Ishq hai sirf tumse - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

ईश्क है सिर्फ तुम से - 8

रग्गा कार को ऑफिस के बेकड़ोर के नजदीक पार्क करता है । और सुलतान के लिए दरवाजा खोलते हुए! एक तरफ खड़ा था। तभी सुलतान अपने चश्मे को पहनते हुए कार से बाहर निकलता है। वैसे तो अभी भी उसका बदन खून से तरबतर था । फिर भी वह ऐसे चल रहा था जैसे मानो पूरी दुनिया को बचाकर आया हो। वह बेकडोर से जाते हुए अपनी प्राइवेट लिफ्ट के सामने खड़ा होता है। तभी रग्गा भागते हुए लिफ्ट का बटन दबाता है । सुलतान लिफ्ट मे दाखिल होते हुए! अपने ऑफिस का बटन दबाता है क्योंकि इस लिफ्ट में किसी को भी आने की इज़ाजत नहीं थी। रग्गा फिर आदर के रूप में सिर झुकाते हुए! सुलतान को जाते हुए देखता है। थोड़ी देर बाद लिफ्ट का दरवाजा सीधा सुलतान के केबिन के कमरे में जाके खुलता है। जो की किसी शानदार फ्लैट से कम नहीं था । २ रुम किचेन बड़ा सा हॉल और उसकी शानो शौकत को दर्शाते हुए कुछ मंहगी चीज़ों से की गई सजावट । वह अपने शर्ट के बटन को खोलकर शर्ट को जमीन पर उतार फेंकता है । उसके जिस्म पर अभी भी खून चिपका हुआ था । उन लोगो का खून जिनका वह अभी कत्ल करके आया है । या फिर उन लोगों का खून जिन्हे वह इससे भी ज्यादा बेरहमी से मारता आया है। उसकी पीठ पर खून के साथ कुछ निशान भी थे जो उसकी उम्र के साथ के तजुर्बे को बयान कर रहे थे की किस माहौल में वहा बड़ा हुआ है। १५ साल पहले कोई का वह मासूम बच्चा जो की एक छोटे से कीड़े मकोड़ों को मरने से बचाता था आज वहीं बच्चा बड़ा होकर जिंदा इंसानों को हैवान की तरह मार रहा है। ये सफर तय करना शायद आसान नहीं था क्योंकि सुलतान ही जानता था कैसे उसने एक एक कर के हर एक उस भाव को मिटा दिया जो उसे इंसान होने का एहसास दिलाती थी। और शायद यहीं वजह है की अब वह धीरे धीरे एक जानवर की तरह रह रहा है। जैसे जंगल में जिसके पास जितनी ताकत वह ही जिंदा रह सकता है। शायद सुलतान का भी कुछ ऐसा ही है जितनी ज्यादा ताकत उतना ज्यादा तुम खुद को सुरक्षित कर पाओगे यह बात उसने अपने घर वालों की मौत के बाद ही सिख ली थी। की अगर तुम कमजोर पड़ गए तो फिर तुम्हारी मौत निश्चित है। तो चाहे जो भी करना पड़े जिंदा रहना है तो लड़ना ही पड़ेगा! और अगर कोई बीच में आए तो उसे रास्ते से ऐसे हटाओ की अगली बार तुम्हारे रास्ते में आने की जुर्रत तो क्या! सोचना भी गुनाह लगे । सुलतान सावर चालू करते हुए! अपने बदन से खून को रगड़ते हुए निकाल रहा था। वह बालो पर हाथ फेरता है तो पानी के साथ साथ खून भी उसके बालो में से निकल रहा था। जब तक सुलतान का शावर खत्म हुआ उसके बाथरूम की सफेद फर्श खून से लाल रंग की दिखने लगी थी । सुलतान टावल को कमर से लपेटते हुए रूम में दाखिल होता है। वह अलमारी खोलते हुए! अपने कपड़े निकलता है और बेड पर रख देता। वह टावल को लेते हुए उसके बदन से पानी की बूंदों को पोंछने लगता है। फिर शर्ट को लेते हुए पहनकर उसके एक एक कर के बटन बंद करने लगता है । वह सामने शीशे में खुद को देख रहा था । मुस्कुराते हुए वह पेंट पहनते हुए टावल को हटा देता है। वह ड्रेसिंग टेबल के नजदीक जाते हुए खुद के बाल को सुखा रहा था । और एक बार भी नजर खुद के प्रतिबिम्ब से नहीं हटाई । मानो जैसे खुद से आंखो ही आंखो में बाते कर रहा था । या फिर खुद की खूबसूरती, ओहदे पर घमंड कर रहा था। की उसके पास हर वह चीज है जो लोग इस दुनिया में पाने की कोशिश करते है। नाम,शोहरत,दौलत,पावर,खूबसूरती किसी भी चीज की कमी नहीं है। पर फिर भी सुलतान को किसी चीज की कमी हर बार खलती है। उसे समझ नहीं आता की ऐसी कौन सी चीज है जिसे सुलतान ने अभी तक नहीं पाया । हर बार यहीं बात पर उसकी सुई अटकी रहती है लेकिन अभी तक जवाब नहीं मिला उसे । सुलतान आखिरीबार खुद को आईने में देखते हुए कोट को पहनते हुए... अपने केबिन में चला जाता है। । वह फिर ऑफिस का दरवाजा अनलॉक करते हुए! उसकी सेक्रेटरी को मेल करता है। तभी थोड़ी देर में दरवाजे पर खटखटाने की आवाज आती है । सुलतान कम इन कहते हुए! उसे अंदर आने के लिए कहता हैं।

राजीव: सर मिस्टर मिस्त्री और मिस खान आ गए हैं। वह मीटिंग रुम में आपका इंतजार कर रहे हैं।
सुलतान: ठीक है! तुम तैयारी करो! पांच मिनिट में वहां आता हूं ।
राजीव: ओके सर! ( इतना कहते ही वह चला जाता हैं। )।

सुलतान अपने टेबल पर से फॉन और कुछ कागजात लेते हुए! मीटिंग के लिए चला जाता है ।


इस्लामाबाद (पाकिस्तान ) :

शाम के करीब सात बजे थे । नाज अपने रूम के बालकनी में खड़े होते हुए चाय पी रही थी । आज जो भी हुआ उसके दिलो दिमाग में घूम रहा था । बार बार फूफी की ओर से रिश्ते की बात दोहराना इससे एक बात तो साफ थी की आज नहीं तो कल उसके अब्बू भी हारकर हां कह देगे । और वैसे भी ना कहने की भी कोई वजह नहीं थी । फूफी बतौर एक इज्जतदार खानदान से ताल्लुकात रखती थी । और सलीम को तो नाज भी अच्छी तरह से जानती थीं । उसके जैसा लड़का जिस किसी की भी किस्मत में होगा वह खुशनसीब होगी । जिस तरह से वह लड़कियों से इज्जत से पेश आता है आज के जमाने में बहुत कम ही देखने को मिलता है । हालाकि हमसफर का रिश्ता बराहीन दोनों के लिए ताजिर साबित होगा इस वाकयात से नाज वाकिफ थी जो मुआशका दोनो के बीच एक हमसफर के तौर पर होना चाहिए वह उन दोनो के दरमियान नहीं था । बावजूद इसके की दोनो के तौर तरीके उसूल बाखुब एक जैसे ही थे फिर भी वह इस रिश्ते से नागवार थी। बा तलब वह सलीम को पसंद करती थी पर एक पर एक दोस्त के एतबार से उससे बढ़कर कुछ भी नहीं। तभी किसी के दस्तक की सदा होती है । वह देखती है तो उसके बाबा थे।

नाज: अब्बू... आजाए अंदर! वहां क्यों खड़े है!? ।
रहमान: नहीं.. वो मैं नमाज के लिए जा रहा था सोचा तुम्हे देखता जाऊं । ( नाज के पास जाते हुए ) ।
नाज: ( मुस्कुराते हुए ) कोई नहीं... आप चाय पिएंगे लेकर आऊ आपके लिए!? ।
रहमान: नहीं! मैं अभी जा ही रहा हूं! वो तो आज तुम कुछ ज्यादा ही खामोश थी इस वजह से।
नाज: हां... वो मैने कॉलेज का काफी सारा काम भी करना था इसीलिए ।
रहमान: अच्छा अब तुम अपने बाबा से भी जूठ बोलने लगी हो! इतनी बड़ी हो गई हो!? ।
नाज: ( सवाल भरे लहजे में अपने बाबा की ओर देखती है। ) हं!? ।
रहमान: जब जब तुम किसी मसले में फसी होती हो तब तब तुम मुझे बाबा के बजाए अब्बू बुलाने लगती हो! ।
नाज: ( आंखे चुराते हुए कहती है। ) ऐसा कुछ नहीं है! बाबा..! ।
रहमान: ( नाज की बात को कांटते हुए ) नाज...! ।
नाज: वो... फूफी का बार बार रिश्ते की बात करना...
रहमान: ( नाज बात पूरी करे उससे पहले ही नाज के सिर पर हाथ रखते हुए ) ज्यादा दिमाग पर जोर ना डालो.... जब तक मैं जिंदा हूं...! ऐसा कोई वाकयात नहीं होगा जिसे तुम्हारी जिंदगी में खलल हो और जो तुम्हे ना पसंद हो! और रही बात बाजी की तो वो मेरा मसला है! मैं देख लूंगा!।
नाज: ( अब्बू को गले लगाते हुए ) आप है इस वजह से तो मैं तनाव से दूर रहती हूं! आपकी वजह से ही मैंने इतना हौसला कर के जीना सिखा है ! । क्योंकि मैने पता है अगर कोई मुसीबत आई भी तो आपने मैने छुपा लेना है और खुद की अकेले लड़ना है उनसे ।
रहमान: ( हंसते हुए ) खैर अभी तो मुझे नमाज के लिए जाना है! इशा के बाद आराम से बात करेंगे ।

नाज सिर को हां में हिलाते हुए हामी भर्ती है। रहमान उसके सिर पर बोसा देते हुए! वहां से चला जाता है। नाज भी अब काफी दुरुस्त महसूस कर रही थी । हमेशा से ही उसके बाबा उसकी ताकत रहे है। जब जब नाज को दिक्कत होती तब तक उसके बाबा उसे सहारा देने आ जाते थे। जैसे उसके बाबा चले गए! नाज चाय पीते हुए ख्यालों में खो जाती है।


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