Dream--Does not forget-3 books and stories free download online pdf in Hindi

स्वप्न--भुलाए नही भूलता-3

टेंट बड़े लगाए गए थे।एक टेंट में 10 केडिट को रखा गया था।कैम्प की दिनचर्या बड़ी व्यस्त थी।सुबह पांच बजे ही अलार्म बज जाता।नित्य कर्म से जल्दी जल्दी निवर्त होकर पीटी, खेल अन्य कार्यक्रम रात दस बजे तक लगातार चलते रहते।आराम तभी मिलता जब रात को टेंट में अपने बिस्तर पर हम लेटते।और रात को बिस्तर में लेटते ही वह स्वप्न नींद में चला आता।दिन में व्यस्त जरूर रहता लेकिन मन न लगता।क्योकि दिन में जगते हुए भी मुझे वह सपना नजर आता था।
माउंट आबू के इन सी सी कैम्प में गुजारे वो दस दिन भयंकर यंत्रणा से भरे हुए थे।पहले रात में सोते समय या दिन में कभी कभी सपना दिखता था।पर माउंट आबू के कैम्प में तो वह सपना हर क्षण मेरी आँखों के सामने तैरता रहा।अपनी आंखों के सामने बापू की लाश हर समय दिखने लगी।इतना ही नही रह रह कर मेरे दिल से आवाज आती,"बापू मर गये"
इस आवाज को सुनकर मैं बैचेन रहने लगा।कैम्प में जहां दूसरे साथी हंसते खेलते,हंसी ठिठोली,मस्ती करते।मुझे केम्प कैदखाना नजर आने लगा।मैं जैसे तैसे एक एक दिन एक एक पल काटने लगा।आखिर जैसे तैसे दस दिन गुजरे और कैम्प पूरा हुआ।
सभी। कैडेट। वापस जोधपुर जाने की तैयारी करने लगे।कालेज की दीवाली की छुट्टी हो चुकी थी।मैं जोधपुर से चला तब ही सोच लिया था ।मैं जोधपुर न जाकर केम्प खत्म होने पर अपने घर आबूरोड चला जाऊंगा।
और मैने ऐसा ही किया।मैं अपने घर आबू चला गया।बापू बिल्कुल स्वस्थ मिले।मुझे बापू को स्वस्थ पाकर बहुत खुशी हुई थी।बापू को स्वस्थ पाकर भी उस सपने ने मेरा पीछा नही छोड़ा था।मेरा कजिन इन्द्र वही रह रहा था।सुबह वह ड्यूटी पर चला जाता।शाम को आता तब हम घूमने के लिए चले जाते।बापू सुबह आठ बजे आफिस जाते।फिर दो बजे खाना खाने के लिए घर आते।खाने के बाद वह आराम करते।फिर चार बजे चले जाते और रात को नौ बजे तक वापस लौटते।रेलवे क्वाटर में आगे वाले कमरे में भी एक खाट बिछी हुई थी।दिन में बापू उसी खाट पर लेटते।मैं उसी कमरे में बैठा हुआ पढ़ता रहता।बापू मेरे सामने लेटे होते लेकिन वह सपना मेरा पीछा नही छोड़ता था।
आज भी मुझे याद है मानो कल की ही बात हो।उस साल दिवाली नौ नवम्बर की थी।रोज की तरह बापू सुबह आठ बजे ऑफिस चले गए थे।उनके जाने के बाद मेरे दिल से आवाज आई,"बापू मर गए।"
और यह आवाज आने के बाद बापू की लाश मेरी आँखों के सामने साफ दिखने लगी।और मैं घर मे चेन से न रह सका।मैं जल्दी जल्दी तैयार होने लगा।तैयार होने के बाद मैं घर से निकल पड़ा।आबूरोड में आर पी एफ आफिस स्टेशन पर यानी प्लेटफॉर्म नम्बर एक पर ही था।उन दिनों वह छोटी लाइन का स्टेशन था।बजरिया में जाने का एक रास्ता प्लेटफ़ॉर्म से था।बापू ऑफिस के बाहर ही खड़े थे।वह मुझे देखने मे स्वस्थ नजर आ रहे थे।मैं उन्हें देखता हुआ बजरिया चला गया।मेरा एक साथी था पूरन।वह मेरे साथ रेलवे स्कूल में आबू रोड़ में पढ़ा था।बजरिया में वह मुझे मिल गया।वह बोला,"चाय पीते है।"
बजरिया में एक होटल थी।हम उस पर ही चाय पिया करते थे।उसके साथ वहाँ बैठ गया।