और सामने वाले के जीवन से दूर हो जाने के बाद भी हम मन ही मन उसे प्रेम करना नहीं छोड़ते। उसकी मंगल कामना करते हैं और उसके लिए अपना सब कुछ त्याग देने को तत्पर रहते हैं।

.......... मेजर विक्रम उस सैन्य अभियान की यादों में खो गए जब केवल 6 सदस्यों की एक छोटी सी टुकड़ी ने बड़ी बहादुरी से एलओसी पार कर खतरनाक आतंकवादियों के एक लांचिंग पैड को तबाह कर दिया था। जिसमें स्वयं उनकी बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका थी और रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस अनडिक्लेयर्ड सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में कुछ अधिक बताने से मना कर दिया था। रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता के साथ पत्रकारों और मीडिया वालों के सवालों का जवाब देने के लिए सेना मुख्यालय की ओर से ब्रिगेडियर सलीम भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में थे।

एक पत्रकार ने पूछा- जब आप लोगों को अधिक डिटेल नहीं देने थे,तो ये प्रेस कॉंफ्रेंस ही क्यों बुलाई?केवल एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर देते।

ब्रिगेडियर सलीम ने इस सवाल का जवाब देते हुए कहा- हमारी सेना द्वारा कल रात की गई महत्वपूर्ण कार्यवाही का देशवासियों को समुचित संज्ञान हो, यह बताना सेना का कर्तव्य है; इसलिए यह प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई गई है।हम देशवासियों को आश्वस्त करना चाहते हैं कि हमारे देश ने इस महत्वपूर्ण सेक्टर में अपनी रणनीतिक बढ़त बना ली है।...... आप में से अनेक पत्रकार डिफेंस कवर करते आए हैं और मैं आप में से कई को पहचानता भी हूँ,इसलिए आप सब समझ गए होंगे.......। कॉफी हाउस में शांभवी के साथ कॉफी पीते पीते इस वाक्य को सुनकर मेजर विक्रम को गर्व की अनुभूति हुई थी अपने भारत देश के ऊपर.... और उन्हें संतोष भी था कि वे इस टॉप सीक्रेट मिशन के एक सदस्य के रूप में अपनी भी भूमिका निभा पाए............ यह एक ऐसा महत्वपूर्ण मिशन था ,जिसकी रिपोर्ट सीधे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को दी जा रही थी.........

................. मेजर विक्रम का चेहरा भीतर की ओर खुलने वाले दरवाजे से विपरीत दिशा में था।मेजर विक्रम थोड़ी ऊंची आवाज में अपने आप से ही कुछ कह रहे थे।शांभवी कॉफी के प्यालों को लेकर दरवाजे पर पहुंची ही थी कि उनकी बातें सुनकर रुक गई और मेजर विक्रम की बातों को चुपचाप सुनने लगी......... मेजर को शांभवी की उपस्थिति का अहसास नहीं था....... मेजर कह रहे थे..मैं अभी भी सेना के महत्वपूर्ण अभियानों में संलग्न हूं........ फिर भी शांभवी की पूरी बात सुने बिना भी मैं अभी से यह संकल्प करता हूं कि हर परिस्थिति में शांभवी का साथ दूंगा.... .......चाहे अतीत में उसके प्रेम को किसी ने धोखा दिया हो या उसके साथ छल किया हो...... चाहे उसका कोई अपना इस दुनिया में ही न रहा हो...... चाहे किसी घटना के कारण पुरुष जाति से ही उसे नफ़रत हो गई हो....चाहे जो कारण हो..... मैं एक बार अपना प्रेम प्रस्ताव उसके सामने अवश्य रखूंगा चाहे वह मेरे प्रेम को अस्वीकार कर मुझे अपने जीवन से दूर जाने के लिए ही क्यूं न कह दे....... किसी भी स्थिति में मैं उसका दोस्त हमेशा बना रहना चाहूंगा...... शांभवी ने ये सारी बातें चुपचाप सुन लीं.....

........शांभवी स्वयं अपने भावी जीवन का निर्णय तो भविष्य में करती,लेकिन उसे इस बात का संतोष था कि विक्रम जी के रूप में उसे एक अच्छा दोस्त मिला है।दरवाजे पर चुपचाप खड़ी शांभवी ने अब मेजर विक्रम को अपने आने का अहसास कराया और वह कॉफी लेकर बरामदे में मेजर विक्रम की ओर बढ़ी।

(क्रमशः)

(यह एक काल्पनिक कहानी है किसी व्यक्ति,नाम,समुदाय,धर्म,निर्णय,नीति,घटना,स्थान,संस्था,आदि से अगर कोई समानता हो तो वह संयोग मात्र है।)

डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय