Bandhan Prem ke - 11 books and stories free download online pdf in Hindi

बंधन प्रेम के - भाग 11

भाग 11
(31)
...... मुझे लग रहा है अब कहानी का सबसे भावुक पक्ष शुरू होगा शांभवी.... मेजर विक्रम ने शंभवी का चेहरा भांपते हुए कहा.....
शांभवी ने अपने जज्बातों पर नियंत्रण पाते हुए आगे बताना शुरू किया....
.......दीप्ति ने अनमने ढंग से ही सही लेकिन शौर्य सिंह की तीव्र इच्छा जानकर उसे आर्मी की इस बड़ी परीक्षा में एप्लाई करने की अनुमति दे दी।आर्मी की प्रतिष्ठित परीक्षा पास करने के बाद शौर्य सिंह और विपिन दोनों को इंडियन मिलिट्री एकेडमी देहरादून में कड़ी ट्रेनिंग के बाद लेफ्टिनेंट के रूप में तैनाती एक ही रेजिमेंट में एक साथ मिली।यह देश के सबसे पुराने रेजिमेंटों में से एक थी।दोनों की महाविद्यालयी शिक्षा बस अभी पूरी हुई ही थी कि दोनों ने एक बड़ी जिम्मेदारी उठा ली थी।उनकी रेजीमेंट नियंत्रण रेखा के इस पार के एक संवेदनशील इलाके में तैनात थी। इस सेक्टर में आए दिन शत्रु राष्ट्र की ओर से गोलाबारी होती रहती थी। एक बार गोलाबारी शुरू होने के बाद सीमावर्ती गाँवों को पूरी तरह खाली करा लिया जाता था और सैनिकों को छोटे-छोटे तोपों और मोर्टारों से जवाब देना होता था। जब गोलाबारी बढ़ जाती थी तो बड़ी तोपों का भी इस्तेमाल किया जाता था।

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शौर्य सिंह की यादों का सिलसिला चल रहा है।
कुछ ही देर में शौर्य, शांभवी की यादों में खो गया। जब अंतिम रूप से उसे सेना में ज्वाइन करने के लिए केवल 24 घंटे की मोहलत दे गई थी। उसने एक के बाद एक फोन कर मां को और शांभवी दोनों को इस बात की सूचना दे दी थी। उसके घर पहुंचते-पहुंचते शांभवी भी शौर्य सिंह के घर पहुंच चुकी थी। दीप्ति उस समय किसी काम से पास के कस्बे में गई थी।शौर्य सिंह और शांभवी घर में अकेले थे। दोनों बहुत देर तक निःशब्द रहे।फिर शांभवी ने ही बात शुरू की।
" तो तुम चले ही जाओगे?"
"हां शांभवी, आर्मी जॉइन करने के लिए बहुत कम समय दिया गया है।"
" फील्ड में जाकर मुझे भूल तो नहीं जाओगे?"
" नहीं बिल्कुल नहीं, ऐसा तुमने कैसे समझा?"
" प्रायः ऐसा हो जाता है।"
" तो शायद तुम इस बात से डर रही हो कि आर्मी वालों की जान हथेली पर होती है।"
" बिल्कुल नहीं शौर्य जी!मैं जानती हूं कि आर्मी की नौकरी में अपने खतरे हैं लेकिन यह जानते हुए भी कि तुम सेना में जा रहे हो, मैंने तुम्हें ही अपना सब कुछ माना है।और मेरे घर के लोग भी तो मेरे इस निर्णय में साथ हैं मेरे। मेरे पिता कर्नल राजवीर स्वयं आर्मी पृष्ठभूमि से हैं ,इसलिए वे आर्मी वालों को बहुत पसंद करते हैं और तुम जा भी रहे हो तो देश के लिए जा रहे हो।अपना ख़याल रखना" यह कहते हुए शांभवी की आंखें गर्व से चमक उठीं।
" सच कह रही हो शांभवी। तुम्हारे और मेरे इस निर्णय से हम दोनों के भाग्य भी एक साथ जुड़ गए हैं। अब मैं अकेला नहीं हूं और सदैव तुम्हारी शुभकामनाएं और तुम्हारा प्रेम मेरे साथ है ,इसलिए कभी मेरा बाल भी बांका नहीं हो सकता है।"
यह कहते हुए शौर्य सिंह ने शांभवी के हाथों को अपने हाथ में ले लिया।दोनों बहुत देर तक मौन बैठे रहे और मौन भाषा में ही आपस में संभाषण करने लगे। शायद प्रेम की भाषा मूक होती है, बिना ध्वनि के होती है।कल सुबह शौर्य सिंह को सेना की यूनिट में ज्वाइनिंग देने निकल जाना था। वे तब तक यूं ही बैठे रहे जब तक दीप्ति के घर में आने और उसके आवाज देने से दोनों की तंद्रा टूट ना गई।माता ने भी पुत्र प्रेम पर देश प्रेम को वरीयता दे दी थी ।

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शौर्य सिंह मेहनती थे।जॉइनिंग के दो साल के भीतर वे लेफ्टिनेंट से कैप्टन बने और अगले 2 साल पूरा होते ही मेजर। अभी शौर्य सिंह जिन-जिन जगहों पर नियुक्त थे, वे लड़ाई वाली जगह तो थे लेकिन नियंत्रण रेखा के पॉइंट नहीं थे।संवेदनशील जगह तो नियंत्रण रेखा ही हुआ करती है, जहां उसे, न जाने क्या सोचकर तैनाती नहीं दी गई थी। उसने दो एक बार कमांडिंग अफसर से भी कहा। आज फिर उनसे निवेदन किया-
-सर मैं एलओसी पर जाना चाहता हूं।
- क्यों ?एलओसी ही क्यों?
- मैं उस स्थान पर जाना चाहता हूं सर, जहां शत्रुओं से सीधे मुठभेड़ हो।
-ओके शौर्य सिंह!
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......... मेजर शौर्य सिंह का जिगरी दोस्त मेजर विपिन भी इसी टुकड़ी में शामिल है। केवल 8 सदस्यों की छोटी टुकड़ी में ही दो मेजर और एक कैप्टन, क्योंकि इन सब ने कमांडो ट्रेनिंग भी ली हुई है और यह सरहद का विशेष निगरानी कार्य है ....यह कार्य है भी इतना महत्वपूर्ण जिसके लिए इन अधिकारियों की सेवा ली जा रही थी। यह इलाका उन सीमावर्ती क्षेत्रों में से एक है,जहां वायरलेस सेट भी ठीक ढंग से काम नहीं करता है। जहां स्थाई चौकी का निर्माण संभव नहीं है। पिछले महीने सैनिकों की वायरलेस की आपसी बातचीत को आतंकियों द्वारा इंटरसेप्ट कर लिया गया था।इस डर से अब सेटेलाइट फोन से ही काम चलाना पड़ता है ।शायद बिगड़े मौसम और दोपहर को ही हुई हल्की बारिश के बाद या फिर किसी तकनीकी त्रुटि के चलते सेटेलाइट फोन से इस बार भी संचार में दिक्कत हो रही थी।
शौर्य सिंह अभी भी अपने परिवार की फोटो को निहार रहा है।यह फोटो परिवार ने वैष्णो देवी की तीर्थ यात्रा के समय कटरा में खिंचाई थी ,जहां श्रद्धालुओं के द्वारा भजन कीर्तन किया जा रहा था। इस फोटो में चार साल का शौर्य है और वह अपने माता-पिता के बीच सुरक्षित और निश्चिंतता के भाव के साथ खड़ा है,लेकिन उसने देश की रक्षा के लिए 27 वर्ष की छोटी आयु में ही चौबीसों घंटे सीमा पर मुस्तैद रहने का बीड़ा उठाया हुआ है। शौर्य सिंह यह कार्य दिल से करता है। पिछले हफ्ते दीप्ति से उसकी टेलीफोन पर बात हुई है और दीप्ति बार-बार उसे अपना ध्यान रखने को कहती है।
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दो महीने पहले ही उसकी शांभवी से सगाई हुई है। उसके हाथों में शांभवी की पहनाई गई अंगूठी है, जिसे बार-बार छूकर वह हर पल शांभवी के अस्तित्व का अहसास किया करता है।शांभवी के माता-पिता को शौर्य सिंह से विवाह करने के उसके फैसले पर गर्व हुआ था।वे शांभवी की तारीफ भी करते थे कि तुमने एक सैनिक का वरण किया है और इससे बढ़कर गर्व की बात हमारे लिए कुछ नहीं हो सकती है।
दोनों की शादी चार महीने बाद नये साल में होगी, लेकिन शौर्य सिंह को अभी से यह महसूस होता है कि सगाई होते ही शांभवी के साथ उसका जन्म जन्मांतर का नाता जुड़ गया है। माता पिता के साथ वाली फोटो के ठीक नीचे दबा कर रखी गई शांभवी की फोटो को शौर्य सिंह ऊपर निकाल कर रखता है और निहारने लगता है।पिछली छुट्टियों के दौरान ही यह तय हो गया था शौर्य सिंह को ड्यूटी ज्वाइन करते ही बॉर्डर के ऑपरेशनल एरिया में जाना पड़ेगा।शांभवी से आखिरी मुलाकात के समय शौर्य सिंह ने उसे बंद लिफाफे में एक पत्र दिया था और कहा था कि जब मैं बॉर्डर से लौट आऊं तभी उसे खोल कर देखना, उससे पहले नहीं। इस सरप्राइज को शांभवी ने भी जतन कर रखा हुआ है।जी भर कर फोटो को निहारने के बाद शौर्य ने पर्स को अपनी जेब में रखा और गन सीधी करने के बाद दूरबीन लेकर खड़ा हो गया।
कहानी सुनते हुए मेजर विक्रम ने कहा -सचमुच अपनों से दूर ऐसे भाव भरे पल हम सैनिकों की जिंदगी में बार-बार आते हैं शांभवी.... लेकिन हम मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने जज्बातों पर नियंत्रण कर लेते हैं....
"आप ठीक कह रहे हैं मेजर साहब...."

(क्रमशः)
योगेंद्र