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वक़्त ने किया ये केसा सितम



शीर्षक = वक़्त ने किया ये केसा सितम





मनोरमा ये गलत होगा, मैंने अपने भाई समान दोस्त से वायदा किया था कि मेरी बेटी ही उसके घर की बहु बनेगी,धुर्व और तारा भी तो बचपन से साथ खेल कूद कर बढ़े हुए है, अब इस तरह उन्हें कैसे जुदा कर सकते है, सारा शहर जानता है कि मैंने और मेरे स्वर्गवासी दोस्त धनंजय ने एक दुसरे की सहमति से ध्रुव और तारा की जिंदगी का फैसला उनके बचपन में ही कर दिया था, की तारा अगर किसी के घर की बहु बनेगी तो वो धनंजय शिकावत का घर होगा " अपनी पत्नि मनोरमा के सामने खडे होकर उसे अपनी बात समझाते हुए संजय जी और कुछ कहते तब ही मनोरमा जी बोल पड़ी


"तब की बात और थी वो भूतकाल था जो बीत गया, तब मैं भी सहमत थी, क्यूंकि मुझे अपनी बेटी का घर उजागर होता नजर आ रहा था, ध्रुव धनंजय भाई साहब और मालती दीदी का इकलौता बेटा था, सिर्फ इतना ही नही लाखो करोडो की प्रॉपर्टी का अकेला हक़दार वो ही था, लेकिन अब वक़्त ने करवट बदल ली है, अब ना तो धनंज्य भाई साहब इस दुनिया में रहे और ना ही उनका वो साम्राज्य जिसे उनका बेटा संभाल लेता, अब तो वो खुद दूसरों के टुकड़ो पर पल रहे है, भगवान कभी किसी दुश्मन के साथ भी ऐसा न करे, तारा मेरी इकलौती बेटी है, उसे नौ महीने मैंने अपनी कोख में पाला है उसे इस तरह आप लोगो के वायदे के भेट नही चढ़ा सकती, जानती बूझती उसे दल दल में नही धकेल सकती इसलिए मैं आज और अभी आपको बता रही हूँ की ध्रुव और तारा का मिलन इस जन्म में संभव नही, आप जाकर मालती दीदी को बता दीजिये कि मैंने जहाँ तारा का रिश्ता किया है वही उसकी शादी करूंगी और हाँ उनसे कहना ध्रुव को समझा देना, वो तारा का पीछा छोड़ दे नही तो फिर मुझसे बुरा कोई ना होगा"



"तुम अच्छा नही कर रही हो, ध्रुव और तारा बचपन के साथी है, तुम उनके प्यार को पैसे के तराजू में नही तोल सकती, माना की आज मालती भाभी और ध्रुव एक बुरे दौर से गुज़र रहे है, और मैं चाह कर भी उनकी मदद नही कर सकता उस दोस्त के परिवार की मदद नही कर सकता जो दोस्त हर दम मेरी मदद करने को तैयार रहता था, मेरी हर परेशानी को अपनी समझ कर उसे सुलझाने में लगा रहता था


मेरा इस तरह अचानक एक्सीडेंट के बाद व्हील चेयर पर आ जाना मुझसे ज्यादा उसे परेशान करता था, यही वजह थी की उसने मेरी बेटी को बचपन में ही अपने बेटे के लिए मांग लिया था की कही उसकी शादी और दहेज़ की चिंता मुझे अंदर ही अंदर ख़त्म न करदे, लेकिन आज देखो क्या से क्या हो गया हर दम दूसरों की परेशानियां सुलझाने वाले मेरे दोस्त का परिवार खुद परेशानियों से घिरा हुआ है और मैं चाह कर भी कुछ नही कर सकता


आज अगर मेरा दोस्त जिन्दा होता उसका कारोबार इस तरह बंद न हुआ होता, उसके अपनों ने ही उसे दीमक की तरह अंदर ही अंदर खोखला न किया होता तो आज मेरे दोस्त का परिवार वक़्त की मार न झेल रहा होता, मुझे तो अब भी विश्वास नही हो रहा है की इन चंद दो तीन सालों में मेरा दोस्त मुझे छोड़ कर चला गया और उसके द्वारा खड़ा किया गया समराज्य पल भर में धोखे फरेब के भेट चढ़ गया, कल तक जो दूसरों को आसरा देते थे वो आज खुद बे आसरा हो गए," संजय जी ने कहा


"आप सब कुछ जानते है, ये भी जानते है की धुर्व और उसकी माँ कितने बुरे दौर से गुज़र रही है, ऐसे में अपनी बेटी उन्हें देना कोई समझदारी नही होगी, उनका सब कुछ उनके झूठे और धोखे बाज चाचा ने ले लिया है, जो कुछ था वो नीलाम हो गया है, वो महल से निकल कर किराये के घर पर आ गए है और नही पता वहाँ कब तक रहे, और जहाँ तक मैं जानती हूँ वो दोनों हमारे घर रहने कभी नही आएंगे, मेरी बेटी की जिंदगी खराब हो जाएगी, मैं नही चाहती की जो तकलीफ मैंने झेली है गरीबी का दौर देखते हुए वही मेरी बेटी धुर्व के साथ शादी के बंधन में बंध कर देखे, इसलिए मैंने फैसला कर लिया है, की उसकी शादी मैं उसी बढ़े घर से आये लड़के से करूंगी जहाँ कम से कम मेरी बेटी खुल कर सास तो ले सकेगी, जहाँ उसे अपनी ख़्वाहिशे मारनी नही पड़ेगी, जो चाहेगी वो पा लेगी


आप को भले ही इस समय मुझमे एक स्वार्थी माँ नजर आ रही होगी, लेकिन ये सब मैं अपनी बेटी की भलाई के लिए कर रही हूँ, खाली प्यार से घर नही चलता, धुर्व की जो हालत है इस समय मुझे नही लगता की वो चंद सालों में सुधर जाए, उनके ऊपर लाखो का कर्जा है, जिसे चुकाते चुकाते ही वो बूढा हो जाएगा कोई भी उसे कितनी तनख्वाह देगा उसमे वो अपने पिता का कर्ज चुकायेगा या मेरी बेटी के सपने साकार कर पायेगा, मैं देख भाल कर जीती जागती मक्खी नही निगल सकती, मैं माँ हूँ तारा की उसे यूं प्यार के खातिर कभी ख़त्म न होने वाली जहन्नम की आग में नही फेक सकती फिर चाहे आप या फिर ये दुनिया मुझे दो प्रेम करने वालों को अलग करने वाला ही क्यूँ न समझें लेकिन मैं अपनी बेटी को वक़्त की मार झेल रहे उस परिवार का हिस्सा नही बनने दूँगी " मनोरमा जी ने कहा


"अब मैं किया कह सकता हूँ, ज़ब तुमने मन बना ही लिया है की अपनी बेटी ध्रुव के साथ नही ब्यानी, तो मत ब्याहना लेकिन मेरी बात याद रखना इंसान को उतना ही मिलता है जितना उसकी किस्मत में लिखा होता है, वक़्त किसी का एक सा नही रहता तुम भले ही आज तारा को धुर्व के हालातों के चलते किसी और के साथ ब्याह दो गी लेकिन इस बात की गारंटी तुम क्या कोई भी धरती पर मौजूद प्राणी नही ले सकता की हमारी बेटी जहाँ ब्याह कर जाएगी उस घर पर कभी भी किसी बुरे वक़्त की मार नही आएगी और हमारी बेटी हमेशा ही वहाँ राज करेगी " संजय जी और कुछ कहते तब ही मनोरमा जी बोल पड़ी


"मुझे कुछ नही सुनना, मैं बस इतना जानती हूँ की अगर सब कुछ देखते भालते धुर्व की शादी तारा से हो गयी तो मेरी बेटी को प्यार तो मिल जाएगा लेकिन मेरी ख्वाहिश उसे अमीर घर की बहु बनते देखना अधूरी रह जाएगी और फिर वो भी मेरी ही तरह जिंदगी भर अपनी खावहिशों का गला घोंट घोंट कर जीने की आदि हो जाएगी "


"तो तुम अपनी ख़्वाहिश के चलते उन दोनों को अलग कर देना चाहती हो, " संजय जी ने कहा


"आपको यही ठोस वजह लगती है तो यही सही, लेकिन मैं अपनी बात से पीछे नही हटूंगी, मैं जान बूझ कर अपनी फूल सी बेटी को प्यार के हाथो मसलने नही दूँगी, मुझे धुर्व या फिर उसकी माँ से कोई आपत्ति नही आज अगर उसके पास वही सब कुछ या उससे कम भी आ जाए जो कभी उनके पास हुआ करता था मैं अभी अपनी बेटी का हाथ उसके हाथ में दे दूँगी लेकिन ऐसा होना अभी नामुमकिन है, अभी उसे जमाना चाहिए वो सब कुछ हासिल करने के लिए और मेरे पास इतना समय नही है उसे देने के लिए " मनोरमा जी ने कहा


"भगवान समझें तुमसे, मैं कुछ नही कह रहा, लेकिन एक बार अपनी बेटी से भी यही सब कह देना जो मुझसे कह रही हो, वो दीवानी तो कब से अपना नाम उसके नाम के साथ जोड़े बैठी है और यहां उसकी माँ किसी और का नाम जोड़ने की तैयारी कर रही है " संजय जी ने कहा और वहाँ से जाने लगे


"मान जाएगी, मैं जानती हूँ उसे कैसे समझाना है, आप बस धुर्व को मेरे घर से दूर रखना वाकी मैं सब संभाल लूंगी " मनोरमा जी ने कहा और वहाँ से चली गयी अपनी बेटी के पास


तारा जिसने सब कुछ सुन लिया था, उसकी माँ के साथ उसकी खूब लड़ाई हुयी और वो दौड़कर धुर्व के पास जा पहुंची और सारी बात बता दी ये भी की उसके लिए किसी का रिश्ता आया है और उसकी माँ उसकी शादी करा रही है


धुर्व के लिए भी तारा से जुदा होना आसान नही था, लेकिन वो भी मजबूर था वो झूटी तसल्ली नही देना चाहता था, उस समय जो उसके हालात थे उनसे वो बखूबी वाकिफ था, वो चाह कर भी अपने बचपन के प्यार तारा को खुद से जुदा नही कर पाना चाहता था, लेकिन वो उसे कोई ख़ुशी भी तो नही दे सकता था अभी के हालात में ज़ब उसके ऊपर वक़्त ने एक अजीब तरह की मुसीबतो का पहाड़ तोड़ दिया था एक तरफ वो अर्श से फर्श पर आ गया था, उसके पिता का देहांत हो गया था, उसकी बीमार माँ की भी ज़िम्मेदारी उस पर थी और तो और उसके चाचा ने उसके पिता के नाम से ना जाने कहा कहा से लोन ले लिया था और वहाँ से फरार हो गया था उन सब को चुकाने के चककर में उसका सब कुछ चला गया लेकिन अभी भी बहुत कुछ बाकी है जो उसे चुकाना है, ऐसे में वो तारा को कुछ भी न दे पाए यहां तक की बुरे हालातों में प्यार पर से भी भरोसा उठ सा जाता है, ज़ब वक़्त की मार और बुरे हालातों से इंसान जूझता है तब प्यार जैसी अनमोल चीज भी उसे बेमोल लगने लगती है


इन्ही सब बातों को सोचते हुए, धुर्व ने तारा से जुदा होना ही बेहतर समझा और उसे ये कह कर वहाँ से भेज दिया की वक़्त ने जो हम पर ये सितम किया है, इस सितम के चलते हमें जुदा होना पड़ेगा शायद हमारा मिलन इस जन्म में होना नही लिखा था, लेकिन देखना अगले जन्म में ये धुर्व इस तारा को अपना बना लेगा


तारा धुर्व से बिछड़ कर बहुत रोई, वो तो खुद को ख़त्म कर लेती, लेकिन धुर्व ने उसे अपनी कसम दे रखी थी इसलिए वो ना चाहते हुए भी किसी और के नाम का सिन्दूर अपनी मांग में भर कर अपने बचपन के प्यार की यादें अपने दिल के कोने में सजो कर अपने घर से विदा हो गयी और बन गयी एक बढ़े घर की बहु


समाप्त........