Geeta se Shree Krushn ke 555 Jivan Sutra - 82 books and stories free download online pdf in Hindi

गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 82


जीवन सूत्र 117 योग के लिए निरंतर अभ्यास आवश्यक


गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:-

एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः।

स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप।।4/2।।

इसका अर्थ है,हे अर्जुन!इस प्रकार परम्परा से प्राप्त हुए इस योग को राजर्षियों ने जाना,किंतु हे परन्तप ! वह योग बहुत समय बीतने के बाद यहाँ इस लोक में नष्टप्राय हो गया।

राजर्षि वे होते हैं जो राजकुल में जन्म लेते हैं लेकिन तत्वज्ञान प्राप्त करते हैं।ऋषि विश्वामित्र और राजा जनक को इसका श्रेष्ठ उदाहरण माना जा सकता है। विश्वामित्र जी ने तो अपने तप और तेज से इंद्रासन को भी हिला दिया था। राजा जनक अपने आध्यात्मिक ज्ञान के लिए प्रसिद्ध हैं। ऋषि अष्टावक्र राजा जनक के गुरु थे और राजा जनक अष्टावक्र के बीच संवाद को अष्टावक्र गीता के नाम से जाना जाता है।


जीवन सूत्र 118 योग पुराना अपनाने की शैली नई


योग का ज्ञान काल की अवधि में लुप्तप्राय हो गया। इसका तात्पर्य यह है कि या तो यह लोक जीवन में प्रचलन में नहीं रहा या बाद के लोगों ने इसमें रुचि नहीं ली। वैसे भी यह अकाट्य सत्य है कि जब-जब हमारी सभ्यता और संस्कृति आध्यात्मिक ज्ञान के बदले भोगवादी दृष्टि अपनाती है,तब-तब आध्यात्मिक ज्ञान की परंपरा हाशिए पर चली जाती है।यही कारण है कि आध्यात्मिक पुनर्जागरण के लिए भारत भूमि में योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण, योगऋषि पतंजलि,आदि शंकराचार्य से लेकर आधुनिक युग में रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद ने समय-समय पर नवीन पद्धति का उपयोग कर लोगों को भारत की प्राचीन ज्ञान विज्ञान की परंपरा से जोड़ा। आधुनिक युग में भी अनेक व्यक्ति और संस्थाएं इस दिव्य ज्ञान को अपनी-अपनी विधियों से लोगों के सामने प्रस्तुत करते हुए उन्हें आध्यात्मिक जीवन की ओर मोड़ने का प्रयत्न कर रही हैं।


कुरुक्षेत्र के उस मैदान में भगवान कृष्ण भी अर्जुन के सम्मुख एक बार पुनः धर्म की एक नए संदर्भ में विवेचना कर रहे थे। अद्भुत संयोग था यह।

जीवन सूत्र 119 ज्ञान वह है जो जीवन जीना सिखाता है


मैदान युद्ध का और भगवान कृष्ण की बातें तत्व ज्ञान,दर्शन और अध्यात्म की उच्च स्तरीय। सारा ज्ञान, अध्यात्म और दर्शन अगर हमें जीवन जीने की विधियां नहीं सिखाता, तो एक तरह से यह हमारे लिए निरर्थक ही है। भगवान कृष्ण अर्जुन को सहस्त्राब्दियों से चली आ रही उस ज्ञान परंपरा का अनुप्रयोग युद्ध के मैदान में भी करना सिखा रहे थे।भारतीय ज्ञान की परंपरा हर तरह की परिस्थितियों में मार्गदर्शन का कार्य करती है और श्री कृष्ण ने युद्ध के मैदान में भी इसे संभव कर दिखाया था।यह है ज्ञान की अचूक शक्ति।

डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय



(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय