Geeta se Shree Krushn ke 555 Jivan Sutra - 46 books and stories free download online pdf in Hindi

गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 46


भाग 45 जीवन सूत्र 53 दिन और रात के वास्तविक अर्थ



गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है:-


या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।


यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः।।2/69।।


इसका अर्थ है,सम्पूर्ण प्राणियों के लिए जो रात है,उसमें संयमी मनुष्य जागता है,और जिसमें सब प्राणी जागते हैं तथा सांसारिक सुविधाओं,भोग और संग्रह में लगे रहते हैं,वह आत्म तत्त्व को जानने वाले मुनि की दृष्टि में रात है।


निद्रा और जागरण के अपने-अपने अर्थ होते हैं।सामान्य रूप से मनुष्य दिन में अपने सारे कार्यों को संपन्न करता है और रात्रि में विश्राम करता है।दिन जागने के लिए है तो रात सोने के लिए है।अगर निद्रा और जागरण के प्रतीकार्थ लिए जाएं,तो निद्रा को अज्ञानता और ईश्वर से विमुखता की अवस्था कहा जाएगा।हम जागते हुए भी सोते हैं। जब हमें अपने कर्तव्यों का ज्ञान नहीं होता।जब हम अपने विचारों में सकारात्मकता,सृजनात्मकता और उत्साह से परिपूर्ण ना हों। अगर मनुष्य में विवेक नहीं है। वह ज्ञान प्राप्त करने के प्रति उत्सुक नहीं है तो यह भी निद्रा की अवस्था है। यहां निद्रा का अर्थ अंधकार से है,जब हम अपने विचारों, कार्यों और अभिव्यक्ति में अंधकार से भरे होते हैं।


जागरण का अर्थ है सजगता। अपना कार्य करते हुए उस परम सत्ता का स्मरण। अपने कर्तव्य के प्रति ईमानदारी। संवेदनशीलता। ज्ञान की तलाश। स्वयं के अस्तित्व को जानने की कोशिश। मानव सभ्यता के इतिहास में जिस जिसके जीवन में जागरण हुआ, उसने अपने दिव्य प्रकाश से सारी मानवता को आलोकित करने का कार्य किया। स्वयं की सुख-सुविधाओं,यश,समृद्धि आदि की परवाह न कर मानवता के प्रति निस्वार्थ भाव से कार्य करने वाले लोग जागरण के सबसे बड़े उदाहरण हैं। अगर हर मनुष्य के जीवन में यह जागरण आ जाए तो फिर हमारे समाज की अनेक समस्याएं उत्पन्न ही नहीं होंगी।


इस श्लोक में श्रीकृष्ण ने जिस दिवस और रात्रि की चर्चा की,वह इसी वास्तविक जागरण और निद्रा से संबंधित है।सुख- सुविधाओं,ऐश्वर्य के साधनों,अहंकार की पुष्टि के लिए किए जाने वाले कार्यों के पीछे भागना निद्रा है।सत्य, परोपकार, ईमानदारी और आत्म कल्याण के पथ पर चलना ही जागरण है। इस निद्रा और जागरण को पहचानने के लिए कोई बाहरी मापक नहीं होता।सार्वजनिक व्यवहार और लोकाचार में हमारी आंखें खुली हों।हम समाज के प्रति अपने अच्छे कार्यों से योगदान कर सकें, तो यह जागरण है।हमें निद्रा से इसी जागरण की ओर बढ़ना होगा।


(श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)


डॉ.योगेंद्र कुमार पांडेय