Geeta se Shree Krushn ke 555 Jivan Sutra - 58 books and stories free download online pdf in Hindi

गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 58


भाग 58 जीवन सूत्र 65 सृष्टि चक्र में मानव की महत्वपूर्ण भूमिका

भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है-

एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह यः

अघायुरिन्द्रियारामो मोघं पार्थ स जीवति।।3/16।।

इसका अर्थ है,"हे पार्थ! जो मनुष्य इस लोक में परम्परा से जारी सृष्टि के चक्र के अनुसार आचरण नहीं करता,वह इन्द्रियों के द्वारा भोगों में लिप्त रहने वाला पापपूर्ण जीवन जीता मनुष्य संसार में व्यर्थ ही समय बिताता है।"

पिछले 14 वें और 15 वें श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने सृष्टि के चक्र की चर्चा की।आज से हजारों वर्ष पूर्व श्रीकृष्ण ने इस सृष्टि चक्र के माध्यम से पारिस्थितिकी और जलवायु चक्र का भी पहले ही संकेत कर दिया था।इसे संतुलित रखने के लिए और पर्यावरण व प्रकृति के प्रति मानव का नियंत्रित आचरण अत्यंत आवश्यक है।

वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसें बढ़ रही हैं तो इससे इस धरती के तापमान में वृद्धि हो रही है। वनों की कटाई और अनेक उद्योगों के सुरक्षा मानकों का पालन नहीं करने से जहरीले धुएं के कारण फैलता प्रदूषण धरती के तापमान को बढ़ाता है। इससे ग्लेशियर पिघलते हैं। समुद्र के जल स्तर में वृद्धि होती है। जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा अनियमित हो जाती है और अनेक जगहों पर बाढ़ तो कहीं सूखे की स्थिति का सामना करना होता है। विश्व के कई देशों में जंगलों में लग जाने वाली आग इसी असाधारण तापमान वृद्धि का परिणाम होती है।विकास के नाम पर प्रकृति से छेड़छाड़, वनों की कटाई, अनियोजित ढंग से बनते बांध, असुरक्षित परमाणु कार्यक्रमों आदि के कारण आज न सिर्फ जलवायु चक्र को खतरा उत्पन्न हो गया है, बल्कि इससे मनुष्य का आंतरिक संतुलन भी बिगड़ गया है। सीधी सरल जिंदगी के बदले भौतिक साधनों की वृद्धि की होड़ में सुख शांति और अपनी आत्मा के भीतर झांकने के लिए कोई गुंजाइश नहीं बचती है। ऐसे में मानवीय व्यवहार, संबंध रिश्ते-नाते भी लाभ हानि के गणित पर केंद्रित होते जाते हैं।

जहां मनुष्य ने सृष्टि के संतुलित चक्र की अवहेलना कर इसे क्षति पहुंचाने की कोशिश की तो फिर यह विनाश को ही जन्म देता है।इंद्रिय निर्देशित सुख भोगों पर आधारित हमारा आचरण हमें पाप की ओर ही ले जाता है।ऐसा आचरण व्यक्तिगत स्तर पर हानि के साथ-साथ पूरी सृष्टि के सिस्टम में एक वायरस जैसा अवरोध पैदा कर देता है।हमें इसे मिलकर रोकना ही होगा।

(श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय